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hindu – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png hindu – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 हमारी मनमानी का कोरोना http://agaadhworld.in/hamari-manmani-ka-karona/ http://agaadhworld.in/hamari-manmani-ka-karona/#respond Sat, 21 Mar 2020 19:09:22 +0000 http://agaadhworld.in/?p=5941 जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज  यह संसार ईश्वर द्वारा निर्मित है। इस संसार को देखकर-समझकर कभी किसी की भावना नहीं बनी

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जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज 

यह संसार ईश्वर द्वारा निर्मित है। इस संसार को देखकर-समझकर कभी किसी की भावना नहीं बनी कि आज या कल कोई ऐसा समृद्ध व्यक्ति या संगठन होगा, जो ऐसे ही किसी संसार की रचना कर सकेगा। संसार को ईश्वर ही बनाते हैं, वही पालन करते हैं और संहार भी कर सकते हैं। ईश्वर ने ही एक संविधान भी बनाया कि संसार में कैसे रहना है, कैसे स्वस्थ, शक्तिशाली, समृद्ध, विद्वान होकर रहना है। सही जीवन क्रमों के लिए ही ईश्वर ने संविधान की रचना की। जब इस संविधान का उल्लंघन होता है, तो उसी को अधर्म कहते हैं और उसी अधर्म से सभी तरह की विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। अधर्म से ही रोग, धन की हानि, प्रिय का वियोग बनता है। जीवन में जितने प्रकार के अड़चन आते हैं, जितने प्रकार के अपयश मिलते हैं, वो सब हमारे अधर्म का ही परिणाम हैं। जैसे ईश्वर ने कहा, सत्य बोलिए और हम असत्य बोलते हैं, तो उससे जो शक्ति पैदा हुई, उसका नाम अधर्म है। ईश्वर ने कहा, माता-पिता, विद्वान ब्राह्मण, गौ, नदियों, तीर्थों का सम्मान करें, और हम जब इसके विपरीत आचरण करते हैं, तब अधर्म उत्पन्न होता है। उससे दुख की प्राप्ति होती है, यह सनातन धर्म का सिद्धांत है। इसे सभी लोगों को मानना ही चाहिए। हम जब सही नियमों का पालन करते हैं और उससे जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे ही धर्म कहते हैं। आज सरकारों की जो दशा है, विकास की जो गति है, जो क्रम है, उसमें मनमानी बहुत हो रही है, ईश्वरीय नियमों की पालना नहीं हो रही है। जैसे कोई अपने वरिष्ठ के निर्देशों को नहीं मानेगा, तो निश्चित रूप से उसे क्षति पहुंचेगी। हम सब यह भूल जाते हैं कि संसार को बनाने वाला कौन है, संसार का पालन करने वाला कौन है? ईश्वर के संविधान को दरकिनार करके जीवन जीने की प्रवृत्ति तेजी के साथ बढ़ी है, यही मूल कारण है। न हमें यह ध्यान है कि हमें भोजन कैसा करना है। भोजन में भी अपने यहां विधान था कि सात्विक आहार ही लेना चाहिए। उसमें किसी तरह की विकृत्ति की आशंका न हो, जिससे निद्रा में वृद्धि न हो, जिससे रोगों की वृद्धि न हो। वेदों ने कहा कि आप सात्विक आहार लीजिए, तो आप रोगों से भी बच रहेंगे। शुद्ध आहार से ही आपके मन में श्रेष्ठ भाव आएंगे। आप शरीर, बुद्धि, अहंकार से भी स्वथ्य रहेंगे। तब आपका जीवन पूर्ण तैयार होगा, अपने लिए, परिवार के लिए, जाति के लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, मानवता के लिए। तभी आपका चिंतन और निश्चय भी स्वस्थ होगा।
अभी जो बड़ी विपत्ति आ गई है, जिससे पूरा संसार संतप्त है और जन की बहुत-बहुत हानि हो रही है। व्यवसाय बिगड़ रहे हैं, आम जनजीवन की व्यवस्थाएं डगमगा रही हैं, इसका कारण है कि हम ईश्वरीय विधान की पालना नहीं कर रहे हैं।
केवल मनमानी जीवन जीने लगे हैं। बोलने लगे हैं कि जैसा हमें अच्छा लगेगा, वैसा ही करेंगे। तो जो भी अच्छा लग जाए, क्या उसी से विवाह कर लेंगे? संसार की किसी अच्छी परंपरा, किसी महर्षि, किसी संत ने यह नियम नहीं बनाया कि आप अपने रिश्ते में ही विवाह कर लें। हर सुंदर स्त्री को देख मन में गलत भाव आना पाप है और उसके लिए प्रयास करना तो और भी महा-पाप। जब व्यक्ति विधान को, संविधान को, जाति-परिवार की परंपराओं को ही नहीं मानेगा, तो कैसे चलेगा? अपने संविधानों-विधानों से और विशेष रूप से ईश्वर के विधान से व्यक्ति को कभी अलग नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए रावण, जिसका कुछ भी विधान से नहीं था। उसका आकार-प्रकार बड़ा हो गया, किन्तु विधान से नहीं हुआ, तो इसका परिणाम क्या हुआ? रावण का लगभग पूरा परिवार-समाज ही नष्ट हो गया। ‘रहा न कोऊ कुल रोवन हारा’। जिसके पास ऐश्वर्य की पराकाष्ठा थी, जिसके पास प्रभाव का अनुपम स्वरूप था, जिसके पास भोग के संसाधनों का अपरिमित समूह था, अंत में उसकी मृत्यु के बाद दो आंसू गिराने वाला कोई नहीं बचा। रावण को अधर्म का कोरोना खा गया।
