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Sikhism – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png Sikhism – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 चैटीचंड महोत्सव / ChaitiChand Mahotsav http://agaadhworld.in/chaitichand-mahotsav/ http://agaadhworld.in/chaitichand-mahotsav/#respond Thu, 04 Apr 2019 19:15:47 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3923 ईश्वर अल्लाह हिक आहे चैटीचंड महोत्सव ईश्वर और अल्लाह को आप जानते हैं और ‘हिक आहे’ सिंधी भाषा है, जिसका

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ईश्वर अल्लाह हिक आहे

चैटीचंड महोत्सव

ईश्वर और अल्लाह को आप जानते हैं और ‘हिक आहे’ सिंधी भाषा है, जिसका अर्थ है – एक है। हमारे संसार में दक्षिण एशिया या प्राचीन भारत वर्ष की विशाल भूमि एक विलक्षण भूमि है, जहां ऐसे अनेक अवतार, संत और फकीर हुए, जिन्होंने अपना जीवन यह सिद्ध करने में लगा दिया कि ईश्वर अल्लाह एक है। ऐसे ही अवतारों में एक अवतार हैं झूलेलाल। इन्हें देव या भगवान भी माना गया है। इन्हें अनेक नामों से जाना जाता है। इनके बचपन का नाम उडेरोलाल है। इन्हें जिंदा पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल सांई भी कहते हैं। इन्हें ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल शाहबाज कलंदर भी कहा जाता है। अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन इस बात पर पूरी सहमति है कि झूलेलाल ने समाज और विश्व की एकता के लिए प्रयास किया। शोषण के विरुद्ध संघर्षरत रहे और अपने चाहने वालों को भरपूर प्यार-आशीर्वाद दिया, जिसके कारण दुनिया में आज भी उन्हें याद किया जाता है, उनकी पूजा-इबादत की जाती है।


हिन्दू मान्यता के अनुसार झूलेलाल

पूरी सिंधी जाति सिंधू नदी के किनारे निवास करती थी। सिंध में मिरखशाह नाम का एक अत्याचारी शासक हुआ, जिसने सिंधियों पर अत्याचार की सारी हदें पार कर दीं। ऐसी मान्यता है कि जब अत्याचार बढ़ जाता है, जब मसीहा अवतार लेता है। सिंधियों ने ईश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना सुनी गई। सिंधू नदी से एक नर मछली पर बैठकर वरुण देव बाहर निकले और संदेश दिया कि 40 दिन बाद मैं आ रहा हूं।

40 दिन बाद झूलेलाल का जन्म हुआ और उन्होंने सिंधी समाज को मिरखशाह के अत्याचार से मुक्त कराया। जिस दिन इनका जन्म हुआ था, वह चैत माह था और तिथि द्वितीया थी। इस दिन को सिंधी समाज चैटीचंड के नाम से धूमधाम से मनाता है। इस साल 19 मार्च को पूरी दुनिया में झूलेलाल की जयंती मनाई जा रही है।


मुस्लिम मान्यता के अनुसार झूलेलाल

झूलेलाल अर्थात एक सूफी पीर – जिनका नाम था लाल शाहबाज कलंदर। इनका जीवनकाल 1177 से 1275 तक माना जाता है। ये महान सूफी फकीर 98 वर्ष तक जीवित रहे थे और इन्होंने पूरा जीवन भाईचारा बढ़ाने में लगा दिया, इन्हें हिन्दू और मुस्लिम समान रूप से मानते थे। पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के दादू जिले में एक स्थान है सेवन शरीफ – इसे सेवण शरीफ भी कहते हैं। यहां हजरत लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह स्थित है। दरगाह में संगीत-नृत्य के साथ धमाल मचाने की परंपरा है।


भारत में देवता, पाकिस्तान में पीर

दुनिया में लगभग चार करोड़ सिंधी हैं, जिसमें से 3 करोड़ के आसपास पाकिस्तान में रहते हैं, भारत में करीब 40 लाख सिंधी हैं। पाकिस्तान में जो सिंधी हैं, वो मुस्लिम हैं। पाकिस्तान में हिन्दू सिंधियों की संख्या 8 प्रतिशत से भी कम है। बहरहाल, भारत में झूलेलाल देवता के रूप में स्वीकार्य हैं, वहीं पाकिस्तान में उन्हें जिंदा पीर के रूप में ज्यादा देखा जाता है। भारत में झूलेलाल के मंदिर बनाए जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान में हजरत लाल शाहबाज कलंदर को ही झूलेलाल माना जाता है। पाकिस्तान में सिंधू नदी के किनारे उनकी याद में 40 दिन का मेला लगता है। पाकिस्तान में भी यह चर्चा होती है कि मिरखशाह हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाने में लगा था, तभी हिन्दुओं की प्रार्थना के बाद भगवान झूलेलाल का अवतार हुआ।


झूलेलाल से हम क्या सीखें ?

