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Indian – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png Indian – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 Guru_Poornima http://agaadhworld.in/guru_poornima/ http://agaadhworld.in/guru_poornima/#respond Sun, 14 Jul 2019 18:51:47 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4464 गुरु पूर्णिमा वो 21 गुरु, जिन्हें भूलना असंभव 1 – महर्षि वेदव्यास – ईसा पूर्व 5000 वर्ष से भी पहले

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गुरु पूर्णिमा

वो 21 गुरु, जिन्हें भूलना असंभव

1 – महर्षि वेदव्यास – ईसा पूर्व 5000 वर्ष से भी पहले वेदव्यास हुए थे और ज्यादातर विद्वान इस बात से सहमत हैं कि इतिहास में अनेक वेदव्यास हुए हैं। इनका प्रमुख कार्य चार वेदों का संपादन रहा है। वेदों के आधार पर ही सनातन धर्म चल रहा है।


2 – महर्षि वाल्मीकि – ईसा पूर्व 5000 वर्ष से भी पहले हुए महर्षि वाल्मीकि पहले डाकू थे, राम की भक्ति ने उन्हें संत और फिर महर्षि बना दिया। वे दुनिया के प्रथम या आदि कवि हैं – उन्होंने रामायण की रचना करके सनातन संस्कृति को सशक्त बनाया था।


3 – ऋषि वशिष्ठ – ईसा पूर्व 5000 वर्ष से भी पहले वशिष्ठ जी हुए थे। अत्यंत विद्वान और तपस्वी ऋषि थे। वे दशरथ पुत्र मर्यादापुरुषोत्तम राम जी के गुरु थे, उन्होंने ही रामराज्य का मार्ग प्रशस्त किया। उनका ज्ञान आज भी दुनिया को राह दिखा रहा है।


4 – ऋषि गौतम – ईसा पूर्व 2500 में ऋषि गौतम हुए और सनातन धर्म के मूलभूत ढांचे को सशक्त करने में अतुलनीय योगदान दिया। उन्होंने संसार में पहली बार न्याय शास्त्र की रचना की थी, जिससे आगे चलकर अध्ययन, शासन-प्रशासन में सुविधा हुई।


5 – ऋषि मनु – ईसा पूर्व 2000 में हुए ऋषि मनु संसार के पहले संविधान लेखक या नीति निर्माता हैं। उन्होंने मानव व्यवहार कैसे हो, समाज का पालन-पोषण कैसे हो, व्यक्ति का उद्धार कैसे हो, व्यवस्था कैसे चले, इसके लिए मनु स्मृति की रचना की।


6 – चरक और सुश्रुत – ईसा पूर्व 1000 से 600 के बीच हुए चरक ने आयुर्वेद और औषधि विज्ञान को समृद्ध किया। सुश्रुत को दुनिया का पहला शल्य चिकित्सक माना जाता है। हर संभव असाध्य बीमारियों का इलाज भी दोनों वैद्यों ने संसार को बताया था।


7 – वर्धमान महावीर – ईसा पूर्व 600 से 528 के बीच संसार में रहे वैशाली में जन्मे राजपुत्र वर्धमान महावीर ने भारतीय नास्तिक दर्शन के तहत ही जैन दर्शन की आधारशिला को मजबूत किया। उन्होंने दुनिया को तप और अहिंसा का शांतिपूर्ण मार्ग दिखलाया।


8 – गौतम बुद्ध – ईसा पूर्व 563 से 483 लुंबिनी में जन्मे राजपुत्र सिद्धार्थ ही आगे चलकर बुद्ध कहलाए। जाति भेदभाव, कर्मकांड, मूर्तिपूजा से परे जाकर सबसे सद्व्यवहार करते हुए, मानवतापूर्ण व्यवहार करते हुए मनुष्य अपने जीवन का लक्ष्य पा सकता है।



9 – ऋषि पाणिनी – ईसा पूर्व 300 में हुए ऋषि पाणिनी को व्याकरण के लिए हमेशा याद किया जाएगा। किसी भी भाषा के लिए दुनिया का संभवत: पहला व्याकरण पाणिनी ने ही लिखा था। भाषा मजबूत हुई, तो शिक्षा व सभ्यता को मजबूती मिली।


10 – कौटिल्य – ईसा पूर्व 200 ईसा पूर्व हुए कौटिल्य या चाणक्य ने पहली बार अर्थशास्त्र की रचना की, जिसके तहत ही पूरी राजनीति और दंडशास्त्र को उन्होंने समेट लिया। उन्होंने व्यवस्थित तरीके से बताया कि आधुनिक राज्य कैसे चलाया जाता है।


11 – ऋषि पतंजलि – ईसा पूर्व 100 में ऋषि पतंजलि ने योग शास्त्र की रचना की और बताया कि योग मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है। योग के जरिये शरीर पर नियंत्रण कर न केवल व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है, बल्कि परमेश्वर को भी पा सकता है।


12 – भरत मुनि – ईसा उपरांत 200 में भरत मुनि ने संसार में पहली बार नाट्यशास्त्र की रचना की। उन्होंने भाव का अर्थ और प्रदर्शन स्पष्ट करके कला संसार को सशक्त किया। किया। अभिनय, नृत्य की दुनिया को उन्होंने बदलकर रख दिया।


13 – आर्यभट्ट – ईसा उपरांत 463-550 में हुए महान गणितज्ञ एक कुशल ज्योतिषी व खगोलशास्त्री भी थे। गणित में अनगिनत आविष्कार किए। बताया कि पृथ्वी घूम रही है, चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण कैसे होता है। शून्य का मार्ग प्रशस्त किया।


14 – आदि शंकराचार्य – ईसा उपरांत 788 से 820 के बीच संसार में रहे आदि शंकराचार्य सनातन धर्म को सुस्कारी और शास्त्र सम्मत दिशा में मोडक़र पुनर्जीवन दिया। चारों दिशाओं में धाम या तीरथ बनाकर भारत का एक धार्मिक ढांचा खड़ा किया।


15 – श्री रामानुजाचार्य – ईसा उपरांत 1017 से 1137 के बीच हुए महान रामानुजाचार्य ने ज्ञान और भक्ति मार्ग को सशक्त किया। उन्होंने विद्या के क्षेत्र में धर्म की शास्त्रीय महिमा को स्थापित किया, उनसे अनेक आचार्य प्रभावित होकर आगे बढ़े।


16 – श्री रामानंदाचार्य – 1400 से 1476 के बीच हुए रामानंदाचार्य ने सद्भाव को सशक्त बनाया। जात-पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजै से हरि का होई। सगुण-निर्गुण, दोनों ही धाराओं को आगे बढ़ाया, तो कबीर भी हुए और तुलसीदास भी।


