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islam – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png islam – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 हमारी मनमानी का कोरोना http://agaadhworld.in/hamari-manmani-ka-karona/ http://agaadhworld.in/hamari-manmani-ka-karona/#respond Sat, 21 Mar 2020 19:09:22 +0000 http://agaadhworld.in/?p=5941 जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज  यह संसार ईश्वर द्वारा निर्मित है। इस संसार को देखकर-समझकर कभी किसी की भावना नहीं बनी

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जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज 

यह संसार ईश्वर द्वारा निर्मित है। इस संसार को देखकर-समझकर कभी किसी की भावना नहीं बनी कि आज या कल कोई ऐसा समृद्ध व्यक्ति या संगठन होगा, जो ऐसे ही किसी संसार की रचना कर सकेगा। संसार को ईश्वर ही बनाते हैं, वही पालन करते हैं और संहार भी कर सकते हैं। ईश्वर ने ही एक संविधान भी बनाया कि संसार में कैसे रहना है, कैसे स्वस्थ, शक्तिशाली, समृद्ध, विद्वान होकर रहना है। सही जीवन क्रमों के लिए ही ईश्वर ने संविधान की रचना की। जब इस संविधान का उल्लंघन होता है, तो उसी को अधर्म कहते हैं और उसी अधर्म से सभी तरह की विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। अधर्म से ही रोग, धन की हानि, प्रिय का वियोग बनता है। जीवन में जितने प्रकार के अड़चन आते हैं, जितने प्रकार के अपयश मिलते हैं, वो सब हमारे अधर्म का ही परिणाम हैं। जैसे ईश्वर ने कहा, सत्य बोलिए और हम असत्य बोलते हैं, तो उससे जो शक्ति पैदा हुई, उसका नाम अधर्म है। ईश्वर ने कहा, माता-पिता, विद्वान ब्राह्मण, गौ, नदियों, तीर्थों का सम्मान करें, और हम जब इसके विपरीत आचरण करते हैं, तब अधर्म उत्पन्न होता है। उससे दुख की प्राप्ति होती है, यह सनातन धर्म का सिद्धांत है। इसे सभी लोगों को मानना ही चाहिए। हम जब सही नियमों का पालन करते हैं और उससे जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे ही धर्म कहते हैं। आज सरकारों की जो दशा है, विकास की जो गति है, जो क्रम है, उसमें मनमानी बहुत हो रही है, ईश्वरीय नियमों की पालना नहीं हो रही है। जैसे कोई अपने वरिष्ठ के निर्देशों को नहीं मानेगा, तो निश्चित रूप से उसे क्षति पहुंचेगी। हम सब यह भूल जाते हैं कि संसार को बनाने वाला कौन है, संसार का पालन करने वाला कौन है? ईश्वर के संविधान को दरकिनार करके जीवन जीने की प्रवृत्ति तेजी के साथ बढ़ी है, यही मूल कारण है। न हमें यह ध्यान है कि हमें भोजन कैसा करना है। भोजन में भी अपने यहां विधान था कि सात्विक आहार ही लेना चाहिए। उसमें किसी तरह की विकृत्ति की आशंका न हो, जिससे निद्रा में वृद्धि न हो, जिससे रोगों की वृद्धि न हो। वेदों ने कहा कि आप सात्विक आहार लीजिए, तो आप रोगों से भी बच रहेंगे। शुद्ध आहार से ही आपके मन में श्रेष्ठ भाव आएंगे। आप शरीर, बुद्धि, अहंकार से भी स्वथ्य रहेंगे। तब आपका जीवन पूर्ण तैयार होगा, अपने लिए, परिवार के लिए, जाति के लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, मानवता के लिए। तभी आपका चिंतन और निश्चय भी स्वस्थ होगा।
