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33 देवता – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png 33 देवता – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 Mahashivratri http://agaadhworld.in/mahashivratri/ http://agaadhworld.in/mahashivratri/#respond Thu, 28 Feb 2019 20:34:19 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3841 33 कोटि देव और एक महादेव महाशिवरात्रि यह कहा जाता है कि सनातन धर्म में 33 कोटि देवता हैं, जिनकी

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33 कोटि देव और एक महादेव

महाशिवरात्रि

यह कहा जाता है कि सनातन धर्म में 33 कोटि देवता हैं, जिनकी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में पूजा होती है। कोटि शब्द के दो अर्थ हैं – करोड़ और प्रकार। अगर हम देवताओं की संख्या ३३ करोड़ मानें, तो एक सामान्य मनुष्य को तो इनके एक-एक कर नाम लेने में भी मुश्किल होगी। एक सेकंड भी अगर एक देवता का नाम लेने में लगा, तो दस साल से ज्यादा समय तो केवल नाम लेने में बीत जाएगा।
33 करोड़ देवताओं के एक-एक बार नाम लेने के लिए हमें चाहिए : 91666+ घंटे = 3819+ दिन = 10+ साल

यदि हम कोटि का अर्थ प्रकार मानें, तो सनातन धर्म में 33 प्रकार के देवता हैं। यह बात कुछ उचित लगती है।


 

12 आदित्य + 8 वसु + 11 रुद्र + 2 अश्विनी कुमार = 33 देवता 


 
यदि हम पूजनीय देवताओं की संख्या 33 भी मानें, तो सामान्य मनुष्य के लिए इन सभी को एक साथ खुश रखना और सबको बराबर से पूजना कोई आसान काम नहीं है। भारतीय जनजीवन में कर्म को बहुत महत्व दिया गया। स्वयं ऋषियों ने भी श्रम कर्म को सबसे ऊपर माना है। इतने देवताओं को समान भाव से पूजना ऋषियों के लिए भी चुनौती रही होगी, इसलिए ऋषियों ने मिलकर यह फैसला लिया कि एक ही देवता ऐसा चुना जाए, जिसकी पूजा से सारे फल प्राप्त हो जाएं, रोज सबको न पूजना पड़े। एक को ढंग से पूजा और बाकी को हृदय से याद कर लिया, तो सामान्य जीवन वाला व्यक्तिकुछ समय पूजा में बिताकर फिर अपने कर्म में लग जाएगा। कर्म और श्रम समाज के लिए जरूरी है, इससे ही धन और सामग्री उत्पन्न होती है और जिससे शुद्ध धर्म कर्म संभव होता है।
कथा इस प्रकार है कि ऋषियों ने भृगु मुनि को यह दायित्व सौंपा कि वे तय करें कि पृथ्वी पर मनुष्य किस एक देवता की पूजा पूरे मनोयोग से करे। भृगु खोज में निकल गए कि कौन ऐसा सहज देवता है, जो हर मनुष्य के लिए पूजने लायक है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश का महत्व ज्यादा था। ब्रह्मा जी में यह कमी पाई गई कि वो अपनी बनाई चीजों पर ही मोहित हो जाते थे। विष्णु और भृगु के मिलन की कथा बहुत प्रसिद्ध है, सार में केवल इतना ही कि भृगु ने विष्णु को सामान्य मनुष्यों के लिए दुर्लभ, दुष्कर पाया। अब रहे महेश भगवान भोलेनाथ शंकर – जिनके गुण, सहजता और उपलब्धता से भृगु बहुत प्रसन्न हुए और यह तय हो गया कि पृथ्वी पर भगवान शंकर की पूजा सबसे सही रहेगी।

भारतीय संस्कृति में शिव मंदिर सबसे प्राचीन हैं, लगभग हर गांव में शिव मंदिर मिल जाएंगे। जबकि विष्णु और ब्रह्मा के मंदिर लगभग दुर्लभ हैं। बाकी देवताओं के लिए मंदिर तो बहुत बाद में बनने शुरू हुए हैं। महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का एक सबसे बड़ा पर्व है। इसमें शिव की पूजा होती है, शिवलिंग का अभिषेक होता है और उपवास किया जाता है। हिन्दू धर्मशास्त्र महाशिवरात्रि के दिन उपवास को सबसे फलदायी बताते हैं।


महाशिवरात्रि

शिव से क्या सीखे संसार ?

 
(एक कविता)
अपार प्रभु की रूप दशा, छवि सांवली सुंदर अकूत।
गले भुजंग, सिर पर गंगा, जटाजूट तन पर भभूत।।
 
नयन नहीं हटते शिव से ऐसा प्रकृति शृंगार कहां।
ये संसार भगाए उनकी ठौर वहीं शिव चरण जहां।।
 
शांत रहो, धीरज धर लो, सीखो सत्य व सीधापन।
अनुपम मन-सौंदर्य सहेजो और सहजता, भोलापन।।
 
शिव सुंदर सच्ची महिमा में सारा दुख बह जाएगा।
शिव से सीखने वाला अपना विष अपने पी जाएगा।।

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