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Islam – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png Islam – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 Mubarak_Ramadan http://agaadhworld.in/mubarak_ramadan/ http://agaadhworld.in/mubarak_ramadan/#respond Fri, 03 May 2019 18:38:12 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4317 मुबारक रमज़ान जब शुरू हुआ .कुरआन का अवतरण रमज़ान वह मुबारक महीना है, जब पवित्र .कुरआन का अवतरण शुरू हुआ

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मुबारक रमज़ान

जब शुरू हुआ .कुरआन का अवतरण

रमज़ान वह मुबारक महीना है, जब पवित्र .कुरआन का अवतरण शुरू हुआ था। हिजरी कलेंडर में बारह महीने होते हैं, उनमें से नौवां महीना रमज़ान है। यह माना जाता है कि ईस्वी सन 610 के अगस्त महीने में .कुरआन का अवतरण संभवत: रमज़ान महीने की 27वीं तारीख को शुरू हुआ था। .कुरआन में लिखा गया है – ‘रमज़ान का महीना जिसमें या जिसकी शान में कुरआन उतारा गया।’ हर मुसलमान के लिए रमज़ान सबसे मुबारक समय है, इस महीने में की गई दुआ, इबादत बहुत रंग लाती है। रमज़ान के महीने में रोजा रखा जाता है – रोजा अर्थात उपवास। रमज़ान के मुबारक महीने में अगर उसकी हिदायतों और कायदों का पूरा पालन किया जाए, तो पूरी जिंदगी बदल जाती है। यह एक ऐसा महीना है, जब मुसलमानों की पवित्रता, सामाजिकता, एकता और समता का भाव स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आता है।


रमज़ान में ये जरूर करना चाहिए

1 – रमज़ान में रोजे या उपवास रखना आवश्यक है। पूरे दिन में केवल दो बार अल्प-आहार लेने की हिदायत है और उपवास के समय पानी भी पीने की मनाही है।
2 – यह बुराई से तौबा करने का महीना है। रमज़ान का फल पाने के लिए अपने आचरण को नेक रखना बहुत जरूरी है। अपने आप को साफ रखना, अनुशासित रखना जरूरी है।
3 – पवित्र .कुरआन के विशेष पाठ जरूरी हैं। रमज़ान में नमाज पूरी होनी चाहिए। रात के समय तरावीह की नमाज पढऩे की परंपरा है। अल्लाह का शुक्रिया अदा करना जरूरी है।
4 – जकात या दान देना जरूरी है। हर कोई अपनी क्षमता के हिसाब से दान देता है। अमीरों को ज्यादा दान देने के लिए कहा गया है, ताकि गरीब के लिए भी यह महीना मुबारक हो जाए।
5 – रमज़ान के महीने में मौन रहने का अपना विशेष फल होता है। व्यक्ति रोजे के दौरान मौन रहे और मन ही मन में अल्लाह को याद करता रहे, अच्छी बातें सोचता रहे।

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Shab-e-barat http://agaadhworld.in/shab-e-barat/ http://agaadhworld.in/shab-e-barat/#respond Mon, 29 Apr 2019 19:22:40 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4235 शब-ए-बरात जागो… अपने लिए जागो इस्लामी चिंतन-जीवन में शब-ए-बरात का बहुत महत्व है, यह एक ऐसा उत्सव-त्यौहार है, जो जीवन

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शब-ए-बरात

जागो… अपने लिए जागो

इस्लामी चिंतन-जीवन में शब-ए-बरात का बहुत महत्व है, यह एक ऐसा उत्सव-त्यौहार है, जो जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। हिजरी कलेंडर के अनुसार, शबान महीने में 14वीं और 15वीं तारीख के दरम्यान जो रात होती है – शब-ए-बरात मनाया जाता है। यह हर मुसलमान के लिए जागने की रात है। अपनी बेहतरी के लिए जागने की रात। रहम और फैसले की रात। अल्लाह के सामने अपने गुनाह कुबूल करने की रात। अपने लिए दिल से दुआ करने की रात।

मान्यता है कि यह वह रात है, जब अगले वर्ष की आपकी जिंदगी के मुकाम तय होते हैं। अल्लाह आपके अगले वर्ष के घटनाक्रम तय करता है। यह रात बहुत धूमधाम से जागते हुए दुआ करते हुए बिताई जाती है। यकीन है कि जब दिल से दुआ की जाती है, तो इस दिन अल्लाह अपने पाक बंदों के गुनाह माफ कर देता है और किस्मत में खुशियां लिख देता है। गुनाह माफ न हों, तो किस्मत में दुख लिखे जाते हैं। तो यह एक तरह से खुद को सुधारने और बेहतर बनाने की रात है। खुदा के सामने खुद को अच्छा इंसान, अच्छी औलाद सिद्ध करना होता है।