अभी जो बड़ी विपत्ति आ गई है, जिससे पूरा संसार संतप्त है और जन की बहुत-बहुत हानि हो रही है। व्यवसाय बिगड़ रहे हैं, आम जनजीवन की व्यवस्थाएं डगमगा रही हैं, इसका कारण है कि हम ईश्वरीय विधान की पालना नहीं कर रहे हैं।
केवल मनमानी जीवन जीने लगे हैं। बोलने लगे हैं कि जैसा हमें अच्छा लगेगा, वैसा ही करेंगे। तो जो भी अच्छा लग जाए, क्या उसी से विवाह कर लेंगे? संसार की किसी अच्छी परंपरा, किसी महर्षि, किसी संत ने यह नियम नहीं बनाया कि आप अपने रिश्ते में ही विवाह कर लें। हर सुंदर स्त्री को देख मन में गलत भाव आना पाप है और उसके लिए प्रयास करना तो और भी महा-पाप। जब व्यक्ति विधान को, संविधान को, जाति-परिवार की परंपराओं को ही नहीं मानेगा, तो कैसे चलेगा? अपने संविधानों-विधानों से और विशेष रूप से ईश्वर के विधान से व्यक्ति को कभी अलग नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए रावण, जिसका कुछ भी विधान से नहीं था। उसका आकार-प्रकार बड़ा हो गया, किन्तु विधान से नहीं हुआ, तो इसका परिणाम क्या हुआ? रावण का लगभग पूरा परिवार-समाज ही नष्ट हो गया। ‘रहा न कोऊ कुल रोवन हारा’। जिसके पास ऐश्वर्य की पराकाष्ठा थी, जिसके पास प्रभाव का अनुपम स्वरूप था, जिसके पास भोग के संसाधनों का अपरिमित समूह था, अंत में उसकी मृत्यु के बाद दो आंसू गिराने वाला कोई नहीं बचा। रावण को अधर्म का कोरोना खा गया।
अभी कोरोना का जो स्वरूप है, यह ऐसे चल रहा है, जैसे वायु का प्रसार होता है। आज जल तत्व इतना दूषित हो गया है, पूरा कचरा पुण्य नदियों में गिरा दिया जाता है। देखा ही नहीं कि इसकी भी सफाई होनी चाहिए। गंगा किनारे रहने वाला व्यक्ति गंगा की महिमा नहीं समझ रहा है। गंगा लोगों को स्वर्ग देती थी, जो अब कीड़े-मकोड़े और गंदगी के अंबार से भरने लगी है। सारा कुछ कोरोना से व्याप्त हो गया है। क्या यह बात सही नहीं है कि शुद्ध जल के अभाव में बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं। वायुमंडल दूषित हो गया है। अंतरिक्ष तक दूषित हो गया है। यह कोरोना भी ईश्वर विधान के उल्लंघन का प्रकोप है, दंड है, ईश्वरीय दंड।
अपनी समृद्धि को जैसे-तैसे बढ़ाने के जो प्रयास हो रहे हैं, उससे कूपित होकर ही ईश्वर ने ऐसे दंड का विधान किया है। यह किसी एक देश का दोष नहीं। आज हम देखते हैं कि कितने लोगों को कैंसर हो रहा है, एड्स हो रहा है, हृदय और किडनी की बीमारियां हो रही हैं, दुर्घटनाएं हो रही हैं, बलात्कार हो रहे हैं। जिन बच्चियों को ईश्वर का स्वरूप माना जाता है, कन्या पूजन का विधान है, मां के रूप में, बहन, बेटी के रूप में पवित्र भावना होती थी, वह अब कहां है? यह कोरोना तो कुछ भी नहीं है। ईश्वर, परंपरा, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन ऐसे हो रहा है कि पूरा संसार वैसे ही नष्ट होने की कगार पर पहुंच रहा है। जान लीजिए, हम नहीं सुधरे, तो वैसे ही संसार को नष्ट हो जाना है, जैसे रावण, कंस नष्ट हो गए।
बचने का यही तरीका है कि शास्त्रों के अनुरूप हम अपना भोजन शुद्ध करें। नहीं करेंगे, तो त्रासदी बढ़ती जाएगी।
सारे लोगों को शास्त्रों की ओर से निर्देश है, आग्रह है कि आप अपने जीवन को केवल भोग या धन से नहीं जोड़ें। जीवन का दुराचारी स्वरूप न बनाएं। शास्त्र, वेद, परंपरा के अनादि विधान से जुडक़र अपने जीवन को कोरोना से बचाएं।