17 – गुरु नानक – 1469 से 1539 के बीच हुए गुरु नानकदेव धार्मिक सद्भाव की राह को मजबूत किया। धर्म से जो घृणा फैल रही थी, देश जिस तरह से भटक रहा था, उसमें नानकदेव ने प्रेम और मेलमिलाप की राह पर चलने का आह्वान किया।


18 – गुरु गोविंद सिंह – 1666 से 1708 के बीच हुए गुरु गोविंद सिंह को भारत में भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने धर्म के तहत संत और सैनिक, दोनों ही रूपों को सशक्त बनाया। अपने धर्म की रक्षा करना सिखाया और सेवा को महानता प्रदान की।


19 – दयानंद सरस्वती – 1824 से 1883 के बीच हुए संत-समाज सुधारक दयानंद सरस्वती को हिन्दू धर्म को अंधविश्वास की जकड़ से निकालने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। देश सेवा के लिए पाखंड के विरुद्ध उन्होंने अपना आर्य समाज गठित किया।


20 – स्वामी विवेकानंद – 1863 से 1902 के बीच हुए स्वामी विवेकानंद को सनातन संस्कृति के आधुनिक जयघोष के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने धर्म पर खो रहे विश्वास को पुन: स्थापित करके दुनिया में हिन्दू जनमानस को झकझोर कर जगाया।


21 – स्वामी प्रभुपाद – 1896 से 1977 के बीच संसार में रहे भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद को संसार का सबसे विशाल सनातन भक्ति आंदोलन – हरेकृष्णा मूवमेंट के लिए हमेशा याद किया जाएगा। गूढ़ अध्यात्म को संगीत से जोडक़र भावविभोर कर दिया।


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Rabindranath tagore_Jayanti http://agaadhworld.in/rabindranath-tagore_jayanti/ http://agaadhworld.in/rabindranath-tagore_jayanti/#respond Sun, 05 May 2019 19:04:59 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4263 महाकवि टैगोर जयंती केवल प्रेम और मानवता 7 मई 1861 को जन्मे महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगौर मानवता और ईश्वर पर परम

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महाकवि टैगोर जयंती

केवल प्रेम और मानवता

7 मई 1861 को जन्मे महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगौर मानवता और ईश्वर पर परम विश्वास के कवि थे। उनके जैसा कोमल, अहिंसक, मानवतावादी और परलोक प्रेमी कवि दूसरा नहीं हुआ है। एक कवि जो सफल गद्यकार था, कहानियां, नाटक, निबंध लिखता था। एक कवि जो संगीत की रचना करता था। एक कवि जो शिक्षाविद् था, एक विश्वविद्यालय विश्वभारती की स्थापना की। एक ऐसा कवि जो अपने आखिरी दिनों में चित्रकारी करने लगा। ईश्वर से परम प्रेम की आकांक्षा, लेकिन ईश्वर के बनाए संसार से भी उतना ही प्रेम। ईश्वर के बनाए संसार की चुनौतियों से प्रेम। ईश्वर के बनाए संसार में संघर्ष से प्रेम। और उस परलोक से प्रेम, जहां एक दिन सबको जाना ही है।


भगवान अभी निराश नहीं

टैगोर ने कहा था, ‘दुनिया का प्रत्येक बच्चा अपने जन्म के साथ यह संदेश लेकर आता है कि भगवान अभी भी मनुष्य से निराश नहीं हुआ है।’ उन्होंने कहा, ‘आपकी मूर्ति का टूटकर धूल में मिल जाना, इस बात का प्रमाण है कि ईश्वर की धूल आपकी मूर्ति से महान है।’ उन्होंने कहा, ‘आस्था वो पक्षी है, जो भोर के अंधेरे में भी उजाले को महसूस करता है।’ उन्होंने कहा, ‘जो आत्मा शरीर में रहती है, वही ईश्वर है। लोग उस अंतर्देव को भूल जाते हैं और दौड़-दौडक़र तीर्थ जाते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘प्रेम ही एकमात्र वास्तविकता है।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और पाया कि जीवन सेवा है। मैंने सेवा की और पाया कि सेवा में ही आनंद है।’ ‘हम दुनिया में तब जीते हैं, जब उससे प्रेम करते हैं।’


प्रेम के कवि और गुरु

टैगोर नोबेल से सम्मानित होने वाले पहले एशियाई हैं। भारतीय भाषाओं के लेखकों में अकेले नोबेल विजेता हैं। उन्हें उनकी रचना गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद के लिए वर्ष 1913 में साहित्य के लिए नोबेल दिया गया था। वे प्रेम के कवि हैं। उनकी रचनाओं में मानवता के प्रति निर्दोष प्रेम था। वे किसी के प्रति घृणा नहीं रखते थे। उनके समय में बंगाल में काफी उथल-पुथल का दौर था, लेकिन उन्होंने प्रेम का मार्ग नहीं छोड़ा। लोगों को सदा कला, संगीत, साहित्य और शिक्षा की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। वे विश्व के अकेले ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाएं दो देशों में राष्ट्रगान हैं। यह उपलब्धि समाज और मानवता से प्रेम हो, तभी संभव है।
टैगोर ने 7 अगस्त 1941 को देह त्याग दिया। उनके मुकाबले का साहित्यकार व सफल प्रतिभावान कला पुरुष दुनिया में दूसरा नहीं जन्मा है। भारत के बारे में उनकी समझ बहुत प्रेम भरी थी, उन्होंने लिखा है –
हेथाय आर्य हेथा अनार्य हेथाय द्राविड़-चीन।
शक-हूण-दल, पाठान-मोगल एक देहे होलो लीन।

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चैटीचंड महोत्सव / ChaitiChand Mahotsav http://agaadhworld.in/chaitichand-mahotsav/ http://agaadhworld.in/chaitichand-mahotsav/#respond Thu, 04 Apr 2019 19:15:47 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3923 ईश्वर अल्लाह हिक आहे चैटीचंड महोत्सव ईश्वर और अल्लाह को आप जानते हैं और ‘हिक आहे’ सिंधी भाषा है, जिसका

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ईश्वर अल्लाह हिक आहे

चैटीचंड महोत्सव

ईश्वर और अल्लाह को आप जानते हैं और ‘हिक आहे’ सिंधी भाषा है, जिसका अर्थ है – एक है। हमारे संसार में दक्षिण एशिया या प्राचीन भारत वर्ष की विशाल भूमि एक विलक्षण भूमि है, जहां ऐसे अनेक अवतार, संत और फकीर हुए, जिन्होंने अपना जीवन यह सिद्ध करने में लगा दिया कि ईश्वर अल्लाह एक है। ऐसे ही अवतारों में एक अवतार हैं झूलेलाल। इन्हें देव या भगवान भी माना गया है। इन्हें अनेक नामों से जाना जाता है। इनके बचपन का नाम उडेरोलाल है। इन्हें जिंदा पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल सांई भी कहते हैं। इन्हें ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल शाहबाज कलंदर भी कहा जाता है। अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन इस बात पर पूरी सहमति है कि झूलेलाल ने समाज और विश्व की एकता के लिए प्रयास किया। शोषण के विरुद्ध संघर्षरत रहे और अपने चाहने वालों को भरपूर प्यार-आशीर्वाद दिया, जिसके कारण दुनिया में आज भी उन्हें याद किया जाता है, उनकी पूजा-इबादत की जाती है।