अभी कोरोना का जो स्वरूप है, यह ऐसे चल रहा है, जैसे वायु का प्रसार होता है। आज जल तत्व इतना दूषित हो गया है, पूरा कचरा पुण्य नदियों में गिरा दिया जाता है। देखा ही नहीं कि इसकी भी सफाई होनी चाहिए। गंगा किनारे रहने वाला व्यक्ति गंगा की महिमा नहीं समझ रहा है। गंगा लोगों को स्वर्ग देती थी, जो अब कीड़े-मकोड़े और गंदगी के अंबार से भरने लगी है। सारा कुछ कोरोना से व्याप्त हो गया है। क्या यह बात सही नहीं है कि शुद्ध जल के अभाव में बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं। वायुमंडल दूषित हो गया है। अंतरिक्ष तक दूषित हो गया है। यह कोरोना भी ईश्वर विधान के उल्लंघन का प्रकोप है, दंड है, ईश्वरीय दंड।
अपनी समृद्धि को जैसे-तैसे बढ़ाने के जो प्रयास हो रहे हैं, उससे कूपित होकर ही ईश्वर ने ऐसे दंड का विधान किया है। यह किसी एक देश का दोष नहीं। आज हम देखते हैं कि कितने लोगों को कैंसर हो रहा है, एड्स हो रहा है, हृदय और किडनी की बीमारियां हो रही हैं, दुर्घटनाएं हो रही हैं, बलात्कार हो रहे हैं। जिन बच्चियों को ईश्वर का स्वरूप माना जाता है, कन्या पूजन का विधान है, मां के रूप में, बहन, बेटी के रूप में पवित्र भावना होती थी, वह अब कहां है? यह कोरोना तो कुछ भी नहीं है। ईश्वर, परंपरा, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन ऐसे हो रहा है कि पूरा संसार वैसे ही नष्ट होने की कगार पर पहुंच रहा है। जान लीजिए, हम नहीं सुधरे, तो वैसे ही संसार को नष्ट हो जाना है, जैसे रावण, कंस नष्ट हो गए।
बचने का यही तरीका है कि शास्त्रों के अनुरूप हम अपना भोजन शुद्ध करें। नहीं करेंगे, तो त्रासदी बढ़ती जाएगी।
सारे लोगों को शास्त्रों की ओर से निर्देश है, आग्रह है कि आप अपने जीवन को केवल भोग या धन से नहीं जोड़ें। जीवन का दुराचारी स्वरूप न बनाएं। शास्त्र, वेद, परंपरा के अनादि विधान से जुडक़र अपने जीवन को कोरोना से बचाएं।
आज लोभ, लालसा अनियंत्रित ढंग से बढ़ती जा रही है। लोग चाहने लगे हैं कि सबकुछ मेरा हो जाए, यह गद्दी मेरी हो जाए। जिसके पास पर्याप्त संसाधन हैं, वह भी चाहता है कि बाकी सब भी उसका ही हो जाए। सोने की लंका में वानर गए, वहां से एक टुकड़ा सोना उन्होंने नहीं उठाया। जब रामजी ने जीतने के बाद लंका से कुछ नहीं लिया, तो उनके वानर कैसे लेते?
राम जी के बारे में लिखा है कि उनका धन पवित्र था और आचरण भी पवित्र। धन पवित्र होगा, तो ही आचरण पवित्र होगा। आचरण पवित्र होगा, तो ही धन पवित्र होगा, तब ही हम पाप से बचेंगे। तब हम बीमारी, विकृत्ति, चरित्रहीनता से बचेंगे। इसलिए वेदों में लिखा है कि भगवान उसी को मिलते हैं, जिनका मन पवित्र होता है, जो तमाम प्रकार के दूषण से बचे हुए निर्मल होते हैं।
इस कोरोना से सीखने की जरूरत है कि हम विधान से ही जीवन जीएं। रोजगार, यश, पत्नी, धन, वैभव सब विधान से अर्जित करें। हमारा स्वास्थ्य भी विधान से ही पुष्ट हो। जो चीज भोजन के अनुकूल नहीं है, उसे खाकर हम अहिंसक, प्रेमी, संत, ऋषि कभी नहीं हो सकते।
महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलकर दुनिया के सामने ऐसा आदर्श प्रस्तुत कर दिया कि अंग्रेजों को भागना पड़ा। गांधीजी ऐसा इसलिए कर पाए, क्योंकि उनका भोजन पवित्र था, चरित्र पवित्र था, एक क्षण के लिए भी वे हिंसक नहीं हुए। सभी को प्रेम प्रदान करते रहे, झोंपड़ी से महल तक। अब ऐसा जीवन लुप्त हो रहा है।
हमें संसार की कुछ बढ़ती समस्याओं के बारे में भी सोचना होगा। पूरे संसार में जो बेरोजगारी बढ़ रही है, जो इसके कारण नशा बढ़ रहा है, उससे भी शरीर-नाशक, समाज-नाशक किटाणु बढ़ रहे हैं। पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहे हैं। ध्यान रहे, जब किसी व्यक्ति के पास कोई काम नहीं होता है, तब उसका सबकुछ दूषित हो जाने की आशंका रहती है। वह कुछ भी खाएगा, कैसे भी पड़ा रहेगा, कोई काम नहीं, तो बुद्धि भी दूषित होती जाएगी। तो ऐसे प्रयास होने चाहिए कि युवाओं को रोजगार देकर क्रियाशील रखा जाए। क्रियाशील लोग किटाणुओं से बचे रहते हैं, उनमें किटाणुओं से लडऩे की क्षमता भी होती है। जिसको कोई काम ही नहीं, उसका मस्तिष्क तो खराब होगा ही। जो मशीन नहीं चलेगी, वह तो गई काम से। रोजगार का स्वरूप भी ऐसा होना चाहिए कि समाज में अच्छाई उत्पन्न हो। बुराई उत्पन्न करने वाले रोजगारों को नहीं बढ़ाना भी आवश्यक है। रोजगार-काम का स्वरूप सुधारने की प्रबल आवश्यकता है।