पूर्वजों को याद करने की रात

शब-ए-बारात से पहले ही पूर्वजों को याद करने का दौर शुरू हो जाता है। सभी अपने परिजनों की कब्रों की सफाई के लिए जाते हैं। कब्र, मजार पर बहुत सम्मान के साथ जाना होता है। वहां आप केवल गंदगी हटाते हैं, कब्र को साफ सुथरा करते हैं। गौर कीजिए, कब्र से घास हटाना, पेड़-पौधे हटाना मना है। घास से और पेड़-पौधों से रौनक होती है, छांव होती है। पूर्वजों को याद करके उन्हें खुश करने की कोशिश होती है, जिन्होंने जिंदगी को आगे बढ़ाया है, जिन्होंने पाला-पोसा है, उनकी रहमत जरूरी है। पूर्वज खुश होंगे, तो खुदा को भी अच्छा लगेगा। वह रहमत बरसाएगा, किस्मत सुधारेगा, आने वाले वर्ष में जिंदगी को खुशियों से भर देगा।

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चैटीचंड महोत्सव / ChaitiChand Mahotsav http://agaadhworld.in/chaitichand-mahotsav/ http://agaadhworld.in/chaitichand-mahotsav/#respond Thu, 04 Apr 2019 19:15:47 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3923 ईश्वर अल्लाह हिक आहे चैटीचंड महोत्सव ईश्वर और अल्लाह को आप जानते हैं और ‘हिक आहे’ सिंधी भाषा है, जिसका

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ईश्वर अल्लाह हिक आहे

चैटीचंड महोत्सव

ईश्वर और अल्लाह को आप जानते हैं और ‘हिक आहे’ सिंधी भाषा है, जिसका अर्थ है – एक है। हमारे संसार में दक्षिण एशिया या प्राचीन भारत वर्ष की विशाल भूमि एक विलक्षण भूमि है, जहां ऐसे अनेक अवतार, संत और फकीर हुए, जिन्होंने अपना जीवन यह सिद्ध करने में लगा दिया कि ईश्वर अल्लाह एक है। ऐसे ही अवतारों में एक अवतार हैं झूलेलाल। इन्हें देव या भगवान भी माना गया है। इन्हें अनेक नामों से जाना जाता है। इनके बचपन का नाम उडेरोलाल है। इन्हें जिंदा पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल सांई भी कहते हैं। इन्हें ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल शाहबाज कलंदर भी कहा जाता है। अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन इस बात पर पूरी सहमति है कि झूलेलाल ने समाज और विश्व की एकता के लिए प्रयास किया। शोषण के विरुद्ध संघर्षरत रहे और अपने चाहने वालों को भरपूर प्यार-आशीर्वाद दिया, जिसके कारण दुनिया में आज भी उन्हें याद किया जाता है, उनकी पूजा-इबादत की जाती है।


हिन्दू मान्यता के अनुसार झूलेलाल

पूरी सिंधी जाति सिंधू नदी के किनारे निवास करती थी। सिंध में मिरखशाह नाम का एक अत्याचारी शासक हुआ, जिसने सिंधियों पर अत्याचार की सारी हदें पार कर दीं। ऐसी मान्यता है कि जब अत्याचार बढ़ जाता है, जब मसीहा अवतार लेता है। सिंधियों ने ईश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना सुनी गई। सिंधू नदी से एक नर मछली पर बैठकर वरुण देव बाहर निकले और संदेश दिया कि 40 दिन बाद मैं आ रहा हूं।

40 दिन बाद झूलेलाल का जन्म हुआ और उन्होंने सिंधी समाज को मिरखशाह के अत्याचार से मुक्त कराया। जिस दिन इनका जन्म हुआ था, वह चैत माह था और तिथि द्वितीया थी। इस दिन को सिंधी समाज चैटीचंड के नाम से धूमधाम से मनाता है। इस साल 19 मार्च को पूरी दुनिया में झूलेलाल की जयंती मनाई जा रही है।


मुस्लिम मान्यता के अनुसार झूलेलाल

झूलेलाल अर्थात एक सूफी पीर – जिनका नाम था लाल शाहबाज कलंदर। इनका जीवनकाल 1177 से 1275 तक माना जाता है। ये महान सूफी फकीर 98 वर्ष तक जीवित रहे थे और इन्होंने पूरा जीवन भाईचारा बढ़ाने में लगा दिया, इन्हें हिन्दू और मुस्लिम समान रूप से मानते थे। पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के दादू जिले में एक स्थान है सेवन शरीफ – इसे सेवण शरीफ भी कहते हैं। यहां हजरत लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह स्थित है। दरगाह में संगीत-नृत्य के साथ धमाल मचाने की परंपरा है।