हिन्दू मान्यता के अनुसार झूलेलाल

पूरी सिंधी जाति सिंधू नदी के किनारे निवास करती थी। सिंध में मिरखशाह नाम का एक अत्याचारी शासक हुआ, जिसने सिंधियों पर अत्याचार की सारी हदें पार कर दीं। ऐसी मान्यता है कि जब अत्याचार बढ़ जाता है, जब मसीहा अवतार लेता है। सिंधियों ने ईश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना सुनी गई। सिंधू नदी से एक नर मछली पर बैठकर वरुण देव बाहर निकले और संदेश दिया कि 40 दिन बाद मैं आ रहा हूं।

40 दिन बाद झूलेलाल का जन्म हुआ और उन्होंने सिंधी समाज को मिरखशाह के अत्याचार से मुक्त कराया। जिस दिन इनका जन्म हुआ था, वह चैत माह था और तिथि द्वितीया थी। इस दिन को सिंधी समाज चैटीचंड के नाम से धूमधाम से मनाता है। इस साल 19 मार्च को पूरी दुनिया में झूलेलाल की जयंती मनाई जा रही है।


मुस्लिम मान्यता के अनुसार झूलेलाल

झूलेलाल अर्थात एक सूफी पीर – जिनका नाम था लाल शाहबाज कलंदर। इनका जीवनकाल 1177 से 1275 तक माना जाता है। ये महान सूफी फकीर 98 वर्ष तक जीवित रहे थे और इन्होंने पूरा जीवन भाईचारा बढ़ाने में लगा दिया, इन्हें हिन्दू और मुस्लिम समान रूप से मानते थे। पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के दादू जिले में एक स्थान है सेवन शरीफ – इसे सेवण शरीफ भी कहते हैं। यहां हजरत लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह स्थित है। दरगाह में संगीत-नृत्य के साथ धमाल मचाने की परंपरा है।


भारत में देवता, पाकिस्तान में पीर

दुनिया में लगभग चार करोड़ सिंधी हैं, जिसमें से 3 करोड़ के आसपास पाकिस्तान में रहते हैं, भारत में करीब 40 लाख सिंधी हैं। पाकिस्तान में जो सिंधी हैं, वो मुस्लिम हैं। पाकिस्तान में हिन्दू सिंधियों की संख्या 8 प्रतिशत से भी कम है। बहरहाल, भारत में झूलेलाल देवता के रूप में स्वीकार्य हैं, वहीं पाकिस्तान में उन्हें जिंदा पीर के रूप में ज्यादा देखा जाता है। भारत में झूलेलाल के मंदिर बनाए जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान में हजरत लाल शाहबाज कलंदर को ही झूलेलाल माना जाता है। पाकिस्तान में सिंधू नदी के किनारे उनकी याद में 40 दिन का मेला लगता है। पाकिस्तान में भी यह चर्चा होती है कि मिरखशाह हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाने में लगा था, तभी हिन्दुओं की प्रार्थना के बाद भगवान झूलेलाल का अवतार हुआ।


झूलेलाल से हम क्या सीखें ?

1 – ईश्वर अल्लाह हिक आहे अर्थात ईश्वर अल्लाह एक है।
2 – संसार में हर जगह खुशहाली रहे और कोई दुखी न रहे।
3 – उन्होंने कहा – सारा जग एक है, हम सब एक परिवार हैं।
4 – परस्पर ऊंच-नीच, भेदभाव को न मानो, कट्टर ना बनो।
5 – जल ही संपन्नताएं लाता है, तुम जल का महत्व समझो।
6 – मेहनत से कमाओ, किसी भी काम को कमतर न समझो।

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होली / Holi http://agaadhworld.in/holi/ http://agaadhworld.in/holi/#respond Tue, 19 Mar 2019 18:37:09 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3908 आई रंगों की बहार  ये रंग क्या बोलते है? : रंग संदेश देते हैं कि वही जिंदगी हैं। रंग जीवन

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आई रंगों की बहार

 ये रंग क्या बोलते है? : रंग संदेश देते हैं कि वही जिंदगी हैं। रंग जीवन में उमंग की निशानी हैं। रंग जीवन में उत्सव का प्रतीक हैं। रंग जीवन में रस का प्रतीक हैं। रंग जीवन में खुशी का संकेत हैं। रंग प्रकृति का उपहार हैं। रंग ईश्वर के वरदान हैं। रंग सौंदर्य के संरक्षक हैं। रंग समृद्धि-संपन्नता के अवदान हैं। ऐसा माना जाता है कि जिसके पास जितने ज्यादा रंग है, वह उतना ही ज्यादा खुश या समृद्ध है। रंग हमें जिंदगी और प्रेम की ओर खींचकर लाते हैं। रंग हमें जवानी और रवानी की ओर खींचकर लाते हैं। रंगों का त्योहार तो होना ही चाहिए, इसलिए भारत में होली सदियों से मनाई जाती है। वैसे तो समाज में सुविधा को देखते हुए होली एक या दो दिन मनाई जाती है, लेकिन भारत में बसंत पंचमी से रंग पंचमी तक होली मनाने की परंपरा है। बसंत पंचमी या सरस्वती पूजा के साथ ही एक दूसरे को अबीर, गुलाल, रंग लगाने का क्रम शुरू हो जाता है और जो होली के बाद पडऩे वाली रंगपंचमी तक चलता है।
पहले भारत में होली इतनी लंबे समय तक मनाई जाती थी और होली के गीत गाने की भी परंपरा थी। ऐसे गीत जो सामाजिक मिलन-मस्ती का संदेश देते हैं। ऐसे गीत जो हास्य के सहारे सामाजिक संदेश देते हैं। ऐसे गीत जो सामाजिक भेदभाव को मिटाने की नसीहत देते हैं। ऐसे गीत, जिनमें ईश्वर को भी अपने आसपास मानकर संवाद किया जाता है। होली तरह-तरह के पकवान खाने-खिलाने का भी अवसर है।

क्या रंगों का भी कोई धर्म होता है?

