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मूर्ति पूजा का विरोध – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png मूर्ति पूजा का विरोध – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 Dayanand Jayanti / दयानंद जयंती http://agaadhworld.in/dayanand-jayanti/ http://agaadhworld.in/dayanand-jayanti/#respond Thu, 28 Feb 2019 19:29:45 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3832 दयानंद जयंती तर्क की कसौटी पर सबसे खरे संत दयानंद सरस्वती दयानंद सरस्वती को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता

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दयानंद जयंती

तर्क की कसौटी पर सबसे खरे संत दयानंद सरस्वती

दयानंद सरस्वती को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है। यह कहा जाता है कि उन्होंने भारतीयों के मन को जगाया और तार्किक स्वाधीन सोचने के लिए प्रेरित व विवश किया। उन्होंने पूरा जीवन समाज को अंधविश्वास से उबारने में लगा दिया। समाज सुधार की दिशा में नाना पकार के प्रयोग किए। विश्व के तमाम महत्वपूर्ण धर्म ग्रंथों का उन्होंने अध्ययन किया था। उन्होंने न केवल हिन्दू धर्म ग्रंथों की विवेचना की, बल्कि उन्होंने ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिक्ख इत्यादि धर्मों पर भी खूब गहराई से विचार किया था। ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार, 12 फरवरी 1824 को टंकारा, गुजरात में उनका जन्म हुआ था और 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में उनका निधन हुआ। उनका सबसे बड़ा काम यह है कि उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, एक ऐसा समाज जो आज भी संपूर्ण समाजों की सेवा कर रहा है।


मूर्ति पूजा का विरोध

दयानंद सरस्वती ने मूर्ति पूजा का खूब विरोध किया। वे जहां भी गए, उन्होंने बड़े-बड़े पंडितों को यह चुनौती दी कि वे सिद्ध करें कि वेदों में मूर्ति पूजा करने के बारे में कहां लिखा गया है। वे अपनी बात वेद और तर्क के आधार पर ही रखते थे। संस्कृत भाषा पर उनकी पकड़ बहुत अच्छी थी और झूठ-कुतर्क-अंधविश्वास को वह तत्काल धूल चटा देते थे। इस कारण बहुत से लोग उनके विरोधी हो गए थे। उनका प्रभाव इतनी जल्दी होता था कि भारत में हजारों लोगों ने अपने घर में रखी प्रतिमाओं को निकाल बाहर किया। बड़ी संख्या में मूर्तियों को नदियों में बहा दिया।


अंधविश्वासों पर सबसे कड़ा प्रहार

ऐसा नहीं है कि दयानंद सरस्वती केवल हिन्दुओं की कमियों पर प्रहार करते थे। उन्होंने जब भी मौका मिला, ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिक्ख इत्यादि धर्म से जुड़ी कमियों को भी सबके सामने रखा। वह बाइबिल के सहारे ही ईसाइयों की कमियों को दर्शा देते थे। वे कुरआन की भी कमियों पर उंगली रख देते थे। इस मामले में उनकी रचना ‘सत्यार्थप्रकाश’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने तर्क देकर अंधविश्वासों पर प्रहार किया है। वे सच बोलने में पीछे नहीं रहते थे और तर्क के लिए हमेशा तैयार रहते थे। जिस वैज्ञानिक व तार्किक विधि से उन्होंने हिन्दू धर्म को देखा, ठीक उसी तरह से उन्होंने दूसरे धर्मों को भी देखा।


सच के लिए दी जान

देश में राजा लोग कई शादियां करते थे और रखैलें भी रखते थे। जोधपुर के तत्कालीन राजा जसवंत सिंह जी की भी एक प्रिय रखैल थी – नन्हीं जान। राजा का काफी समय नन्हीं जान के साथ गुजरता था। एक दिन दयानंद जी ने राजा को नन्हीं जान की पालकी को कंधा लगाते देख लिया, फिर क्या था – उन्होंने राजा को प्रवचन दिया कि राजाओं के ऐसे ही कृत्यों और अय्याशियों की वजह से देश की दुर्दशा हुई है। वे खूब नाराज हुए, यहां तक कह दिया कि – सिंह अब कुत्तों का अनुकरण करने लगे हैं। राजा में तत्काल सुधार आया, लेकिन नन्हीं जान दयानंद जी की दुश्मन बन गई। जोधपुर में गहरा षडयंत्र हुआ, जिसमें दयानंद से नाराज चल रहे अंग्रेजों का भी हाथ बताया जाता है। उन्हें 29 सितंबर 1883 को पीने के लिए दूध दिया गया, जिसमें कांच के बहुत बारिक टुकड़े मिलाए गए थे। दयानंद जी की सेहत बिगड़ गई। उन्होंने दोषियों को कुछ न कहा, बल्कि दूध में कांच मिलाने वाले रसोइए को जोधपुर से जान बचाकर भागने में भी मदद की। इलाज कठिन था, लेकिन उसमें कोताही हुई। 16 अक्टूबर को उनके शिष्य उन्हें लेकर जोधपुर से निकले और माउंट आबू, उदयपुर पहुंचे। वहां से इलाज के लिए 27 अक्टूबर को अजमेर लाया गया। जहां दीपावली के दिन 30 अक्टूबर की शाम दयानंद जी ने भिनाय कोठी पर अपना शरीर त्याग दिया। उनकी इच्छा के अनुसार, उनका अवशेष जहां बिखेरा गया, वहां आज ऋषि उद्यान है, अन्नासागर-अजमेर के किनारे।


