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पितरपक्ष

पितरपक्ष के दौरान, निम्नलिखित काम करने और न करने की सलाह दी जाती है:
करने योग्य काम:

1. अनुष्ठान और अर्पण:

पितरों के लिए आवश्यक अनुष्ठान और अर्पण करें, जैसे कि तर्पण (पानी अर्पण) और पिंड दान।

2. स्वच्छता बनाए रखें:

जहाँ आप अनुष्ठान करते हैं, उस स्थान को स्वच्छ और पवित्र रखें।

3. परंपराओं का सम्मान करें:

अनुष्ठान और उनके समय का पालन करें, जैसा कि आपके परिवार की परंपरा या धार्मिक मार्गदर्शन में है।

4. पंडित या पुरोहित को बुलाएं:

यदि आवश्यक हो, तो सही ढंग से अनुष्ठान करने के लिए एक जानकार पंडित की सहायता लें।

5. समय समर्पित करें:

इस अवधि में प्रार्थना या ध्यान में समय बिताएं ताकि आप अपने पितरों और परिवार के लिए आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

न करने योग्य काम:

1. अनुष्ठानों की अनदेखी न करें:

निर्धारित अनुष्ठानों और प्रतिदिन के जप नियम को छोड़ें नहीं।

2. अशुभ गतिविधियों से बचें:

विवाद, गाली गलौज शराब पीना जैसी अप्रिय व्यवहार से दूर रहे ।

3. मांसाहारी भोजन से परहेज करें:

कई परंपराएं इस दौरान मांसाहारी भोजन से परहेज करने की सलाह देती हैं।

4. अशिष्ट भाषा का प्रयोग न करें:

अपनी भाषा और व्यवहार में मधुरता रखें और सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करे ।

5. परंपराओं की अनदेखी न करें:

अपने परिवार या समुदाय की परंपराओं और प्रथाओं को अपने बड़ों के कहे अनुसार पालन करें।

सही ढंग से पितृअनुष्ठान करने और परंपराओं का पालन करने के लिए हमेशा जानकार अपने परिवार के बडें सदस्यों या पुरोहित से सलाह लें।


जीवितपुत्रिका व्रत

जीवितपुत्रिका व्रत को जिउतिया भी कहते हैं। यह हिन्दुओं में एक लोकपर्व है, जो संतानों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसमें महिलाएं निर्जला व्रत-उपवास करते हुए अपने संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत की दुआ मांगती हैं। यह एक कठिन पर्व है, इसमें जल पीने का प्रावधान नहीं है। यह व्रत आश्विन महीना के कृष्ण-पक्ष सप्तमी-तिथि से रहित अष्टमी-तिथि को किया जाता है | पूरे 24 घंटे महिलाएं बिना जल के रहकर यह कठिन व्रत करती हैं और पूजा-अर्चना के बाद हीं वे नवमी-तिथि में व्रत तोड़ती हैं।

माताओं के सम्मान और एकता का पर्व

खास बात यह है कि यह व्रत पितृपक्ष में पड़ता है और इसके दौरान महिलाएं या माताएं अपनी माताओं की सात पीढिय़ों को याद करती हैं। उनकी पूजा करती हैं और उनसे दुआ मांगती हैं कि संतानें सुखी रहें, समृद्ध हों। एक तरह से यह महिलाओं की एकता का भी पर्व है। ऐसा अकसर देखा गया है कि महिलाओं में एक दूसरे की संतान के प्रति द्वेष या ईश्र्या का भाव होता है। ऐसे में यह पर्व महिलाओं को एक दूसरे की शुभकामना के लिए प्रेरित करता है, ताकि सबकी संतानें सुखी हों, समृद्ध हों।

माताओं का ऐसा कोई दूसरा पर्व दुनिया में नहीं है। यह पर्व विशेष रूप से भारत के बिहार और  उत्तरप्रदेश में मनाया जाता है। संक्षेप में कहें तो जिउतिया व्रत संतान के लिए और तीज व्रत पति के लिए किया जाता है।

क्या आपको अपनी दादी-नानी का नाम पता है ?

आमतौर पर पुरुषों के नाम पर ही पीढिय़ां चलती हैं और स्त्री पूर्वजों को भुला दिया जाता है। लोग अपनी नानियों और दादियों का नाम भूल जाते हैं, जबकि जीवितपुत्रिका पर्व आपको अपनी नानी-दादी के नाम को याद रखने का अवसर देता है।

कोई स्त्री अगर यह व्रत-उपवास न भी करे, तो कम से कम अपनी मां-दादी-नानी इत्यादि को याद करे। उनके नाम कहीं लिख कर रखें |दुनिया स्त्रियों के नाम को न भूले। उनका योगदान घर की दीवारों के अंदर ही भुला न दिया जाए। यह पर्व नारीवाद का पक्षधर है, इसलिए ऐसे पर्व की आधुनिक दौर में जरूरत है।