The post विजयादशमी appeared first on agaadhworld.
]]>The post विजयादशमी appeared first on agaadhworld.
]]>The post Janki_Jayanti appeared first on agaadhworld.
]]>जिस प्रकार दशरथ पुत्र राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, ठीक उसी तरह से अगर सीता को मर्यादा स्त्री-उत्तम कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं है। प्रेम, समर्पण, चरित्र, त्याग, गुणों की जो रेखा राम ने खींची, उससे लंबी त्याग रेखा सीता ने खींची। सीता न होती, तो राम न होते। कहा ही जाता है कि सीता भी अवतार का अंश थीं और उन्हें अपनी जिम्मेदारी का पहले अहसास हुआ। राम को दुनिया ने बाद में जाना, लेकिन सीता पहले से ही जनकपुर में पहचान बना चुकी थीं।
आज सीता एक प्रसिद्ध नाम है, लोग इस नाम को तो जानते हैं, लेकिन इसके मूल अर्थ को लगभग भूल चुके हैं।
सीता अत्यंत शक्तिशाली थीं। वे जहां भी रहती थीं, अपने आसपास सुरक्षा कवच बना लेती थीं। ऐसा कहा जाता है कि लीला स्वरूप ही सीता जी ने अपना अपहरण होने दिया था, वरना वे स्वयं ही अपनी रक्षा करने में सक्षम थीं। रावण उनका हरण करके लंका ले गया, लेकिन वह अपनी इच्छा पूरी नहीं कर सका, क्योंकि अपनी शक्ति से ही सीता जी ने अपना बचाव किया। रावण के अहंकार और अत्याचार से सीता जी आहत थीं, ऐसा कहा जा सकता है कि उन्होंने अपना बदला हनुमान जी के माध्यम से लिया। वे जान गई थीं कि हनुमान अत्यंत बलवान और विद्वान हैं। सीता जी की खोज खबर लेकर हनुमान जी लौट सकते थे, लेकिन सीता जी ने उन्हें रावण के बगीचे से फल खाने की अनुमति दी। जाहिर है, रावण के बगीचे से फल खाना कानून का उल्लंघन था, राजद्रोह था, लेकिन हनुमान जी ने ऐसा किया। हनुमान जी फल खाने के उद्यम में हिंसक भी हुए। पकड़े गए, तो रावण को अपने और राम जी के बल का अहसास करा दिया। जब उनकी पूंछ में आग लगाकर छोड़ा गया, तब उन्होंने लंका में आग लगा दी। ऐसा लगता है कि यह सीता जी का रावण से लिया गया बदला था। हनुमान जी को लंका में हिंसा की अनुमति राम जी ने नहीं दी थी, लेकिन यह काम सीता जी की अनुमति से हुआ।
यह एक तरह की व्याख्या है। राम जी ने अश्वमेध यज्ञ किया था। सीता जी तब वन में अपने पुत्रों लव और कुश के साथ वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में रहती थीं। लव और कुश ने यक्ष के अश्व को पकड़ लिया और राम राज्य की सेना को ललकारा। ऐसा हो नहीं सकता कि आज्ञाकारी और मातृ भक्त लव, कुश आश्रम से कुछ ही दूर पर राम राज्य की सेना से युद्ध कर रहे थे और सीता जी को पता न हो। लव और कुश ने अपने बल से राम राज्य के बड़े-बड़े वीरों को वन में आकर युद्ध करने के लिए विवश कर दिया। लव और कुश विजयी हुए, लेकिन सीता जी के कहने पर उन्होंने अश्व छोड़ दिया। यह उस राज्य से सीता जी का बदला था, जिसने उन्हें भुला दिया था। यह उद्घोषणा थी कि देख लो अयोध्यावासियों, मुझे वन में भेजकर निस्तेज मान लिया था, लेकिन आज मेरे छोटे-छोटे दो पुत्र तुम्हें शक्ति का अहसास करा रहे हैं। यह सीता का दूसरा बदला है या ऐसा भी कहा जा सकता है कि सीता जी ने राम-शक्तिको सीता-शक्ति का अनुभव होने दिया।
अपने अंत समय में लव और कुश का राम के दरबार में सम्मान हुआ। यह बात सामने आई कि लव और कुश वास्तव में राम जी के ही पुत्र हैं। सीता जी को राम दरबार में बुलाया गया। अयोध्या लौटी सीता की तत्कालीन मनोदशा की कल्पना किसी ने नहीं की है। पुनर्मिलन का समय आ गया था। सीता जी महारानी के रूप में फिर महल में भौतिक रूप से आ सकती थीं। व्यावहारिक रूप से उन्हें पहले ही महारानी का दर्जा मिला हुआ था, राम जी उन्हें भूले नहीं थे और राम जी ने दूसरा विवाह भी नहीं किया था। राम जी महल में रहते थे, लेकिन वे भी सीता जी की तरह ही वनवासी जैसा जीवन बिताते थे। सीता जब वीर गुणवान पुत्रों के साथ सामने आ गईं, तब राम जी हो सकता है सीता जी को सहज ही स्वीकार कर लेते, तो ज्यादा अच्छा होता। किन्तु उन्होंने सीता को फिर पवित्रता की परीक्षा देने के लिए कह दिया, तब यह निस्संदेह सीता जी को अपमानजनक लगा होगा। पवित्र प्रमाणित स्त्री शक्ति का अपमान। इसकी ज्यादा विवेचना नहीं हुई है, किन्तु अनुभव किया जा सकता है कि सीता जी आहत हुईं। सीता ने परीक्षा दी, अपने सतीत्व की सफल शक्ति को फिर दांव पर लगाया, किन्तु निस्संदेह राम जी से लौकिक रूप से मिलन की इच्छा समाप्त हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने भरी सभा में उद्घोषणा करते हुए कहा, ‘यदि मैंने हृदय, वाणी और क्रिया द्वारा कभी स्वप्न में भी अपने स्वामी के सिवा और किसी का चिन्तन न किया हो, तो पृथ्वीमाता मुझे अपनी गोद में स्थान दे।’ और वे धरती से आई थीं, धरती में चली गईं। यह एक तरह से स्त्री शक्ति के लिए पुरुष शक्ति से लिया गया अनुपम बदला था। संदेश यही है कि शक्ति को बार-बार चुनौती मत दो, वरना वह हाथ से निकल जाएगी।
The post Janki_Jayanti appeared first on agaadhworld.
]]>