भारत में देवता, पाकिस्तान में पीर

दुनिया में लगभग चार करोड़ सिंधी हैं, जिसमें से 3 करोड़ के आसपास पाकिस्तान में रहते हैं, भारत में करीब 40 लाख सिंधी हैं। पाकिस्तान में जो सिंधी हैं, वो मुस्लिम हैं। पाकिस्तान में हिन्दू सिंधियों की संख्या 8 प्रतिशत से भी कम है। बहरहाल, भारत में झूलेलाल देवता के रूप में स्वीकार्य हैं, वहीं पाकिस्तान में उन्हें जिंदा पीर के रूप में ज्यादा देखा जाता है। भारत में झूलेलाल के मंदिर बनाए जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान में हजरत लाल शाहबाज कलंदर को ही झूलेलाल माना जाता है। पाकिस्तान में सिंधू नदी के किनारे उनकी याद में 40 दिन का मेला लगता है। पाकिस्तान में भी यह चर्चा होती है कि मिरखशाह हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाने में लगा था, तभी हिन्दुओं की प्रार्थना के बाद भगवान झूलेलाल का अवतार हुआ।


झूलेलाल से हम क्या सीखें ?

1 – ईश्वर अल्लाह हिक आहे अर्थात ईश्वर अल्लाह एक है।
2 – संसार में हर जगह खुशहाली रहे और कोई दुखी न रहे।
3 – उन्होंने कहा – सारा जग एक है, हम सब एक परिवार हैं।
4 – परस्पर ऊंच-नीच, भेदभाव को न मानो, कट्टर ना बनो।
5 – जल ही संपन्नताएं लाता है, तुम जल का महत्व समझो।
6 – मेहनत से कमाओ, किसी भी काम को कमतर न समझो।

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होली / Holi http://agaadhworld.in/holi/ http://agaadhworld.in/holi/#respond Tue, 19 Mar 2019 18:37:09 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3908 आई रंगों की बहार  ये रंग क्या बोलते है? : रंग संदेश देते हैं कि वही जिंदगी हैं। रंग जीवन

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आई रंगों की बहार

 ये रंग क्या बोलते है? : रंग संदेश देते हैं कि वही जिंदगी हैं। रंग जीवन में उमंग की निशानी हैं। रंग जीवन में उत्सव का प्रतीक हैं। रंग जीवन में रस का प्रतीक हैं। रंग जीवन में खुशी का संकेत हैं। रंग प्रकृति का उपहार हैं। रंग ईश्वर के वरदान हैं। रंग सौंदर्य के संरक्षक हैं। रंग समृद्धि-संपन्नता के अवदान हैं। ऐसा माना जाता है कि जिसके पास जितने ज्यादा रंग है, वह उतना ही ज्यादा खुश या समृद्ध है। रंग हमें जिंदगी और प्रेम की ओर खींचकर लाते हैं। रंग हमें जवानी और रवानी की ओर खींचकर लाते हैं। रंगों का त्योहार तो होना ही चाहिए, इसलिए भारत में होली सदियों से मनाई जाती है। वैसे तो समाज में सुविधा को देखते हुए होली एक या दो दिन मनाई जाती है, लेकिन भारत में बसंत पंचमी से रंग पंचमी तक होली मनाने की परंपरा है। बसंत पंचमी या सरस्वती पूजा के साथ ही एक दूसरे को अबीर, गुलाल, रंग लगाने का क्रम शुरू हो जाता है और जो होली के बाद पडऩे वाली रंगपंचमी तक चलता है।
पहले भारत में होली इतनी लंबे समय तक मनाई जाती थी और होली के गीत गाने की भी परंपरा थी। ऐसे गीत जो सामाजिक मिलन-मस्ती का संदेश देते हैं। ऐसे गीत जो हास्य के सहारे सामाजिक संदेश देते हैं। ऐसे गीत जो सामाजिक भेदभाव को मिटाने की नसीहत देते हैं। ऐसे गीत, जिनमें ईश्वर को भी अपने आसपास मानकर संवाद किया जाता है। होली तरह-तरह के पकवान खाने-खिलाने का भी अवसर है।

क्या रंगों का भी कोई धर्म होता है?

हिन्दू – लाल, भगवा, सफेद
यहूदी – नीला
ईसाई – सफेद
इस्लाम – हरा
हिन्दू धर्म में लाल, भगवा या सफेद वस्त्र को शुभ माना जाता है। यहूदी नीले रंग को पसंद करते हैं। ईसाइयों में सफेद रंग ज्यादा शुभ है। इस्लाम में हरे को ज्यादा शुभ माना जाता है। वैसे ईसाई धर्म में अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग रंग का महत्व है, लेकिन क्या वाकई धर्म से रंगों का कोई पुख्ता रिश्ता है? नहीं धर्मों ने अपनी सुविधा या प्रचार के हिसाब से रंगों का चयन किया है। एक दूसरे से अलग दिखने की होड़ में धर्म अपना एक रंग रखने की कोशिश करते हैं। इसे मानने में कोई हर्ज नहीं कि ईश्वर ने सारे रंग दिए हैं, उसे हर रंग प्रिय है, लेकिन रंगों का बंटवारा इंसानों ने किया है। वैसे यह भी सच है कि सभी धर्मों में सफेद रंग का अपना विशेष महत्व है। वास्तव में सफेद रंग ही अध्यात्म का अपना रंग है। एक ऐसा रंग, जिसमें सारे रंग छिपे होते हैं। दुनिया का हर धर्म सफेद को धार्मिक कार्य के लिए अनुकूल मानता है।

