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Parshuram_jayanti - agaadhworld

परशुराम जयंती

राम से पहले परशुराम

हिन्दू या सनातन चिंतन में परशुराम को छठा अवतार कहा गया है। उनका जीवन जहां एक ओर, अहंकार के विरुद्ध एक प्रमाण है, वहीं दूसरी ओर, वे माता-पिता के प्रति भक्ति के भी आदर्श हैं। उनके जैसा अहंकार का विरोधी कोई दूसरा नहीं है, तो उनके जैसा माता-पिता का भक्त भी कोई दूसरा नहीं है। परशुराम को भगवान माना जाता है। वे सामान्य मनुष्य के रूप में विष्णु के पहले अवतार थे। उन्हें स्वयं विष्णु ने अमरता का वरदान दिया था।

 

 


परशुराम ने ही गणेश को बनाया एकदंत

 ध्यान दीजिएगा, कहीं भी गणेश की मूर्ति दिखेगी, तो उनका एक ही दांत आपको दिखेगा। वास्तव में परशुराम जी को शिवधाम के रास्ते पर गणेश जी ने रोक दिया था। गणेजी जी ने अपने बल से परशुराम को अचेत कर दिया। जब परशुराम को चेतना आई, तो उनको बहुत क्रोध हुआ, उन्होंने युद्ध में भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया। दोनों ही भगवान थे, दोनों ने ही इस घटना से सबक लिया। जीवन में अनुशासन का महत्व समझा।


 जो अवतार लेगा, उसके गुरु होंगे परशुराम

हिन्दू मत में यह परिकल्पना है कि विष्णु भगवान जब कल्कि के रूप में अवतार लेंगे, तब भगवान परशुराम ही कल्कि के गुरु बनेंगे। बहुचर्चित तथ्य है – परशुराम को अमरता का वरदान मिला हुआ है। विष्णु का कोई अन्य अवतार जीवित नहीं है, लेकिन ऐसी मान्यता है कि परशुराम को कल्कि की शिक्षा-दीक्षा के लिए ही जीवित रखा गया है।


पिता का आदेश – माता की हत्या

परशुराम के पिता जमदग्नि एक बार बहुत क्रोधित हुए। उनकी पत्नी अर्थात परशुराम जी की माता जी पूजन सामग्री लाने गई थीं, लेकिन वहां उनका ध्यान भटक गया, पूजन में विलंब हो गया। जमदग्नि ने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि माता का सिर काट दो। कोई तैयार न हुआ, लेकिन परशुराम पिता की आज्ञा के पालन के लिए आगे बढ़े, बाकी भाइयों ने उन्हें रोकने की चेष्टा की, जिन्हें परशुराम जी ने मार दिया और फिर माता का सिर भी उतार लिया।

पिता अति प्रसन्न हुए, पुत्र परशुराम से कहा, पुत्र, कुछ मांगो। तब परशुराम ने कहा कि माता और भाइयों को जीवित कर दीजिए और जब वे जीवित हो जाएं, तो उन्हें इस घटना की कोई स्मृति न रहे। ऐसा ही हुआ। परशुराम की माता-पिता के प्रति भक्ति जगत प्रसिद्ध हो गई।


क्षत्रियों के 21 बार विनाश का सत्य?

परशुराम के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने क्षत्रियों का 21 बार विनाश किया था। यह भी मान्यता है कि उन्होंने हैहय वंशी क्षत्रियों के खिलाफ 21 युद्ध किए और हर बार विजयी हुए थे। कथा है कि हैहयवंशी राजा सहस्रार्जुन ने परशुराम के पिता से दिव्य गौ कामधेनु को जबरन छीन लिया था। परशुराम ने सहस्रार्जुन से युद्ध करके उसे मार दिया। सहस्रार्जुन के पुत्रों ने परशुराम जी के पिता की अवसर देखकर तपस्या करते समय ही हत्या कर दी। इससे परशुराम जी को बहुत क्रोध हुआ। इसके बाद ही उन्होंने क्षत्रियों के विरुद्ध 21 युद्ध किए।
परशुराम जी का यह मानना था कि राजा होने या शासक वर्ग होने का यह अर्थ नहीं कि आप प्रजा की संपत्ति पर कब्जा कर लें। प्रजा की इच्छा के अनुरूप ही राजा को चलना चाहिए। ध्यान दीजिए, परशुराम के बाद राम जी ने अवतार लिया और वे क्षत्रिय थे, पूरी तरह से प्रजा की इच्छा के अनुरूप ही चलते थे। यहां तक कि राम जी ने अपनी पत्नी सीता का त्याग भी प्रजा की खुशी के लिए किया था। हम कह सकते हैं – अहंकार और मनमानी के विरुद्ध परशुराम के अभियान के फलस्वरूप ही संसार में रामराज्य आया। राम जी भी एक पत्नीव्रती थे। परशुराम का बताया हुआ मार्ग ही था, जिस पर चलकर राम मर्यादापुरुषोत्तम कहलाए।

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