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गुरुनानक जयंती / Gurunanak Jayanti - agaadhworld

गुरुनानक जयंती

आदर्शतम गुरु नानक देव

सिख पंथ के पहले गुरु – प्रवर्तक गुरुनानक देव की प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में है। आज  उनकी जयंती है। उनका जीवन  ही सहज सद्भाव को समर्पित था। धर्म की दुनिया में वे एक ऐसे अवतार थे, जिनका जीवन मर्यादा, भक्ति, श्रद्धा, सत्य, प्रेम को समर्पित था। उनके जीवन का एक भी पक्ष नकारात्मक नहीं है।
आज जो सिख धर्म है, उसकी नींव को गुरुनानक देव जी ने ही प्रेम से प्रतिष्ठित किया था। उन्होंने सामान्य जीवन भी जिया। वे संन्यासी जीवन के उतने पक्षधर नहीं थे। वे सद् गृहस्थ रहने पर जोर देते थे। उनका विवाह हुआ, उन्होंने रोजगार भी किया, उनके दो पुत्र भी हुए। गुरुनानक देव जी ने योग्यता का सदा सम्मान किया, उन्होंने अपनी गुरु गद्दी अपने पुत्रों की बजाय अपने योग्यतम शिष्य गुरु अंगद जी को प्रदान की। उनके इस फैसले से कुछ शुरुआती असंतोष तो हुआ, लेकिन पूरी दुनिया में एक बहुत अच्छा संदेश गया। आज भी गुरुनानक देव जी की शिक्षा आदर्श है।


आपने किया था सच्चा सौदा

उनके जीवन का हर पक्ष शिक्षा है। गुरुनानक देव जब छोटे थे, तब उनके पिता ने उन्हें पैसे देकर कोई सामान लेने भेजा। देव ने उस पैसे को जरूरतमंद गरीबों पर खर्च कर दिया और खाली हाथ घर लौट आये पिता ने उन्हें खूब पीटा और देव लगातार यही कहते रहे कि मैंने सामान का सौदा नहीं सच्चा सौदा किया है। सच्चा सौदा वह कार्य है जो सच्ची खुशी देता है।
माया में फसे रहना केवल अपने लिए जीना गलत सौदा है। हर व्यक्ति को सच्चा सौदा करना चाहिए, ताकि उसका और सबका भला हो।


मेरे पैर उधर कर दो जहां काबा नहीं है

गुरुनानक देव ने अपने जीवन में खूब यात्राएँ कीं। तरह तरह से लोगों को प्रभावित किया। जीना सोचना सिखाया। बताते हैं कि वे मक्का भी गए थे। वहां वे एक दिन बैठे तो देखने वाले मौलवियों ने आपत्ति की, कहा कि काबा की ओर पैर किए न बैठो।
गुरुनानक देव गजब के हाजिरजवाब थे व गहरी बातें किया करते थे।
आपत्ति करने वालों से उन्होंने पूरे शांत भाव से कहा, मेरे पैर उधर कर दो जहां अल्लाह का घर नहीं है।
मौलवियों को तत्काल समझ आ गया कि उनका सामना एक महान संत से हो रहा है। वे मुसलमानों के बीच भी रातों रात प्रसिद्ध हो गए।
गुरुनानक देव सद्भाव के पैरोकार थे और यह मानते थे कि एक दिन सब मानेंगे कि सबका स्वामी एक ही है। सब एक ही ईश्वर की संतान हैं।


गुरुनानक देव से हम सीखें

– दिल में किसी के लिए नफरत न रखें। सबसे प्रेमभाव रखें।
– भगवान का नाम जपें, लेकिन कर्मकांड में ज्यादा न लगें।
– सेवा भावना, त्याग, ज्ञान और योग्यता का सम्मान करें।
– दुनियादारी में उलझ कर न रह जाएँ, परलोक भी सुधारें।
– गरीबों – जरूरतमंदों की सेवा व सहयोग के लिए आगे रहें।