1 – ईश्वर अल्लाह हिक आहे अर्थात ईश्वर अल्लाह एक है।
2 – संसार में हर जगह खुशहाली रहे और कोई दुखी न रहे।
3 – उन्होंने कहा – सारा जग एक है, हम सब एक परिवार हैं।
4 – परस्पर ऊंच-नीच, भेदभाव को न मानो, कट्टर ना बनो।
5 – जल ही संपन्नताएं लाता है, तुम जल का महत्व समझो।
6 – मेहनत से कमाओ, किसी भी काम को कमतर न समझो।

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Lohari, Pongal, Makar sankranti http://agaadhworld.in/lohari-pongal-makar-sankranti/ http://agaadhworld.in/lohari-pongal-makar-sankranti/#comments Sat, 12 Jan 2019 18:57:10 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3600 लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति का क्या है अर्थ? लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति, तीनों ही कड़ाके की ठंड के

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लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति का क्या है अर्थ?

लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति, तीनों ही कड़ाके की ठंड के  बाद मनाए जाने वाले पर्व हैं। आइए सबसे पहले लोहड़ी के बारे में जानें। लोहड़ी पौष के अंतिम दिन मनायी जाती है। ल का अर्थ है लकड़ी, ओह का अर्थ है उपले, ड़ी का अर्थ रेवड़ी। विशेष रूप से पंजाब में मनाए जाने वाले इस पर्व के अवसर पर शाम के समय घर या मुहल्ले में किसी खुली जगह पर लकड़ी और उपले की मदद से आग जलाई जाती है। बच्चे, युवा और अन्य सभी लोग आग को प्रणाम करते हैं, आग की पूजा करते हैं और आग की परिक्रमा करते हैं। आग को तिल चढ़ाते हैं, कई जगह भुन्ना हुआ मक्का और लावा भी चढ़ाया जाता है। मूंगफली, खजूर और अन्य कुछ सामग्रियां भी श्रद्धापूर्वक चढ़ाई जाती हैं। जिन चीजों को हम आग को अर्पित करते हैं, उन्हीं चीजों को हम प्रसाद के रूप में खाते भी हैं और वितरित भी करते हैं।


लोहड़ी क्यों मनाई जाती है?

इसके पीछे कोई एक कथा नहीं है, अनेक कारण गिनाए जाते हैं। शिव व सती की कथा भी है, दुल्ला भट्टी की कथा भी है, कुछ लोग कबीर की पत्नी लोई से लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति मानते हैं। इन चरित्रों के गीत भी गाए जाते हैं।

फिर भी स्वाभाविक रूप से अगर हम देखें, तो यह नए अन्न के आगमन, ठंड के समापन की ओर बढऩे और एक-दूसरे का हाल जानकर खुश मनाने का पर्व है। गौर करने की बात है कि कड़ाके की ठंड जब पंजाब और उत्तर भारत में पड़ती है, तो किसी का कहीं आना-जाना भी प्रभावित हो जाता है। ठंड के कारण आवागमन प्रभावित होने से दूर बसे सम्बंधियों का हाल पता नहीं चलता। विशेष रूप से परिवार जनों को अपनी उन बेटियों की चिंता होती है, जो कहीं दूर ब्याही गई हैं। भाई को तिल, रेवड़ी, गुड़, वस्त्र, धन व अन्य उपहार, सामान देकर बहन का हाल जानने के लिए भेजा जाता है। सब एक दूसरे का हाल जानने के लिए लालायित होते हैं। हर मुहल्ले में मेहमान आ जाते हैं, मौका उत्सव का हो जाता है। तो आग जलाकर साथ बैठना, नाचना, गीत गाना, भोजन करना, हालचाल जानना लोहड़ी की विशेषता है। ठंड के खतरनाक दिन के खत्म होने और अच्छे दिन के आने का भी यह पर्व संकेत है। लोहड़ी का आयोजन मकर संक्राति या पोंगल की पूर्व संध्या पर होता है।


पोंगल क्यों मनाया जाता है?

