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]]>गाँधी जी का साबरमती आश्रम
गांधी जी अर्थात मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात बापू सच्चे अर्थों में जननेता थे। उन्हें राजनेता कहने की बजाय लोकनेता कहना ज्यादा बेहतर होगा। उन्होंने कुर्सी के लिए नहीं, बल्कि सामान्य जनजीवन के हित के लिए राजनीति की। उनका कार्य केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को संबोधित है। वे विश्वबंधुत्व को समर्पित नेता या महापुरुष थे। उनका संघर्ष केवल एक देश भारत के लिए नहीं था, उन्होंने एक लंबा समय दक्षिण अफ्रीका में शोषित आबादी के लिए संघर्ष करते बिताया। ऐसे नेता दुनिया में कम हुए हैं, जिन्होंने एक से ज्यादा देश में जमीनी संघर्ष किया है। हर नेता की एक सीमा होती है, लेकिन गांधी जी की कोई सीमा नहीं थी। उनके संघर्ष का तरीका सबसे अलग था। सत्य, प्रेम, अहिंसा ही उनके हथियार थे। उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। वे दूसरों को कोई भी उपदेश देने से पहले उसे पहले स्वयं पर आजमाते थे। उन्होंने अपने जीवन में कथनी और करनी के भेद को मिटा दिया था। वे आम इंसानों या आम भारतीयों जैसे रहते थे, बल्कि आम भारतीयों से भी ज्यादा त्याग और संघर्ष का परिचय देते थे। गरीब लोगों के लिए अपने वस्त्र तक त्याग देने वाला दुनिया का कोई दूसरा नेता उनके मुकाबले आज भी नहीं है। सादा जीवन उच्च विचार का उनका सिद्धांत हमेशा लोगों को प्रभावित करता रहा। भारत में अंग्रेज शासन के खिलाफ वे संघर्षरत थे, लेकिन उन्होंने किसी भी अंग्रेज को अपना शत्रु नहीं माना या शत्रु नहीं बनाया। वे सीधे जमीनी संघर्ष के लिए नहीं जाते थे, उसके पहले वे पत्राचार व अपने अन्य प्रयासों को पूरी तरह से आजमाते थे। खूब पत्र लिखते थे, जिनमें वे सामने वाले का हालचाल जरूर पूछते थे, उसके लिए शुभकामना भी जरूर करते थे। संघर्षों के बीच भी उन्होंने अपने सम्बंधों को बखूबी बचाया और निभाया। बाद के दिनों में तो उनका अहित करने वाले भी उनका सम्मान करने लगे थे।
वे धार्मिक सद्भाव को सर्वोपरि मानते थे। दंगा और हिंसा रोकने के लिए उन्होंने एकाधिक बार अपने जीवन को दांव पर लगा दिया। वे समाज में प्रेमभाव के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। वे अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी और महंगी शिक्षा दे सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह से उनकी देख-रेख में ही हुई। वे अपने बच्चों को आम और अच्छा इंसान बनाना चाहते थे। उन्होंने अपने परिवार को देश पर नहीं थोपा। पूरे देश को ही अपना परिवार माना। देश के लिए ही अपना सबकुछ त्यागा। देश के लिए ही पढ़े, बोले और जीवन जिए। उन्होंने किसी भी प्रकार के सामाजिक-जातिगत भेद को नहीं माना। दूसरों की पीड़ा को अपना मानने का उपदेश किया। देश को स्वयं अपनी आंखों से देखा, अनुभव किया। स्वयं आश्रम खोले और गरीबों की सेवा की। सत्य के प्रयोग पहले स्वयं पर किए।
उनकी कही एक-एक बात आज सही साबित हो रही है। उन्होंने भारत के बारे में क्या कहा था, उन्होंने राजनेता के बारे में क्या कहा था, उन्होंने दुनिया के बारे में क्या कहा था, ऐसा लगता है कि यह महान लोकनेता दुनिया का भविष्य जान रहा था और पूरी दुनिया का सही राह दिखाने के लिए ही आया था। न जाने कितने नेताओं, आंदोलनों और देशों को गांधी जी ने प्रभावित किया। उनकी किसी से तुलना नहीं हो सकती। वे दुनिया के महानतम नेता हैं, उनके सर्वे में भी यही बात सामने आई है। आधुनिक दुनिया के पास उनके मुकाबले का कोई दूसरा नेता नहीं है।