कहते हैं कि कोरोना बुजुर्गों को निशाना बना रहा है। बुढ़ापा क्या है? बुढ़ापा मतलब मशीन जिसकी पुरानी हो गई, जो क्रियाशील नहीं। क्रियाशीलता समाप्त होती है, तो शरीर किटाणुओं का घर बनता जाता है। बड़ी उम्र के लोगों को भी भिन्न-भिन्न प्रकार से सक्रिय और स्वस्थ रहना चाहिए, तभी वे कोरोना ही नहीं, अन्य बीमारियों से भी लड़ सकेंगे।
इधर एक और बड़ा दूषण हुआ है, जिस पर ध्यान देना चाहिए। मृत देह पर असंख्य किटाणु उत्पन्न होते हैं। जैसे कोई पशु मरता है, तो गिद्ध बहुत दूर से देखकर भी आ जाते थे। ऐसे ही जब कोई मरता है, तो उस पर असंख्य किटाणु उत्पन्न होने लगते हैं। तो अपने यहां प्रथा थी कि जहां कोई मरा है, वहां कुछ खाना नहीं है, सबकुछ पहले धोना है, कुछ दिनों तक सीमित और संयमित आहार लेना है। कई-कई बार पूरा घर धुलता है, कपड़े व अन्य सामान धुलते हैं, ये सारी आवश्यक व्यवस्थाएं समाप्त हो रही हैं। लोग अब न तो श्मशान जाने पर नहाते हैं और घर लौटने पर। वैज्ञानिकों को भी यह पता है कि मृत देह पर असंख्य किटाणु पैदा होते हैं। एक किटाणु आता है, तो उसके पीछे कई आते हैं, नष्ट होने की यही प्रक्रिया है, किटाणुओं की पूरी व्यवस्था या शृंखला बनी हुई है। किटाणुओं को रोकने-नष्ट करने वाली जो व्यवस्थाएं और विधान थे, सबको लोग भूलते जा रहे हैं। आधुनिक होने के फेर में साफ-सफाई की पुरानी परंपराएं छोड़ते जा रहे हैं। प्राचीन सिद्धांतों की अवहेलना के कारण ही किटाणुओं-विषाणुओं का बाहुल्य हुआ है। सब्जियों में इंजेक्शन लगा देते हैं, कोल्ड स्टोरेज की परंपरा विकसित हो गई है, इससे भी किटाणुओं को बढ़ावा मिलता है। रोटी या ब्रेड को कई दिनों तक लोग खाते रहते हैं, उनमें अनेक किटाणु उत्पन्न हो गए होते हैं। हमारे यहां परंपरा रही है कि आहार को बहुत-बहुत शुद्ध रखना है। अब संसार में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शास्त्र परंपरा और सही जीवन व्यवस्थाओं की ओर लौटना ही होगा।
जो ईश्वरीय विधान है, उससे हम दूर हट गए हैं, इसी कारण से ऐसे प्रकोप हो रहे हैं। यह संसार के लोगों के लिए चेतावनी है। अभी जो वर्षा हो रही है, सारी फसल नष्ट हो रही है। संसार में कहीं जंगल में आग, कहीं बेमौसम बर्फ, कहीं भयंकर तूफान, यह सब ईश्वर की ओर से दंड हैं, चेतावनी है। रावण को अनेक तरह से चेतावनी मिली, शुभचिंतकों ने समझाया, लेकिन उसकी मनमानी नहीं रुकी, तो राम आए और रावण का सब नष्ट हो गया।
सभी लोगों को सावधान होकर अपने शाश्वत संविधान के दायरे में प्रयास करना चाहिए। जब हमारा आहार शुद्ध होगा, तभी हममें सही ज्ञान उत्पन्न होगा, प्रेम उत्पन्न होगा। जितने भी श्रेष्ठ भाव हैं, वो तभी उत्पन्न होंगे, जब हमारा मन शुद्ध होगा। इन सब बातों की भारतीय शास्त्रों में बड़ी चर्चा है और बाद में जो नए-नए पंथ आए, जिन्होंने ईश्वर के सही विधान को छोडक़र जीवन जीया और कोरोना के रूप में प्रकोप झेल रहे हैं। जहां गौतम बुद्ध का बड़ा प्रचार-प्रभाव था, चीन में, जहां अहिंसा को परम धर्म कहा गया, वहां लोग कोरोना के सबसे बड़े शिकार हुए हैं। वैसे ही संसार में जो लोग अनियंत्रित जीवन जीने वाले हैं, वो भी शिकार होंगे। पूरे संसार के लोगों को सावधान हो जाना चाहिए। मनमानी जीवन छोडि़ए। आज नियम न मानने वाले को फांसी तक हो जाती है, तो ईश्वर का यह संसार है, किसी पार्टी, जाति, धर्म का नहीं, उसके संविधान को मानना ही चाहिए। भोजन, वस्त्र, संबंधों की मर्यादा की पालना हो, तो हमारा जीवन वैसे ही पवित्र हो जाएगा, जैसे अयोध्यावासियों का हो गया था। राम राज्य आ जाएगा, कहीं कोई कोरोना नहीं होगा। कोई संदेह नहीं, स्वयं को सुधारे-संवारे बिना कोरोना को मिटाया नहीं जा सकता। जब हम यमुना को साफ नहीं कर पा रहे हैं, तो कोरोना से कैसे बचेंगे? हम जब पुण्य नदियों, बड़े तीर्थों, बड़े शहरों को ही साफ नहीं कर पा रहे हैं, जब भोजन की सामग्री मिलावट के कोरोना से दूषित है, दूध, घी, पूरा वायुमंडल ही दूषित है, तो हम कोरोना से कैसे बचेंगे? यह कोरोना तभी नष्ट होगा, जब हम शुद्ध और स्वच्छ होंगे और तभी हम जीवन के परम लाभ को प्राप्त करेंगे।
जय सियाराम