आज लोभ, लालसा अनियंत्रित ढंग से बढ़ती जा रही है। लोग चाहने लगे हैं कि सबकुछ मेरा हो जाए, यह गद्दी मेरी हो जाए। जिसके पास पर्याप्त संसाधन हैं, वह भी चाहता है कि बाकी सब भी उसका ही हो जाए। सोने की लंका में वानर गए, वहां से एक टुकड़ा सोना उन्होंने नहीं उठाया। जब रामजी ने जीतने के बाद लंका से कुछ नहीं लिया, तो उनके वानर कैसे लेते?
राम जी के बारे में लिखा है कि उनका धन पवित्र था और आचरण भी पवित्र। धन पवित्र होगा, तो ही आचरण पवित्र होगा। आचरण पवित्र होगा, तो ही धन पवित्र होगा, तब ही हम पाप से बचेंगे। तब हम बीमारी, विकृत्ति, चरित्रहीनता से बचेंगे। इसलिए वेदों में लिखा है कि भगवान उसी को मिलते हैं, जिनका मन पवित्र होता है, जो तमाम प्रकार के दूषण से बचे हुए निर्मल होते हैं।
इस कोरोना से सीखने की जरूरत है कि हम विधान से ही जीवन जीएं। रोजगार, यश, पत्नी, धन, वैभव सब विधान से अर्जित करें। हमारा स्वास्थ्य भी विधान से ही पुष्ट हो। जो चीज भोजन के अनुकूल नहीं है, उसे खाकर हम अहिंसक, प्रेमी, संत, ऋषि कभी नहीं हो सकते।
महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलकर दुनिया के सामने ऐसा आदर्श प्रस्तुत कर दिया कि अंग्रेजों को भागना पड़ा। गांधीजी ऐसा इसलिए कर पाए, क्योंकि उनका भोजन पवित्र था, चरित्र पवित्र था, एक क्षण के लिए भी वे हिंसक नहीं हुए। सभी को प्रेम प्रदान करते रहे, झोंपड़ी से महल तक। अब ऐसा जीवन लुप्त हो रहा है।
हमें संसार की कुछ बढ़ती समस्याओं के बारे में भी सोचना होगा। पूरे संसार में जो बेरोजगारी बढ़ रही है, जो इसके कारण नशा बढ़ रहा है, उससे भी शरीर-नाशक, समाज-नाशक किटाणु बढ़ रहे हैं। पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहे हैं। ध्यान रहे, जब किसी व्यक्ति के पास कोई काम नहीं होता है, तब उसका सबकुछ दूषित हो जाने की आशंका रहती है। वह कुछ भी खाएगा, कैसे भी पड़ा रहेगा, कोई काम नहीं, तो बुद्धि भी दूषित होती जाएगी। तो ऐसे प्रयास होने चाहिए कि युवाओं को रोजगार देकर क्रियाशील रखा जाए। क्रियाशील लोग किटाणुओं से बचे रहते हैं, उनमें किटाणुओं से लडऩे की क्षमता भी होती है। जिसको कोई काम ही नहीं, उसका मस्तिष्क तो खराब होगा ही। जो मशीन नहीं चलेगी, वह तो गई काम से। रोजगार का स्वरूप भी ऐसा होना चाहिए कि समाज में अच्छाई उत्पन्न हो। बुराई उत्पन्न करने वाले रोजगारों को नहीं बढ़ाना भी आवश्यक है। रोजगार-काम का स्वरूप सुधारने की प्रबल आवश्यकता है।
कहते हैं कि कोरोना बुजुर्गों को निशाना बना रहा है। बुढ़ापा क्या है? बुढ़ापा मतलब मशीन जिसकी पुरानी हो गई, जो क्रियाशील नहीं। क्रियाशीलता समाप्त होती है, तो शरीर किटाणुओं का घर बनता जाता है। बड़ी उम्र के लोगों को भी भिन्न-भिन्न प्रकार से सक्रिय और स्वस्थ रहना चाहिए, तभी वे कोरोना ही नहीं, अन्य बीमारियों से भी लड़ सकेंगे।