हिन्दू – लाल, भगवा, सफेद
यहूदी – नीला
ईसाई – सफेद
इस्लाम – हरा
हिन्दू धर्म में लाल, भगवा या सफेद वस्त्र को शुभ माना जाता है। यहूदी नीले रंग को पसंद करते हैं। ईसाइयों में सफेद रंग ज्यादा शुभ है। इस्लाम में हरे को ज्यादा शुभ माना जाता है। वैसे ईसाई धर्म में अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग रंग का महत्व है, लेकिन क्या वाकई धर्म से रंगों का कोई पुख्ता रिश्ता है? नहीं धर्मों ने अपनी सुविधा या प्रचार के हिसाब से रंगों का चयन किया है। एक दूसरे से अलग दिखने की होड़ में धर्म अपना एक रंग रखने की कोशिश करते हैं। इसे मानने में कोई हर्ज नहीं कि ईश्वर ने सारे रंग दिए हैं, उसे हर रंग प्रिय है, लेकिन रंगों का बंटवारा इंसानों ने किया है। वैसे यह भी सच है कि सभी धर्मों में सफेद रंग का अपना विशेष महत्व है। वास्तव में सफेद रंग ही अध्यात्म का अपना रंग है। एक ऐसा रंग, जिसमें सारे रंग छिपे होते हैं। दुनिया का हर धर्म सफेद को धार्मिक कार्य के लिए अनुकूल मानता है।

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Dayanand Jayanti / दयानंद जयंती http://agaadhworld.in/dayanand-jayanti/ http://agaadhworld.in/dayanand-jayanti/#respond Thu, 28 Feb 2019 19:29:45 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3832 दयानंद जयंती तर्क की कसौटी पर सबसे खरे संत दयानंद सरस्वती दयानंद सरस्वती को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता

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दयानंद जयंती

तर्क की कसौटी पर सबसे खरे संत दयानंद सरस्वती

दयानंद सरस्वती को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है। यह कहा जाता है कि उन्होंने भारतीयों के मन को जगाया और तार्किक स्वाधीन सोचने के लिए प्रेरित व विवश किया। उन्होंने पूरा जीवन समाज को अंधविश्वास से उबारने में लगा दिया। समाज सुधार की दिशा में नाना पकार के प्रयोग किए। विश्व के तमाम महत्वपूर्ण धर्म ग्रंथों का उन्होंने अध्ययन किया था। उन्होंने न केवल हिन्दू धर्म ग्रंथों की विवेचना की, बल्कि उन्होंने ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिक्ख इत्यादि धर्मों पर भी खूब गहराई से विचार किया था। ग्रेगोरियन कलेंडर के अनुसार, 12 फरवरी 1824 को टंकारा, गुजरात में उनका जन्म हुआ था और 30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में उनका निधन हुआ। उनका सबसे बड़ा काम यह है कि उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, एक ऐसा समाज जो आज भी संपूर्ण समाजों की सेवा कर रहा है।


मूर्ति पूजा का विरोध

दयानंद सरस्वती ने मूर्ति पूजा का खूब विरोध किया। वे जहां भी गए, उन्होंने बड़े-बड़े पंडितों को यह चुनौती दी कि वे सिद्ध करें कि वेदों में मूर्ति पूजा करने के बारे में कहां लिखा गया है। वे अपनी बात वेद और तर्क के आधार पर ही रखते थे। संस्कृत भाषा पर उनकी पकड़ बहुत अच्छी थी और झूठ-कुतर्क-अंधविश्वास को वह तत्काल धूल चटा देते थे। इस कारण बहुत से लोग उनके विरोधी हो गए थे। उनका प्रभाव इतनी जल्दी होता था कि भारत में हजारों लोगों ने अपने घर में रखी प्रतिमाओं को निकाल बाहर किया। बड़ी संख्या में मूर्तियों को नदियों में बहा दिया।


अंधविश्वासों पर सबसे कड़ा प्रहार

ऐसा नहीं है कि दयानंद सरस्वती केवल हिन्दुओं की कमियों पर प्रहार करते थे। उन्होंने जब भी मौका मिला, ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन, सिक्ख इत्यादि धर्म से जुड़ी कमियों को भी सबके सामने रखा। वह बाइबिल के सहारे ही ईसाइयों की कमियों को दर्शा देते थे। वे कुरआन की भी कमियों पर उंगली रख देते थे। इस मामले में उनकी रचना ‘सत्यार्थप्रकाश’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने तर्क देकर अंधविश्वासों पर प्रहार किया है। वे सच बोलने में पीछे नहीं रहते थे और तर्क के लिए हमेशा तैयार रहते थे। जिस वैज्ञानिक व तार्किक विधि से उन्होंने हिन्दू धर्म को देखा, ठीक उसी तरह से उन्होंने दूसरे धर्मों को भी देखा।


सच के लिए दी जान

देश में राजा लोग कई शादियां करते थे और रखैलें भी रखते थे। जोधपुर के तत्कालीन राजा जसवंत सिंह जी की भी एक प्रिय रखैल थी – नन्हीं जान। राजा का काफी समय नन्हीं जान के साथ गुजरता था। एक दिन दयानंद जी ने राजा को नन्हीं जान की पालकी को कंधा लगाते देख लिया, फिर क्या था – उन्होंने राजा को प्रवचन दिया कि राजाओं के ऐसे ही कृत्यों और अय्याशियों की वजह से देश की दुर्दशा हुई है। वे खूब नाराज हुए, यहां तक कह दिया कि – सिंह अब कुत्तों का अनुकरण करने लगे हैं। राजा में तत्काल सुधार आया, लेकिन नन्हीं जान दयानंद जी की दुश्मन बन गई। जोधपुर में गहरा षडयंत्र हुआ, जिसमें दयानंद से नाराज चल रहे अंग्रेजों का भी हाथ बताया जाता है। उन्हें 29 सितंबर 1883 को पीने के लिए दूध दिया गया, जिसमें कांच के बहुत बारिक टुकड़े मिलाए गए थे। दयानंद जी की सेहत बिगड़ गई। उन्होंने दोषियों को कुछ न कहा, बल्कि दूध में कांच मिलाने वाले रसोइए को जोधपुर से जान बचाकर भागने में भी मदद की। इलाज कठिन था, लेकिन उसमें कोताही हुई। 16 अक्टूबर को उनके शिष्य उन्हें लेकर जोधपुर से निकले और माउंट आबू, उदयपुर पहुंचे। वहां से इलाज के लिए 27 अक्टूबर को अजमेर लाया गया। जहां दीपावली के दिन 30 अक्टूबर की शाम दयानंद जी ने भिनाय कोठी पर अपना शरीर त्याग दिया। उनकी इच्छा के अनुसार, उनका अवशेष जहां बिखेरा गया, वहां आज ऋषि उद्यान है, अन्नासागर-अजमेर के किनारे।


दयानंद सरस्वती से क्या सीखा जाए?

