Martyrdom of the Báb
धर्म की राह पर शहीद बाब
महान बहाउल्लाह ने बहाई धर्म की विधिवत आधारशिला रखी थी, लेकिन बहाई धर्म के मूल प्रवर्तक अर्थात बहाई धर्म के मूल विचारक महान बाब ही थे। बाब का असली नाम सैयद अली मुहम्मद शिराजी था। बाब का अर्थ होता है द्वार या दरवाजा। बाब का जन्म 20 अक्टूबर 1819 को ईरान के शिराज में हुआ था। वे 9 जुलाई 1850 को शहीद हुए थे। जाहिर है, मात्र 30 की आयु में उन्हें दुनिया से विदा कर दिया गया। उन्होंने 24 की उम्र में परमेश्वर का एक दूत होने की घोषणा की थी।
वे बहुत सुंदर छवि वाले मृदुभाषी व्यवसायी थे, लेकिन उनका मन धर्म चिंतन-अध्ययन में ज्यादा लगता था। वे प्रार्थना और पाठ में लगे रहते थे। बहुत कम बोलते थे। विवरण मिलता है कि वे प्रश्नों के जवाब भी कम ही देते थे। वे तभी बोलते थे, जब बहुत जरूरी होता था। वे शिया मुस्लिम थे। मुस्लिम धर्म में एक मान्यता है कि कयामत से पहले एक मसीहा अवतार लेगा। ईरान या परसिया में शेख अहमद ने शियाओं के एक प्रमुख विचारक धर्मगुरु थे। उनको मानने वाले शेखीस कहलाए। ये लोग इस इंतजार में थे कि कोई मसीहा अवतार लेने वाला है, उसकी खोज करनी है। शेख अहमद के बाद धर्म गुरु काजिम रश्दी उनके उत्तराधिकारी बने। कहा जाता है कि बाब की मुलाकात काजिम रश्दी से हुई थी।
दिसंबर 1843 में अपने निधन से पहले काजिम रश्दी ने अपने शिष्यों-समर्थकों को महदी अर्थात मसीहा की खोज करने के लिए भेजा। खोज के लिए निकले मुल्ला हुसैन की मुलाकात शिराज में बाब से हुई और उन्होंने बाब के दूत होने के दावे को स्वीकार किया। काजिम रश्दी के सभी 18 शिष्यों ने बाब को स्वीकार कर लिया। उनके विचार के समर्थकों की संख्या लगातार बढऩे लगी। ईरान और इराक में बाबीवाद या बाबीज्म का दौर शुरू हो गया।
दूत होने का दावा
बाब ने जब एक दूत होने का दावा किया, तो उनका विरोध भी शुरू हो गया। ईरान या परशियन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जहां भी भेजा गया, जेल भी भेजा गया, तो वहां सभी उनके समर्थक हो गए। उनसे उच्च स्तरीय धार्मिक पूछताछ हुई। कहा जाता है, उनसे 62 सवाल पूछे गए। बाब ने बेबाकी से जवाब दिया। उन्होंने कहा कि हां मैं एक दूत हूं, मैं तुम्हें संदेश देने आया हूं।
बाब पर चली गोलियां
बाब की पूरी जिंदगी दिलचस्प है। उनके तर्क और जवाब में दम था, लेकिन सरकार ने तो सजा देना तय कर रखा था। यह सिद्ध करने की कोशिश हुई कि बाब पागल है, उसे ईस निंदा के लिए सजा होनी चाहिए। डॉक्टर ने जांच की और बताया कि बाब को दिमाग बिल्कुल सही है। बाब मौत से बच गए, लेकिन उन्हें पैरों में 20 कोड़े मारने की सजा हुई।
ईरान में जब नया प्रधानमंत्री आया, तो उसने बाब को मौत का फरमान सुना दिया। जेल में बाब का ही एक युवा परम भक्त मुहम्मद अली अनिस बाब के पैरों में गिर पड़ा, उसने गुहार लगाई कि वह भी बाब के साथ ही बलिदान हो जाएगा। उसे भी बाब के साथ ही कैद में डाल दिया गया। वर्ष 1950 में 9 जुलाई की सुबह बाब और अनिस को बंदूकधारियों के सामने दीवार से लगाकर खड़ा कर दिया गया। हजारों की भीड़ सजा का तमाशा देखने मौजूद थी। बताते हैं कि ईसाई बंदूकधारियों ने जब गोलियां चलाईं, तो वहां खूब धुुंआ हो गया, लेकिन धुंआ जब छंटा तो बाब और अनिस वहां नहीं थे, उन्हें जिन रस्सियों से बांधा गया, वे गोली के प्रहार से टूट चुकी थीं। बाब पास की बैरक में अपना संदेश लिखाते पाए गए। उन्हें फिर दीवार से लगाकर खड़ा किया गया, इस बार मुस्लिम बंदूकधारी सामने थे। गोलियां चलीं और बाब शहीद हो गए।
बाब के निधन के लगभग 13 वर्ष बाद 1963 में बहाउल्लाह ने दूत होने की घोषणा की और कहा कि वे ही वह महान शिक्षक हैं, जिसके आगमन की भविष्यवाणी संसार की सभी धार्मिक पुस्तकों में है, जिसके आगमन के लिए बाब ने मार्ग निर्माण किया था और जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान कर दिया था।
बाब ने ये कहा था
अनेक धर्म ग्रंथों-पुस्तिकाओं की रचना करने वाले बाब ने अपने शिष्यों से कहा था, ‘तुम सब आज ईश्वर के नाम के वाहक हो, तुम्हारे शरीर के एक-एक अंग को तुम्हारे उद्देश्य की महानता का, जीवन में तुम्हारी निष्ठा का, तुम्हारे विश्वास की वास्तविकता का और तुम्हारी भक्ति की उन्नतावस्था का अहसास होना चाहिए।…मैं तुम्हें एक महान दिन के आगमन के लिए तैयार कर रहा हूं… पृथ्वी के कोने-कोने में फैल जाओ और दृढ़ कदमों एवं पवित्र हृदयों के साथ उस महान ईश्वरीय अवतार के आगमन के मार्ग का निर्माण करो।’ इजरायल में है बाब की मजार
बाब को गोलियों से भूनने के बाद उनके शरीर के टुकड़े करके तबरीज शहर के किले के द्वार के बाहर पशुओं के खाने के लिए फेंक दिया गया था, लेकिन वहां से उनके शिष्य-समर्थक बाब के शरीर के कुछ अंग-अंश वहां से सुरक्षित निकाल ले गए। बाद में यही अवशेष कई हाथों-जगहों से होते हुए अंतत: हाइफा पहुंचे। बाब की मजार आज हाइफा, इजरायल में मौजूद है। जहां उस महान युवक को याद करने लोग जुटते हैं, जो मात्र 30 की उम्र में धर्म की राह पर कुरबान हो गया था।