पोंगल तमिल वर्ष का पहला दिन है। नए अन्न के घर आने और उसे पकाने का दिन है। पोंगल का अर्थ है – क्या उबल रहा है या क्या पकाया जा रहा है। दक्षिण भारत में इस दिन शोभा यात्रा भी निकालते हैं। नाना प्रकार से खुशी मनाते हैं। भगवान की पूजा, विशेष रूप से अयप्पा स्वामी की पूजा की जाती है। नया अन्न पकाया जाता है, भगवान को भोग लगाया जाता है और वही लोगों में प्रसाद के रूप में वितरित होता है।


मकर संक्रांति क्या है?

जब सूर्य धनु राशि को छोडक़र मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। यह कहा जाता है कि इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। हालांकि ज्योति:शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दिन नहीं, बल्कि २१ दिसंबर के आसपास ही उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण का अर्थ है – सूर्य का दक्षिण की ओर से उत्तर की ओर आना, एक तरह से सूर्य फिर पृथ्वी के पास आने लगते हैं। पृथ्वी के पास सूर्य के आने से धीरे-धीरे गर्मी बढ़ती है और गृष्मकाल आता है। इस दिन स्नान, दान, ध्यान की बड़ी महिमा है।


मकर संक्रांति को यह जरूर करें

भारतीय पौराणिक व सामाजिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन यह जरूर करना चाहिए।
1 – किसी तीर्थ में स्नान न भी करें, तो घर में अवश्य स्नान करें।
2 – स्नान करने से पहले जल में कुछ अन्न तिल अवश्य डालें।
3 – स्नान के बाद विशेष रूप से सूर्य की पूजा अवश्य करें।
4 – इस दिन तिल या तिल की वस्तु का दान फलदाई होता है।
5 – एक बार दही-चीउड़ा या तैलविहीन भोजन अवश्य करें।
6 – यथाशक्ति लोगों को भोजन कराना और दान करना चाहिए।
7 – रात के समय न स्नान करें और ना ही किसी को दान दें।
8 – स्वयं को पवित्र रखते हुए ईश्वर की पूजा करना चाहिए।
9 – इस दिन अपने पितरों या पूर्वजों को याद करना चाहिए।

10 – उनके लिए या उनके नाम पर भी दान की परंपरा रही है।


मकर संक्रांति पर ऐसा करेंगे, तो कभी असफल नहीं होंगे

मकर संक्रांति पर तिल का अत्यधिक प्रयोग होता है। तिल को एक ऐसा अन्न माना गया है, जिसके उपभोग से ठंड कम लगती है। भारतीय परंपरा में यह मान्यता है कि जो इंसान तिल का प्रयोग इन छह प्रकार से करता है, वह कभी असफल नहीं होता, वह कभी अभागा नहीं होता। पहला – शरीर को तिल से नहाना, तिल से उवटना, पितरों को तिल युक्त जल चढ़ाना, आग में तिल अर्पित करना, तिल दान करना और तिल खाना। तिल को बहुत महत्व का माना गया है, उत्तर भारत से ज्यादा तिल उपभोग दक्षिण भारत में होता है।


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गुरुनानक जयंती / Gurunanak Jayanti http://agaadhworld.in/gurunanak_jayanti/ Wed, 21 Nov 2018 18:59:04 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2879 गुरुनानक जयंती आदर्शतम गुरु नानक देव सिख पंथ के पहले गुरु – प्रवर्तक गुरुनानक देव की प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में