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मीलाद उन-नबी / Milad un-nabi http://agaadhworld.in/milad-un-nabi/ Sat, 10 Nov 2018 19:29:12 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3136 वो आए और 23 साल में बदल गए दुनिया पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्मदिन मुबारक मीलाद उन-नबी अर्थात बरावफात अर्थात

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वो आए और 23 साल में बदल गए दुनिया

पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्मदिन मुबारक

मीलाद उन-नबी अर्थात बरावफात अर्थात हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का जन्मदिन। यह दिन पूरे धूमधाम से उत्सव के साथ और पूरी खुशी-प्रार्थना के साथ अल्लाह को याद करने का पाक दिन है। दुनिया में इसलिए अल्लाह के दूत या पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ था, ताकि दुनिया को नई राह दिखाई जा सके। इस दुनिया में, जो विभिन्न विचारों, भ्रमों में भटक रही थी, पहले से पता था कि एक अवतार होगा और हजरत मुहम्मद के रूप में दुनिया को वह फरिश्ता मिला, जिसने दुनिया के एक बड़े हिस्से को बदलकर रख दिया। एक ऐसा विचार दुनिया को मिला, जो आज भी दुनिया में मुख्य धारा का विचार है, जिसकी समकालीनता या जिस पर चर्चा कभी रुकती नहीं है।हजरत मुहम्मद का जन्म 9 रबीउल अव्वल 53 हिजरी पूर्व (20 अप्रैल 571) को मक्का शहर में हुआ था। पिता हजरत अब्दुल्लाह पुत्र के जन्म से पहले ही अल्लाह के यहां बुला लिए गए थे। जब हजरत छह वर्ष के हुए, तो माता हजरत आमना का भी साया सिर से उठ गया। दो साल के हुए तो दादा अब्दुल मुत्तलिब नहीं रहे। चाचा अबू तालिब ने आपको पाला। हजरत का जीवन बहुत संघर्षमय बीता, लेकिन उन्होंने अच्छाई की राह को नहीं छोड़ा। चचाजान के साथ व्यापार में लगे रहे। जब आपको पैगंबर होने का संदेश नहीं मिला था, तब भी आप सत्यवादी थे और लोगों के बीच अच्छे इंसान के रूप में आपकी पहचान थी। आपने 25 वर्ष की आयु में एक नेक और सम्मानित 40 वर्षीय विधवा हजरत खदीजा के साथ निकाह किया। हजरत मुहम्मद जब 40 वर्ष के हुए, तब फरिश्ते जिबरील ने आपको पैगंबर होने की सूचना दी। आपका जीवन बिल्कुल बदल गया। पाक कुरान का अवतरण शुरू हुआ।हजरत मुहम्मद पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्हें अल्लाह की रहमत से ज्ञान हासिल हो गया। उन्होंने सबसे पहले अपने करीबियों को अल्लाह का पैगाम सुनाया, ‘बुतों की पूजा छोडक़र एक ईश्वर की उपासना और बन्दगी करो, उसके अतिरिक्त कोई उपास्य नहीं और मैं ईश्वर का दूत हूं।’


सबसे पहले कौन हुए मुसलमान ?

सबसे पहले आपकी पत्नी हजरत खदीजा, चचेरे भाई हजरत अली, मित्र अबू बक्र और दास हजरत जैद ने इस्लाम कुबूल किया। कहा जाता है कि जिसे आज ईश्वर का घर काबा कहा जाता है, ठीक उसी जगह कभी 360 बुतों की पूजा होने लगी थी, लेकिन इस्लाम का पैगाम फैलना शुरू हुआ, तो बुतपरस्ती को जवाब मिला। लोगों ने दुनिया के मालिक के निराकार स्वरूप का महत्व समझा। नबी हजरत मुहम्मद को युद्ध भी करने पड़े, उन्हें मारने, सताने और दबाने की भी बहुत कोशिशें हुईं, लेकिन इस्लाम का झंडा बुलंद रहा। अंतत: लड़ाइयों में उलझे मक्का और मदीना में शांति बहाल हुई। एकेश्वरवाद को बहुत बल मिला। ख्याति ऐसी फैली कि लगभग पूरा अरब आपकी एक आवाज पर जान देने को तैयार हो गया। आपको इसलाम की सेवा के लिए महज 23 साल मिले थे, लेकिन आपने कमाल कर दिया। अपने आखिरी हज के बाद नबी मदीना आ गए और 63 की उम्र में 12 रबीउल अव्वल 11 हिजरी (11 जून 632) को अल्लाह ने आपको बुला लिया। वे दुनिया में अब तक के आखिरी पैगंबर हैं। उनके बाद कोई पैगंबर नहीं आया है।