इधर एक और बड़ा दूषण हुआ है, जिस पर ध्यान देना चाहिए। मृत देह पर असंख्य किटाणु उत्पन्न होते हैं। जैसे कोई पशु मरता है, तो गिद्ध बहुत दूर से देखकर भी आ जाते थे। ऐसे ही जब कोई मरता है, तो उस पर असंख्य किटाणु उत्पन्न होने लगते हैं। तो अपने यहां प्रथा थी कि जहां कोई मरा है, वहां कुछ खाना नहीं है, सबकुछ पहले धोना है, कुछ दिनों तक सीमित और संयमित आहार लेना है। कई-कई बार पूरा घर धुलता है, कपड़े व अन्य सामान धुलते हैं, ये सारी आवश्यक व्यवस्थाएं समाप्त हो रही हैं। लोग अब न तो श्मशान जाने पर नहाते हैं और घर लौटने पर। वैज्ञानिकों को भी यह पता है कि मृत देह पर असंख्य किटाणु पैदा होते हैं। एक किटाणु आता है, तो उसके पीछे कई आते हैं, नष्ट होने की यही प्रक्रिया है, किटाणुओं की पूरी व्यवस्था या शृंखला बनी हुई है। किटाणुओं को रोकने-नष्ट करने वाली जो व्यवस्थाएं और विधान थे, सबको लोग भूलते जा रहे हैं। आधुनिक होने के फेर में साफ-सफाई की पुरानी परंपराएं छोड़ते जा रहे हैं। प्राचीन सिद्धांतों की अवहेलना के कारण ही किटाणुओं-विषाणुओं का बाहुल्य हुआ है। सब्जियों में इंजेक्शन लगा देते हैं, कोल्ड स्टोरेज की परंपरा विकसित हो गई है, इससे भी किटाणुओं को बढ़ावा मिलता है। रोटी या ब्रेड को कई दिनों तक लोग खाते रहते हैं, उनमें अनेक किटाणु उत्पन्न हो गए होते हैं। हमारे यहां परंपरा रही है कि आहार को बहुत-बहुत शुद्ध रखना है। अब संसार में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शास्त्र परंपरा और सही जीवन व्यवस्थाओं की ओर लौटना ही होगा।
जो ईश्वरीय विधान है, उससे हम दूर हट गए हैं, इसी कारण से ऐसे प्रकोप हो रहे हैं। यह संसार के लोगों के लिए चेतावनी है। अभी जो वर्षा हो रही है, सारी फसल नष्ट हो रही है। संसार में कहीं जंगल में आग, कहीं बेमौसम बर्फ, कहीं भयंकर तूफान, यह सब ईश्वर की ओर से दंड हैं, चेतावनी है। रावण को अनेक तरह से चेतावनी मिली, शुभचिंतकों ने समझाया, लेकिन उसकी मनमानी नहीं रुकी, तो राम आए और रावण का सब नष्ट हो गया।
सभी लोगों को सावधान होकर अपने शाश्वत संविधान के दायरे में प्रयास करना चाहिए। जब हमारा आहार शुद्ध होगा, तभी हममें सही ज्ञान उत्पन्न होगा, प्रेम उत्पन्न होगा। जितने भी श्रेष्ठ भाव हैं, वो तभी उत्पन्न होंगे, जब हमारा मन शुद्ध होगा। इन सब बातों की भारतीय शास्त्रों में बड़ी चर्चा है और बाद में जो नए-नए पंथ आए, जिन्होंने ईश्वर के सही विधान को छोडक़र जीवन जीया और कोरोना के रूप में प्रकोप झेल रहे हैं। जहां गौतम बुद्ध का बड़ा प्रचार-प्रभाव था, चीन में, जहां अहिंसा को परम धर्म कहा गया, वहां लोग कोरोना के सबसे बड़े शिकार हुए हैं। वैसे ही संसार में जो लोग अनियंत्रित जीवन जीने वाले हैं, वो भी शिकार होंगे। पूरे संसार के लोगों को सावधान हो जाना चाहिए। मनमानी जीवन छोडि़ए। आज नियम न मानने वाले को फांसी तक हो जाती है, तो ईश्वर का यह संसार है, किसी पार्टी, जाति, धर्म का नहीं, उसके संविधान को मानना ही चाहिए। भोजन, वस्त्र, संबंधों की मर्यादा की पालना हो, तो हमारा जीवन वैसे ही पवित्र हो जाएगा, जैसे अयोध्यावासियों का हो गया था। राम राज्य आ जाएगा, कहीं कोई कोरोना नहीं होगा। कोई संदेह नहीं, स्वयं को सुधारे-संवारे बिना कोरोना को मिटाया नहीं जा सकता। जब हम यमुना को साफ नहीं कर पा रहे हैं, तो कोरोना से कैसे बचेंगे? हम जब पुण्य नदियों, बड़े तीर्थों, बड़े शहरों को ही साफ नहीं कर पा रहे हैं, जब भोजन की सामग्री मिलावट के कोरोना से दूषित है, दूध, घी, पूरा वायुमंडल ही दूषित है, तो हम कोरोना से कैसे बचेंगे? यह कोरोना तभी नष्ट होगा, जब हम शुद्ध और स्वच्छ होंगे और तभी हम जीवन के परम लाभ को प्राप्त करेंगे।
जय सियाराम