दयानंद सरस्वती से क्या सीखा जाए?

1 – हर चीज को तर्क और सच्चाई की कसौटी पर कसो।
2 – सुनी-सुनाई या पढ़ी-पढ़ाई बात पर विश्वास न करो।
3 – धर्म बुरा नहीं है, उसके उद्देश्य को ठीक से समझो।
4 – कुरीतियों से दूर रहो, अंधविश्वास के शिकार न बनो।
5 – जो विद्या व धर्म प्राप्ति के कर्म हैं, वही करने चाहिए।
6 – झूठ को रोको, अन्यथा संसार में अनर्थ हो जाएगा।
7 – जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करे, वही मनुष्य है।
8 – माता-पिता-आचार्य और अतिथि की सेवा जरूर करो।
9 – अपनी इन्द्रियों को वश में करो, ताकि चित्त न भटके।
10 – उदार रहो, परस्पर प्रेम और सहयोग का भाव रखो।

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दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं? http://agaadhworld.in/dunia-me-kitne-paigambar-ya-profet-hue/ http://agaadhworld.in/dunia-me-kitne-paigambar-ya-profet-hue/#comments Thu, 25 Jan 2018 19:47:25 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3764 दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं? भाग – 2 लेखक : अगाध हिन्दू परंपरा में अब तक नौ

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दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं?
भाग – 2
लेखक : अगाध
हिन्दू परंपरा में अब तक नौ ही अवतार हुए हैं, लेकिन अरब या ग्रीक परंपरा में अनेक प्रोफेट या पैगंबर हो चुके हैं। प्रोफेट शब्द का अर्थ है – प्रवक्ता। प्रोफेट का मतलब हुआ ईश्वर का प्रवक्ता। कुछ यहूदियों की मानें, तो दुनिया में 12,00,000  प्रोफेट हुए हैं। हालांकि इनमें से ऐसे प्रोफेट जिन्हें सब जानते हैं या जो ज्यादा चर्चित हैं, उनकी संख्या 55 है। इनमें से 45 पुरुष हैं और 7 महिलाएं हैं। अरबी व ग्रीक परंपरा में कई पति-पत्नी, दोनों ही प्रोफेट के रूप में माने गए हैं।

खास बात यह है कि प्रोफेट की एक ही परंपरा से यहूदी, ईसाई और मुस्लिम जुड़े हुए हैं, बहाई मत या धर्म को भी इसी प्रोफेट परंपरा में माना जा सकता है। चारों ही धर्म एक ही प्रोफेट परंपरा को मानते हैं। अब यह बात अलग है कि धर्म के हिसाब से कोई किसी प्रोफेट को कम मानता है और किसी को ज्यादा मानता है।


आदि पैगंबर थे हजरत इब्राहीम

हजरत इब्राहीम को यहूदी बहुत मानते हैं और मुसलमान भी। इब्राहीम पहले प्रोफेट थे, जिन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था और एकेश्वरवाद पर जोर देते हुए उसे आगे बढ़ाने के लिए कहा था। हालांकि यहूदियों ने इस बात को बहुत मन से स्वीकार नहीं किया, लेकिन अरब देशों में धीरे-धीरे मूर्ति पूजा के खिलाफ माहौल बना और इसके बीज पैगंबर हजरत इब्राहीम ने बो दिए थे। ऐसा मालूम पड़ता है कि इब्राहीम का परिवार बहुत बड़ा और प्रभावी था और धार्मिक तो था ही। ऐसा माना जाता है कि इसी परिवार में आगे चलकर पैगंबर दाऊद, पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा मसीह और पैगंबर हजरत मोहम्मद भी हुए।