1 – हर चीज को तर्क और सच्चाई की कसौटी पर कसो।
2 – सुनी-सुनाई या पढ़ी-पढ़ाई बात पर विश्वास न करो।
3 – धर्म बुरा नहीं है, उसके उद्देश्य को ठीक से समझो।
4 – कुरीतियों से दूर रहो, अंधविश्वास के शिकार न बनो।
5 – जो विद्या व धर्म प्राप्ति के कर्म हैं, वही करने चाहिए।
6 – झूठ को रोको, अन्यथा संसार में अनर्थ हो जाएगा।
7 – जो बलवान होकर निर्बल की रक्षा करे, वही मनुष्य है।
8 – माता-पिता-आचार्य और अतिथि की सेवा जरूर करो।
9 – अपनी इन्द्रियों को वश में करो, ताकि चित्त न भटके।
10 – उदार रहो, परस्पर प्रेम और सहयोग का भाव रखो।

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Swami Vivekanand Jayanti / स्वामी विवेकानंद जयंती http://agaadhworld.in/swami-vivekanand-jayanti/ http://agaadhworld.in/swami-vivekanand-jayanti/#respond Sun, 03 Feb 2019 18:41:12 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3587 भारत की अपनी पहचान – स्वामी विवेकानंद अगर यह कहा जाए कि भारत और हिन्दू धर्म की आधुनिक पहचान स्वामी

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भारत की अपनी पहचान – स्वामी विवेकानंद
अगर यह कहा जाए कि भारत और हिन्दू धर्म की आधुनिक पहचान स्वामी विवेकानंद हैं, तो गलत नहीं होगा। एक तपस्वी जो श्रम में भी विश्वास करता था। एक भगवा वस्त्र धारी स्वामी जो कुश्ती लड़ता था, जिसे बॉक्सिंग आती थी, जो स्वयं भी दौड़ता था और घोड़सवारी भी करता था। जो तैरने में पारंगत था, जो तबला बजाता था। जो शरीर से सशक्त था, मन से आधुनिक था, लेकिन परंपरा की पूंजी जिसकी थाती थी। विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी1863 को कोलकाता में हुआ था और निधन बेलुर में 4 जुलाई 1902 को हुआ। उनका जीवन मात्र 39 वर्ष का था, लेकिन उन्होंने अनेक बड़े-बड़े काम किए और आज पूरी दुनिया उन्हें जानती है। यह की पहचान है।


रामकृष्ण मिशन कब बनाया?

स्वामी विवेकानंद ने 34 वर्ष की आयु में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। कोलकाता के पास स्थित बेलुर में मुख्यालय बना। अपने गुरु संत रामकृष्ण परमहंस (1836-1886) की प्रेरणा से उन्होंने मिशन की शुरुआत की थी। वेदांत पर उनका जोर था और गुरु व शिष्य दोनों ही कर्म पर विश्वास करते थे। गीता में वर्णित कर्मयोग के सिद्धांत को उन्होंने आगे बढ़ाया। उनका कार्यक्षेत्र केवल भारत नहीं था, दुनिया के अनेक देशों में मिशन के केन्द्र हैं। आज 187 से ज्यादा केन्द्र दुनिया भर में चल रहे हैं। जहां भारतीय दर्शन पर अध्ययन-चिंतन, ध्यान, गरीबों की सेवा, गरीब बच्चों की पढ़ाई, छात्रावास, पुस्तकालय व मंदिर की सेवा का कार्य होता है।


स्वामी विवेकानंद को क्यों याद किया जाए?

स्वामी विवेकानंद का पहला योगदान – शिल्प क्रांति-औद्योगिक व उभरते वाम विचारों की दुनिया में धर्म की स्थापना का कार्य विवेकानंद ने किया था। उन्होंने दुनिया को समझाया कि धर्म कहीं भी विकास में बाधक नहीं है। धर्म कहीं भी कर्म या श्रम से भागने की शिक्षा नहीं देता। संसार में उन्नति, सभ्यता और शांति के लिए धर्म की पालना जरूरी है।
स्वामी विवेकानंद का दूसरा योगदान – हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करने का काम विवेकानंद ने अच्छी तरह से किया था। वे जैसा बोलते थे, वैसे ही जीते थे। उन्होंने हिन्दू धर्म पर न केवल हिन्दुओं के विश्वास को बढ़ाया, बल्कि दुनिया के सामने अपने व्यवहार से यह प्रमाणित किया कि हिन्दू साधु का चिंतन दूसरों से कितना अलग और श्रेष्ठ है।
स्वामी विवेकानंद का तीसरा योगदान – जब भारत और भारतीय संस्कृति को गुलाम बना दिया गया था, तब विवेकानंद ने पूरे ज्ञान-ऊर्जा व पौरुष के साथ हिन्दू समाज व हिन्दू संस्कृति के गौरव को जगाया-बढ़ाया। उन्होंने बताया कि हिन्दू लाचार नहीं हैं, हिन्दू परंपराएं समृद्ध हैं, हम विश्व गुरु होने और विश्व को मार्ग दिखाने की क्षमता रखते हैं।

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Lohari, Pongal, Makar sankranti http://agaadhworld.in/lohari-pongal-makar-sankranti/ http://agaadhworld.in/lohari-pongal-makar-sankranti/#comments Sat, 12 Jan 2019 18:57:10 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3600 लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति का क्या है अर्थ? लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति, तीनों ही कड़ाके की ठंड के

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लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति का क्या है अर्थ?

लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति, तीनों ही कड़ाके की ठंड के  बाद मनाए जाने वाले पर्व हैं। आइए सबसे पहले लोहड़ी के बारे में जानें। लोहड़ी पौष के अंतिम दिन मनायी जाती है। ल का अर्थ है लकड़ी, ओह का अर्थ है उपले, ड़ी का अर्थ रेवड़ी। विशेष रूप से पंजाब में मनाए जाने वाले इस पर्व के अवसर पर शाम के समय घर या मुहल्ले में किसी खुली जगह पर लकड़ी और उपले की मदद से आग जलाई जाती है। बच्चे, युवा और अन्य सभी लोग आग को प्रणाम करते हैं, आग की पूजा करते हैं और आग की परिक्रमा करते हैं। आग को तिल चढ़ाते हैं, कई जगह भुन्ना हुआ मक्का और लावा भी चढ़ाया जाता है। मूंगफली, खजूर और अन्य कुछ सामग्रियां भी श्रद्धापूर्वक चढ़ाई जाती हैं। जिन चीजों को हम आग को अर्पित करते हैं, उन्हीं चीजों को हम प्रसाद के रूप में खाते भी हैं और वितरित भी करते हैं।


लोहड़ी क्यों मनाई जाती है?

