शक्ति पूजा का महापर्व नवरात्र

हिन्दुओं में शक्ति का बहुत महत्व है और शक्ति के लिए देवी माँ की पूजा होती है। वर्ष में दो बार नौ नौ दिन की देवी या शक्ति पूजा का विधान है। शक्ति की जरूरत हर किसी को है। हर मनुष्य शक्तिशाली होना चाहता है और यह उचित भी है। शक्ति के लिए जो पूजा की जाती है, उसमें उपवास, त्याग, दान, सेवा, ब्रहचर्य का विशेष महत्व है। हर सनातनी या हिन्दू अपनी क्षमता, अवस्था, सुविधा के हिसाब से पूजन करता है।
ऐसा माना जाता है कि श्रद्धापूर्वक   देवी प्रतिमा दर्शन या शक्ति का ध्यान करने मात्र से भी फल की प्राप्ति होती है।

सबके कल्याण के लिए होती है पूजा 

माँ उदार हैं। वो सबका कल्याण करती हैं। केवल स्वार्थ पूर्ति के लिए ही पूजा नहीं होती। देवी की पूजा पूरे जगत के कल्याण के लिए की जाती है। यहां समय तंत्र साधना का भी होता है, जिसमें सिद्धियों के लिए पूजा की जाती है। लेकिन शक्ति की सच्ची पूजा में जगत का कल्याण छिपा है।

सबके कल्याण के लिए इस मंत्र के जाप का विधान है —

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्येत्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

भगवान राम ने की थी नवरात्र पूजन की शुरुआत 

ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले भगवान श्री राम ने लंका विजय के ठीक 10 दिन पहले माँ भगवती की पूजा अर्चना की थी। महाबली असुर रावण को पराजित करना आसान नहीं था। रावण को भी अनेक सिद्धियां प्राप्त थीं। ऐसे में राम ने शक्ति पूजा की। दैवीय आशीर्वाद का आह्वान किया।
अंततः बुराई का प्रतीक रावण मारा गया। ऐसा इसलिए भी हुआ कि उसने देवी शक्ति सीता का अपमान किया था। स्त्री शक्ति का अपमान हार का कारण बन गया।  रावण विद्वान भले हो, लेकिन वह नारी का सम्मान करना नहीं जानता था। राम की पत्नी सीता का अपहरण तो पाप की अति साबित हुआ।
राम ने देवी शक्ति को पुनः प्रतिष्ठित किया। उन्होंने दशमी के दिन उन्होंने रावण का अंत किया। सच्चाई और अच्छाई की जीत हुई। सनातन धर्म में राम की शक्ति पूजा का विशेष महत्व है।
इसलिए शारदीय नवरात्र में नौ दिन रामलीला मंचन-दर्शन की भी परंपरा रही है और दसवें दिन रावण के पुतले के दहन का रिवाज है।
भारत ही नहीं, दुनिया में जहां कहीं भी हिन्दू हैं, वे नवरात्र और दशहरे का आयोजन करते हैं।