मातम का मौका मोहर्रम

मोहर्रम एक अवसर है, जो हमें अपनी गलतियों के प्रति सजग करता है, जो हमें पाप के प्रति सजग करता है, जो हमें सुधार व पश्चाताप के लिए प्रेरित करता है। मोहर्रम त्यौहार नहीं है, यह कोई बधाई का अवसर नहीं है, यह सजग होने का अवसर है, दुनिया को यह दिखाने का अवसर है कि देखो – गलत काम से बचो, वरना केवल पछताना पड़ेगा। रसूल अल्लाह हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ इस दिन शहीद कर दिए गए थे। हजरत इमाम हुसैन को जिस ढंग से मारा गया, उसका मोहर्रम के दिन शोक मनाया जाता है।
अपनी गलती मानने का मौका
आम तौर पर अन्य सभ्यताओं में हुई गलतियों को छिपाया जाता है, लेकिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत एक ऐसी गलती है, जिसे मुस्लिम समाज हमेशा याद रखता है। हालांकि समाज में ही एक बड़ा तबका ऐसा है, जो इस शहादत का शोक नहीं मनाता, लेकिन अपनी गलती का शोक मनाना और सबसे पहले उस गलती को स्वीकार करना एक बहुत बड़ी बात है। आज लोग अपनी छोटी-छोटी कमियों को छिपाने में लगे रहते हैं, वे केवल अच्छी चीजों का उत्सव मनाना चाहते हैं, लेकिन मोहर्रम एक सबक है। सभ्यता में जो गलती हुई, वह फिर न हो, वो परिस्थितियां फिर न लौटें। काश! हजरत इमाम हुसैन यदि शहीद न हुए होते, तो संभव है रसूल अल्लाह का खानदान आज भी दुनिया में चल रहा होता। दुनिया को ईमान की नसीहत देने वाला एक धर्म आज एक बड़े अभाव को झेल रहा है। रसूल या नबी ईसा ने तो विवाह नहीं किया था, लेकिन नबी रसूल अल्लाह हजरत मोहम्मद तो परिवार वाले थे, लेकिन आज उनका परिवार नहीं है। यह दुनिया के सभ्य समाज के लिए बहुत भारी शोक की घड़ी है, एक ऐसे दुख की घड़ी है, जिसकी कोई तुलना नहीं है। दुनिया जब तक रहेगी, तब यह शोक रहेगा और मोहर्रम मनाया जाता रहेगा।
मोहर्रम त्योहार नहीं है
मुस्लिम समाज में मोहर्रम मात्र एक अवसर है, जब शोक मनाया जाता है। यह त्योहार नहीं है। मूल रूप से मुस्लिमों के केवल दो त्योहार हैं ईद और बकरीद। मुस्लिमों के बाकी जो त्योहार है, वह देश के हिसाब से बदलते रहते हैं। मोहर्रम एक अवसर है, इस दिन लोग अकेले में भी शोक मनाते हैं और एक साथ जुटकर भी शोक या मातम मनाते हैं, लेकिन इस अवसर पर लोग एक दूसरे को बधाई नहीं देते। यह शुभकामना का अवसर नहीं है, यह केवल सीखने का अवसर है, पश्चाताप का अवसर है। इसे फेस्टिवल या व्रत -त्योहार में नहीं गिना जा सकता। कुछ लोग शांतिपूर्वक मातम मनाते हैं, तो कुछ लोग भावावेश में स्वयं को आहत करके भी मातम मनाते हैं। यहां तक कि मोहर्रम के महीने में मुस्लिम समाज किसी भी शुभ कार्य से बचता है।
 ताजिया क्या है?
ताजिया हजरत इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीक है। मोहर्रम के दिन विशेष रूप से शिया मुस्लिम बहुत सजावट के साथ ताजिया का निर्माण करते हैं और उसका प्रदर्शन करते हैं। जुलूस निकालते हैं, ताजिया के आसपास या आगे मर्सिया पढ़ते हैं, शोक मनाते हैं। भारत में ताजिया बहुत श्रद्धा के साथ निकाला जाता है और हिन्दू भी इसमें भाग लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि ताजिया के नीचे से निकलने से शुभ होता है। ताजिया निकालकर उसे एक जगह जमा या विसर्जित किया जाता है।
कर्बला में है इमाम की असली कब्र
वैसे इमाम हुसैन की वास्तविक कब्र कर्बला में स्थित है, जो इराक का एक शहर है। यह कब्र ही वह जगह है, जहां इमाम हुसैन परिवार सहित शहीद हुए थे और उनकी शहादत ने मुसलमानों को सकारात्मक दिशा में प्रेरित किया था। समाज में नकारात्मक घटी थी, नकारात्मकता के दुष्परिणाम को पूरे अरब जगत ने भोगा था। आज ज्यादातर शिया जब हज के लिए मक्का जाते हैं, तो लौटते समय कर्बला भी जरूर जाते हैं। आज मुस्लिम समाज में हुसैन नाम बहुत प्यारा नाम है, जबकि इमाम हुसैन को शहीद करवाने वाले यजीद का नाम कोई लेना नहीं चाहता। आज भी मुस्लिम समाज में किसी का नाम यजीद नहीं रखा जाता है।