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हिन्दुओं के मूल धर्म ग्रंथों के बारे में जानिए http://agaadhworld.in/hindu-granth/ http://agaadhworld.in/hindu-granth/#comments Thu, 25 Jan 2018 19:55:45 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3726 हिन्दुओं के मूल धर्म ग्रंथों के बारे में जानिए अगाध हिन्दू धर्म के आधार में वेद हैं। चार वेद हैं

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हिन्दुओं के मूल धर्म ग्रंथों के बारे में जानिए

अगाध

HINDUISM

हिन्दू धर्म के आधार में वेद हैं। चार वेद हैं – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। वेदों में कुल 23,479  मंत्र शामिल हैं। श्लोक देखें, तो चारों वेदों में करीब 4,00,000 श्लोक हैं।
 
 

ऋग्वेद में 10440 मंत्र, यजुर्वेद में 5177 मंत्र, सामवेद में 1875 मंच, अथर्ववेद में 5987 मंत्र हैं। इसके अलावा कुछ लोग पंचम वेद महाभारत को मानते हैं – जिसमें कुल 17,00,000 श्लोक हैं। वेदों को जगतपिता ईश्वर ने ही प्रकट किया है। वेद मंत्रों को श्रुति भी कहते हैं, क्योंकि पहले के समय में एक दूसरे से सुनकर ही मंत्रों का ज्ञान होता था। वैदिक ऋषि महर्षि वेदव्यास ने इन वेदों का संपादन किया। हालांकि कुछ अध्ययनों में यह कयास भी लगाया जाता है कि वेदव्यास कोई एक विद्वान ऋषि नहीं थे, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी ऋषियों का समूह था, जिसे वेदव्यास नाम से जाना गया।


वेदों में क्या है?

वेदों में समस्त देवों की अर्थपूर्ण आराधना की गई है। इसके साथ ही प्रकृति के तहत आने वाले नाना प्रकार के ज्ञान व गुणों का वर्णन भी किया गया है। वेद मनुष्यों को जीने की कला सिखाते हैं, वेदों को ज्ञान का खजाना माना जाता है। वेदों को समझना और समझाना आज भी कठिन माना जाता है, दुनिया का शायद ही कोई ऐसा विद्वान या संत है, जो वेदों के बारे में नहीं जानता। उदाहरण के लिए, पैगंबर मोहम्मद साहब ने वेदों और भारत के ज्ञान की ओर काबिलेगौर इशारा करते हुए कहा था कि मुझे पूरब से इल्म की हवा आती महसूस होती है। पूरब में भारत ही था, जहां अरब, यूरोप, चीन से भी छात्र पढऩे आते थे।

हिन्दू संस्कृति या सनातन संस्कृति को जानने के लिए वेदों को जानना जरूरी है। धर्मशास्त्र का इतिहास लिखने वाले भारत रत्न विद्वान डॉ. पी.वी. काणे के अनुसार, वैदिक रचनाओं का काल ४००० वर्ष ईसा पूर्व का रहा है। हालांकि अन्य विद्वान भी हैं, जो वेदों को और भी प्राचीन मानते हैं। किन्तु इतना तय है कि वेद संसार में सबसे पुरानी धार्मिक रचना हैं। इन्हीं के आधार पर हिन्दू धर्म को सनातन या या सबसे पुराना धर्म माना जाता है।


