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Bahai – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png Bahai – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 Martyrdom of the Báb http://agaadhworld.in/martyrdom-of-the-bab/ http://agaadhworld.in/martyrdom-of-the-bab/#respond Sun, 08 Jul 2018 18:34:50 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4417 धर्म की राह पर शहीद बाब महान बहाउल्लाह ने बहाई धर्म की विधिवत आधारशिला रखी थी, लेकिन बहाई धर्म के

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धर्म की राह पर शहीद बाब
महान बहाउल्लाह ने बहाई धर्म की विधिवत आधारशिला रखी थी, लेकिन बहाई धर्म के मूल प्रवर्तक अर्थात बहाई धर्म के मूल विचारक महान बाब ही थे। बाब का असली नाम सैयद अली मुहम्मद शिराजी था। बाब का अर्थ होता है द्वार या दरवाजा। बाब का जन्म 20 अक्टूबर 1819 को ईरान के शिराज में हुआ था। वे 9 जुलाई 1850 को शहीद हुए थे। जाहिर है, मात्र 30 की आयु में उन्हें दुनिया से विदा कर दिया गया। उन्होंने 24 की उम्र में परमेश्वर का एक दूत होने की घोषणा की थी।
वे बहुत सुंदर छवि वाले मृदुभाषी व्यवसायी थे, लेकिन उनका मन धर्म चिंतन-अध्ययन में ज्यादा लगता था। वे प्रार्थना और पाठ में लगे रहते थे। बहुत कम बोलते थे। विवरण मिलता है कि वे प्रश्नों के जवाब भी कम ही देते थे। वे तभी बोलते थे, जब बहुत जरूरी होता था। वे शिया मुस्लिम थे। मुस्लिम धर्म में एक मान्यता है कि कयामत से पहले एक मसीहा अवतार लेगा। ईरान या परसिया में शेख अहमद ने शियाओं के एक प्रमुख विचारक धर्मगुरु थे। उनको मानने वाले शेखीस कहलाए। ये लोग इस इंतजार में थे कि कोई मसीहा अवतार लेने वाला है, उसकी खोज करनी है। शेख अहमद के बाद धर्म गुरु काजिम रश्दी उनके उत्तराधिकारी बने। कहा जाता है कि बाब की मुलाकात काजिम रश्दी से हुई थी।
दिसंबर 1843 में अपने निधन से पहले काजिम रश्दी ने अपने शिष्यों-समर्थकों को महदी अर्थात मसीहा की खोज करने के लिए भेजा। खोज के लिए निकले मुल्ला हुसैन की मुलाकात शिराज में बाब से हुई और उन्होंने बाब के दूत होने के दावे को स्वीकार किया। काजिम रश्दी के सभी 18 शिष्यों ने बाब को स्वीकार कर लिया। उनके विचार के समर्थकों की संख्या लगातार बढऩे लगी। ईरान और इराक में बाबीवाद या बाबीज्म का दौर शुरू हो गया।


दूत होने का दावा

बाब ने जब एक दूत होने का दावा किया, तो उनका विरोध भी शुरू हो गया। ईरान या परशियन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जहां भी भेजा गया, जेल भी भेजा गया, तो वहां सभी उनके समर्थक हो गए। उनसे उच्च स्तरीय धार्मिक पूछताछ हुई। कहा जाता है, उनसे 62 सवाल पूछे गए। बाब ने बेबाकी से जवाब दिया। उन्होंने कहा कि हां मैं एक दूत हूं, मैं तुम्हें संदेश देने आया हूं।


