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गुरु तेगबहादुर शहीदी दिवस / GuruTegBahadur Shahidi Diwas - agaadhworld

प्रेम ध्वजा लहराई बोली, कट्टरता धिक्कार तुझे

गुरु तेगबहादुर शहीदी दिवस

सिख धर्म के नौवें गुरु महान तेगबहादुर जी को धार्मिक सद्भाव के पक्षधर और सांप्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष के लिए हमेशा याद किया जाएगा। गुरु जी हमेशा ही कट्टरता का विरोध करते थे। उन्होंने धर्म और लोक की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था। उनके सद्व्यवहार के कारण पंजाब और देश के अन्य प्रांत में उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई थी, जिससे कट्टर लोग इसलाम धर्म के प्रचार में तकलीफ महसूस कर रहे थे। कश्मीर में पंडितों को भी धर्मपरिवर्तन से बचाने के लिए गुरु तेगबहादुर जी ने बहुत योगदान दिया। एक समय ऐसा था, जब पूरी कटï्टरता और निर्ममता के साथ इस्लाम धर्म का प्रचार किया जा रहा है। इस्लाम की भावनाओं के विपरीत खून बहाकर लोगों को मजबूर करके धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था।
उस दौर में गुरु तेगबहादुर एक ऐसे सद्भावी और धर्म के प्रति समर्पित संत थे, जिन्होंने कट्टरता के आगे झुकने से इनकार कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह से सताना शुरू किया। कहा जाता है कि कट्टर मौलानाओं के कहने पर औरंगजेब ने पहले गुरु तेगबहादुर के करीबी सेवादारों को मरवाया। गुरु जी के सामने ही भाई मतीदास को बोटी-बोटी काट दिया गया। भाई दयालदास को खौलते पानी में फेंक दिया गया और अंतत: न झुके तो गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया।
एक प्रेम-श्रद्धा-भक्ति का उज्ज्वल प्रतीक शहीद हो गया। उस दिन कट्टरता की दुनिया शर्मसार हुई थी। सांप्रदायिकता के मुख पर कालिस पुत गया था। कट्टरता ने एक ऐसा इतिहास लिखा, जिसे दुनिया में कभी भुलाया नहीं जा सकता। धार्मिक स्वतंत्रता के समर्थक गुरु तेगबहादुर की शहादत को आज पूरा सिख समाज श्रद्धा के साथ याद करता है। जिस जगह उन्हें शहीद किया गया था, उस जगह आज दिल्ली में चांदनी चौक के पास गुरुद्वारा सिस गंज साहिब है और जिस जगह उनका अंतिम संस्कार हुआ था, उस जगह गुरुद्वारा रकब गंज साहिब है।

उनकी शहादत से बदला सिख धर्म

24 नवंबर 1675 में 54 वर्ष की उम्र में वे शहीद हुए थे। उनकी शहादत ने सिख धर्म को पूरी तरह से बदल दिया। सिख अपनी रक्षा के प्रति पहले से ज्यादा सजग हुए। कट्टर लोगों के दामन पर दाग लगा, तो उनका कहर भी पंजाब व अन्य कुछ प्रांतों थोड़ा कम हुआ। उनकी असमय शहादत के बाद उनके ९ वर्षीय पुत्र को गद्दी देनी पड़ी। पुत्र गुरु गोबिंद सिंह ने वयस्क होते-होते सिख धर्म की धारा को बदलकर रख दिया। यह साबित कर दिया कि सिख कमजोर नहीं हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही खालसा की स्थापना की।
गुरुग्रंथ साहिब में गुरु तेगबहादुर का योगदान अतुलनीय है। उनके लिखे-गाए ११६ सबद आज गुरुग्रंथ साहिब में शामिल हैं। उनका एक सबद है –
साधो कउन जुगति अब कीजै ॥
जा ते दुरमति सगल बिनासै राम भगति मनु भीजै
मनु माइआ महि उरझि रहिओ है बूझै नह कछु गिआना