कई हिन्दू ग्रंथ नष्ट हो गए

ऐसा माना जाता है कि वेदों का एक बड़ा भाग आज भी संकलित नहीं है। भारत चूंकि समय-समय पर आक्रमणों का शिकार होता रहा, इसलिए बड़ी मात्रा में ग्रंथ नष्ट हुए हैं। जब भारत में छपाई की व्यवस्था नहीं थी, तब ग्रंथों का संचय बहुत मुश्किल काम था, उस दौर में जो हमले हुए, भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों जैसे नालंदा को जिस तरह से नष्ट किया गया, उसके कारण भारत या हिन्दू धर्म का बहुत सारा ज्ञान खो गया। आधुनिक दौर में कागज के आविष्कार और छपाई की सुविधा के बावजूद आज भी अनेक ग्रंथ भारत में लोगों के पास घरों में उपलब्ध हैं, जिनका प्रकाशन नहीं हो पाया है।
वाल्मीकि रामायण और महाभारत

सहज भाव से कहें, तो वेदों को समझने के लिए हमें वाल्मीकि रामायण और महाभारत का अध्ययन करना पड़ता है। ये दोनों ग्रंथ इतिहास माने गए हैं। इन दोनों ग्रंथों में वेदों का ही ज्ञान इस तरह से प्रस्तुत है कि सभी को उदाहरण के साथ सहजता से समझ में आ जाए। ऋषि जानते थे कि वेद का पाठ हर कोई नहीं कर पाएगा, इसलिए उन्होंने इतिहास के रूप में रामायण और महाभारत की रचना की, ताकि आम लोग भी कथा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त कर सकें।


18 पुराण – जिनका पाठ होता है

हिन्दू धर्म में 18  पुराण मान्य हैं। पुराणों में भी कथाएं भरी पड़ी हैं और साथ ही वेदों से निकला ज्ञान भी है। पुराणों का पाठ भारत में सहजता के साथ किया जाता है। शिव पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण, ब्रम्हपुराण, गरुण पुराण इत्यादि का पाठ ज्यादा होता है। इसके अलावा पद्म पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रम्हवैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रम्हाण्ड पुराण। पुराणों को भगवान का अंग माना गया है। जैसे ब्रम्ह पुराण को भगवान सिर और पद्मपुराण को भगवान का हृदय माना गया है। सबसे बड़े पुराण शिव पुराण में करीब १ लाख श्लोक हैं, जबकि वामन और कूर्म पुराण 6000 -6000 श्लोकों के साथ सबसे छोटे पुराण हैं। इन पुराणों के अलावा करीब 60 उपपुराण भी हैं, जिनका हिन्दू धर्म में महत्व है।


हिन्दू धर्म के 108 उपनिषद

उपनिषद का अर्थ है – पास बैठना। ब्रह्म, ज्ञान के पास बैठना। उपनिषद वास्तव में वेदों का ही विस्तार हैं। ये हिन्दू संस्कृति में ज्ञान का कोश माने जाते हैं। भारतीय दर्शन का आधार उपनिषदों से ही खड़ा होता है। असंख्य उपनिषद हैं, लेकिन मोटे तौर पर उन्हें 108 माना गया है। भारतीय ऋषि जो ज्ञान चर्चा करते थे, उसका सार उपनिषदों में उपस्थित है। उपनिषदों में लाखों प्रश्नों के उत्तर छिपे हैं। जीव जगत कहां से आता है, कहां रहता है और कहां जाएगा, मनुष्य क्या है, शक्ति क्या है, देव क्या हैं, ईश्वर क्या है, इत्यादि लाखों प्रश्नों के उत्तर उपनिषदों में मिलते हैं। भारतीय विद्वान समय-समय पर उपनिषदों पर भाष्य लिखते रहते हैं। उपनिषदों की व्याख्या की भारत में परंपरा है। वेद और उपनिषदों की यह खूबसूरती है कि ये किसी को भी चिंतन से रोकते नहीं हैं, ये यह मानकर चलते हैं कि उनकी व्यक्ति दर व्यक्ति अलग-अलग व्याख्या संभव है। हर विद्वान व संत अपने-अपने भाव के अनुरूप व्याख्या प्रस्तुत कर सकता है।


हिन्दू धर्म में कोई ग्रंथ अंतिम नहीं

हिन्दू धर्म दूसरे धर्मों से अलग है। जैसे ईसाई या इस्लाम के अपने-अपने मूल धर्म ग्रंथ हैं, वहीं हिन्दू धर्म का कोई एक मूल ग्रंथ नहीं है। अनेक ग्रंथों में हिन्दू या सनातन धर्म का ज्ञान बिखरा हुआ है। वेदों को प्राचीन माना जाता है, हालांकि उन्हें भी चुनौती दी जा सकती है। स्वयं भारत में वेदों को चुनौती दी गई है। भारतीय ज्ञान क्षेत्र अपनी अब तक रची किसी भी किताब को अंतिम नहीं मानता। यहां जीवन, ज्ञान, ब्रह्म – कुछ भी अंतिम नहीं है। यहां धर्म ग्रंथ लिखने की अभी भी खूब संभावना है। हां, यह जरूर है कि यह ग्रंथ भारतीय ज्ञान परंपरा – वेद-पुराण-उपनिषद के अनुरूप होना चाहिए। हिन्दू धर्म के नाम पर बहुत कुछ अनर्गल भी लिखा गया है, कई पुस्तकें हैं, जिनको हिन्दू समाज ने कूड़े के ढेर में डाल दिया। यहां धर्म के नाम पर इतना कुछ अच्छा लिखा जा चुका है कि यहां हल्का लिखकर धर्म के क्षेत्र में टिका नहीं जा सकता। यहां धर्म पर लिखी गई कोई भी रचना तभी टिक पाती है, जो गुणवत्ता में हर तरह से उच्च कोटि की होती है। ज्ञान एक ऐसी दशा या दिशा है, जिसमें अनंत तक चलते जाना है। उसकी सीमा कहीं खत्म नहीं होती। मनुष्य अपने जीवन में सीमित शक्ति और बुद्धि से धर्म का एक हिस्सा ही समझ पाता है। ज्ञान में भी अनेक मार्ग हैं, किसी भी मार्ग को पकडक़र ज्ञानी लोग मोक्ष या मुक्ति को प्राप्त करते हैं। धर्म के सारे मार्गों को जानना जरूरी नहीं है, किसी भी एक मार्ग को थामकर भक्तिभाव से लक्ष्य तक या परम सत्य या परम शांति या परम ज्ञान तक या परम ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है।