बाब पर चली गोलियां

बाब की पूरी जिंदगी दिलचस्प है। उनके तर्क और जवाब में दम था, लेकिन सरकार ने तो सजा देना तय कर रखा था। यह सिद्ध करने की कोशिश हुई कि बाब पागल है, उसे ईस निंदा के लिए सजा होनी चाहिए। डॉक्टर ने जांच की और बताया कि बाब को दिमाग बिल्कुल सही है। बाब मौत से बच गए, लेकिन उन्हें पैरों में 20 कोड़े मारने की सजा हुई।
ईरान में जब नया प्रधानमंत्री आया, तो उसने बाब को मौत का फरमान सुना दिया। जेल में बाब का ही एक युवा परम भक्त मुहम्मद अली अनिस बाब के पैरों में गिर पड़ा, उसने गुहार लगाई कि वह भी बाब के साथ ही बलिदान हो जाएगा। उसे भी बाब के साथ ही कैद में डाल दिया गया। वर्ष 1950 में 9 जुलाई की सुबह बाब और अनिस को बंदूकधारियों के सामने दीवार से लगाकर खड़ा कर दिया गया। हजारों की भीड़ सजा का तमाशा देखने मौजूद थी। बताते हैं कि ईसाई बंदूकधारियों ने जब गोलियां चलाईं, तो वहां खूब धुुंआ हो गया, लेकिन धुंआ जब छंटा तो बाब और अनिस वहां नहीं थे, उन्हें जिन रस्सियों से बांधा गया, वे गोली के प्रहार से टूट चुकी थीं। बाब पास की बैरक में अपना संदेश लिखाते पाए गए। उन्हें फिर दीवार से लगाकर खड़ा किया गया, इस बार मुस्लिम बंदूकधारी सामने थे। गोलियां चलीं और बाब शहीद हो गए।
बाब के निधन के लगभग 13 वर्ष बाद 1963 में बहाउल्लाह ने दूत होने की घोषणा की और कहा कि वे ही वह महान शिक्षक हैं, जिसके आगमन की भविष्यवाणी संसार की सभी धार्मिक पुस्तकों में है, जिसके आगमन के लिए बाब ने मार्ग निर्माण किया था और जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान कर दिया था।


बाब ने ये कहा था

अनेक धर्म ग्रंथों-पुस्तिकाओं की रचना करने वाले बाब ने अपने शिष्यों से कहा था, ‘तुम सब आज ईश्वर के नाम के वाहक हो, तुम्हारे शरीर के एक-एक अंग को तुम्हारे उद्देश्य की महानता का, जीवन में तुम्हारी निष्ठा का, तुम्हारे विश्वास की वास्तविकता का और तुम्हारी भक्ति की उन्नतावस्था का अहसास होना चाहिए।…मैं तुम्हें एक महान दिन के आगमन के लिए तैयार कर रहा हूं… पृथ्वी के कोने-कोने में फैल जाओ और दृढ़ कदमों एवं पवित्र हृदयों के साथ उस महान ईश्वरीय अवतार के आगमन के मार्ग का निर्माण करो।’                                                                         इजरायल में है बाब की मजार
बाब को गोलियों से भूनने के बाद उनके शरीर के टुकड़े करके तबरीज शहर के किले के द्वार के बाहर पशुओं के खाने के लिए फेंक दिया गया था, लेकिन वहां से उनके शिष्य-समर्थक बाब के शरीर के कुछ अंग-अंश वहां से सुरक्षित निकाल ले गए। बाद में यही अवशेष कई हाथों-जगहों से होते हुए अंतत: हाइफा पहुंचे। बाब की मजार आज हाइफा, इजरायल में मौजूद है। जहां उस महान युवक को याद करने लोग जुटते हैं, जो मात्र 30 की उम्र में धर्म की राह पर कुरबान हो गया था।

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Bahaullah_ki_punyatithi http://agaadhworld.in/bahaullah_ki_punyatithi/ http://agaadhworld.in/bahaullah_ki_punyatithi/#respond Sun, 27 May 2018 18:52:04 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4338 बहाउल्लाह की पुण्यतिथि धर्म की दुनिया में प्रेम के दीप बहाई मत के विधिवत संस्थापक बहाउल्लाह 29 मई 1892 को