वो जगहें, जो पैगंबर की याद दिलाती हैं

मक्का के काबा में स्थित मस्जिद उल हरम वही स्थान है, जहां पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने पहली बार इस्लाम का ज्ञान प्रदान किया। मदीना में स्थित मस्जिद उन नबवी वह जगह है, जहां पैगंबर हजरत मुहम्मद अंतिम विश्राम को गए। मक्का में गरे-ए-हीरा नाम की एक गुफा भी है, जहां हजरत आया करते थे और यहीं उनकी मुलाकात देवदूत जिबरिल से हुई थी। जिबरिल ने ही उन्हें संदेश दिया था कि अल्लाह ने अपने पैगंबर के रूप में हजरत का चयन किया है। कुरान की कुछ आयतें यहीं उतरी थीं। पैगंबर से जुड़ी और भी जगहें हैं, लेकिन उन सबमें उपरोक्त तीन का स्थान सर्वोपरि है।


पैगंबर ने जो दुनिया को सिखाया

– उलझो मत, ईश्वर को समझो, वह एक ही है, दूसरा कोई नहीं।- हठ करो, काम में लगे रहो, अपनी सफलता तक हार नहीं मानो।- मुश्किलों से न डरो, गलतियों से सीखो, तैयारी से लड़ो और जीतो।- कोशिश करो कि अधिक से अधिक लोग तुम्हारे साथ मिलें-चलें।- अल्लाह देख रहा है, हिसाब लेगा, तुम सच्चाई की राह न छोड़ो।- गरीबों और जरूरतमंदों को न सताओ और दुश्मनों को नहीं छोड़ो।- जैसे ज्ञान शक्ति जरूरी है, वैसे ही तलवार शक्ति भी जरूरी है।- अपनी पवित्रता को बरकरार रखो और न्यायपूर्ण समाज बनाओ।- ज्यादा तर्क मत करोगे, उलझ जाओगे। अल्लाह का पैगाम मानो।- तुम्हारे विचार सही हैं, तुम सही हो, कहीं रुको मत, फैल जाओ।- कभी निराश न हो, अल्लाह पर विश्वास रखो, वही राह दिखाएगा।

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Eid-Ul-Fitar http://agaadhworld.in/eid-ul-fitar/ http://agaadhworld.in/eid-ul-fitar/#respond Fri, 15 Jun 2018 19:23:16 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4375 ईद-उल-फितर : खुशी और दान का महोत्सव तप-त्याग-संयम का प्रतीक रमजान है, तो उसके फल का प्रतीक है ईद-उल-फितर। ईद

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ईद-उल-फितर : खुशी और दान का महोत्सव

तप-त्याग-संयम का प्रतीक रमजान है, तो उसके फल का प्रतीक है ईद-उल-फितर। ईद का अर्थ ही है खुशी और फितर का अर्थ है दान। जब कोई व्यक्ति तप-त्याग और संयम का परिचय देता है, तो उसे स्वाभाविक ही खुशी मिलती है। अकेले-अकेले खुश रहना इंसानियत का गुण नहीं है, खुशी को फैलाना, दूसरों को भी खुशी देना इंसानियत है। आखिर दुनिया के गरीबों, शोषितों, पीडि़तों, वंचितों तक खुशी कैसे पहुंचेगी, जाहिर है, फितरा या दान करना पड़ेगा। दान धन का भी होगा और सामग्री का भी। अपनी सालाना कमाई का एक बहुत मामूली हिस्सा, जो लगभग 2.5 प्रतिशत ही होता है, बस वही गरीबों और जरूरतमंदों के बीच दान करना है, तभी खुशी सच्ची होगी। खुशी तभी सच्ची होगी, जब हर कोई खुश होगा।

रमजान का महीना खत्म हो जाता है और शव्वल महीने की शुरुआत होती है। शव्वल महीने के पहले ही दिन ईद-उल-फितर का आयोजन होता है। मिलकर इबादत, मिलकर नमाज, मिलकर खुशियां, मिलकर नए कपड़े, मिलकर पकवान से ही ईद-उल-फितर का आयोजन सफल होता है। यह सामाजिक मिठास और मेलजोल का एक ऐसा दिन है, जिसका इंतजार पूरे दुनिया के मुस्लिमों को होता है। किसी मुस्लिम बहुल देश में एक दिन, तो किसी देश में तीन दिन की छुट्टी रहती है।


पहली ईद कब मनी थी ?