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गुरुनानक जयंती

आदर्शतम गुरु नानक देव

सिख पंथ के पहले गुरु – प्रवर्तक गुरुनानक देव की प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में है। आज  उनकी जयंती है। उनका जीवन  ही सहज सद्भाव को समर्पित था। धर्म की दुनिया में वे एक ऐसे अवतार थे, जिनका जीवन मर्यादा, भक्ति, श्रद्धा, सत्य, प्रेम को समर्पित था। उनके जीवन का एक भी पक्ष नकारात्मक नहीं है।
आज जो सिख धर्म है, उसकी नींव को गुरुनानक देव जी ने ही प्रेम से प्रतिष्ठित किया था। उन्होंने सामान्य जीवन भी जिया। वे संन्यासी जीवन के उतने पक्षधर नहीं थे। वे सद् गृहस्थ रहने पर जोर देते थे। उनका विवाह हुआ, उन्होंने रोजगार भी किया, उनके दो पुत्र भी हुए। गुरुनानक देव जी ने योग्यता का सदा सम्मान किया, उन्होंने अपनी गुरु गद्दी अपने पुत्रों की बजाय अपने योग्यतम शिष्य गुरु अंगद जी को प्रदान की। उनके इस फैसले से कुछ शुरुआती असंतोष तो हुआ, लेकिन पूरी दुनिया में एक बहुत अच्छा संदेश गया। आज भी गुरुनानक देव जी की शिक्षा आदर्श है।


आपने किया था सच्चा सौदा

उनके जीवन का हर पक्ष शिक्षा है। गुरुनानक देव जब छोटे थे, तब उनके पिता ने उन्हें पैसे देकर कोई सामान लेने भेजा। देव ने उस पैसे को जरूरतमंद गरीबों पर खर्च कर दिया और खाली हाथ घर लौट आये पिता ने उन्हें खूब पीटा और देव लगातार यही कहते रहे कि मैंने सामान का सौदा नहीं सच्चा सौदा किया है। सच्चा सौदा वह कार्य है जो सच्ची खुशी देता है।
माया में फसे रहना केवल अपने लिए जीना गलत सौदा है। हर व्यक्ति को सच्चा सौदा करना चाहिए, ताकि उसका और सबका भला हो।


मेरे पैर उधर कर दो जहां काबा नहीं है

गुरुनानक देव ने अपने जीवन में खूब यात्राएँ कीं। तरह तरह से लोगों को प्रभावित किया। जीना सोचना सिखाया। बताते हैं कि वे मक्का भी गए थे। वहां वे एक दिन बैठे तो देखने वाले मौलवियों ने आपत्ति की, कहा कि काबा की ओर पैर किए न बैठो।
गुरुनानक देव गजब के हाजिरजवाब थे व गहरी बातें किया करते थे।
आपत्ति करने वालों से उन्होंने पूरे शांत भाव से कहा, मेरे पैर उधर कर दो जहां अल्लाह का घर नहीं है।
मौलवियों को तत्काल समझ आ गया कि उनका सामना एक महान संत से हो रहा है। वे मुसलमानों के बीच भी रातों रात प्रसिद्ध हो गए।
गुरुनानक देव सद्भाव के पैरोकार थे और यह मानते थे कि एक दिन सब मानेंगे कि सबका स्वामी एक ही है। सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।


गुरुनानक देव से हम सीखें

– दिल में किसी के लिए नफरत न रखें। सबसे प्रेमभाव रखें।
– भगवान का नाम जपें, लेकिन कर्मकांड में ज्यादा न लगें।
– सेवा भावना, त्याग, ज्ञान और योग्यता का सम्मान करें।
– दुनियादारी में उलझ कर न रह जाएँ, परलोक भी सुधारें।
– गरीबों – जरूरतमंदों की सेवा व सहयोग के लिए आगे रहें।

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Baishakhi http://agaadhworld.in/baishakhi/ http://agaadhworld.in/baishakhi/#respond Fri, 13 Apr 2018 18:35:02 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4121 बैसाखी : सिक्खों का जन्मदिन सिक्ख धर्म के लिए बैसाखी का दिन खास महत्व रखता है। सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह

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बैसाखी : सिक्खों का जन्मदिन

सिक्ख धर्म के लिए बैसाखी का दिन खास महत्व रखता है। सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने इस दिन अर्थात 13-14 अप्रैल 1699  को खालसा की स्थापना की थी। इसी दिन उन्होंने अपने शिष्यों की परीक्षा ली थी और अपने शिष्यों से सिर मांगा था। बारी-बारी पांच शिष्य सिर देने के लिए आगे आए, उन्हें अंदर कमरे में ले जाकर बलि नहीं दी गई, बल्कि बकरे की बलि दी गई। ये पांच प्रथम शिष्य जो सिर दान के लिए आगे आए थे, वे पंच प्यारे कहलाए। गुरु गोविंद सिंह जी ने इन्हें सिंह की उपाधि दी। उनके लिए केश, कंघा, कड़ा, कृपाण, कच्छा को अनिवार्य बनाया।