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दुनिया में कितने अवतार या पैगंबर हुए हैं? http://agaadhworld.in/dunia-me-kitne-paigambar-hue/ http://agaadhworld.in/dunia-me-kitne-paigambar-hue/#respond Thu, 25 Jan 2018 19:48:54 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3758 दुनिया में कितने अवतार या पैगंबर हुए हैं? भाग – 1 लेखक : अगाध   मुख्य रूप से अवतार या पैगंबर

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दुनिया में कितने अवतार या पैगंबर हुए हैं?

भाग – 1

लेखक : अगाध

 
 
मुख्य रूप से अवतार या पैगंबर परंपरा की दो धाराएं संसार में मिलती हैं। मोटे तौर, एक परंपरा की भूमि भारत है, तो दूसरी परंपरा की भूमि अरब है। अवतार की भारतीय परंपरा को ज्यादा पुरानी माना जा सकता है, लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा पौराणिक है। भारतीय परंपरा में दस अवतार का वर्णन है, जिसमें से नौ अवतार हो चुके हैं और दसवां अवतार संभावित या कल्पित है।

सृष्टि में पृथ्वी पर जीवन के विकास के साथ इन अवतारों को देखा जा सकता है। जहां विष्णु भगवान पहला अवतार जल में मछली के रूप में लेते हैं, वहीं इस्लाम धर्म भी इस बात को मानता है कि सृष्टि जल से उत्पन्न हुई है। लगभग सभी धर्म इस बात को मानते हैं कि जब पाप बढ़ जाता है, तब ईश्वर अवतार लेते हैं या अपना दूत भेजते हैं, ताकि पृथ्वी की व्यवस्था को फिर ठीक किया जा सके।


 
1 – मत्स्य अवतार

जब-जब सृष्टि पर खतरा मंडराता है ईश्वर अवतार लेते हैं। जब प्रलय हुई, तो मछली रूपी भगवान ने सृष्टि के तमाम उन तत्वों को बचाया, जो नई सृष्टि या पृथ्वी के लिए जरूरी थे। नए संसार के लिए जल और जीवन को बचाया और उसका शोधन किया। भागवत पुराण, विष्णु पुराण और मत्स्य पुराण में इसका वर्णन देखा जा सकता है।


 
2 – कच्छप अवतार

सृष्टि को आगे चलाने के लिए समुद्र मंथन जरूरी था। देव और दानव ने मिलकर एक पहाड़ की मदद से समुद्र को मथना शुरू किया, लेकिन वह पहाड़ डूबने लगा। तब ईश्वर ने विशाल कछुए या कच्छप के रूप में अवतार लिया और डूबते पहाड़ को पीठ पर उठाए रखा, ताकि मंथन न रुके। कूर्म पुराण या पद्म पुराण में इसका वर्णन देखा जा सकता है।


 
3 – वाराह अवतार

एक कथा के अनुसार, सृष्टि में एक समय आया, जब विशाल सागर के भीतर रहने में सक्षम दैत्य या शैतान हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को अपना तकिया बना लिया और देवताओं को दूर रखने के लिए विष्ठा या मल का घेरा बना लिया। तब ईश्वर ने वाराह या शूकर अवतार लिया और पृथ्वी की रक्षा की। वाराह पुराण में इसका वर्णन पढ़ा जा सकता है।


 
4 – नरसिंह अवतार

दैत्य हिरण्याक्ष का ही भाई था हिरण्यकश्यप। हिरण्यकश्यप ईश्वर विरोधी था और अपने ईश्वर प्रेमी पुत्र प्रह्लाद को भक्ति से रोकता था। हिरण्यकश्यप अपने ही पुत्र प्रह्लाद को मारने पर तुल गया, तब ईश्वर ने नरसिंह अवतार लिया। नर का शरीर-सिंह का सिर। प्रह्लाद की रक्षा हुई। इस अवतार को अनेक पुराणों में पढ़ा जा सकता है।


 
5 – वामन अवतार

एक समय दैत्य या असुर बलि बहुत शक्तिशाली राजा बन गया। देवता संकट में पड़ गए। जब आतंक बहुत ज्यादा हो गया, तब भगवान ने वामन या बौने ब्राह्मण का अवतार लिया और राजा बलि से दान में तीन कदम जमीन मांगी। अपने शरीर को विशालकाय बनाया, पूर्ण धरती-गगन नाप दिया, बलि को पाताल भेज दिया। सृष्टि की रक्षा हुई।