इसके पीछे कोई एक कथा नहीं है, अनेक कारण गिनाए जाते हैं। शिव व सती की कथा भी है, दुल्ला भट्टी की कथा भी है, कुछ लोग कबीर की पत्नी लोई से लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति मानते हैं। इन चरित्रों के गीत भी गाए जाते हैं।

फिर भी स्वाभाविक रूप से अगर हम देखें, तो यह नए अन्न के आगमन, ठंड के समापन की ओर बढऩे और एक-दूसरे का हाल जानकर खुश मनाने का पर्व है। गौर करने की बात है कि कड़ाके की ठंड जब पंजाब और उत्तर भारत में पड़ती है, तो किसी का कहीं आना-जाना भी प्रभावित हो जाता है। ठंड के कारण आवागमन प्रभावित होने से दूर बसे सम्बंधियों का हाल पता नहीं चलता। विशेष रूप से परिवार जनों को अपनी उन बेटियों की चिंता होती है, जो कहीं दूर ब्याही गई हैं। भाई को तिल, रेवड़ी, गुड़, वस्त्र, धन व अन्य उपहार, सामान देकर बहन का हाल जानने के लिए भेजा जाता है। सब एक दूसरे का हाल जानने के लिए लालायित होते हैं। हर मुहल्ले में मेहमान आ जाते हैं, मौका उत्सव का हो जाता है। तो आग जलाकर साथ बैठना, नाचना, गीत गाना, भोजन करना, हालचाल जानना लोहड़ी की विशेषता है। ठंड के खतरनाक दिन के खत्म होने और अच्छे दिन के आने का भी यह पर्व संकेत है। लोहड़ी का आयोजन मकर संक्राति या पोंगल की पूर्व संध्या पर होता है।


पोंगल क्यों मनाया जाता है?

पोंगल तमिल वर्ष का पहला दिन है। नए अन्न के घर आने और उसे पकाने का दिन है। पोंगल का अर्थ है – क्या उबल रहा है या क्या पकाया जा रहा है। दक्षिण भारत में इस दिन शोभा यात्रा भी निकालते हैं। नाना प्रकार से खुशी मनाते हैं। भगवान की पूजा, विशेष रूप से अयप्पा स्वामी की पूजा की जाती है। नया अन्न पकाया जाता है, भगवान को भोग लगाया जाता है और वही लोगों में प्रसाद के रूप में वितरित होता है।


मकर संक्रांति क्या है?

जब सूर्य धनु राशि को छोडक़र मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। यह कहा जाता है कि इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। हालांकि ज्योति:शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दिन नहीं, बल्कि २१ दिसंबर के आसपास ही उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण का अर्थ है – सूर्य का दक्षिण की ओर से उत्तर की ओर आना, एक तरह से सूर्य फिर पृथ्वी के पास आने लगते हैं। पृथ्वी के पास सूर्य के आने से धीरे-धीरे गर्मी बढ़ती है और गृष्मकाल आता है। इस दिन स्नान, दान, ध्यान की बड़ी महिमा है।


मकर संक्रांति को यह जरूर करें

भारतीय पौराणिक व सामाजिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन यह जरूर करना चाहिए।
1 – किसी तीर्थ में स्नान न भी करें, तो घर में अवश्य स्नान करें।
2 – स्नान करने से पहले जल में कुछ अन्न तिल अवश्य डालें।
3 – स्नान के बाद विशेष रूप से सूर्य की पूजा अवश्य करें।
4 – इस दिन तिल या तिल की वस्तु का दान फलदाई होता है।
5 – एक बार दही-चीउड़ा या तैलविहीन भोजन अवश्य करें।
6 – यथाशक्ति लोगों को भोजन कराना और दान करना चाहिए।
7 – रात के समय न स्नान करें और ना ही किसी को दान दें।
8 – स्वयं को पवित्र रखते हुए ईश्वर की पूजा करना चाहिए।
9 – इस दिन अपने पितरों या पूर्वजों को याद करना चाहिए।

10 – उनके लिए या उनके नाम पर भी दान की परंपरा रही है।


मकर संक्रांति पर ऐसा करेंगे, तो कभी असफल नहीं होंगे

मकर संक्रांति पर तिल का अत्यधिक प्रयोग होता है। तिल को एक ऐसा अन्न माना गया है, जिसके उपभोग से ठंड कम लगती है। भारतीय परंपरा में यह मान्यता है कि जो इंसान तिल का प्रयोग इन छह प्रकार से करता है, वह कभी असफल नहीं होता, वह कभी अभागा नहीं होता। पहला – शरीर को तिल से नहाना, तिल से उवटना, पितरों को तिल युक्त जल चढ़ाना, आग में तिल अर्पित करना, तिल दान करना और तिल खाना। तिल को बहुत महत्व का माना गया है, उत्तर भारत से ज्यादा तिल उपभोग दक्षिण भारत में होता है।


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Yoga_Day http://agaadhworld.in/yoga_day/ http://agaadhworld.in/yoga_day/#respond Tue, 19 Jun 2018 19:02:15 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4397 योग दिवस सच्चा सुख पाने का मार्ग है योग ( जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के प्रवचन से) जीवन को