वैशाख महीने में मनाई जाने वाली बैसाखी खुशियों का समय है। यह एक लोकपर्व भी है, जब फसल पक जाती है, तब किसान खुशी से झूम उठते हैं और मिलकर उत्सव मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा प्रांत में यह खुशी दोगुनी हो जाती है, जब फसल की खुशी के साथ खालसा की स्थापना का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन सिक्खों के लिए सामूहिक जन्मदिन है। वे नाच-गाकर, पूजा करके, सबद कीर्तन करके, पकवान बनाकर, लंगर का आयोजन करके इस दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।

 

 


पुरुष ‘सिंह’ और महिलाएं ‘कौर’ क्यों ?

यह प्रश्न सहज ही सबके मन में आता है कि सिक्खों के नाम के साथ जुड़े रहने वाले सिंह और कौर शब्द का अर्थ क्या है। बैसाखी के दिन ही सिक्ख पुरुषों को ‘सिंह’ की उपाधि मिली थी और उनके नाम के साथ ‘सिंह’ जोडऩा अनिवार्य किया गया था। दूसरी ओर, सिक्ख महिलाओं के नाम के साथ ‘कौर’ शब्द जोडऩा शुरू किया गया था।  इस दिन से पहले सिक्खों के नाम अलग, अलग हुआ करते थे। हम कह सकते हैं कि उनके नामों पर धर्म की छाप नहीं पड़ी थी, लेकिन बैसाखी के दिन उनके नाम धर्म के अनुरूप स्पष्ट हो गए। सिंह शब्द का अर्थ स्पष्ट है। सिंह शक्ति, साहस और निडरता का प्रतीक है। दूसरी ओर, ‘कौर’ है शेरनी। ‘कौर’ शब्द का एक अर्थ राजकुमारी या शहजादी भी है। अर्थ यह हुआ कि सिक्ख धर्म में पुरुष सिंह के समान हैं और महिलाएं शेरनी के समान।


खालसा की स्थापना क्यों हुई?

खालसा पंथ की स्थापना तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक-धार्मिक विवशता के कारण हुई। उस दौर में सिक्खों को धार्मिक आधार पर प्रताडि़त किया जाता था। उनकी हत्या की जाती थी, उन्हें कैद में डाल दिया जाता था। मुस्लिम धर्म की गलत हिंसक व्याख्या से प्रेरित मुस्लिम शासक सिक्खों के घोर विरोधी थे। इन शासकों ने सीधे सिक्ख गुरुओं को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया था। तो जो पंथ प्रेम भाव के साथ गुरु नानकदेव जी ने शुरू किया था, उस धर्म को बचाने के लिए ही गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म का सैन्यीकरण किया। सिक्खों को वीर बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने सिंहों से कहा कि एक ओर शत्रुओं को धूल चटाओ, तो दूसरी ओर, अपने विश्वासों, लोगों और गरीबों की रक्षा करो। उन्हीं की कल्पना थी कि सच्चा सिक्ख जहां एक ओर संत के समान होगा, वहीं दूसरी ओर वह सैनिक भी होगा। एक-एक सैनिक सौ-सौ शत्रुओं के बराबर होगा। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि सिक्ख धर्म के बचने के पीछे एक बड़ा कारण खालसा है। खालसा न होता, तो सिक्ख धर्म नष्ट हो गया होता। अत: सिक्खों के लिए खालसा का जन्मदिन बैसाखी पर्व सर्वोच्च महत्व रखता है।

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Guru Govind singh jayanti http://agaadhworld.in/guru-govind-singh-jayanti/ http://agaadhworld.in/guru-govind-singh-jayanti/#respond Thu, 04 Jan 2018 18:33:53 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3491 सिर्फ 9 साल की उम्र में हो गए गुरु जी हां, दुनिया में श्रद्धा और आस्था में सबकुछ संभव है।

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सिर्फ 9 साल की उम्र में हो गए गुरु