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बहाउल्लाह की पुण्यतिथि

धर्म की दुनिया में प्रेम के दीप

बहाई मत के विधिवत संस्थापक बहाउल्लाह 29 मई 1892 को दुनिया से विदा हुए थे। तब उनकी उम्र 75 वर्ष थी। उनका अंतिम समय बहजी भवन, इजराइल में बीता था। अपनी जिंदगी के अच्छे साढ़े बारह वर्ष उन्होंने इस भवन में बिताए थे। यही वह समय है, जब बहाई पंथ दुनिया में फैला, उसे संस्थागत रूप मिला और उसकी वैचारिक भूमि मजबूत हुई। उनकी जिंदगी लगभग हमेशा ही निर्वासन, नजरबंदी, निगरानी या कैद में बीती। बहुत तकलीफें झेलने के बावजूद बहाउल्लाह (मूल नाम – मिर्जा हुसैन) ने अपने धर्म पथ या मत को नहीं छोड़ा। 29 मई की सुबह शांत भाव में ही वे दुनिया से विदा हुए थे। उनके निधन के 9 दिन बाद उनकी वसीयत उजागर हुई, जिसमें उन्होंने अपने विद्वान व प्रिय पुत्र अब्दुल बहा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। बहाउल्लाह अरब दुनिया में एक अलग ही प्रेमपूर्ण विचार के प्रचारक के रूप में माने जाते रहे हैं। उनके विरोधियों ने भी उनके मतों को बाद में स्वीकार किया और खामोश हो गए।


बॉब और बहाउल्लाह कभी नहीं मिले

बहाई मत के तत्व के मूल प्रचारक बॉब थे, और उनके ही विचारों को बहाउल्लाह ने आगे बढ़ाया, लेकिन यह संयोग ही है कि बॉब और बहाउल्लाह की कभी मुलाकात नहीं हुई। बहाउल्लाह जब 27 वर्ष के थे, तब वे बॉब के विचारों के समर्थक हो गए। बॉब (सैयद अली मोहम्मद शिराजी) और बहाउल्लाह कभी मिले नहीं, लेकिन दोनों के बीच पत्र व्यवहार होता रहा। गौर करने की बात है कि बॉब उम्र में बहाउल्लाह से 2 वर्ष छोटे थे। बॉब को लंबी जिंदगी नसीब नहीं हुई, उन्हें मात्र 24 की उम्र में ज्ञान हुआ कि वे परमेश्वर के दूत हैं। उन्हें अपने बॉबवाद के प्रचार के लिए ज्यादा समय ईश्वर ने नहीं दिया। बॉब मात्र 30 की उम्र में 1850 में दुनिया से विदा हो गए। उन्हें अपनी विदाई का अहसास हो गया था, उन्होंने अपनी कलम व अन्य अनेक निशानियां, कागजात बहाउल्लाह के पास भेज दिए थे।


13 साल बाद बहाउल्लाह की घोषणा

बहाउल्लाह ने बॉब के निधन के बाद तत्काल उत्तराधिकारी होने का दावा नहीं किया। बॉब ने घोषणा कर रखी थी कि जल्दी ही देवदूत का आगमन होगा। बहाउल्लाह पूरे मन से बॉब के विचारों को आगे बढ़ाते रहे। अंतत: 1863 में बहाउल्लाह ने रिदवान बाग में अपने देवदूत होने की सार्वजनिक घोषणा कर दी। बॉबवाद को बहाई पंथ का स्वरूप बहाउल्लाह ने खुलकर देना शुरू किया। बहाउल्लाह ने अपने जीवन के करीब 29 वर्ष पूर्ण घोषित रूप से बहाई धर्म को समर्पित कर दिए। बॉबवाद को लेकर उनके परिवार में झगड़ा भी चला, लेकिन ज्यादातर समर्थकों ने बहाउल्लाह का साथ दिया। बहाउल्लाह स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ संत व्यक्तित्व थे।

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Ridwan Mahotsav http://agaadhworld.in/ridwan-mahotsav/ http://agaadhworld.in/ridwan-mahotsav/#respond Mon, 30 Apr 2018 18:36:41 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4244 रिदवान महोत्सव बहाई पंथ का सबसे शानदार त्योहार बहाई पंथ में रिदवान महोत्सव सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह

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रिदवान महोत्सव

बहाई पंथ का सबसे शानदार त्योहार

बहाई पंथ में रिदवान महोत्सव सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह पूरा त्योहार 12 दिवसीय है। बहाई पंथ की मजबूत आधारशिला रखने वाले बहाउल्लाह को जब बगदाद से निष्कासित किया गया। तब ईस्वी सन 1863 में वे बगदाद के बाहर बने एक बगीचे में 12 दिनों के लिए आकर ठहरे। उन्हें पहले तेहरान से बगदाद निष्कासित किया गया था और बगदाद से इस्तानबुल भेजा जा रहा था। जब वे इस बाग में आए, तब इस महोत्सव की शुरुआत हुई और महोत्सव का समापन 12वें दिन हुआ, और वे बाग से चले गए। इस बाग को रिदवान बाग भी कहा जाता है।


