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वे बुद्धि, व्यावहारिकता, उदारता, सहजता की सहज प्रतिमूर्ति हैं, इसलिए उनकी सबसे पहले पूजा की जाती है। इनके पिता महादेव भी अत्यंत उदार देवता माने जाते हैं और पुत्र भी अत्यंत उदार और हंसमुख हैं। कथा है – प्रतियोगिता हुई थी कि पृथ्वी की परिक्रमा कौन जल्दी लगा लेगा। एक मत के अनुसार इस प्रतियोगिता में अनेक देवी-देवताओं ने भाग लिया था और दूसरे मत के अनुसार, लीला स्वरूप भगवान महादेव ने यह प्रतियोगिता अपने ही दो बालकों – कार्तिकेय और गणेश के बीच करवाई थी। कार्तिकेय तो अपने वाहन मोर से संसार की परिक्रमा के लिए तत्काल निकल गए, किन्तु इधर मूषक वाहन के स्वामी गणेश जी ने विकल्प पर विचार किया। सात बार अपने माता-पिता की परिक्रमा की। तर्क यह था कि बच्चों के लिए माता-पिता ही संसार हैं। पिता ने इस सुलभ और प्रिय तर्क को माना। अत: इसलिए गणेश जी प्रथम पूज्य हैं।
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]]>देवता तो करोड़ों थे, लेकिन धरती पर इतनी फुरसत किस मनुष्य को है कि सबकी पूजा करे, इतने देवता हों, तो नाम लेने के लिए जीवन भी कम पड़ जाए। अत: ऋषियों ने तय किया कि कोई एक ऐसा सहज देव चुना जाए, जिसकी पूजा पृथ्वी पर हो। भृगु मुनि को देवताओं में श्रेष्ठ का चयन करने की जिम्मेदारी दी गई। भृगु ने तमाम परिक्षण और चिंतन के बाद महादेव को ही धरती पर पूजनीय घोषित किया। सर्वाधिक मंदिर आज भी महादेव के ही हैं। प्राचीन काल में केवल उनके ही मंदिर होते थे।
ऋषियों की दृष्टि में पिता धरती पर अकेले नित्य पूजनीय देवता हैं और उन्होंने ही अपने अद्भुत सेवाभावी पुत्र को प्रथम पूज्य देव घोषित किया है।
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]]>भगवान गजानन की मूर्तियां जगत प्रसिद्ध हैं। नाना प्रकार से और नाना वस्तुओं से उनकी मूर्तियां बनाई जाती हैं। इनकी मूर्तियों के जितने विविध रूप मिलते हैं, उतने किसी के भी नहीं मिलते। माता पार्वती ने इन्हें उबटन के सहारे अपने हाथों से ही बनाया था। वे अत्यंत उदार हैं, जल्दी प्रसन्न होते हैं, वे अपने भक्तों को अभिव्यक्ति, सृजन या निर्माण की पूरी स्वतंत्रता देते हैं, इसलिए नाना प्रकार से उनकी प्रतिमाओं का निर्माण संभव होता है।
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]]>हिन्दू अनेक देवताओं की पूजा करते हैं, लेकिन सभी देवताओं में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा होती है। शुभारंभ करने को श्रीगणेश करना भी कहा जा सकता है। किसी भी देवता की पूजा से पहले गणेश जी की पूजा का नियम बना हुआ है, जिसे हिन्दू आदिकाल से मानते आ रहे हैं। देवी माता पार्वती ने हल्दी चंदन के उबटन से गणेश जी का सृजन किया था। एक दिन जब वे स्नान के लिए जा रही थीं, तब उन्हें एक द्वार रक्षक की आवश्यकता महसूस हुई, तो उन्होंने गणेश को गढ़ा और आदेश दिया कि द्वार की रक्षा करो, किसी को अंदर न आने देना।
देवी पार्वती के पति महादेव शंकर वहां पहुंच गए। माता के आदेश के अनुसार गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। बात बढ़ गई, युद्ध की स्थिति बन गई। महादेव ने क्रोध में बाल गणेश का सिर काट दिया। पार्वती को जब पता चला तो बहुत शोक की स्थिति बन गई। मांग हुई कि गणेश जी को पुन: जीवित किया जाए। महादेव भी चिंतित हुए। उपाय सोचा। गणेश जी का मनुष्य सिर फिर उपयोग लायक नहीं था, अत: गज या हाथी के बच्चे का सिर गणेश जी के धड़ के साथ जोडक़र उन्हें पुन: जीवित कर दिया। संसार को एक अद्भुत देव की प्राप्ति हुई, जिसका मुख हाथी का और शरीर मनुष्य का है। उन्हें गुणों के साथ-साथ साधनों का भी देवता माना जाता है। बुद्धि, शक्ति, संपन्नता के लिए में उनकी पूजा होती है।
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