जी हां, दुनिया में श्रद्धा और आस्था में सबकुछ संभव है। समय बहुत बलवान होता है। विश्वास हो, तो एक बच्चा भी महानता की सीढिय़ां चढ़ जाता है। कुछ ऐसे ही थे सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी। बचपन में ही वे धर्मगुरु हो गए थे, जिनके सामने पूरा पंथ-समाज मत्था टेकता था। महान गुरु गोबिंद सिंह प्रमाण हैं कि दुनिया में संघर्ष, प्रेम और त्याग की हमेशा पूजा होती है। वे एक ओर अध्यात्म के शिखर थे, तो दूसरी ओर, कुशल योद्धा भी थे। एक ऐसा व्यक्तित्व जो संत भी था और सैनिक भी। सिखों के नौवें गुरु तेगबहादुर जी की शहादत के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी को मात्र 9 साल की उम्र में गुरु गद्दी पर विराजमान किया गया। पिता की शहादत के लगभग 4 महीने के बाद वे गुरु बने। सद्भाव और अपने धर्म के बचाव में हुई पिता की शहादत ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया था, तो गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रति समाज में व्यापक सम्मान का भाव था, लेकिन स्वयं उनका जीवन भी शांति से नहीं बीता। सद्भाव के दुश्मनों ने हमेशा परेशानी में डाले रखा। गुरु जी संघर्ष करते रहे, लेकिन कभी झुके नहीं, कभी दुश्मनों के सामने समर्पण नहीं किया।
ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। जन्म के स्थान पर आज तख्त श्री पटना साहिब विराजमान है। यहां पूरी दुनिया भर से सिख दर्शन के लिए आते हैं, इस गुरुद्वारे में गुरु जी के इस्तेमाल की कई वस्तुएं देखी जा सकती हैं।
उनके चार बेटे थे, दो बेटों को मुगल सेना ने दीवारों में चुनवा दिया, तो दो बेटे युद्ध में मारे गए। मुगलों ने वादा करके गुरु को धोखा दिया था। फिर भी गुरु शांति और सद्भाव के पक्षधर थे। उन्होंने इसके लिए अपने पुत्रों को गंवाने के बाद भी औरंगजेब को पत्र लिखा था, उसे फटकारा भी था और मिलने की इच्छा भी जताई थी, लेकिन मुगल बादशाह मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सका। उसका पुत्र बहादुरशाह भी गुरु से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा सका। धोखा देने वाले मुगल डर रहे थे कि संत गुरु कुशल योद्धा सैनिक भी हैं और बदला ले सकते हैं।
वे 32 साल तक सिख गुरु रहे थे और मात्र 41 की उम्र में नांदेड़ में उनका निधन (1708 ) हुआ। उन्हें धोखे से मारा गया था, लेकिन दुनिया से जाते-जाते भी गुरु ने अपने हत्यारे को जिंदा नहीं छोड़ा था।

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गुरुगोबिंद सिंह जी को क्यों याद करे दुनिया ?

1 – उन्होंने दुनिया को एक सबसे प्रिय गुरुग्रंथ दिया, गुरुग्रंथ साहिब।
2 – उन्होंने कहा कि आज से सिखों का गुरु गुरुग्रंथ साहिब ही होगा।
3 – उन्होंने अत्याचार के विरुद्ध लडऩे के लिए खालसा स्थापित किया।
4 – उन्होंने केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कच्छा का महत्व बताया।
5 – उन्होंने कहा कि समाज के लिए संत बनो, तो कभी सैनिक भी।
6 – उन्होंने कहा कि सच्चे मार्ग पर चलो। त्याग, सेवा से पीछे न हटो।
7 – उन्होंने १४ लड़ाइयां लड़ीं, लेकिन किसी का धर्मस्थल नहीं तोड़ा।
8 – उनके दो बालक दीवार में चुनवाए गए, तो दो युद्ध में शहीद हुए।
9 – उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब को जफरनामा (पत्र) लिखा था।
10 – औरंगजेब कभी गुरु से सीधे मिलने की हिम्मत न जुटा पाया।
11 – गुरु ने दुनिया से जाते-जाते भी अपने हत्यारे को जिंदा नहीं छोड़ा।

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गुरु तेगबहादुर शहीदी दिवस / GuruTegBahadur Shahidi Diwas http://agaadhworld.in/gurutegbahadur-shahidi-diwas/ Thu, 23 Nov 2017 18:38:55 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3043 प्रेम ध्वजा लहराई बोली, कट्टरता धिक्कार तुझे गुरु तेगबहादुर शहीदी दिवस सिख धर्म के नौवें गुरु महान तेगबहादुर जी को

