दीपावली महोत्सव

दीपावली महोत्सव

भारतीय संस्कृति में दीपावली अनेक तरह की पूजाओं, उत्सवों, धार्मिक-सामाजिक कृत्यों से भरपूर महोत्सव है। यह पांच दिवसीय महोत्सव है। दीपावली के दो दिन पहले ही उत्सव शुरू हो जाते हैं और दीपावली के दो दिन बाद तक चलते हैं। हालांकि, समय के साथ बदलाव आए हैं और लोग पांच दिवसीय महोत्सव को एक दिवसीय ही मानने लगे हैं। पांच दिवसीय मुख्य त्योहार इस प्रकार से हैं : – पहले दिन -धनतेरस, दूसरे दिन – रूपचौदस, तीसरे दिन – दीपोत्सव, चौथे दिन – गोवर्धन पूजा, पांचवें दिन – भैयादूज।

शोभा, समृद्धि और श्रद्धा का पर्व

ऐसा कहा जाता है कि भारतीय संस्कृति में होली गरीबों का पर्व है और दीपावली अमीरों का। दोनों ही भारत के बड़े पर्व हैं, लेकिन होली का धार्मिक महत्व कम है और दीपावली का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। होली से कोई बच सकता है, लेकिन दीपावली से बचना कठिन है। दीपावली की रौनक भारत में हर कहीं अलग से नजर आने लगती है। घर, बाजार, दफ्तर हर जगह दीपावली अपनी सजावट के साथ दिखने लगती है। कहा जाता है कि भारत को अगर देखना है, तो दीपावली के समय देखना चाहिए। भारत की संपन्नता के दर्शन यह महोत्सव कराता है। धन वैभव और संपत्ति का प्रदर्शन जमकर होता है और इसे दीपावली में कभी बुरा नहीं माना जाता। समाज और जीवन में धन का महत्व पूरी तरह से दिखने लगता है।

दीपावली की शुरुआत की कोई एक कथा नहीं है, अनेक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन जा कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है, वह यह कि इस दिन राम 14 साल का वनवास काटकर अयोध्या पहुंचे थे। रावण का विनाश कर अयोध्या लौटे थे, राजा बनकर देश की सेवा के लिए लौटे थे, इस खुशी में अयोध्या में हर ओर दीप जलाकर पूरी खुशी के साथ उनका स्वागत किया गया था। अत: अच्छाई की बुराई पर जीत का महोत्सव है, असत्य पर सत्य की जीत की बेला है।

दीपावली के कई नाम हैं : – दीपावली, दिवाली, दीपालिका, सुखरात्रि, यक्षरात्रि, सुखसुप्तिका।

दीपावली का पहला दिन

धनतेरस के दिन धन पूजा होती है। विक्रम संवत के कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहा जाता है। इस दिन भारतीय चिकित्सक धन्वन्तरि जयंती मनाते हैं। इस दिन घर द्वार को स्वच्छ किया जाता है, ताकि ईश्वर प्रसन्न हों। इससे पता चलता है कि स्वच्छता संपन्नता ही नहीं, बल्कि अच्छे स्वास्थ्य की भी पहली सीढ़ी है। यह दिन चिकित्सा से भी जुड़ा है और धन से भी, अत: यह संकेत भी है कि अच्छा स्वास्थ्य भी किसी धन से कम नहीं है। मान लीजिए, आपके पास खूब धन हो और स्वास्थ्य ठीक न रहे, तो फिर क्या फायदा?

