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संत कबीर : जो हमेशा काम आएंगे

कबीर एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने समाज और प्रचलित धर्मों की कमियों पर निडरता के साथ प्रहार किया। उन्हें इस्लाम का भी उतना ही ज्ञान था, जितना हिन्दू धर्म का। वे तार्किक और तथ्य के पक्षधर कवि थे। वे खुला बोलते थे कि लोग कागज पर लिखा पढ़ते हैं, लेकिन मैं आंखों देखी ही बोलता हूं। वे निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि, भक्त, विचानक, दार्शनिक माने जाते हैं। कबीर का जन्म भारत में उस समय हुआ, जब भारत में मुस्लिम शासन अपनी जड़ें मजबूत कर चुका था और हिन्दू संस्कृति दबाव में थी। वह सूफियों का भी दौर थे, लेकिन कबीर सूफियों की तरह भक्ति में नहीं डूबे। उन्होंने अपने समय में सामाजिक समझदारी और सद्भाव के पक्ष में सवाल खड़े किए। उन्होंने सुल्तानों से भी सवाल पूछे और आम लोगों को भी अपनी लेखनी या दोहों के माध्यम से सुधारने का प्रयास किया। वे सामाजिक संस्कार देने वाले कवि थे। वे एक ऐसे कवि थे, जो अपने समय में सेकुलरिटी के विचार को मजबूती से खड़ा कर रहे थे। आज भारत में जो विभिन्न धर्म के लोग मिलकर रहते हैं, उसमें कबीर का एक बड़ा बुनियादी योगदान है।

कबीर का जन्म ईस्वी सन 1398 में वाराणसी, भारत में हुआ था और उनका निधन ईस्वी सन 1494 में मगहर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उन्होंने 96 वर्ष का लंबा जीवन जीया और समाज में व्यापक रूप से स्वीकारे गए।


एक मध्यकालीन कवि, जो आज भी है आधुनिक

कबीर शब्द का इस्तेमाल कुरआन में अल्लाह के लिए हुआ है। कबीर का अर्थ है सर्वज्ञाता – वह जो सबकुछ जानता है। कोई आश्चर्य नहीं, आज के समय में दुनिया में करोड़ों कबीरपंथी हैं, जो कबीर को अपना सबकुछ मानते हैं। उनके दोहे सर्वाधिक सुने-सुनाए जाते हैं। वे एक ऐसे कवि हैं, जो कभी चलन या फैशन से बाहर नहीं हुए, वे आज भी आधुनिक हैं, उन्हें आज भी बड़े चाव से सुना और गाया जाता है। लेखन, जीवन और दर्शन -तीनों में ही वे बेहद ईमानदार थे। वे गृहस्थ संत थे, उन्होंने कभी अपना हाथ नहीं पसारा। स्वयं अपने हाथ से कपड़े तैयार करते थे और उसी से घर चलाते थे और साधुओं-फकीरों की सेवा करते थे।


कबीर का गुरु कौन ?

कबीर एक ऐसे महान व्यक्ति थे, जिन्हें हिन्दू और मुस्लिम, दोनों ही अपनी ओर खींचते हैं। कबीरपंथियों में ही एक धारा स्पष्ट रूप से मानती है कि आचार्य रामानंद को कबीर ने अपना गुरु माना है। राम नाम का गुरु मंत्र कबीर को रामानंद जी ने ही दिया था। दूसरी ओर, वो कबीरपंथी, जो मुस्लिम हैं, सूफी फकीर शेख तकी को कबीर का गुरु मानते हैं। यह जरूर है कि शेख तकी के साथ कबीर ने सत्संग किया था, लेकिन कबीर की ही लिखी एक पंक्ति है – घट-घट है अविनासी सुनहु तकी तुम शेख।
यहां कबीर साहब तकी शेख के लिए जो लहजा काम में ले रहे हैं, वह किसी गुरु या उस्ताद के लिए नहीं लिया जा सकता। यहां कबीर साहब फकीर शेख तकी को ही नसीहत दे रहे हैं।
दूसरी ओर, यह भी तर्क दिया जाता है कि रामानंद जी तो सगुण उपासक थे। मूर्ति की पूजा करते थे, लेकिन कबीर निर्गुण थे, वे मूर्ति पूजा के पक्षधर नहीं थे। हालांकि यहां गौर करने की बात है कि रामानंद के शिष्यों में निर्गुण राम को मानने वाले अकेले कबीर नहीं थे, रविदास या रैदास भी निर्गुण धारा वाले ही थे। ऐसे में ज्यादातर विद्वानों ने इस बात को प्रमाणित माना है कि रामानंदाचार्य ही कबीर के गुरु थे। कबीर की वाणी बीजक नामक संग्रह में आज भी दुनिया की सेवा कर रही है।

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