Hajj

पैगंबर मोहम्मद साहब विवश होकर मक्का से मदीना आ गए थे। मक्का उस दौर में भी अरब दुनिया का सबसे समृद्ध शहर था, अत: अरब दुनिया को प्रभावित करने के लिए मक्का पर अधिकार जरूरी था। मक्का और मदीना के बीच की दूरी करीब 350 किलोमीटर है, और बीच में एक जगह पड़ती है बद्र। मुस्लिम सेना ने यहां पहली बार मक्का के कुरैशों को युद्ध में मात दी थी। पैगंबर साहब के पास जो सेना थी, उससे तीन गुना बड़ी सेना मक्का के शासकों के पास थी। फिर भी युद्ध में पैगंबर साहब की सेना को फतह हासिल हुई। ईस्वी सन 624 में हुए इस युद्ध को जंग-ए-बद्र या बद्र की लड़ाई कहा जाता है। यह लड़ाई रमजान के महीने में ही हुई थी और उसके बाद जीत की खुशी में ईद-उल-फितर की शुरुआत हुई थी। अरब दुनिया को साफ तौर पर यह संदेश चला गया कि एक ऐसे पैगंबर या शासक का अवतरण दुनिया में हो गया है, जो केवल युद्ध नहीं करता, बल्कि खुशी, दान और मिलजुलकर रहने की बात करता है। बाद में दुनिया गवाह है कि जब ईद की खूबसूरती फैली, तो मक्का के लोगों ने खुशी से पैगबंर साहब के सामने समर्पण कर दिया।

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Shab-e-qadr http://agaadhworld.in/shab-e-qadr/ http://agaadhworld.in/shab-e-qadr/#respond Sun, 10 Jun 2018 19:07:28 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4358 शब-ए-कद्र कद्र की रात – रमजान महीने की वह 27वीं रात जब दुनिया में क़ुरआन का अवतरण शुरू हुआ था। शक्ति

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शब-ए-कद्र
कद्र की रात – रमजान महीने की वह 27वीं रात जब दुनिया में क़ुरआन का अवतरण शुरू हुआ था। शक्ति की रात, सौभाग्य की रात, दृढ़ता की रात। इसे लिलत-ए-कद्र भी कहते हैं। इसी रात देवदूत जिबरैल ने मोहम्मद साहब को विधिवत पैगंबर बनाया। पैगंबर साहब रसूलुल्लाह तब 40 वर्ष के थे। इस खास रात से शुरू करके आने वाले 23 वर्ष तक क़ुरआन का अवतरण जारी रहा।
इस्लाम में एक विचारधारा यह कहती है कि क़ुरआन का अवतरण इसी रात हुआ था। देवदूत जिबरैल ने एक ही बार में इसी रात रसूलुल्लाह मोहम्मद साहब को पूरे क़ुरआन का दर्शन-अध्ययन करवा दिया था। इस नाते भी इस रात या इस शब का खास महत्व है। एक अन्य विचारधारा यह कहती है कि क़ुरआन का अवतरण एक-एक आयत करते हुए हुआ। देवदूत ने रसूलुल्लाह को एक-एक आयत सुनाया, जिसे रसूलुल्लाह ने अपने सगे-साथियों-चाहने वालों को सुनाया। और फिर क़ुरआन को लिखने का कार्य हुआ। रमजान की यह खास रात इबादत की रात है।

हालांकि शब-ए-कद्र की तारीख क़ुरआन में दर्ज नहीं है, अत: इस्लाम में अलग-अलग मत हैं। कई विद्वानों का मत है कि रमजान के 23वें दिन ही क़ुरआन का अवतरण शुरू हुआ था।


कहां हुआ क़ुरआन का अवतरण ?

सऊदी अरब के रेगिस्तानी इलाके मक्का के नूर पहाड़ पर हिरा नाम की गुफा में क़ुरआन का अवतरण शुरू हुआ था। नूर पहाड़ अर्थात रोशनी का पहाड़ देखने से ऐसा लगता है कि एक पर एक दो पहाड़ रखे हों। इस पहाड़ पर न पानी है और न कोई पौधा। इसी जगह सूनसान में हिरा गुफा है, जहां पहुंचने के लिए 1200 कदम चलना और चढऩा पड़ता है। इस गुफा की लंबाई 12 फीट है और चौड़ाई 5.3 फीट है। यहां पैगंबर साहब का काफी समय ध्यान करते बीता था। यहीं उनकी मुलाकात देवदूत से हुई और यहीं उन्हें पैगंबर या रसूल होने का ज्ञान हुआ। ऐसा बताया जाता है कि इस जगह को देखने प्रतिदिन लगभग 5000 लोग आते हैं।


कौन-सी आयत पहले उतरी?