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मुस्लिमों के मूल धर्म ग्रंथों को जानिए  http://agaadhworld.in/muslim-granth/ http://agaadhworld.in/muslim-granth/#comments Thu, 25 Jan 2018 19:52:25 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3734 मुस्लिमों के मूल धर्म ग्रंथों को जानिए अगाध दुनिया में जिस एक किताब को पूरी कड़ाई और श्रद्धा के साथ

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मुस्लिमों के मूल धर्म ग्रंथों को जानिए

अगाध

Hajj

दुनिया में जिस एक किताब को पूरी कड़ाई और श्रद्धा के साथ एक बहुत बड़ी जनसंख्या मानती है, वह है क़ुरआन। यह एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है – बार-बार पढ़ा जाना या बार-बार पढ़ी जानेवाली किताब। क़ुरआन दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली वह प्राचीन किताब है, जिसमें इस्लाम वर्णित है। क़ुरआन को कोई चुनौती नहीं दे सकता। क़ुरआन ईश्वर की किताब है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मुस्लिम होगा, जिसके पास या जिसके करीब यह किताब न हो। यह मुस्लिमों के घर-घर में बहुत पाक तरीके से रखी जाने वाली किताब है। इसको जब छुआ जाता है, तो हाथ और शरीर से साफ होना जरूरी है। इसे उठाना और पढऩा सम्मान की बात है। अच्छे मुस्लिम इस किताब के पास जाते ही शांत चित्त हो जाते हैं, क़ुरआन के साथ बिताया गया उनका समय सबसे पवित्र और सबसे यादगार होता है। क़ुरआन उन्हें अंदर-बाहर से सुकून देता है, वे इस किताब के साथ एकाकार होकर अल्लाह की इबादत करते हैं। मुस्लिम धर्म में पांच वक्त की जो नमाज होती है, उसमें क़ुरआन की ही आयतें पढ़ी जाती हैं। इस्लाम को मानने वाले दिल से इस बात को मानते हैं कि क़ुरआन को अल्लाह ने पूरी दुनिया के लिए जमीन पर उतारा। दूसरे धर्म के विद्वान भी इसे बहुत सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। यह एक ऐसी किताब है, जिसके बारे में यह माना जाता है कि इसके खिलाफ कुछ भी नहीं लिखा जा सकता। जो ज्ञान क़ुरआन में वर्णित है, वह किसी भी प्रकार की चुनौती से परे है। वहां केवल झुक जाना है, वहां केवल स्वीकार कर लेना है। स्वीकार से ही श्रद्धा भाव जागता है। प्रश्न तो काफिर बनाते हैं। तो कम से कम क़ुरआन के संदर्भ में प्रश्न अनुपयोगी हैं, व्यर्थ हैं। क़ुरआन पूरी मानव जाति को राह दिखाता है। इसके बताए रास्ते पर चलना भले मुश्किल हो, लेकिन एक सच्चा मुसलमान इसकी राह पर चलता है और अल्लाह को समर्पित हो जाता है। दुनिया में हजारों ऐसे लोग हैं, जिन्हें क़ुरआन पूरी तरह से याद है – ऐसे लोगों को हाफिज कहते हैं।
ऐसा माना जाता है कि चूंकि यह किताब मानव रचित नहीं है, इसलिए इसकी शैली भी अन्य मानव रचित किताबों जैसी नहीं है। यह किताब अल्लाह ने हजरत मोहम्मद साहब के जरिये दुनिया में उतारी। ऐसा माना जाता है कि देवदूत जिब्रेल से हजरत मोहम्मद साहब की पहली मुलाकात के साथ ही क़ुरआन का दुनिया में अवतरण शुरू हुआ। अल्लाह की इस किताब के अवतरण में लगभग 22 -23 साल लगे। यह किताब जब हजरत साहब के दिलो-दिमाग में आहिस्ता-आहिस्ता उतरती थी, तब वे अपने शिष्यों और लोगों के बीच इसका प्रवचन करते थे। एक से एक ज्ञान की बातें, एक से एक पवित्र दुनिया की बातें, एक से एक जीवन व्यवहार से जुड़ी बातें, एक से एक कर्म और धर्म से जुड़ी बातें। अल्लाह ने अपने पैगंबर हजरत मोहम्मद के जरिये दुनिया को राह दिखाई। जो लोग शैतान की राह पर भटक गए थे, जो लोग जुल्म-सितम और कोरी बुत परस्ती में लग गए थे, उन्हें राह पर लाने और यह याद दिलाने के लिए कि मैं एक ही हूं, दूसरा कोई नहीं है – अल्लाह ने क़ुरआन को उतारा।
हजरत मोहम्मद साहब का जीवन बहुत उथल-पुथल भरा था। उन्होंने अपने जीवन में खूब संघर्ष देखे, लड़ाइयां देखीं, मुकाम देखे। वे जहां भी जाते वहां अल्लाह की कृपा भी जाती और अल्लाह ही दया से हजरत साहब क़ुरआन की नई-नई आयतों को बोलते चलते-याद करते चलते, दूसरों को याद कराते चलते। कुछ आयतें मक्का में उतरीं, तो कुछ मदीना में तो कभी पैगंबर साहब के घर में तो कभी युद्ध के मैदान में। जब जैसा अवसर आया, तब तैसी ज्ञान की बातें उतरीं। शब्दावली भी बदली, कहने का अंदाज भी बदला और सम्बोधन भी बदले।

