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PREVIOUS FESTIVALS

ताजिया क्या है?

ताजिया हजरत इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीक है। मोहर्रम के दिन विशेष रूप से शिया मुस्लिम बहुत सजावट के साथ ताजिया का निर्माण करते हैं और उसका प्रदर्शन करते हैं। जुलूस…Read More…

मातम का मौका मोहर्रम…Read More…
अपनी गलती मानने का मौका…Read More…
मोहर्रम त्योहार नहीं है…Read More…
कर्बला में है इमाम की असली कब्र…Read More…

Navratri / नवरात्री (21-30 Sep 2017)

शक्ति पूजा का महापर्व नवरात्र

 सबके कल्याण के लिए होती है पूजा 


Rosh Hashanah – A New year festival / रोश हशनाह – नव वर्ष त्योहार (21-23 Sep 2017)

Rosh Hashanah is New year festival in Jewish society. Two-day celebration begins on the first day of New year. Tishrei is the first month…Read More…

यहूदी समाज में रोश हशनाह नया साल का त्यौहार है। नए साल के पहले दिन दो दिवसीय उत्सव शुरू होता है। तिशरेरी यहूदी नागरिक वर्ष का पहला महीना…Read More…

विश्वकर्मा पूजा (17-09-2017)

एक शिल्पी-भवन निर्माता जिनकी होती है पूजा?

हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा जी की पूजा का विधान है। विश्वकर्मा जी को शिल्पी माना जाता है। वे आर्किटेक्ट भी हैं और भवन निर्माता भी। देवों के लिए उन्होंने अनेक नगरों की रचना की है। उनका वाहन हाथी है, क्योंकि भवन निर्माण सामग्री को ढोने के लिए बल चाहिए। विश्वकर्मा की निर्माण शक्ति इतनी प्रबल है कि वे संकल्प मात्र से ही निर्माण को संभव बना देते हैं। रातों-रात नगर खड़ा कर देते हैं।

आज भी भारत में किसी नवनिर्माण के समय विश्वकर्मा जी को याद किया जाता है। कल-कारखानों, फैक्ट्रियों और घरों में भी नाना प्रकार के यंत्रों-मशीनों की पूजा की जाती है।

वास्तव में विश्वकर्मा जी की पूजा निर्माण की पूजा है। हमें हर चीज के निर्माण को महत्व देना चाहिए। निर्माण से ही सृष्टि चलती है।

विश्वकर्मा जी को लेकर कथाएं ज्यादा हैं, उन्हें लेकर हिन्दू शास्त्रों में बहुत ज्यादा कुछ नहीं मिलता है। कई कथाएं प्रचलित हैं। जैसे पांडवों के लिए कृष्ण के कहने पर विश्वकर्मा ने खांडवप्रस्थ नगर का निर्माण किया था। ठीक इसी तरह से कृष्ण के मित्र सुदामा के लिए भवन निर्माण और न केवल सुदामा बल्कि सुदामा के गांव के सभी लोगों के लिए भवन निर्माण का कार्य विश्वकर्मा जी ने करवाया था।

गुरु अमरदास साहिब की ज्योतिजोत (पुण्यतिथि) (16-09-2017)

गुरु ने कहा, पहले पंगत फिर संगत

रामानंदियों के यहां यह परंपरा रही है कि पहले भजन और उसके बाद भोग, लेकिन सिखों के तीसरे गुरु अमरदास साहिब ने पहले भोग और फिर भजन की परंपरा को शुरू किया। उन्होंने पहले पंगत फिर संगत का नारा दिया। उनका कहना था कि लोगों को पेट भरा रहेगा, तो उनका भजन या सत्संग में मन लगेगा। यह कहा भी जाता है कि भूखे पेट न भजन गोपाला। सिखों में लंगर की परंपरा समृद्ध है। वे पूरे समाज में बहुत लोकप्रिय हुए। उन्होंने जाति प्रथा को भी नकारा, सती प्रथा का विरोध किया।

वे 73 की उम्र में गुरुगद्दी पर बैठे

गुरु अमरदास जी महाराज पूर्ण ज्ञान की अवस्था में ही गुरु गद्दी पर विराजमान हुए थे। वे 16 अप्रैल 1552 में 73 वर्ष की उम्र में गुरु गद्दी पर विराजमान हुए और 22 वर्ष तक गद्दी पर रहे। 16 सितंबर 1574 को उन्होंने देहत्याग दिया। इस दिन को सिख पंथ में गुरु अमरदास जी महाराज के ज्योतिजोत पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में आपके 907 सबद शामिल हैं।

