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Rath_Yatra - agaadhworld

Rath_Yatra

श्री जगन्नाथ रथ यात्रा

हिन्दू परंपरा में भगवान जगन्नाथ का स्थान महाप्रभु के रूप में है। भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया था और कृष्ण ही कालांतर में भगवान जगन्नाथ के रूप में स्थापित हुए। वे हिन्दुओं के चार धाम में से एक पुरी के अधिष्ठाता देवता हैं। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मूल मठों में से एक गोवद्र्धन मठ पुरी में ही भगवान जगन्नाथ का मंदिर स्थित है। ओडिशा के समुद्रतटीय शहर पुरी को जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं और यहीं प्रति वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन होता है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अलग-अलग रथों पर विराजमान होकर मौसी मां के मंदिर जाते हैं और लगभग एक पखवाड़े बाद वे वापस अपने मंदिर में आ विराजते हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की विराजित प्रतिमाओं को रथों में सजाकर मौसी मां – गुंदेचा मां के मंदिर लाया जाता है। विशाल जनसमूह इस धार्मिक कृत्य में भाग लेता है।
पुरी से अमरीका तक विश्व में जहां भी जगन्नाथ मंदिर है, वहां-वहां यह रथयात्रा अनिवार्य रूप से निकाली जाती है। विशेष रूप ओडिया और बंगाली समाज के लोग रथयात्रा महोत्सव को बहुत धूमधाम से मनाते हैं।

भगवान क्यों बीमार पड़ते हैं?

श्री जगन्नाथ के बारे में कई लोग यह आश्चर्य करते हैं कि क्या कोई ऐसा भगवान भी है, जो बीमार पड़ता है, जिसे काढ़ा-दवा देने की जरूरत पड़ती है, जो लगभग एक पखवाड़े बीमार रहने के बाद स्वस्थ होता है और आंखे खोलता है, जिसे हवा-पानी बदलने के लिए रथ पर सवार कराकर दूसरी जगह ले जाया जाता है। जी यह सच है, भगवान जगन्नाथ के बारे में यही लोक मान्यता है। वास्तव में वे लोक देवता हैं, उनका नाम कहीं भी पुराने हिन्दू शास्त्रों में नहीं मिलता है। वे शास्त्र धर्मिता के निकट नहीं, लोकधर्मिता के निकट के भगवान हैं। उन्हें लोक की निगाह से ही देखते हुए समझा जा सकता है।


श्री जगन्नाथ जी को ऐसे समझें

कुछ धर्म व विश्वास लोक आधारित होते हैं, तो कुछ धर्म और विश्वास शास्त्र आधारित होते हैं। दुनिया के जो दो सबसे ज्यादा माने जाने वाले धर्म हैं – ईसाई और मुस्लिम, ये दोनों ही शास्त्र आधारित धर्म हैं। ईसाई से आप बाइबिल नहीं छीन सकते और मुस्लिम से कुरआन। इन दोनों धर्मों में इन शास्त्रों – बाइबिल और कुरआन के अनुरूप ही समाज का संचालन होता है। इन दोनों समुदाय के लोग शास्त्रधर्मी हैं।
लेकिन इनसे अलग भी धार्मिक विश्वास हैं, धर्म की दुनिया में लोकधर्मिता भी बहुत प्रभावी होती है। लोक या फोक की दुनिया अलग है। जैसे दुनिया के आदिवासी समाजों में भगवान या देवता के बारे में अवधारणा अलग है। ऐसे अनेक आदिवासी समुदाय हैं, जो किसी न किसी कारण से ईश्वर से नाराज भी होते हैं। इतने नाराज होते हैं कि ईश्वर की प्रतिमा को अपने घर और गांव से बाहर निकाल देते हैं। फिर जिस दिन ईश्वर पर खुश होते हैं या जिस दिन उनकी मनौती पूरी होती है, उस दिन ईश्वर प्रतिमा को गाजे-बाजे के साथ मान मनौव्वल करते हुए अपने गांव-घर में लाकर पुन: स्थापित करते हैं।
लोकधर्मी विश्वास के लोग ईश्वर को अपने से अलग नहीं मानते, इसलिए उनका ईश्वर कभी बीमार भी पड़ता है, काढ़ा-दवा भी पीता है और स्वस्थ होकर यात्रा पर भी निकलता है। शास्त्रधर्मिता बोलती है, ईश्वर के सामने पूर्ण समर्पित हो जाओ और लोकधर्मिता बोलती है, अपने ईश्वर को अपने जैसा ही मानो। शास्त्रधर्मिता सवाल का विरोध करती है, जबकि लोकधर्मिता सवाल करने में विश्वास करती है।

भगवान जगन्नाथ लोकधर्मिता के निकट हैं। उनकी विचित्र छवि, विशाल गोल नयन, अर्ध हस्त, अर्ध अंग लोकधर्मिता से ही संभव है। शास्त्रधर्मी लोग अक्सर यह सवाल करते हैं कि ये भला कैसी प्रतिमा है। जवाब यह भी मिलता है कि यह एक तांत्रिक प्रतिमा है।


जगन्नाथ मंदिर पर कई आक्रमण

एक विश्वास दुनिया में दूसरे विश्वास पर कैसे हमले कर सकता है, इसका एक बड़ा उदाहरण पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर है। ऐसे अनेक मौके आए हैं, जब भगवान जगन्नाथ को समझने में भूल हुई है। मंदिर को गिराने और भगवान की प्रतिमा को नष्ट करने की भी कोशिश हो चुकी है। जगन्नाथ मंदिर पर करीब 18 बार आक्रमण हो चुके हैं। करीब 10 बार ऐसे हमले हुए हैं, जब मंदिर से प्रतिमा को हटाकर कहीं छिपाना पड़ा। और तो और, करीब तीन बार तो मंदिर पर हमला उन हिन्दू सेनापतियों ने किया, जिनका भगवान जगन्नाथ पर विश्वास नहीं था। मुगल शासन के दौर में जब औरंगजेब बादशाह था, तब 1682 से 1707 तक 25 साल तक मंदिर में पूजा तक बंद हो गई थी। वर्ष 1708 में प्रतिमा फिर स्थापित हुई, पूजा शुरू हुई और रथयात्रा भी निकली। विडंबना देखिए, भगवान के सेवकों का उदार भाव देखिए, भगवान के रथ के आगे-आगे झाड़ू़ लगाने की परंपरा का निर्वाह खुर्दा के राजा, जो मुस्लिम हो गए थे, हाफिज कादर ने किया। यह मंदिर लगातार सिद्ध करता है कि मिलकर रहने और एक दूसरे को समझने और एक दूसरे का आदर करने की राह नहीं छोडऩी चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं दूसरे धर्म द्वारा अनेक हमले झेल चुका मंदिर कट्टर विधर्मियों को आज भी प्रवेश नहीं देता। यह प्रवेश परस्पर सद्भाव से ही प्राप्त हो सकता है।


15 दिन क्यों बीमार रहते हैं श्री जगन्नाथ ?…Read More…

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