बहाउल्लाह ने कहा – मैं देवदूत हूं

बहाई पंथ के मूल विचारक-प्रवर्तक महान बॉब ने देवदूत के आने की घोषणा पहले ही कर दी थी। बॉब को भी तत्कालीन सत्ता ने स्वीकार नहीं किया और बहाउल्लाह जब सामने आए, तब उन्हें भी सत्ता के हाथों अन्याय झेलना पड़ा। मान्यता है कि बहाउल्लाह को देवदूत होने का अहसास पहले ही हो गया था, करीब एक वर्ष तक अब्दुल बहा सहित कुछ प्रिय शिष्यों को ही उन्होंने यह सूचना दी और गोपनीयता बरतने के लिए कहा। जब वर्ष 1863 में वे रिदवान बाग में 12 दिन रहे, तब उन्होंने खुलकर अपने देवदूत होने की घोषणा कर दी। इसी खुशी में उनके शिष्यों और समर्थकों ने रिदवान महोत्सव की शुरुआत की।


1000 साल तक कोई देवदूत नहीं आएगा!

बहाई पंथ की मजबूत नींव रखने वाले, पंथ को व्यवस्थित रूप देने वाले, पंथ के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य करने वाले बहाउल्लाह ने अपने देवदूत होने की घोषणा की थी और साथ ही, उन्होंने यह भी कहा था कि आगामी 1000 वर्ष तक कोई भी देवदूत दुनिया में नहीं आएगा। बहाउल्लाह ने यह भी कहा कि अपने पंथ के प्रचार-प्रसार के लिए कभी युद्ध मत करना। हमेशा सद्भाव और शांति से भरे रहना। मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद न करना। परमेश्वर हर जगह मौजूद है। अरब देश जहां, धर्म के लिए खूब तलवारें चली थीं, वहां अमन-चैन पसंद बहाई पंथ ने मजबूती से पैर जमा लिए। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि प्रथम रिदवान महोत्सव के वे 12 दिन पूरे संसार के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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Bahai New Year http://agaadhworld.in/bahai-new-year/ http://agaadhworld.in/bahai-new-year/#respond Tue, 20 Mar 2018 19:28:56 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3970 बहाई नव वर्ष 175 की शुरुआत  दुनिया के सबसे नए धर्म में से एक बहाई धर्म में एक अलग ही

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बहाई नव वर्ष 175 की शुरुआत 
दुनिया के सबसे नए धर्म में से एक बहाई धर्म में एक अलग ही कलेंडर को मान्यता मिली हुई है। इस कलेंडर की शुरुआत बहाई मत के मूल प्रवर्तक महान बाब ने की थी। इस कलेंडर को महान बहाउल्लाह और महान अब्दुल बहा ने आगे बढ़ाया। बहाई कलेंडर में 19 महीने होते हैं और हर महीने में 19 दिन होते हैं। इसके अतिरिक्त 4 या 5 दिन अलग से जुड़ते हैं, ताकि सूर्य वर्ष से तालमेल बिठाया जा सके।
बहाई वर्ष के प्रथम दिन को नव-रोज कहते हैं। नया दिन यानि नए दौर की शुरुआत। इस दिन को ईश्वर का अपना दिन माना जाता है। नव-रोज पूरे परिशयन संसार में मनाया जाता है। इस वर्ष की शुरुआत ईरान की जमीन पर हुई थी। नव वर्ष के मौके पर प्रार्थना, नृत्य, संगीत और भोज का विशेष अवसर होता है।
बहाई कलेंडर को बडी कलेंडर भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत ग्रेगोरियन कैलेंडर के वर्ष 1844 में हुई थी। 21 मार्च को बहाई कैलेंडर का 175वां वर्ष शुरू हुआ है।

बहाई कैलेंडर के महीनों के नाम

1 – बहा, 2 – जलाल, 3 – जमाल, 4 – अजमत, 5- नूर, 6- रहमत, 7- कलीमत, 8- कमल, 9- अस्मा, 10- इज्जत,  11- मसिय्यत, 12- इल्म, 13- कुदरत, 14-कौल, 15- मसाइल, 16- शराफ,  17- सुल्तान, 18- मुल्क-अय्यम, 19- अला

