हे रा…म…हे रा.. – यही थे अंतिम शब्द
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि
हमारी दुनिया में पिछली सदी के महानतम नेता महात्मा गांधी नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में वर्ष 1948 में 30 जनवरी की शाम 5 बजकर 17 मिनट पर हमें हमेशा के लिए अलविदा कहते हुए यही शब्द बोल पाए थे – हे रा…म…हे रा…
सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल से तीन गोलियां निकली थीं, जो गांधी के पेट में लगी थीं। गांधी जी को बचाया जा सकता था, यदि उन्हें तत्काल चिकित्सा सुविधा मिल जाती। शरीर से रक्त के बह जाने के कारण वे जीवित नहीं रह पाए।
खैर, प्रश्न यह है कि अंत समय में उनके मुख से ईश्वर का नाम कैसे निकला? ऐसा कहा गया है कि ऐसे बहुत कम ही लोग होते हैं, जो संसार से जाते हुए ईश्वर का नाम लेते हैं। अंत समय में ईश्वर का नाम जुबान पर तभी आता है, जब उसका नाम हृदय में बहुत अच्छे से बसा हुआ हो।
गीता में कृष्ण ने अर्जुन से कहा, ‘कल्याण हो जाएगा अंत समय में मुझे याद कर लेना। मेरा नाम ले लेना।’
अर्जुन ने पूछा, ‘आखिर अंत समय में आपका नाम ध्यान में कैसे आएगा?’
कृष्ण ने जवाब दिया, ‘ओह, तब तो शुरू से ही अभ्यास करना होगा।’
वाकई, गांधी जी ने रामधुन का खूब अभ्यास किया था। वे वाकई महान हैं।
ये दुनिया बड़ी अजीब है ?
गांधी जी पर गोली चलाने वाले अपराधी ने जहां यह कहा कि गांधी जी मुसलमानों के पक्षधर होते हुए हिन्दुओं के विरोधी हो गए थे, तो दूसरी ओर, मुस्लिम कहते हैं कि गांधी जी हिन्दू थे – उनके मुख से अंत समय में राम का नाम निकला। गांधी के हत्यारे बोलते थे कि गांधी जी का मुस्लिम प्रेम देखकर उनका खून खौलता था, तो मुस्लिम बोलते हैं कि गांधी जी रामराज्य बनाना चाहते थे, इसलिए मुसलमानों को अपना पाकिस्तान लेकर अलग होना पड़ा। यह जो सोच का तरीका है, यही सांप्रदायिकता है। आप यहां केवल अपनी सोच रहे हैं, जबकि धर्म शिक्षा ही यही देता है कि आप दूसरों की सोचें, दूसरों के बारे में सोचें, दूसरों के हित में सोचें।
इसी सांप्रदायिकता से लड़ते हुए गांधी जी एक नया देश बनाना चाहते थे, लेकिन असंख्य हिन्दू उन्हें नहीं समझ पाए और मुस्लिमों में तो बहुत कम को ही उनका दर्शन समझ में आया।
गांधी जी के ‘राम’ कौन हैं ?
भारत के लोग गांधी जी को राष्ट्रपिता मानते हैं, ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि यह जाना जाए कि गांधी जी के ‘राम’ कौन हैं। गांधी जी ने स्वयं लिखा और कहा है, पढि़ए, ‘मेरे राम, हमारी प्रार्थनाओं के राम ऐतिहासिक राम नहीं हैं। वे दशरथ के पुत्र और अयोध्या के राजा नहीं हैं। वे सनातन हैं, वे अजन्मा हैं, वे अद्वितीय हैं। मैं उन्हीं की पूजा करता हूं। उन्हीं से सहायता और वरदान मांगता हूं। वे सबके हैं, इसलिए मैं यह समझ नहीं पाता कि कोई मुसलमान या अन्य व्यक्ति उनका नाम लेने पर आपत्ति क्यों करता है? ईश्वर को वह राम न माने, यह संभव है, किन्तु राम की जगह वह अल्लाह या खुदा का नाम तो ले ही सकता है।’
वे आगे लिखते हैं, ‘इतिहास, कल्पना और सत्य हिन्दुत्व में सब मिलकर एकाकार हो गए हैं। इनमें से किसी एक को तोडक़र अलग करना दु:साध्य कर्म है। ईश्वर के जितने भी नाम और रूप कहे गए हैं, मैंने निराकार एवं सर्वव्यापी राम को उन सबका प्रतीक मान लिया है, इसलिए राम को सीतापति अथवा दशरथ पुत्र, जो चाहो कहो, मेरे लिए तो सर्वशक्तिमान तत्व है, जिसका नाम यदि हृदय में अंकित हो जाए, तो मानसिक, नैतिक और शारीरिक कष्ट क्षण में दूर हो जाते हैं।’
गांधी जी का अध्यात्म अद्भुत है, जिससे पूरी दुनिया सीख सकती है। वे संत रामानंद, संत कबीर और संत रविदास की परंपरा में खड़े नजर आते हैं। गांधी जी ने जब सांंप्रदायिकता की अति देखी, तब वे हारकर बैठे नहीं। उन्होंने मुसलमानों को समझाने की पूरी कोशिश की। गांधी के हत्यारों की यह शिकायत देखिए कि गांधी जी मंदिर में कुरान पढ़वाना शुरू कर चुके थे। गांधी जी के साथ अब्दुल गफ्फार खान (बादशाह खान) जैसे मुस्लिम भी थे, जो ऐसा भारत चाहते थे, जहां हिन्दू भी मस्जिद में पूजा-प्रार्थना कर सकें। बेशक, एक बड़ा इंसान प्रेम से खड़ा होता है और एक छोटा इंसान नफरत से। गांधी जी चले गए, लेकिन उनकी शानदार प्रेम-सद्भाव भरी राह आज भी है, जहां से दुनिया को गुजरना चाहिए।