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प्रेम ध्वजा लहराई बोली, कट्टरता धिक्कार तुझे

गुरु तेगबहादुर शहीदी दिवस

सिख धर्म के नौवें गुरु महान तेगबहादुर जी को धार्मिक सद्भाव के पक्षधर और सांप्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष के लिए हमेशा याद किया जाएगा। गुरु जी हमेशा ही कट्टरता का विरोध करते थे। उन्होंने धर्म और लोक की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था। उनके सद्व्यवहार के कारण पंजाब और देश के अन्य प्रांत में उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई थी, जिससे कट्टर लोग इसलाम धर्म के प्रचार में तकलीफ महसूस कर रहे थे। कश्मीर में पंडितों को भी धर्मपरिवर्तन से बचाने के लिए गुरु तेगबहादुर जी ने बहुत योगदान दिया। एक समय ऐसा था, जब पूरी कटï्टरता और निर्ममता के साथ इस्लाम धर्म का प्रचार किया जा रहा है। इस्लाम की भावनाओं के विपरीत खून बहाकर लोगों को मजबूर करके धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था।
उस दौर में गुरु तेगबहादुर एक ऐसे सद्भावी और धर्म के प्रति समर्पित संत थे, जिन्होंने कट्टरता के आगे झुकने से इनकार कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह से सताना शुरू किया। कहा जाता है कि कट्टर मौलानाओं के कहने पर औरंगजेब ने पहले गुरु तेगबहादुर के करीबी सेवादारों को मरवाया। गुरु जी के सामने ही भाई मतीदास को बोटी-बोटी काट दिया गया। भाई दयालदास को खौलते पानी में फेंक दिया गया और अंतत: न झुके तो गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया।
एक प्रेम-श्रद्धा-भक्ति का उज्ज्वल प्रतीक शहीद हो गया। उस दिन कट्टरता की दुनिया शर्मसार हुई थी। सांप्रदायिकता के मुख पर कालिस पुत गया था। कट्टरता ने एक ऐसा इतिहास लिखा, जिसे दुनिया में कभी भुलाया नहीं जा सकता। धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थक गुरु तेगबहादुर की शहादत को आज पूरा सिख समाज श्रद्धा के साथ याद करता है। जिस जगह उन्हें शहीद किया गया था, उस जगह आज दिल्ली में चांदनी चौक के पास गुरुद्वारा सिस गंज साहिब है और जिस जगह उनका अंतिम संस्कार हुआ था, उस जगह गुरुद्वारा रकब गंज साहिब है।

उनकी शहादत से बदला सिख धर्म

24 नवंबर 1675 में 54 वर्ष की उम्र में वे शहीद हुए थे। उनकी शहादत ने सिख धर्म को पूरी तरह से बदल दिया। सिख अपनी रक्षा के प्रति पहले से ज्यादा सजग हुए। कट्टर लोगों के दामन पर दाग लगा, तो उनका कहर भी पंजाब व अन्य कुछ प्रांतों थोड़ा कम हुआ। उनकी असमय शहादत के बाद उनके ९ वर्षीय पुत्र को गद्दी देनी पड़ी। पुत्र गुरु गोबिंद सिंह ने वयस्क होते-होते सिख धर्म की धारा को बदलकर रख दिया। यह साबित कर दिया कि सिख कमजोर नहीं हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही खालसा की स्थापना की।
गुरुग्रंथ साहिब में गुरु तेगबहादुर का योगदान अतुलनीय है। उनके लिखे-गाए ११६ सबद आज गुरुग्रंथ साहिब में शामिल हैं। उनका एक सबद है –
साधो कउन जुगति अब कीजै ॥
जा ते दुरमति सगल बिनासै राम भगति मनु भीजै
मनु माइआ महि उरझि रहिओ है बूझै नह कछु गिआना

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हम नहीं चंगे बुरा नहीं कोई http://agaadhworld.in/hum-nahi-change-bura-nahi-koi/ Thu, 31 Aug 2017 19:22:47 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2140 गुरु ग्रन्थ साहब की जयंती Saturday, 01 सितम्बर 2017 अर्थात हम यह अहंकार न पालें कि हम अच्छे हैं और साथ