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योग दिवस

सच्चा सुख पाने का मार्ग है योग

( जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के प्रवचन से)
जीवन को पूर्णता देने के लिए जीवन को प्रकाशित करने के लिए जीवन को बाहर-भीतर से उज्ज्वल बनाने के लिए योग आवश्यक है। योग संसार के सभी लोगों के लिए ऑक्सीजन के समान, प्राण वायु के समान नितांत आवश्यक है। ऐसा नहीं है कि केवल भारत के ही लोगों के लिए योग का ज्ञान आवश्यक है या सनातन धर्म के लोगों के लिए ही आवश्यक है, अपितु यह ऐसा जीवनोपयोगी संसाधन है या ऐसी व्यवस्था है, ऐसी चिंतन प्रक्रिया है, जो ईश्वर के वरदान स्वरूप ऐसा आशीर्वाद है, ऐसा अवदान है कि जिसकी संसार में सभी लोगों को आवश्यकता है। योग से सभी को जुडऩा चाहिए और अपने जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए।
योग दर्शन को महर्षि पतंजलि ने संसार के सामने लिखकर उद्घाटित किया था। महर्षि पतंजलि ने योग व्याख्यान की जब प्रतिज्ञा की कि मैं योग का व्याख्यान करूंगा। योग का एक अर्थ होता है जोड़ना। इसमें कोई संदेह नहीं कि अपनी शक्ति, अपने संसाधनों को जोड़ने से ही हमें जीवन में उत्कर्ष की प्राप्ति होती है। हम श्रेष्ठ फल से जुड़ें, श्रेष्ठ लोगों से जुड़ें, श्रेष्ठ समाज से जुड़ें, श्रेष्ठ कर्म और ज्ञान से जुड़ें, श्रेष्ठ साधनों से जुड़ें। यहां योग दर्शन में योग का अर्थ समाधि है। महर्षि पतंजलि ने व्याख्यान किया कि संसार में जितनी भी कठिनाइयां हैं, जितनी भी क्रियाएं हैं, उन सबका मूल चंचलता ही है। जितना संसार दिख रहा है, वहां बड़ी चंचलता है। चित्त जब जड़ पदार्थों से जुड़ता है, तो भटकता है। कष्टों का एक ही कारण है – हमारा चित्त चंचल है। जैसे पशु-पक्षी भटकते रहते हैं कहीं भी उन्हें संतोष नहीं होता, कहीं भी उन्हें सुकून नहीं मिलता। ठीक उसी तरह से हम भी भटकते हैं, तरह-तरह की चीजों से अपने चित्त को जोड़ते हैं, उसी अनुरूप चित्त का आकार बढ़ाते-बनाते हैं। चित्त भटकता ही रहता है। इसलिए महर्षि पतंजलि ने कहा कि चित्त के भटकाव का निरोध होना चाहिए। योग का यही अर्थ है। चित्त वृत्तियों का थमना जरूरी है। चित्त वृत्तियां निरुद्ध हो जाएंगी, तो हमारे जीवन की कठिनाइयां नष्ट हो जाएंगी और हमें पूर्ण जीवन प्राप्त होगा। यह सबके लिए जरूरी है, यह केवल हिन्दू के लिए नहीं है। संपूर्ण काल के लिए संपूर्ण संप्रदाय के लोगों के लिए है, यह सबके लिए परमोपयोगी है।
यह आवश्यक है कि हम अपने चित्त को अनुशासित करें, इन्द्रियों को अनुशासित करें, लेकिन प्रश्न है कि हम कैसे अपने चित्त को अनुशासित करेंगेे।
महर्षि पतंजलि ने सबसे अच्छा समाधान बताया। उन्होंने लिखा –
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यान समाधयोष्टावंगानी।
अर्थात हम यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि के माध्यम से अपनी चित्त वृत्तियों को रोकने का प्रयास करें। वास्तव में ये आठ अंग हैं योग के, इसे अष्टांग योग भी कहा जाता है। यहां योग का अर्थ समाधि है। अभी अधिकतर लोग योग की शुरुआत आसन से करते हैं, लेकिन केवल आसन करने से ही चित्त वृत्तियां निरुद्ध नहीं होंगी। हमें योग के सबसे पहले अंग यम को अपनाना पड़ेगा। आज योग प्रचारकों का जो समुदाय है, वह पहली भूल यही कर रहा है कि वह लोगों से यम का परिचय नहीं करा रहा है। आज के योग प्रचारक योग के दो शुरुआती अंगों – यम, नियम को छोडक़र सीधे आसन पर आ जाते हैं। यह बहुत बड़ा धोखा है। आज यह एक बड़ी विडंबना है, यह समाज के साथ घातक प्रयोग है।
पहले यम, फिर नियम, फिर आसन, फिर प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और अंत में समाधि को प्राप्त करना होता है, यह योग के ही चरण हैं। हम धीरे-धीरे परीक्षाओं को पास करते हैं, विभिन्न चरणों से होकर विकास करते हैं, ठीक उसी प्रकार योग भी विभिन्न चरणों से बारी-बारी गुजरता है। यम, नियम को नहीं छोड़ना नहीं चाहिए।

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RamKrishna ParamHansh Jayanti http://agaadhworld.in/ramkrishna-paramhansh-jayanti/ http://agaadhworld.in/ramkrishna-paramhansh-jayanti/#respond Fri, 16 Feb 2018 18:39:08 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3890 हे ठाकुर, कब मिलोगे – संत रामकृष्ण परमहंस   भारतीय संत परंपरा में रामकृष्ण परमहंस का स्थान सदा सुरक्षित रहेगा।

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हे ठाकुर, कब मिलोगे – संत रामकृष्ण परमहंस
 
भारतीय संत परंपरा में रामकृष्ण परमहंस का स्थान सदा सुरक्षित रहेगा। कामारपुकुर गांव में 18  फरवरी 1836 को जन्मे गदाधर चट्टोपाध्याय बचपन से ही ईश्वर के प्रति समर्पित भाव रखते थे। बचपन से ही इन्होंने ईश्वर प्राप्ति को अपना लक्ष्य बना रखा था। कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर में वे पुजारी बने और देवी की भक्ति को समर्पित हो गए। ईश्वर को पाने के प्रति उनमें व्यग्रता इतनी ज्यादा थी कि वे भाव-विह्वल हो जाते थे, लोग उन्हें पागल समझने लगते थे। इनकी माता जी चंद्रमणि देवी जी ने इन्हें सुधारने के लिए इनका विवाह करवा दिया। उनकी धर्मपत्नी मां शारदा जब 18 वर्ष की हुईं, तब लगभग 36 वर्षीय पति के साथ रहने आ गईं। दोनों पति-पत्नी ने अपना संपूर्ण जीवन भगवत भक्ति में लगा दिया। उनका दांपत्य पूर्णत: आध्यात्मिक थे, दोनों दक्षिणेश्वर मंदिर परिसर में ही रहते थे।
उनमें कट्टरता नहीं थी, उन्होंने हिन्दू धर्म के साथ-साथ इस्लाम और ईसाई धर्म का भी अध्ययन किया था। वे बहुत प्रेमी, कोमल, सहज और व्यावहारिक संत थे। उनके प्रवचन को सुनने के लिए दूर-दूर से विद्वान आते थे। उनके शिष्यों को बड़ी फौज थी, लेकिन बाद में स्वामी विवेकानंद उनके सबसे प्रिय शिष्य हो गए। जब विवेकानंद ने उनसे कहा कि मैं हिमालय में तपस्या के लिए जाना चाहता हूं, तब रामकृष्ण परमहंस जी ने ही उन्हें कहा कि तपस्या से क्या होगा, आसपास की समस्याओं का समाधान करो। अज्ञान का अंधेरा हटाओ। लोगों को जागरूक करो, उन्हें राह दिखाओ। रामकृष्ण के कार्य को स्वामी विवेकानंद ने बहुत विस्तार दिया। चिंतन-मनन में अपने गुरु की तरह थे, लेकिन कद-काठी और सेहत के मामले में स्वामी विवेकानंद अपने गुरु के बिल्कुल प्रतिकूल थे। गुरु 40 की उम्र में ही बुजुर्ग से नजर आते थे, जबकि विवेकानंद एकदम कसरती युवा। 16 अगस्त 1886 को रामकृष्ण परमहंस का 50 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उनके गले में कैंसर था। विवेकानंद ने उनका इलाज करवाने की भरपूर कोशिश की थी।
रामकृष्ण परमहंस की राह पर चलकर ही स्वामी विवेकानंद ने पूरे भारत का आध्यात्मिक मार्गदर्शन किया। स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु के नाम पर 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। संसार में हमेशा इन गुरु-शिष्य जोड़ी का नाम लिया जाएगा।