इस दिन किसी भी प्रकार का धातु खरीदकर घर लाने को शुभ माना जाता है। लोग चांदी या सोने का सिक्का घर लाते हैं, इस दिन लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति खरीदने की भी परंपरा है।

दीपावली का दूसरा दिन

रूपचौदस या चतुर्दशी या भूतचतुर्दशी के दिन तैल स्नान, यम तर्पण, नरक के लिए दीपदान, उल्कादान, शिव पूजा, महारात्रि पूजा का विधान है। भारतीय शास्त्रों में इस दिन केवल रात्रि में भोजन को सही माना गया है। इनमें से अब केवल तीन ही प्रचलित हैं-  तैल स्नान, नरक दीपदान और रात्रि दीपदान। तैल स्नान का जुड़ाव सुंदरता से है, हर किसी को कोशिश करनी चाहिए कि वह अच्छा दिखे या सुंदर दिखे। उबटन लगाने का चलन है, ताकि त्वचा की सही सफाई हो। नरक दीपदान का अर्थ है पितरों का याद करना। किसी भी महोत्सव के अवसर पर पितरों को जरूर याद करना चाहिए, जिनकी कृपा से हम जीवित हैं और सब उपभोग कर रहे हैं। पितरों का आभार जताने के साथ ही दीपदान जरूरी है, ताकि उजाला रहे। घर के आसपास अंधियारा न रहे। नरक चतुर्दशी स्त्री मुक्ति से भी जुड़ा पर्व है।

दीपावली का तीसरा दिन

यह दीपावली महोत्सव का मुख्य दिन है। भारत में इस दिन अनेक घरों में लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है, ताकि गरीबी दूर हो। कई घरों में लक्ष्मी-गणेश की वार्षिक मूर्ति की  स्थापना होती है। दीपदान व हर जगह प्रकाश फैलाने का विशेष विधान है। अधिकतर व्यापारी इस दिन अपने बही खातों की पूजा करते हैं। पुराने खाते बंद किए जाते हैं और नए खोले जाते हैं। प्रार्थना करते हैं कि उन पर लक्ष्मी की कृपा बनी रहे। इस दिन धनपति कुबेर की भी पूजा होती है। पकवान बनाए जाते हैं, ईश्वर को भोग लगता है। लोग नए कपड़े पहनते हैं। भारत में कई जगह आतिशबाजी का आयोजन होता है। हालांकि इधर पटाखों का चलन प्रदूषण की वजह से कम हो गया है, लेकिन लोगों का ध्यान रोशनी करने पर ज्यादा है। तरह-तरह से घर द्वार को सजाया जाता है, ताकि लक्ष्मी आकर्षित हों। द्वार पर रंगोली बनाने का भी रिवाज है, भारत का वैभव इस दिन देखते ही बनता है।

दीपावली का चौथा दिन

इस दिन को प्रतिपदा भी कहते हैं। इस दिन बलि पूजा, दीपदान, गौ-बैल की पूजा, गोवर्धन की पूजा, मार्गपाली बांधना, नववस्त्र पहनना, द्युत जैसे कृत्य वर्णित हैं। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। अपने जीवन में पशु और प्रकृति के महत्व को पहचानने का यह विशेष दिन है। भारत के अनेक इलाकों में यह त्योहार दीपावली के मुख्य त्योहार से भी ज्यादा जोर-शोर से मनाया जाता है।

दीपावली का पांचवां दिन

दीपावली के समापन दिवस पर भैयादूज या भ्रातृद्वितीया या यमद्वितीया उत्सव मनाया जाता है। यह भाई-बहन का विशेष त्योहार है। दूर रहने वाले भाई बहन भी इस दिन मिलते हैं एक दूसरे को याद करते हैं सम्मान देते हैं। बहन भाई को अपने यहाँ भोजन करवाती है, भाई बहन को उपहार देते हैं। कहा जाता है कि इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने यहाँ भोजन के लिए आमंत्रित किया था। भैयादूज का उत्सव भाई के लिए लाभकारी होता है और बहन के लिए सुरक्षा का एहसास लाता है। यह दिन संसार में बंधुता बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। संबंधों की रक्षा के लिए त्याग के लिए प्रेरित करता है। यह दिन एहसास कराता है कि अगर सुरक्षा नहीं है, तो धन-वैभव बेकार है और बहनों की सुरक्षा नहीं है, तो भाइयों का कोई अर्थ नहीं है। सबको मिलकर एक दूसरे का संरक्षण करना चाहिए। हम सबकी सुरक्षा भी एक प्रकार से धन ही है।

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