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गुरु ग्रन्थ साहब की जयंती

Saturday, 01 सितम्बर 2017

अर्थात हम यह अहंकार न पालें कि हम अच्छे हैं और साथ ही हम यह नहीं मानें कि दुनिया के दूसरे सारे लोग बुरे हैं। प्रेम का यही रास्ता है, प्रेम भीतर देखता है और जगाता है, सुधरता है, तो दुनिया सुधरती है।

दुनिया में जितने भी धर्मग्रंथ रचे गए हैं, उनमें शायद सबसे प्रिय और काव्यात्मक श्रीगुरुग्रंथ साहिब ही हैं। एक ऐसा ग्रंथ जिसकी हर गुरुद्वारे में पूजा-अर्चना होती है। जिसे सिर-माथे में सजाया जाता है, जिसे दिल से गाया जाता है। एक ऐसा ग्रंथ जिसमें न केवल सिख गुरुओं की वाणियां बल्कि अन्य धर्मों के 30 संतों की वाणियां संकलित हैं। हिन्दू भक्त कवि भी हैं, तो मुसलिम सूफी कवि भी। सब गुरु-कवि प्रेम और ज्ञान की काव्यात्मक पंक्तियों के जरिये धर्म की ऐसा अलख जगाते हैं कि धर्मों के तमाम बंधन टूट जाते हैं। भेद मिट जाते हैं। एक ऐसा धर्म बनता है, जिसमें कोई गरीब ऐसा नहीं, जिसे भीख मांगने की जरूरत पड़े। श्रीगुरुग्रंथ साहिब किसी को निराश नहीं होने देता, किसी को भी निर्धन होने नहीं देता। सबको संपन्नता-स्वच्छता और सद्भाव की ओर ले जाता है।

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दुनिया का एक ग्रंथ जो गुरु घोषित है? http://agaadhworld.in/dunia-ka-ek-granth-jo-guru-ghoshit-hai/ Thu, 31 Aug 2017 18:39:53 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2149 गुरु ग्रन्थ साहब की जयंती Saturday, 01 सितम्बर 2017 गुरुनानकदेव से लेकर गुरुगोविंद सिंह जी तक सिखों के दस गुरु हुए।

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गुरु ग्रन्थ साहब की जयंती

Saturday, 01 सितम्बर 2017

गुरुनानकदेव से लेकर गुरुगोविंद सिंह जी तक सिखों के दस गुरु हुए। गुरुगोविंद सिंह जी ने गुरु परंपरा को नया रूप देते हुए किसी शिष्य को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाते हुए गुरुग्रंथ साहिब को ही पूर्ण गुरु घोषित कर दिया। आज सिख गुरुग्रंथ साहिब की पूरे मन से सेवा करते हैं। यह ध्यान रखते हैं कि गुरुग्रंथ साहिब को कोई कष्ट न हो। गुरुग्रंथ साहिब को साक्षी मानकर, आशीर्वाद लेकर ही सिखों के सारे काम होते हैं।

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दुनिया का सबसे सहज धर्मग्रंथ कौन है? http://agaadhworld.in/dunia-ka-sabse-sahaj-dharm-granth-kaun-hai/ Thu, 31 Aug 2017 18:32:12 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2143 गुरु ग्रन्थ साहब की जयंती Saturday, 01 सितम्बर 2017 श्रीगुरुग्रंथ साहिब दुनिया का सबसे सहब धर्मग्रंथ है। सिखों के पंचम गुरु

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गुरु ग्रन्थ साहब की जयंती

Saturday, 01 सितम्बर 2017

श्रीगुरुग्रंथ साहिब दुनिया का सबसे सहब धर्मग्रंथ है। सिखों के पंचम गुरु श्रीअर्जुनदेव जी ने गुरुनानकदेव सहित सभी गुरुओं की वाणी को संकलित करके पहली बार 1604 में गुरुग्रंथ साहिब को प्र्रस्तुत किया। उसके ठीक 101 साल बाद 1705 में गुरु गोविंद सिंह जी ने इसमें गुरु तेगबहादुर जी के 116 सबद जोड़े और इस ग्रन्थ  को पूर्ण रूप दिया। इस ग्रंथ में 1430 पृष्ठ है।

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