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Abdul baha, अब्दुल बहा http://agaadhworld.in/abdul-baha-son-of-bahaullah/ Mon, 27 Nov 2017 18:33:10 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3079 बहाइयों के ‘द मास्टर’ : अब्दुल बहा बहाई पंथ के तीसरे प्रमुख अब्दुल बहा ने 28 नवंबर 1921 में देह

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बहाइयों के ‘द मास्टर’ : अब्दुल बहा


बहाई पंथ के तीसरे प्रमुख अब्दुल बहा ने 28 नवंबर 1921 में देह त्याग किया था। अब्दुल बहा (अब्बास एफिंदी) के समय बहाई पंथ का दुनिया में खूब प्रचार हुआ। वे 23 मई 1844 को उसी दिन जन्मे थे, जिस दिन बहाई पंथ के मूल प्रथम प्रवर्तक, गुरु या प्रमुख बाब (सैयद अली मुहम्मद शिराजी) ने पंथ का प्रचार शुरू किया था। महान बाब के बाद बहा उल्लाह (मिर्जा हुसैन-अल नूरी) ने बहाई पंथ को आधिकारिक रूप से सशक्त किया और आगे बढ़ाया, इसलिए बहा उल्लाह को ही बहाई धर्म का व्यावहारिक प्रवर्तक माना जाता है। बहा उल्लाह के सबसे बड़े पुत्र अब्दुल बहा थे। अब्दुल बहा जब मात्र 8 वर्ष के थे, तब उनके पिता को कैद कर दिया गया। उनका परिवार अरब देशों में मजबूरी और अत्याचार के कारण जगह बदल-बदल कर रहा। प्रताडि़त होने के बाद भी बहाई मत के लोग झुके नहीं। बहाई सद्भाव फैलता चला गया।

उत्तराधिकार का संघर्ष

अब्दुल बहा के 11 भाई-बहन थे। बहा उल्लाह ने लिखित रूप से अब्दुल बहा को पंथ का प्रमुख घोषित किया था, लेकिन परिवार में ही इसे लेकर विवाद हुआ। विशेष रूप से मिर्जा मोहम्मद अली के साथ अब्दुल बहा का अनावश्यक विवाद चला, हालांकि पंथ के अधिकतर लोगों ने अब्दुल बहा को ही अपना नेता माना। यह संघर्ष तीखा हुआ था, इसलिए अपने बाद अब्दुल बहा ने पंथ के नेता का पद किसी को नहीं दिया। उन्होंने ऐसी व्यवस्था की कि पंथ के आगे का काम एक समिति (यूनिवर्सल हाउस ऑफ जस्टिस) करेगी, जिसका प्रमुख पंथ का मात्र अभिभावक कहलाएगा। अब्दुल बहा की तीन बेटियां थीं, उन्होंने अपने सबसे बड़े नाती शोघी एफिंदी को बहाई मत का अभिभावक बनाया। शोघी एफिंदी का असमय निधन हुआ और वे किसी को उत्तराधिकारी घोषित नहीं कर पाए, इसलिए वे बहाई मत के पहले और अंतिम अभिभावक के रूप में जाने जाते हैं। बहाई मत का पूरा प्रचार-प्रसार-देख-रेख यूनिवर्सल हाउस ऑफ जस्टिस के जरिये होता है।

अब्दुल बहा का संदेश

अब्दुल बहा ने भी अपने पिता की धारा को आगे बढ़ाया। मुस्लिम देशों का यह अकेला पंथ है, जो केवल शांति और सद्भाव का संदेश देता है, जो खून-खराबे के पूरी तरह खिलाफ है। वे चाहते थे कि नस्ल भेद और राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर पूरी दुनिया एकजुट होकर एक आध्यात्मिक विश्व का निर्माण करे, जहां किसी प्रकार का संघर्ष न हो। अब्दुल बहा के जीवन का भी एक लंबा समय कैद और नजरबंदी में बीता था। वे 64 की उम्र में ही आजाद और स्थिर हो पाए। उन्होंने यूरोप तक अपने संदेश को पहुंचाया और अंतत: हाइफा पहुंचे। इस्राइल में स्थित हाइफा में बाब का स्थान है, वहीं अब्दुल बहा को भी विश्राम स्थान दिया गया। आज यह जगह बहाइयों के लिए पूजनीय तीर्थ है।

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