कौन हैं कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह

पैगंबर या प्रोफेट परंपरा में पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा और पैगंबर मोहम्मद का सबसे ज्यादा सम्मान है। गौर करने की बात है कि पैगंबर मूसा यहूदियों के मुख्य सम्मानित पैगंबर हैं, तो पैगंबर ईसा मसीह ईसाइयों के महान पैगंबर हैं, तो पैगंबर हजरत मोहम्मद मुसलमानों के अंतिम पैगंबर हैं।
यहूदी समुदाय ईसा मसीह और हजरत मोहम्मद को बहुत नहीं मानता, ईसाई समुदाय ईसा मसीह और पैगंबर मूसा को मानता है, लेकिन मुसलमान तीनों ही पैगंबरों को मानते हैं। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मूसा ऐसे पहुंचे हुए पैगंबर थे कि अल्लाह से बातें किया करते थे – इसलिए उन्हें कलीमुल्लाह कहा जाता है। पैगंबर ईसा के बारे में कहा जाता है कि वे ईश्वर की आत्मा या रूह थे, इसलिए उन्हें रूहुल्लाह कहा जाता है। हजरत मोहम्मद को ईश्वर या अल्लाह का दूत माना जाता है, इसलिए उन्हें रसूलल्लाह कहा जाता है।
कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह तीनों एक ही परिवार से आते हैं, हालांकि तीनों का समय अलग-अलग है। कलीमुल्लाह ईस्वी पूर्व 1400 में हुए थे, उसके बाद रूहुल्लाह हुए और रूहुल्लाह के 570 साल बाद रसूलल्लाह हुए।  क़ुरआन में इन तीन पैगंबरों सहित 25 पैगंबरों का नाम आया है। हालांकि एक हदीस के अनुसार, 1,24,000 से ज्यादा पैगंबर या प्रोफेट इतिहास में हो चुके हैं। खास बात यह भी है कि पैगंबरों की परंपरा सृष्टि के प्रारंभ तक जाती है और ऐसा लगता है कि हिन्दुओं के कुछ देवता भी यहूदी, ईसाई और इस्लामी परंपरा के अंतर्गत पैगंबर के रूप में देखे गए हैं। कुछ पैगंबरों की साम्यता हिन्दुओं की देवताओं से है।
अरब में एक समय था, जब कई प्रभावी लोग हुए, जिन्होंने खुद को प्रोफेट या पैगंबर कहा। एक ही समय में अनेक प्रोफेट निवास कर रहे थे।

दुनिया में कितनी महिला पैगंबर या प्रोफेट ?

यहूदी धर्मग्रंथों के अनुसार या बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार, पहली महिला प्रोफेट थीं – मिरियम। मिरियम प्रोफेट मूसा और प्रोफेट एरोन की बहन थीं। ईश्वर के प्रति संगीतमय भक्ति और नृत्य में वे लगी रहती थीं।
दूसरी महिला प्रोफेट थीं देवोराह। वे अत्यंत न्यायप्रिय और बुद्धिमान महिला थीं, लोग उनके पास फैसले के लिए दूर-दूर से आते थे। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध युद्ध का भी नेतृत्व किया था। प्रोफेट देवोराह को इजराइल देश की माता भी कहा जाता है।
तीसरी महिला प्रोफेट का नाम नहीं मिलता, लेकिन वे प्रोफेट ऐजैह की पत्नी थीं। उन्हें प्रोफेटेस नाम से ही पुकारा जाता है।
चौथी महिला प्रोफेट हैं – हल्दाह। वे अपने समय में बहुत बुद्धिमान और प्रभावी महिला थीं, जिनके पास विद्वान लोग भी सलाह के लिए भेजे जाते थे। पांचवीं महिला प्रोफेट हैं – नोआदियाह। वे अपने समय में इजराइल में प्रभावी थीं, लेकिन इनको लेकर थोड़ा विवाद भी है।
एजिकीयल की लिखी किताब में अनेक महिला प्रोफेट का जिक्र है, लेकिन सबको मान्यता नहीं मिली। एक अन्य मान्यता के अनुसार, ये हैं 7 महिला प्रोफेट – साराह, मिरियम, देबोराह, हन्नाह, हल्दाह, अबीगैल और इस्थर। आपत्ति करने वाले यह भी कहते हैं कि साराह को केवल उनकी सुंदरता की वजह से प्रोफेट कह दिया गया था। खास बात यह है कि महिला प्रोफेट की मान्यता केवल इजराइल में ही है। ईसाई धर्म और इस्लाम इस पर ज्यादा जोर नहीं देता या खामोश रहता है।

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