 
6 – परशुराम अवतार

यह पहला ऐसा अवतार था, जब भगवान का स्वरूप सामान्य मानव की तरह था। शासक वर्ग में अत्यधिक अहंकार के कारण जब धर्म की हानि होने लगी और पृथ्वी संकट में पड़ गई, तब ईश्वर ने परशुराम अवतार लिया। हाथ में फरसा और अस्त्र-शस्त्र लेकर उन्होंने ऐसे लोगों का अंत किया, जो धर्म और प्रकृति विरुद्ध आचरण कर रहे थे।


 
7 – राम अवतार

परशुराम जी के उग्र अवतार के बाद भगवान ने मर्यादाओं की स्थापना के लिए, रावण जैसे राक्षसों का अंत करने के लिए मानव रूप में अवतार लिया। इस अवतार में ईश्वर का स्वरूप मर्यादापुरुषोत्तम का था। एक मनुष्य और एक राजा का आदर्श। यह सृष्टि में ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ मानवीय रूप था। दुनिया में राम को सब जानते हैं।


 
8 – कृष्ण अवतार

धरती पर जब पाप का बोझ बढ़ गया, आबादी बहुत बढ़ गई, शांति खंडित होने लगी, धर्म पर से विश्वास हिलने लगा, तब ईश्वर ने कृष्ण रूप में जन्म लिया। जन्म लेने के पहले से ही नाना प्रकार की लोक लुभावन लीलाएं कीं। रसिया थे और छलिया भी। गीता के माध्यम से भी। उन्हें पूरी दुनिया गीता के माध्यम से जानती है।


 
9 – बुद्ध अवतार

जब कर्मकांड बहुत बढ़ गया, जब समाज में धर्म के नाम पर हिंसा की प्रबलता हो गई, जब धर्म पर से लोगों को विश्वास उठने लगा, जब लोग भटकने लगे, तब गौतम बुद्ध का अवतार हुआ। बुद्ध ने पूरी दुनिया को अहिंसा, शांति और संयम का मार्ग दिखाया। वे बौद्ध मत या धर्म के प्रवर्तक हैं, लेकिन हिन्दू उन्हें नौवां अवतार मानते हैं।


 
10 – कल्कि अवतार
ईश्वर कलयुग के अंत में कल्कि के रूप में जन्म लेंगे और दुष्टों का संहार करेंगे, ऐसा रचित या कल्पित है। हिन्दू धर्म के कुछ पुराण यहां तक बताते हैं कि कल्कि का जन्म कहां होगा, उनका क्या रूप होगा, वे क्यों जन्म लेंगे और उनका उद्देश्य क्या होगा। हिन्दू परंपरा में यह माना जाता है कि जब विष्णु अवतार लेते थे, तब उनके साथ ही अनेक देवताओं और ईश्वर स्वरूपों का अंशावतार होता था। राम अवतार जब हुआ, तो उनके साथ अनेक दिव्य आत्माएं जन्मीं। सीता को भी राम अवतार का ही अंग माना गया है। जैसे राधा जी को कृष्ण अवतार का ही एक हिस्सा माना गया है। कई ऋषि कृष्ण का ईश्वर सान्निध्य पाने के लिए गोपी रूप में जन्मे और लीलाओं में भाग लिया। कुल मिलाकर हिन्दू परंपरा में कोई भी अवतार अकेला नहीं होता, उसके साथ अवतारों का एक पूरा समूह पृथ्वी पर आता है और अपने कार्य पूरे करता है। क्रमश:

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दुनिया में कितने पैगंबर या प्रोफेट हुए हैं?
भाग – 2
लेखक : अगाध
हिन्दू परंपरा में अब तक नौ ही अवतार हुए हैं, लेकिन अरब या ग्रीक परंपरा में अनेक प्रोफेट या पैगंबर हो चुके हैं। प्रोफेट शब्द का अर्थ है – प्रवक्ता। प्रोफेट का मतलब हुआ ईश्वर का प्रवक्ता। कुछ यहूदियों की मानें, तो दुनिया में 12,00,000  प्रोफेट हुए हैं। हालांकि इनमें से ऐसे प्रोफेट जिन्हें सब जानते हैं या जो ज्यादा चर्चित हैं, उनकी संख्या 55 है। इनमें से 45 पुरुष हैं और 7 महिलाएं हैं। अरबी व ग्रीक परंपरा में कई पति-पत्नी, दोनों ही प्रोफेट के रूप में माने गए हैं।

खास बात यह है कि प्रोफेट की एक ही परंपरा से यहूदी, ईसाई और मुस्लिम जुड़े हुए हैं, बहाई मत या धर्म को भी इसी प्रोफेट परंपरा में माना जा सकता है। चारों ही धर्म एक ही प्रोफेट परंपरा को मानते हैं। अब यह बात अलग है कि धर्म के हिसाब से कोई किसी प्रोफेट को कम मानता है और किसी को ज्यादा मानता है।


