Rabindranath tagore_Jayanti
महाकवि टैगोर जयंती
केवल प्रेम और मानवता
7 मई 1861 को जन्मे महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगौर मानवता और ईश्वर पर परम विश्वास के कवि थे। उनके जैसा कोमल, अहिंसक, मानवतावादी और परलोक प्रेमी कवि दूसरा नहीं हुआ है। एक कवि जो सफल गद्यकार था, कहानियां, नाटक, निबंध लिखता था। एक कवि जो संगीत की रचना करता था। एक कवि जो शिक्षाविद् था, एक विश्वविद्यालय विश्वभारती की स्थापना की। एक ऐसा कवि जो अपने आखिरी दिनों में चित्रकारी करने लगा। ईश्वर से परम प्रेम की आकांक्षा, लेकिन ईश्वर के बनाए संसार से भी उतना ही प्रेम। ईश्वर के बनाए संसार की चुनौतियों से प्रेम। ईश्वर के बनाए संसार में संघर्ष से प्रेम। और उस परलोक से प्रेम, जहां एक दिन सबको जाना ही है।
भगवान अभी निराश नहीं
टैगोर ने कहा था, ‘दुनिया का प्रत्येक बच्चा अपने जन्म के साथ यह संदेश लेकर आता है कि भगवान अभी भी मनुष्य से निराश नहीं हुआ है।’ उन्होंने कहा, ‘आपकी मूर्ति का टूटकर धूल में मिल जाना, इस बात का प्रमाण है कि ईश्वर की धूल आपकी मूर्ति से महान है।’ उन्होंने कहा, ‘आस्था वो पक्षी है, जो भोर के अंधेरे में भी उजाले को महसूस करता है।’ उन्होंने कहा, ‘जो आत्मा शरीर में रहती है, वही ईश्वर है। लोग उस अंतर्देव को भूल जाते हैं और दौड़-दौडक़र तीर्थ जाते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘प्रेम ही एकमात्र वास्तविकता है।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और पाया कि जीवन सेवा है। मैंने सेवा की और पाया कि सेवा में ही आनंद है।’ ‘हम दुनिया में तब जीते हैं, जब उससे प्रेम करते हैं।’