ऐसा बताया जाता है कि सुरा अल-अलक की पांच आयतों का अवतरण सबसे पहले हुआ। देवदूत जिबरैल ने पैगंबर मोहम्मद को फरमाया या सुनाया। हालांकि सुरा अल-अलक में कुल 19 आयतें हैं – इनमें से पहली पांच आयतों का भावार्थ देखिए –
आयत 1 – पढ़ो, अपने रब के नाम के साथ जिसने पैदा किया…
आयत 2 – पैदा किया मनुष्य को जमे हुए खून के एक लोथड़े से…
आयत 3 – पढ़ो, हाल यह है कि तुम्हारा रब बड़ा ही उदार है…
आयत 4 – जिसने कलम के द्वारा शिक्षा दी…
आयत 5 – मनुष्य को वह ज्ञान प्रदान किया, जिसे वह न जानता था…

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आखिरी चा-शुंबा / aakhri-cha-shumba http://agaadhworld.in/aakhri-cha-shumba/ Wed, 15 Nov 2017 05:09:46 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2956 आखिरी चा-शुंबा यह मुस्लिमों के लिए महत्वपूर्ण दिन है। आखिरी चा-शुंबा का अर्थ है – इसलामिक कलेंडर के दूसरे महीने

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आखिरी चा-शुंबा

यह मुस्लिमों के लिए महत्वपूर्ण दिन है। आखिरी चा-शुंबा का अर्थ है – इसलामिक कलेंडर के दूसरे महीने सफर का आखिरी बुधवार। यह दिन विशेष रूप से सूफी बिरादरियों में मुबारक माना जाता है। अजमेर शरीफ इत्यादि में यह उत्सव का दिन है। इस दिन को लेकर दो मत मिलते हैं – एक मत यह है कि इस दिन पाक पैगंबर मोहम्मद साहब बीमार पड़ गए थे। दूसरा मत यह है कि इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब बीमारी के बाद बिस्तर से उठे थे, उन्होंने स्नान किया था और अनंत-अथाह शक्तिमान अल्लाह की इबादत-खिदमत की थी। पहले मत के अनुसार, इस दिन बलाएं, मुसीबतें, मुश्किलें दुनिया में आती हैं, क्योंकि पैगंबर साहब की सेहत ठीक नहीं रहती। अत: इस दिन विशेष इबादत-नमाज का विधान है। दूसरी ओर, जो यह मानते हैं कि इस दिन पैगंबर साहब की सेहत ठीक हुई थी, वे बिस्तर से उठकर इबादत को गए थे, वे इस दिन को खुशी-खुशी मनाते हैं और अल्लाह के सम्मान में विशेष इबादत व नमाज पेश करते हैं। इस दिन लोग दुआ करते हैं कि हे अल्लाह हमें मुसीबतों, बीमारियों, मुश्किलों और बलाओं से बचाना।

ख्वाजा गरीबनवाज ने अपनी आंखों से वो देखा था 

भारत के महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जिन्हें सुल्तान-अल-हिन्द भी कहा जाता है, इस दिन को महत्वपूर्ण मानते थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपनी खुली आंखों से देखा था कि इस दिन बलाएं, मुसीबतें, मुश्किलें दुनिया में भेजी जा रही थीं। वैसे तो इंसान की जिंदगी में और दुनिया में मुसीबतें आती रहती हैं, लेकिन मान्यता के अनुसार, आखिरी चा-शुंबा वह दिन है, जब दुनिया में मुसीबतें ज्यादा संख्या में उतरती हैं। गरीबनवाज सहित ऐसे पांच सूफी संत हैं, जिन्हें कुतुब भी कहा जाता है, वे अपने-अपने समय में इस दिन के गवाह रहे हैं और इन सभी ने इस दिन को इबादत करते खुशी-खुशी गुजारने की नसीहत दी है।

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Tajiya / ताजिया http://agaadhworld.in/tajia/ Sat, 30 Sep 2017 19:05:55 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2560 मातम का मौका मोहर्रम मोहर्रम एक अवसर है, जो हमें अपनी गलतियों के प्रति सजग करता है, जो हमें पाप