आदि पैगंबर थे हजरत इब्राहीम

हजरत इब्राहीम को यहूदी बहुत मानते हैं और मुसलमान भी। इब्राहीम पहले प्रोफेट थे, जिन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था और एकेश्वरवाद पर जोर देते हुए उसे आगे बढ़ाने के लिए कहा था। हालांकि यहूदियों ने इस बात को बहुत मन से स्वीकार नहीं किया, लेकिन अरब देशों में धीरे-धीरे मूर्ति पूजा के खिलाफ माहौल बना और इसके बीज पैगंबर हजरत इब्राहीम ने बो दिए थे। ऐसा मालूम पड़ता है कि इब्राहीम का परिवार बहुत बड़ा और प्रभावी था और धार्मिक तो था ही। ऐसा माना जाता है कि इसी परिवार में आगे चलकर पैगंबर दाऊद, पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा मसीह और पैगंबर हजरत मोहम्मद भी हुए।

कौन हैं कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह

पैगंबर या प्रोफेट परंपरा में पैगंबर मूसा, पैगंबर ईसा और पैगंबर मोहम्मद का सबसे ज्यादा सम्मान है। गौर करने की बात है कि पैगंबर मूसा यहूदियों के मुख्य सम्मानित पैगंबर हैं, तो पैगंबर ईसा मसीह ईसाइयों के महान पैगंबर हैं, तो पैगंबर हजरत मोहम्मद मुसलमानों के अंतिम पैगंबर हैं।
यहूदी समुदाय ईसा मसीह और हजरत मोहम्मद को बहुत नहीं मानता, ईसाई समुदाय ईसा मसीह और पैगंबर मूसा को मानता है, लेकिन मुसलमान तीनों ही पैगंबरों को मानते हैं। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मूसा ऐसे पहुंचे हुए पैगंबर थे कि अल्लाह से बातें किया करते थे – इसलिए उन्हें कलीमुल्लाह कहा जाता है। पैगंबर ईसा के बारे में कहा जाता है कि वे ईश्वर की आत्मा या रूह थे, इसलिए उन्हें रूहुल्लाह कहा जाता है। हजरत मोहम्मद को ईश्वर या अल्लाह का दूत माना जाता है, इसलिए उन्हें रसूलल्लाह कहा जाता है।
कलीमुल्लाह, रूहुल्लाह और रसूलल्लाह तीनों एक ही परिवार से आते हैं, हालांकि तीनों का समय अलग-अलग है। कलीमुल्लाह ईस्वी पूर्व 1400 में हुए थे, उसके बाद रूहुल्लाह हुए और रूहुल्लाह के 570 साल बाद रसूलल्लाह हुए।  क़ुरआन में इन तीन पैगंबरों सहित 25 पैगंबरों का नाम आया है। हालांकि एक हदीस के अनुसार, 1,24,000 से ज्यादा पैगंबर या प्रोफेट इतिहास में हो चुके हैं। खास बात यह भी है कि पैगंबरों की परंपरा सृष्टि के प्रारंभ तक जाती है और ऐसा लगता है कि हिन्दुओं के कुछ देवता भी यहूदी, ईसाई और इस्लामी परंपरा के अंतर्गत पैगंबर के रूप में देखे गए हैं। कुछ पैगंबरों की साम्यता हिन्दुओं की देवताओं से है।
अरब में एक समय था, जब कई प्रभावी लोग हुए, जिन्होंने खुद को प्रोफेट या पैगंबर कहा। एक ही समय में अनेक प्रोफेट निवास कर रहे थे।

दुनिया में कितनी महिला पैगंबर या प्रोफेट ?

यहूदी धर्मग्रंथों के अनुसार या बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार, पहली महिला प्रोफेट थीं – मिरियम। मिरियम प्रोफेट मूसा और प्रोफेट एरोन की बहन थीं। ईश्वर के प्रति संगीतमय भक्ति और नृत्य में वे लगी रहती थीं।
दूसरी महिला प्रोफेट थीं देवोराह। वे अत्यंत न्यायप्रिय और बुद्धिमान महिला थीं, लोग उनके पास फैसले के लिए दूर-दूर से आते थे। उन्होंने अन्याय के विरुद्ध युद्ध का भी नेतृत्व किया था। प्रोफेट देवोराह को इजराइल देश की माता भी कहा जाता है।
तीसरी महिला प्रोफेट का नाम नहीं मिलता, लेकिन वे प्रोफेट ऐजैह की पत्नी थीं। उन्हें प्रोफेटेस नाम से ही पुकारा जाता है।
चौथी महिला प्रोफेट हैं – हल्दाह। वे अपने समय में बहुत बुद्धिमान और प्रभावी महिला थीं, जिनके पास विद्वान लोग भी सलाह के लिए भेजे जाते थे। पांचवीं महिला प्रोफेट हैं – नोआदियाह। वे अपने समय में इजराइल में प्रभावी थीं, लेकिन इनको लेकर थोड़ा विवाद भी है।
एजिकीयल की लिखी किताब में अनेक महिला प्रोफेट का जिक्र है, लेकिन सबको मान्यता नहीं मिली। एक अन्य मान्यता के अनुसार, ये हैं 7 महिला प्रोफेट – साराह, मिरियम, देबोराह, हन्नाह, हल्दाह, अबीगैल और इस्थर। आपत्ति करने वाले यह भी कहते हैं कि साराह को केवल उनकी सुंदरता की वजह से प्रोफेट कह दिया गया था। खास बात यह है कि महिला प्रोफेट की मान्यता केवल इजराइल में ही है। ईसाई धर्म और इस्लाम इस पर ज्यादा जोर नहीं देता या खामोश रहता है।

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