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]]>ऋग्वेद में 10440 मंत्र, यजुर्वेद में 5177 मंत्र, सामवेद में 1875 मंच, अथर्ववेद में 5987 मंत्र हैं। इसके अलावा कुछ लोग पंचम वेद महाभारत को मानते हैं – जिसमें कुल 17,00,000 श्लोक हैं। वेदों को जगतपिता ईश्वर ने ही प्रकट किया है। वेद मंत्रों को श्रुति भी कहते हैं, क्योंकि पहले के समय में एक दूसरे से सुनकर ही मंत्रों का ज्ञान होता था। वैदिक ऋषि महर्षि वेदव्यास ने इन वेदों का संपादन किया। हालांकि कुछ अध्ययनों में यह कयास भी लगाया जाता है कि वेदव्यास कोई एक विद्वान ऋषि नहीं थे, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी ऋषियों का समूह था, जिसे वेदव्यास नाम से जाना गया।
हिन्दू संस्कृति या सनातन संस्कृति को जानने के लिए वेदों को जानना जरूरी है। धर्मशास्त्र का इतिहास लिखने वाले भारत रत्न विद्वान डॉ. पी.वी. काणे के अनुसार, वैदिक रचनाओं का काल ४००० वर्ष ईसा पूर्व का रहा है। हालांकि अन्य विद्वान भी हैं, जो वेदों को और भी प्राचीन मानते हैं। किन्तु इतना तय है कि वेद संसार में सबसे पुरानी धार्मिक रचना हैं। इन्हीं के आधार पर हिन्दू धर्म को सनातन या या सबसे पुराना धर्म माना जाता है।
सहज भाव से कहें, तो वेदों को समझने के लिए हमें वाल्मीकि रामायण और महाभारत का अध्ययन करना पड़ता है। ये दोनों ग्रंथ इतिहास माने गए हैं। इन दोनों ग्रंथों में वेदों का ही ज्ञान इस तरह से प्रस्तुत है कि सभी को उदाहरण के साथ सहजता से समझ में आ जाए। ऋषि जानते थे कि वेद का पाठ हर कोई नहीं कर पाएगा, इसलिए उन्होंने इतिहास के रूप में रामायण और महाभारत की रचना की, ताकि आम लोग भी कथा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त कर सकें।
हिन्दू धर्म में 18 पुराण मान्य हैं। पुराणों में भी कथाएं भरी पड़ी हैं और साथ ही वेदों से निकला ज्ञान भी है। पुराणों का पाठ भारत में सहजता के साथ किया जाता है। शिव पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण, ब्रम्हपुराण, गरुण पुराण इत्यादि का पाठ ज्यादा होता है। इसके अलावा पद्म पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रम्हवैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रम्हाण्ड पुराण। पुराणों को भगवान का अंग माना गया है। जैसे ब्रम्ह पुराण को भगवान सिर और पद्मपुराण को भगवान का हृदय माना गया है। सबसे बड़े पुराण शिव पुराण में करीब १ लाख श्लोक हैं, जबकि वामन और कूर्म पुराण 6000 -6000 श्लोकों के साथ सबसे छोटे पुराण हैं। इन पुराणों के अलावा करीब 60 उपपुराण भी हैं, जिनका हिन्दू धर्म में महत्व है।
उपनिषद का अर्थ है – पास बैठना। ब्रह्म, ज्ञान के पास बैठना। उपनिषद वास्तव में वेदों का ही विस्तार हैं। ये हिन्दू संस्कृति में ज्ञान का कोश माने जाते हैं। भारतीय दर्शन का आधार उपनिषदों से ही खड़ा होता है। असंख्य उपनिषद हैं, लेकिन मोटे तौर पर उन्हें 108 माना गया है। भारतीय ऋषि जो ज्ञान चर्चा करते थे, उसका सार उपनिषदों में उपस्थित है। उपनिषदों में लाखों प्रश्नों के उत्तर छिपे हैं। जीव जगत कहां से आता है, कहां रहता है और कहां जाएगा, मनुष्य क्या है, शक्ति क्या है, देव क्या हैं, ईश्वर क्या है, इत्यादि लाखों प्रश्नों के उत्तर उपनिषदों में मिलते हैं। भारतीय विद्वान समय-समय पर उपनिषदों पर भाष्य लिखते रहते हैं। उपनिषदों की व्याख्या की भारत में परंपरा है। वेद और उपनिषदों की यह खूबसूरती है कि ये किसी को भी चिंतन से रोकते नहीं हैं, ये यह मानकर चलते हैं कि उनकी व्यक्ति दर व्यक्ति अलग-अलग व्याख्या संभव है। हर विद्वान व संत अपने-अपने भाव के अनुरूप व्याख्या प्रस्तुत कर सकता है।
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