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मातम का मौका मोहर्रम

मोहर्रम एक अवसर है, जो हमें अपनी गलतियों के प्रति सजग करता है, जो हमें पाप के प्रति सजग करता है, जो हमें सुधार व पश्चाताप के लिए प्रेरित करता है। मोहर्रम त्यौहार नहीं है, यह कोई बधाई का अवसर नहीं है, यह सजग होने का अवसर है, दुनिया को यह दिखाने का अवसर है कि देखो – गलत काम से बचो, वरना केवल पछताना पड़ेगा। रसूल अल्लाह हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ इस दिन शहीद कर दिए गए थे। हजरत इमाम हुसैन को जिस ढंग से मारा गया, उसका मोहर्रम के दिन शोक मनाया जाता है।
अपनी गलती मानने का मौका
आम तौर पर अन्य सभ्यताओं में हुई गलतियों को छिपाया जाता है, लेकिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत एक ऐसी गलती है, जिसे मुस्लिम समाज हमेशा याद रखता है। हालांकि समाज में ही एक बड़ा तबका ऐसा है, जो इस शहादत का शोक नहीं मनाता, लेकिन अपनी गलती का शोक मनाना और सबसे पहले उस गलती को स्वीकार करना एक बहुत बड़ी बात है। आज लोग अपनी छोटी-छोटी कमियों को छिपाने में लगे रहते हैं, वे केवल अच्छी चीजों का उत्सव मनाना चाहते हैं, लेकिन मोहर्रम एक सबक है। सभ्यता में जो गलती हुई, वह फिर न हो, वो परिस्थितियां फिर न लौटें। काश! हजरत इमाम हुसैन यदि शहीद न हुए होते, तो संभव है रसूल अल्लाह का खानदान आज भी दुनिया में चल रहा होता। दुनिया को ईमान की नसीहत देने वाला एक धर्म आज एक बड़े अभाव को झेल रहा है। रसूल या नबी ईसा ने तो विवाह नहीं किया था, लेकिन नबी रसूल अल्लाह हजरत मोहम्मद तो परिवार वाले थे, लेकिन आज उनका परिवार नहीं है। यह दुनिया के सभ्य समाज के लिए बहुत भारी शोक की घड़ी है, एक ऐसे दुख की घड़ी है, जिसकी कोई तुलना नहीं है। दुनिया जब तक रहेगी, तब यह शोक रहेगा और मोहर्रम मनाया जाता रहेगा।
मोहर्रम त्योहार नहीं है
मुस्लिम समाज में मोहर्रम मात्र एक अवसर है, जब शोक मनाया जाता है। यह त्योहार नहीं है। मूल रूप से मुस्लिमों के केवल दो त्योहार हैं ईद और बकरीद। मुस्लिमों के बाकी जो त्योहार है, वह देश के हिसाब से बदलते रहते हैं। मोहर्रम एक अवसर है, इस दिन लोग अकेले में भी शोक मनाते हैं और एक साथ जुटकर भी शोक या मातम मनाते हैं, लेकिन इस अवसर पर लोग एक दूसरे को बधाई नहीं देते। यह शुभकामना का अवसर नहीं है, यह केवल सीखने का अवसर है, पश्चाताप का अवसर है। इसे फेस्टिवल या व्रत -त्योहार में नहीं गिना जा सकता। कुछ लोग शांतिपूर्वक मातम मनाते हैं, तो कुछ लोग भावावेश में स्वयं को आहत करके भी मातम मनाते हैं। यहां तक कि मोहर्रम के महीने में मुस्लिम समाज किसी भी शुभ कार्य से बचता है।
 ताजिया क्या है?
ताजिया हजरत इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीक है। मोहर्रम के दिन विशेष रूप से शिया मुस्लिम बहुत सजावट के साथ ताजिया का निर्माण करते हैं और उसका प्रदर्शन करते हैं। जुलूस निकालते हैं, ताजिया के आसपास या आगे मर्सिया पढ़ते हैं, शोक मनाते हैं। भारत में ताजिया बहुत श्रद्धा के साथ निकाला जाता है और हिन्दू भी इसमें भाग लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि ताजिया के नीचे से निकलने से शुभ होता है। ताजिया निकालकर उसे एक जगह जमा या विसर्जित किया जाता है।
कर्बला में है इमाम की असली कब्र
वैसे इमाम हुसैन की वास्तविक कब्र कर्बला में स्थित है, जो इराक का एक शहर है। यह कब्र ही वह जगह है, जहां इमाम हुसैन परिवार सहित शहीद हुए थे और उनकी शहादत ने मुसलमानों को सकारात्मक दिशा में प्रेरित किया था। समाज में नकारात्मक घटी थी, नकारात्मकता के दुष्परिणाम को पूरे अरब जगत ने भोगा था। आज ज्यादातर शिया जब हज के लिए मक्का जाते हैं, तो लौटते समय कर्बला भी जरूर जाते हैं। आज मुस्लिम समाज में हुसैन नाम बहुत प्यारा नाम है, जबकि इमाम हुसैन को शहीद करवाने वाले यजीद का नाम कोई लेना नहीं चाहता। आज भी मुस्लिम समाज में किसी का नाम यजीद नहीं रखा जाता है।

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हज का संदेश http://agaadhworld.in/hajj-ka-sandesh/ Tue, 29 Aug 2017 18:41:36 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2282 हज का संदेश दुनिया भर में विभिन्न संस्कृतियों के बीच बसे मुसलमानों के बीच सारे भेद मिटा देना। मक्का में

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Hajj
Hajj
30-08-2017

हज का संदेश

दुनिया भर में विभिन्न संस्कृतियों के बीच बसे मुसलमानों के बीच सारे भेद मिटा देना। मक्का में सबके लिए एक ही व्यवस्था है, सबको एक ही तरह से रीति-रिवाज निभाने पड़ते हैं। अमीर-गरीब, काले-गोरे का कोई भेद नहीं रहता। सारे लोग एक तरह-से सफेद कपड़े में नजर आते हैं। उनमें एकता स्पष्ट दिखती है और वे एकता और त्याग-इबादत का भाव लेकर अपने-अपने घर लौटते हैं और दूसरों को हज के लिए प्रेरित करते हैं।

 

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