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महात्मा गांधी की पुण्यतिथि http://agaadhworld.in/gandhi-ji-ki-punyatithi/ http://agaadhworld.in/gandhi-ji-ki-punyatithi/#respond Sun, 28 Jan 2018 19:01:20 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3781 हे रा…म…हे रा.. – यही थे अंतिम शब्द महात्मा गांधी की पुण्यतिथि हमारी दुनिया में पिछली सदी के महानतम नेता

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हे रा…म…हे रा.. – यही थे अंतिम शब्द

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि

हमारी दुनिया में पिछली सदी के महानतम नेता महात्मा गांधी नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में वर्ष 1948  में 30 जनवरी की शाम 5 बजकर 17 मिनट पर हमें हमेशा के लिए अलविदा कहते हुए यही शब्द बोल पाए थे – हे रा…म…हे रा…
सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल से तीन गोलियां निकली थीं, जो गांधी के पेट में लगी थीं। गांधी जी को बचाया जा सकता था, यदि उन्हें तत्काल चिकित्सा सुविधा मिल जाती। शरीर से रक्त के बह जाने के कारण वे जीवित नहीं रह पाए।
खैर, प्रश्न यह है कि अंत समय में उनके मुख से ईश्वर का नाम कैसे निकला? ऐसा कहा गया है कि ऐसे बहुत कम ही लोग होते हैं, जो संसार से जाते हुए ईश्वर का नाम लेते हैं। अंत समय में ईश्वर का नाम जुबान पर तभी आता है, जब उसका नाम हृदय में बहुत अच्छे से बसा हुआ हो।
गीता में कृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘कल्याण हो जाएगा अंत समय में मुझे याद कर लेना। मेरा नाम ले लेना।’
अर्जुन ने पूछा, ‘आखिर अंत समय में आपका नाम ध्यान में कैसे आएगा?’
कृष्ण ने जवाब दिया, ‘ओह, तब तो शुरू से ही अभ्यास करना होगा।’
वाकई, गांधी जी ने रामधुन का खूब अभ्यास किया था। वे वाकई महान हैं।

ये दुनिया बड़ी अजीब है ? 

गांधी जी पर गोली चलाने वाले अपराधी ने जहां यह कहा कि गांधी जी मुसलमानों के पक्षधर होते हुए हिन्दुओं के विरोधी हो गए थे, तो दूसरी ओर, मुस्लिम कहते हैं कि गांधी जी हिन्दू थे – उनके मुख से अंत समय में राम का नाम निकला। गांधी के हत्यारे बोलते थे कि गांधी जी का मुस्लिम प्रेम देखकर उनका खून खौलता था, तो मुस्लिम बोलते हैं कि गांधी जी रामराज्य बनाना चाहते थे, इसलिए मुसलमानों को अपना पाकिस्तान लेकर अलग होना पड़ा। यह जो सोच का तरीका है, यही सांप्रदायिकता है। आप यहां केवल अपनी सोच रहे हैं, जबकि धर्म शिक्षा ही यही देता है कि आप दूसरों की सोचें, दूसरों के बारे में सोचें, दूसरों के हित में सोचें।
इसी सांप्रदायिकता से लड़ते हुए गांधी जी एक नया देश बनाना चाहते थे, लेकिन असंख्य हिन्दू उन्हें नहीं समझ पाए और मुस्लिमों में तो बहुत कम को ही उनका दर्शन समझ में आया।

गांधी जी के ‘राम’ कौन हैं ?

भारत के लोग गांधी जी को राष्ट्रपिता मानते हैं, ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि यह जाना जाए कि गांधी जी के ‘राम’ कौन हैं। गांधी जी ने स्वयं लिखा और कहा है, पढि़ए, ‘मेरे राम, हमारी प्रार्थनाओं के राम ऐतिहासिक राम नहीं हैं। वे दशरथ के पुत्र और अयोध्या के राजा नहीं हैं। वे सनातन हैं, वे अजन्मा हैं, वे अद्वितीय हैं। मैं उन्हीं की पूजा करता हूं। उन्हीं से सहायता और वरदान मांगता हूं। वे सबके हैं, इसलिए मैं यह समझ नहीं पाता कि कोई मुसलमान या अन्य व्यक्ति उनका नाम लेने पर आपत्ति क्यों करता है? ईश्वर को वह राम न माने, यह संभव है, किन्तु राम की जगह वह अल्लाह या खुदा का नाम तो ले ही सकता है।’
वे आगे लिखते हैं, ‘इतिहास, कल्पना और सत्य हिन्दुत्व में सब मिलकर एकाकार हो गए हैं। इनमें से किसी एक को तोडक़र अलग करना दु:साध्य कर्म है। ईश्वर के जितने भी नाम और रूप कहे गए हैं, मैंने निराकार एवं सर्वव्यापी राम को उन सबका प्रतीक मान लिया है, इसलिए राम को सीतापति अथवा दशरथ पुत्र, जो चाहो कहो, मेरे लिए तो सर्वशक्तिमान तत्व है, जिसका नाम यदि हृदय में अंकित हो जाए, तो मानसिक, नैतिक और शारीरिक कष्ट क्षण में दूर हो जाते हैं।’
गांधी जी का अध्यात्म अद्भुत है, जिससे पूरी दुनिया सीख सकती है। वे संत रामानंद, संत कबीर और संत रविदास की परंपरा में खड़े नजर आते हैं। गांधी जी ने जब सांंप्रदायिकता की अति देखी, तब वे हारकर बैठे नहीं। उन्होंने मुसलमानों को समझाने की पूरी कोशिश की। गांधी के हत्यारों की यह शिकायत देखिए कि गांधी जी मंदिर में कुरान पढ़वाना शुरू कर चुके थे। गांधी जी के साथ अब्दुल गफ्फार खान (बादशाह खान) जैसे मुस्लिम भी थे, जो ऐसा भारत चाहते थे, जहां हिन्दू भी मस्जिद में पूजा-प्रार्थना कर सकें। बेशक, एक बड़ा इंसान प्रेम से खड़ा होता है और एक छोटा इंसान नफरत से। गांधी जी चले गए, लेकिन उनकी शानदार प्रेम-सद्भाव भरी राह आज भी है, जहां से दुनिया को गुजरना चाहिए।

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