गुरुरामदास साहिब (गुरगड्डी, ज्योतिजोत)

सिखों के एक ऐसे गुरु जो जिस दिनांक को गुरुगद्दी पर बैठे थे, 7 वर्ष बाद उसी दिनांक को वे ज्योतिजोत भी हुए। सिखों के चौथे गुरु रामदास जी साहिब 16 सितंबर 1574 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए थे। आप तीसरे गुरु अमरदास जी साहिब के दामाद थे। आप 40 की उम्र में गुरु गद्दी पर विराजमान हुए और लगभग 7 वर्ष तक गुरु गद्दी पर रहे। आपने 16 सितंबर 1581 को देह त्याग दिया। इस दिन इनका ज्योतिजोत मनाया जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में आपके 688 सबद शामिल हैं।

गुरु अर्जनदेव साहिब (गुरगड्डी)

एक महान विद्वान गुरु अर्जनदेव साहिब

सिखों में गुरु अर्जनदेव जी का नाम बहुत श्रद्धा से लिया जाता है। वे केवल एक धर्मगुरु ही नहीं, वे अपने समय के एक बड़े विद्वान थे। उन्होंने ही गुरुग्रंथ साहिब का पहला संग्रह तैयार किया था। गुरुग्रंथ साहिब में उनके 2218 सबद शामिल हैं। वे चौथे गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे। पिता के निधन के बाद 16 सितंबर 1581 को इन्होंने गुरु गद्दी संभाली। इन्होंने अमृतसर को विकसित किया, स्वर्ण मंदिर का निर्माण करवाया। आपने ही प्रसिद्ध सुखमनी साहिब की रचना की, जिसे शांति की प्रार्थना कहा जाता है। सुखमनी साहिब गुरुग्रंथ साहिब में शामिल है, जिसका हर गुरुद्वारे में श्रद्धा के साथ पाठ किया जाता है।

सिखों के पहले शहीद गुरु कौन?

गुरु अर्जनदेव साहिब अपने समय के सबसे लोकप्रिय संत व समाजसेवी थे। अपने जीवन में अनेक बड़े कार्य आपने किए। आपकी विद्वता तत्कालीन मुगल बादशाह को परेशान कर रही थी। आपकी ख्याति इतनी थी कि सिख विचारों का प्रचार तेजी से होने लगा था। ऐसे में कट्टरपंथियों ने उनका विरोध शुरू किया। गुरु जी अपनी राह छोडऩे को तैयार नहीं हुए। उन्होंने अपने विचारों पर टिके रहने का पूरे समाज को संदेश दिया। उन्होंने प्रेम का रास्ता नहीं छोड़ा। उन्हें तरह-तरह से प्रताडि़त किया गया और अंतत: कठोर प्रताडऩा सहते हुए गुरु अर्जनदेव साहिब ने अपना देह त्यागा।

इस प्रताडऩा और शहादत के बाद ही सिखों ने सैनिक होने की ओर कदम बढ़ाया। गुरु अर्जनदेव साहिब के बाद उनके पुत्र हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर विराजमान हुए और उन्होंने दो तलवारों को धारण किया। एक तलवार अत्याचारियों का जवाब देने के लिए और दूसरी तलवार गरीबों-कमजोरों की रक्षा के लिए।

JivitPutrika / जीवितपुत्रिका व्रत (13-09-2017)

गुरु ग्रन्थ साहब की जयंती

Saturday, 01 सितम्बर 2017

हम नहिं चंगे, बुरा नहिं कोई

अर्थात हम यह अहंकार न पालें कि हम अच्छे हैं और साथ ही हम यह नहीं मानें कि दुनिया के दूसरे सारे लोग बुरे हैं। प्रेम का यही रास्ता है, प्रेम भीतर देखता है और जगाता है, सुधरता है, तो दुनिया सुधरती है।

दुनिया में जितने भी धर्मग्रंथ रचे गए हैं,… Read More….

दुनिया का सबसे सहज धर्मग्रंथ कौन है?

श्रीगुरुग्रंथ साहिब दुनिया का सबसे सहब धर्मग्रंथ है। सिखों के पंचम गुरु श्रीअर्जुनदेव जी ने गुरुनानकदेव सहित सभी गुरुओं की वाणी को संकलित करके पहली बार…Read More..

दुनिया का एक ग्रंथ जो गुरु घोषित है?

गुरुनानकदेव से लेकर गुरुगोविंद सिंह जी तक सिखों के दस गुरु हुए। गुरुगोविंद सिंह जी ने गुरु परंपरा को नया रूप देते हुए …Read more..