क़ुरआन का अवतरण और लेखन

ऐसा माना जाता है कि 22  दिसंबर 609 को क़ुरआन का अवतरण शुरू हुआ था। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार, अगस्त 610 में रमजान के महीने में अवतरण शुरू हुआ। तब हजरत मोहम्मद साहब 40 वर्ष के थे। क़ुरआन के अवतरण के शुरू होते ही उनका जीवन भी पूरी तरह बदल गया। अगले 23 वर्ष तक वे क़ुरआन के अवतरण का माध्यम बने। उनके निधन ईस्वी सन 632 तक क़ुरआन का अवतरण पूरा हो चुका था, लेकिन क़ुरआन दुनिया को लिखित रूप में उपलब्ध कराने का काम पैगंबर साहब के निधन के साल भर बाद ही शुरू हुआ। ऐसा माना जाता है कि ईस्वी सन 653 में क़ुरआन मुकम्मल रूप में लिख ली गई और उसका प्रचार-प्रसार और तेजी से होने लगा। यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि क़ुरआन एक ऐसी किताब है, जिसमें वर्ष 653 के बाद से आज तक एक शब्द का भी हेरफेर नहीं हुआ है और न हो सकता है।

क़ुरआन लिखित स्वरूप में कैसे आया?

क़ुरआन की आयतों के संचयन में हजरत मोहम्मद साहब के करीबी शिष्य जैद इब्न साबित (जीवनकाल 615-660) की बड़ी भूमिका रही है। वे पैगंबर साहब के समय ही क़ुरआन के बड़े विद्वान प्रचारक माने जाते थे। उन्होंने क़ुरआन के एक बड़े हिस्से को संजोकर रखा था और मोहम्मद साहब के निधन के बाद उसे तत्कालीन खलीफा अबू बक्र (खलीफा रहे 632 से 634 तक) को सौंप दिया। इस्लाम में उथल-पुथल का दौर जारी रहा, इस्लाम का प्रचार भी तेजी से होता गया। खलीफा उस्मान इब्न (खलीफा रहे 644 से 656 तक) ने जब यह देखा कि क़ुरआन को लेकर अलग-अलग व्याख्याएं होने लगी हैं, तब उन्होंने क़ुरआन को एकरूपता देने के लिए फिर एक बार जैद इब्न साबित को याद किया और संचयन का काम फिर एक बार हुआ। अल्लाह की मर्जी से उसके बाद ही क़ुरआन का अंतिम लिखित स्वरूप सामने आया। ऐसा माना जाता है कि क़ुरआन में एक भी शब्द ऐसा नहीं है, जो अल्लाह का न हो, इसमें यहां तक कि पैगंबर साहब का भी एक भी अपना शब्द शामिल नहीं है।

