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दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं?
भाग – 2
लेखक : अगाध
हिन्दू परंपरा में अब तक नौ ही अवतार हुए हैं, लेकिन अरब या ग्रीक परंपरा में अनेक प्रोफेट या पैगंबर हो चुके हैं। प्रोफेट शब्द का अर्थ है – प्रवक्ता। प्रोफेट का मतलब हुआ ईश्वर का प्रवक्ता। कुछ यहूदियों की मानें, तो दुनिया में 12,00,000  प्रोफेट हुए हैं। हालांकि इनमें से ऐसे प्रोफेट जिन्हें सब जानते हैं या जो ज्यादा चर्चित हैं, उनकी संख्या 55 है। इनमें से 45 पुरुष हैं और 7 महिलाएं हैं। अरबी व ग्रीक परंपरा में कई पति-पत्नी, दोनों ही प्रोफेट के रूप में माने गए हैं।

खास बात यह है कि प्रोफेट की एक ही परंपरा से यहूदी, ईसाई और मुस्लिम जुड़े हुए हैं, बहाई मत या धर्म को भी इसी प्रोफेट परंपरा में माना जा सकता है। चारों ही धर्म एक ही प्रोफेट परंपरा को मानते हैं। अब यह बात अलग है कि धर्म के हिसाब से कोई किसी प्रोफेट को कम मानता है और किसी को ज्यादा मानता है।


आदि पैगंबर थे हजरत इब्राहीम

हजरत इब्राहीम को यहूदी बहुत मानते हैं और मुसलमान भी। इब्राहीम पहले प्रोफेट थे, जिन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था और एकेश्वरवाद पर जोर देते हुए उसे आगे बढ़ाने के लिए कहा था। हालांकि यहूदियों ने इस बात को बहुत मन से स्वीकार नहीं किया, लेकिन अरब देशों में धीरे-धीरे मूर्ति पूजा के खिलाफ माहौल बना और इसके बीज पैगंबर हजरत इब्राहीम ने बो दिए थे। ऐसा मालूम पड़ता है कि इब्राहीम का परिवार बहुत बड़ा और प्रभावी था और धार्मिक तो था ही। ऐसा माना जाता है कि इसी परिवार में आगे चलकर पैगंबर दाऊद, पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा मसीह और पैगंबर हजरत मोहम्मद भी हुए।

कौन हैं कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह

पैगंबर या प्रोफेट परंपरा में पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा और पैगंबर मोहम्मद का सबसे ज्यादा सम्मान है। गौर करने की बात है कि पैगंबर मूसा यहूदियों के मुख्य सम्मानित पैगंबर हैं, तो पैगंबर ईसा मसीह ईसाइयों के महान पैगंबर हैं, तो पैगंबर हजरत मोहम्मद मुसलमानों के अंतिम पैगंबर हैं।
यहूदी समुदाय ईसा मसीह और हजरत मोहम्मद को बहुत नहीं मानता, ईसाई समुदाय ईसा मसीह और पैगंबर मूसा को मानता है, लेकिन मुसलमान तीनों ही पैगंबरों को मानते हैं। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मूसा ऐसे पहुंचे हुए पैगंबर थे कि अल्लाह से बातें किया करते थे – इसलिए उन्हें कलीमुल्लाह कहा जाता है। पैगंबर ईसा के बारे में कहा जाता है कि वे ईश्वर की आत्मा या रूह थे, इसलिए उन्हें रूहुल्लाह कहा जाता है। हजरत मोहम्मद को ईश्वर या अल्लाह का दूत माना जाता है, इसलिए उन्हें रसूलल्लाह कहा जाता है।
कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह तीनों एक ही परिवार से आते हैं, हालांकि तीनों का समय अलग-अलग है। कलीमुल्लाह ईस्वी पूर्व 1400 में हुए थे, उसके बाद रूहुल्लाह हुए और रूहुल्लाह के 570 साल बाद रसूलल्लाह हुए।  क़ुरआन में इन तीन पैगंबरों सहित 25 पैगंबरों का नाम आया है। हालांकि एक हदीस के अनुसार, 1,24,000 से ज्यादा पैगंबर या प्रोफेट इतिहास में हो चुके हैं। खास बात यह भी है कि पैगंबरों की परंपरा सृष्टि के प्रारंभ तक जाती है और ऐसा लगता है कि हिन्दुओं के कुछ देवता भी यहूदी, ईसाई और इस्लामी परंपरा के अंतर्गत पैगंबर के रूप में देखे गए हैं। कुछ पैगंबरों की साम्यता हिन्दुओं की देवताओं से है।
अरब में एक समय था, जब कई प्रभावी लोग हुए, जिन्होंने खुद को प्रोफेट या पैगंबर कहा। एक ही समय में अनेक प्रोफेट निवास कर रहे थे।

दुनिया में कितनी महिला पैगंबर या प्रोफेट ?

यहूदी धर्मग्रंथों के अनुसार या बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार, पहली महिला प्रोफेट थीं – मिरियम। मिरियम प्रोफेट मूसा और प्रोफेट एरोन की बहन थीं। ईश्वर के प्रति संगीतमय भक्ति और नृत्य में वे लगी रहती थीं।
दूसरी महिला प्रोफेट थीं देवोराह। वे अत्यंत न्यायप्रिय और बुद्धिमान महिला थीं, लोग उनके पास फैसले के लिए दूर-दूर से आते थे। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध युद्ध का भी नेतृत्व किया था। प्रोफेट देवोराह को इजराइल देश की माता भी कहा जाता है।
तीसरी महिला प्रोफेट का नाम नहीं मिलता, लेकिन वे प्रोफेट ऐजैह की पत्नी थीं। उन्हें प्रोफेटेस नाम से ही पुकारा जाता है।
चौथी महिला प्रोफेट हैं – हल्दाह। वे अपने समय में बहुत बुद्धिमान और प्रभावी महिला थीं, जिनके पास विद्वान लोग भी सलाह के लिए भेजे जाते थे। पांचवीं महिला प्रोफेट हैं – नोआदियाह। वे अपने समय में इजराइल में प्रभावी थीं, लेकिन इनको लेकर थोड़ा विवाद भी है।
एजिकीयल की लिखी किताब में अनेक महिला प्रोफेट का जिक्र है, लेकिन सबको मान्यता नहीं मिली। एक अन्य मान्यता के अनुसार, ये हैं 7 महिला प्रोफेट – साराह, मिरियम, देबोराह, हन्नाह, हल्दाह, अबीगैल और इस्थर। आपत्ति करने वाले यह भी कहते हैं कि साराह को केवल उनकी सुंदरता की वजह से प्रोफेट कह दिया गया था। खास बात यह है कि महिला प्रोफेट की मान्यता केवल इजराइल में ही है। ईसाई धर्म और इस्लाम इस पर ज्यादा जोर नहीं देता या खामोश रहता है।

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