नोबेल समिति आज भी इस बात पर अफसोस जताती है कि उसने गांधी जी को नोबेल पुरस्कार से नहीं नवाजा। आधुनिक दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था, ‘आने वाली दुनिया को यह विश्वास करने में कठिनाई होगी कि महात्मा गांधी जैसा हाड़ मांस का कोई इंसान दुनिया में कभी था।’
महात्मा गांधी की आलोचना करने वाले उन्हें ठीक से नहीं जानते। गांधी जी को स्वार्थ के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। गांधी जी की आलोचना करने से पहले उनके जैसा जी कर दिखाना चाहिए। कोई अगर दो-तीन भी गांधी जी की तरह जी कर दिखा दे, तो उसे अंदाजा हो जाएगा कि गांधी होना कितना मुश्किल था। उनके जैसा त्यागी जीवन। उनके जैसा सादा और उच्च विचारों वाला जीवन। उनके जैसा सेवाभावी जीवन। उनके जैसा बहुमुखी जीवन। एक ही महान इंसान में वकील, पत्रकार, राजनेता, समाजसेवी, धार्मिक उपदेशक, जीव-रक्षक, ग्राम सेवक, स्वयंसेवक, आश्रम संचालक इत्यादि का समावेश आसान नहीं है। गांधी जी को पूरा जानने के बाद ही उनके किसी एक या दो पक्ष की आलोचना करनी चाहिए।
वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीड़ पराई जाणे रे |
पर दुख्खे उपकार करे तोये, मन अभिमान ने आणे रे ||
सकल लोकमां सहुने वन्दे, निंदा न करे केनी रे |
वाच, काछ, मन निश्छल राखे, धन धन जननी तेनी रे ||
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे |
जिव्हा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ||
मोह माया व्यापे नहीं जेनें, दृढ वैराग्य जेना मनमां रे |
राम नाम शुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तनमां रे ||
वणलोभी ने कपटरहित छे, काम क्रोध निवार्या रे |
भणे नरसैंयों तेनुं दर्शन करतां कुल एकोतेर तार्या रे ||
महात्मा गांधी अर्थात मोहनदास करमचंद गांधी अर्थात बापू ने अपने जीवन में प्रयोग करके कई नियम बनाए थे। उन्होंने अपने जीवन में कथनी और करनी के भेद को मिटा दिया था, इसलिए उनका जीवन आदर्श माना जाता है। उन्होंने मनुष्यों की भलाई के लिए ११ व्रत निभाने पर जोर दिया था। उनका मानना था कि लोग यदि इन व्रतों को निभाएं तो संसार में प्रेम और शांति का राज होगा। बड़े-बड़े वैज्ञानिक व समाज के नेता भी यह मानते हैं कि यदि गांधी जी की बात को माना जाता, तो विश्व में सुख-समृद्ध का माहौल होता।
1 – अहिंसा
मनुष्य को पूरे मन भाव से अहिंसक होना चाहिए। हिंसा के जरिये कोई भी सत्य की खोज नहीं कर सकता।
2 – अस्वाद
मनुष्य अपने शरीर के उचित पोषण पर ध्यान दे। वह व्यंजनों के स्वाद या अनेक प्रकार के भोग के पीछे न भागे।
3 – अपरिग्रह
अत्यधिक संग्रह का भाव ठीक नहीं है, त्याग की भावना जरूरी है। कामनाओं पर नियंत्रण बढ़ाना जरूरी है।
4 – अभय
भय से सफलता संभव नहीं है। हर किसी को निर्भय होना चाहिए। निर्भय व्यक्ति ही सत्य के करीब पहुंचता है।
5 – शरीर श्रम
सेहत ठीक होना जरूरी है, ऐसा तभी संभव होता है, जब मनुष्य यथोचित मात्रा में शरीर श्रम वाले कार्य करता है।
6 – सत्य
गांधी जी सत्य को ही ईश्वर मानते थे। उनका कहना था कि हर हाल में मनुष्य को सत्य का ही साथ देना चाहिए।
7 – ब्रह्मचर्य
अत्यधिक भोग या यौनाचरण व्यक्ति को भटकाने का काम करता है। ब्रह्मचर्य से वास्तविक शक्ति मिलती है।
8 – स्वदेशी
देश व ग्राम हित सर्वोपरि है, इसके लिए ज्यादा से ज्यादा स्वदेशी सामान व विचार का उपयोग-उपभोग होना चाहिए।
9 – अस्तेय
चोरी की भावना भी अनुचित है। चोरी से हुई कोई भी तरक्की स्थाई नहीं होती, इस अपयश से बचना चाहिए।
10 – अस्पृश्यता निवारण
जाति-धर्म के आधार पर भेदभाव छोडऩा बहुत जरूरी है, तभी समाज में एकता और मेल का भाव आ सकता है।
11 – सर्व-धर्म समभाव
सभी धर्मों को समान भाव से देखना चाहिए। एक दूसरे के धार्मिक विचारों के आदर में ही सुख-समृद्ध की राह है।
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