हदीस अनेक हैं, लेकिन 6 हदीस प्रमुख हैं

हदीस को क़ुरआन के बाद इस्लाम में बहुत सम्मानित ग्रंथ के रूप में देखा जाता है। हदीस एक नहीं है, अनेक हैं। अनेक लोगों ने हदीस का संग्रह किया है। हदीस मोहम्मद साहब की कही बाते हैं या उनसे जुड़ी बातें हैं, उनके द्वारा दी गई व्यवस्थाएं हैं, उनके द्वारा दिए गए आदेश और उपदेश हैं। मुख्य रूप से छह हदीस संग्रहों को ज्यादा माना जाता है – जिनमें कुल 29578 हदीसें संकलित हैं। हदीसों की व्याख्या में इस्लाम धर्म में खूब ग्रंथ लिखे गए हैं और लिखे जा सकते हैं। ज्ञान-विज्ञान से लेकर लोक व्यवहार तक पैगंबर साहब के हवाले से बहुत कुछ ऐसा है, जो हदीस में हमें मिलता है और जिसकी पढ़ाई आज भी मदरसों में होती है। इस्लाम में बच्चों को हदीस पढ़ाया जाता है। क़ुरआन तो पाक है, अरबी है, कठिन भी है, जल्दी किसी को समझ में नहीं आता, लेकिन जब व्यक्ति धीरे-धीरे हदीस को पढ़ते हुए अपने जीवन में आजमाते हुए आगे बढ़ता है, तो उसे क़ुरआन का अर्थ समझ में आता है। इस्लाम को जानने के लिए हदीस को जानना भी जरूरी है। हदीस से ही इस्लामी दुनिया अपने लिए नियम-कायदे-कानून निकालती या सीखती आई है।

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दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं? http://agaadhworld.in/dunia-me-kitne-paigambar-ya-profet-hue/ http://agaadhworld.in/dunia-me-kitne-paigambar-ya-profet-hue/#comments Thu, 25 Jan 2018 19:47:25 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3764 दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं? भाग – 2 लेखक : अगाध हिन्दू परंपरा में अब तक नौ

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दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं?
भाग – 2
लेखक : अगाध
हिन्दू परंपरा में अब तक नौ ही अवतार हुए हैं, लेकिन अरब या ग्रीक परंपरा में अनेक प्रोफेट या पैगंबर हो चुके हैं। प्रोफेट शब्द का अर्थ है – प्रवक्ता। प्रोफेट का मतलब हुआ ईश्वर का प्रवक्ता। कुछ यहूदियों की मानें, तो दुनिया में 12,00,000  प्रोफेट हुए हैं। हालांकि इनमें से ऐसे प्रोफेट जिन्हें सब जानते हैं या जो ज्यादा चर्चित हैं, उनकी संख्या 55 है। इनमें से 45 पुरुष हैं और 7 महिलाएं हैं। अरबी व ग्रीक परंपरा में कई पति-पत्नी, दोनों ही प्रोफेट के रूप में माने गए हैं।

खास बात यह है कि प्रोफेट की एक ही परंपरा से यहूदी, ईसाई और मुस्लिम जुड़े हुए हैं, बहाई मत या धर्म को भी इसी प्रोफेट परंपरा में माना जा सकता है। चारों ही धर्म एक ही प्रोफेट परंपरा को मानते हैं। अब यह बात अलग है कि धर्म के हिसाब से कोई किसी प्रोफेट को कम मानता है और किसी को ज्यादा मानता है।


आदि पैगंबर थे हजरत इब्राहीम

हजरत इब्राहीम को यहूदी बहुत मानते हैं और मुसलमान भी। इब्राहीम पहले प्रोफेट थे, जिन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था और एकेश्वरवाद पर जोर देते हुए उसे आगे बढ़ाने के लिए कहा था। हालांकि यहूदियों ने इस बात को बहुत मन से स्वीकार नहीं किया, लेकिन अरब देशों में धीरे-धीरे मूर्ति पूजा के खिलाफ माहौल बना और इसके बीज पैगंबर हजरत इब्राहीम ने बो दिए थे। ऐसा मालूम पड़ता है कि इब्राहीम का परिवार बहुत बड़ा और प्रभावी था और धार्मिक तो था ही। ऐसा माना जाता है कि इसी परिवार में आगे चलकर पैगंबर दाऊद, पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा मसीह और पैगंबर हजरत मोहम्मद भी हुए।

कौन हैं कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह

पैगंबर या प्रोफेट परंपरा में पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा और पैगंबर मोहम्मद का सबसे ज्यादा सम्मान है। गौर करने की बात है कि पैगंबर मूसा यहूदियों के मुख्य सम्मानित पैगंबर हैं, तो पैगंबर ईसा मसीह ईसाइयों के महान पैगंबर हैं, तो पैगंबर हजरत मोहम्मद मुसलमानों के अंतिम पैगंबर हैं।
यहूदी समुदाय ईसा मसीह और हजरत मोहम्मद को बहुत नहीं मानता, ईसाई समुदाय ईसा मसीह और पैगंबर मूसा को मानता है, लेकिन मुसलमान तीनों ही पैगंबरों को मानते हैं। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मूसा ऐसे पहुंचे हुए पैगंबर थे कि अल्लाह से बातें किया करते थे – इसलिए उन्हें कलीमुल्लाह कहा जाता है। पैगंबर ईसा के बारे में कहा जाता है कि वे ईश्वर की आत्मा या रूह थे, इसलिए उन्हें रूहुल्लाह कहा जाता है। हजरत मोहम्मद को ईश्वर या अल्लाह का दूत माना जाता है, इसलिए उन्हें रसूलल्लाह कहा जाता है।
कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह तीनों एक ही परिवार से आते हैं, हालांकि तीनों का समय अलग-अलग है। कलीमुल्लाह ईस्वी पूर्व 1400 में हुए थे, उसके बाद रूहुल्लाह हुए और रूहुल्लाह के 570 साल बाद रसूलल्लाह हुए।  क़ुरआन में इन तीन पैगंबरों सहित 25 पैगंबरों का नाम आया है। हालांकि एक हदीस के अनुसार, 1,24,000 से ज्यादा पैगंबर या प्रोफेट इतिहास में हो चुके हैं। खास बात यह भी है कि पैगंबरों की परंपरा सृष्टि के प्रारंभ तक जाती है और ऐसा लगता है कि हिन्दुओं के कुछ देवता भी यहूदी, ईसाई और इस्लामी परंपरा के अंतर्गत पैगंबर के रूप में देखे गए हैं। कुछ पैगंबरों की साम्यता हिन्दुओं की देवताओं से है।
अरब में एक समय था, जब कई प्रभावी लोग हुए, जिन्होंने खुद को प्रोफेट या पैगंबर कहा। एक ही समय में अनेक प्रोफेट निवास कर रहे थे।

दुनिया में कितनी महिला पैगंबर या प्रोफेट ?

यहूदी धर्मग्रंथों के अनुसार या बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार, पहली महिला प्रोफेट थीं – मिरियम। मिरियम प्रोफेट मूसा और प्रोफेट एरोन की बहन थीं। ईश्वर के प्रति संगीतमय भक्ति और नृत्य में वे लगी रहती थीं।
दूसरी महिला प्रोफेट थीं देवोराह। वे अत्यंत न्यायप्रिय और बुद्धिमान महिला थीं, लोग उनके पास फैसले के लिए दूर-दूर से आते थे। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध युद्ध का भी नेतृत्व किया था। प्रोफेट देवोराह को इजराइल देश की माता भी कहा जाता है।
तीसरी महिला प्रोफेट का नाम नहीं मिलता, लेकिन वे प्रोफेट ऐजैह की पत्नी थीं। उन्हें प्रोफेटेस नाम से ही पुकारा जाता है।
चौथी महिला प्रोफेट हैं – हल्दाह। वे अपने समय में बहुत बुद्धिमान और प्रभावी महिला थीं, जिनके पास विद्वान लोग भी सलाह के लिए भेजे जाते थे। पांचवीं महिला प्रोफेट हैं – नोआदियाह। वे अपने समय में इजराइल में प्रभावी थीं, लेकिन इनको लेकर थोड़ा विवाद भी है।
एजिकीयल की लिखी किताब में अनेक महिला प्रोफेट का जिक्र है, लेकिन सबको मान्यता नहीं मिली। एक अन्य मान्यता के अनुसार, ये हैं 7 महिला प्रोफेट – साराह, मिरियम, देबोराह, हन्नाह, हल्दाह, अबीगैल और इस्थर। आपत्ति करने वाले यह भी कहते हैं कि साराह को केवल उनकी सुंदरता की वजह से प्रोफेट कह दिया गया था। खास बात यह है कि महिला प्रोफेट की मान्यता केवल इजराइल में ही है। ईसाई धर्म और इस्लाम इस पर ज्यादा जोर नहीं देता या खामोश रहता है।

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