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]]>मान्यता है कि यह वह रात है, जब अगले वर्ष की आपकी जिंदगी के मुकाम तय होते हैं। अल्लाह आपके अगले वर्ष के घटनाक्रम तय करता है। यह रात बहुत धूमधाम से जागते हुए दुआ करते हुए बिताई जाती है। यकीन है कि जब दिल से दुआ की जाती है, तो इस दिन अल्लाह अपने पाक बंदों के गुनाह माफ कर देता है और किस्मत में खुशियां लिख देता है। गुनाह माफ न हों, तो किस्मत में दुख लिखे जाते हैं। तो यह एक तरह से खुद को सुधारने और बेहतर बनाने की रात है। खुदा के सामने खुद को अच्छा इंसान, अच्छी औलाद सिद्ध करना होता है।
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]]>ईश्वर और अल्लाह को आप जानते हैं और ‘हिक आहे’ सिंधी भाषा है, जिसका अर्थ है – एक है। हमारे संसार में दक्षिण एशिया या प्राचीन भारत वर्ष की विशाल भूमि एक विलक्षण भूमि है, जहां ऐसे अनेक अवतार, संत और फकीर हुए, जिन्होंने अपना जीवन यह सिद्ध करने में लगा दिया कि ईश्वर अल्लाह एक है। ऐसे ही अवतारों में एक अवतार हैं झूलेलाल। इन्हें देव या भगवान भी माना गया है। इन्हें अनेक नामों से जाना जाता है। इनके बचपन का नाम उडेरोलाल है। इन्हें जिंदा पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल सांई भी कहते हैं। इन्हें ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर भी कहते हैं। इन्हें लाल शाहबाज कलंदर भी कहा जाता है। अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन इस बात पर पूरी सहमति है कि झूलेलाल ने समाज और विश्व की एकता के लिए प्रयास किया। शोषण के विरुद्ध संघर्षरत रहे और अपने चाहने वालों को भरपूर प्यार-आशीर्वाद दिया, जिसके कारण दुनिया में आज भी उन्हें याद किया जाता है, उनकी पूजा-इबादत की जाती है।
40 दिन बाद झूलेलाल का जन्म हुआ और उन्होंने सिंधी समाज को मिरखशाह के अत्याचार से मुक्त कराया। जिस दिन इनका जन्म हुआ था, वह चैत माह था और तिथि द्वितीया थी। इस दिन को सिंधी समाज चैटीचंड के नाम से धूमधाम से मनाता है। इस साल 19 मार्च को पूरी दुनिया में झूलेलाल की जयंती मनाई जा रही है।
झूलेलाल अर्थात एक सूफी पीर – जिनका नाम था लाल शाहबाज कलंदर। इनका जीवनकाल 1177 से 1275 तक माना जाता है। ये महान सूफी फकीर 98 वर्ष तक जीवित रहे थे और इन्होंने पूरा जीवन भाईचारा बढ़ाने में लगा दिया, इन्हें हिन्दू और मुस्लिम समान रूप से मानते थे। पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के दादू जिले में एक स्थान है सेवन शरीफ – इसे सेवण शरीफ भी कहते हैं। यहां हजरत लाल शाहबाज कलंदर की दरगाह स्थित है। दरगाह में संगीत-नृत्य के साथ धमाल मचाने की परंपरा है।
दुनिया में लगभग चार करोड़ सिंधी हैं, जिसमें से 3 करोड़ के आसपास पाकिस्तान में रहते हैं, भारत में करीब 40 लाख सिंधी हैं। पाकिस्तान में जो सिंधी हैं, वो मुस्लिम हैं। पाकिस्तान में हिन्दू सिंधियों की संख्या 8 प्रतिशत से भी कम है। बहरहाल, भारत में झूलेलाल देवता के रूप में स्वीकार्य हैं, वहीं पाकिस्तान में उन्हें जिंदा पीर के रूप में ज्यादा देखा जाता है। भारत में झूलेलाल के मंदिर बनाए जाते हैं, लेकिन पाकिस्तान में हजरत लाल शाहबाज कलंदर को ही झूलेलाल माना जाता है। पाकिस्तान में सिंधू नदी के किनारे उनकी याद में 40 दिन का मेला लगता है। पाकिस्तान में भी यह चर्चा होती है कि मिरखशाह हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनाने में लगा था, तभी हिन्दुओं की प्रार्थना के बाद भगवान झूलेलाल का अवतार हुआ।
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]]>The post मीलाद उन-नबी / Milad un-nabi appeared first on agaadhworld.
]]>मीलाद उन-नबी अर्थात बरावफात अर्थात हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का जन्मदिन। यह दिन पूरे धूमधाम से उत्सव के साथ और पूरी खुशी-प्रार्थना के साथ अल्लाह को याद करने का पाक दिन है। दुनिया में इसलिए अल्लाह के दूत या पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ था, ताकि दुनिया को नई राह दिखाई जा सके। इस दुनिया में, जो विभिन्न विचारों, भ्रमों में भटक रही थी, पहले से पता था कि एक अवतार होगा और हजरत मुहम्मद के रूप में दुनिया को वह फरिश्ता मिला, जिसने दुनिया के एक बड़े हिस्से को बदलकर रख दिया। एक ऐसा विचार दुनिया को मिला, जो आज भी दुनिया में मुख्य धारा का विचार है, जिसकी समकालीनता या जिस पर चर्चा कभी रुकती नहीं है।हजरत मुहम्मद का जन्म 9 रबीउल अव्वल 53 हिजरी पूर्व (20 अप्रैल 571) को मक्का शहर में हुआ था। पिता हजरत अब्दुल्लाह पुत्र के जन्म से पहले ही अल्लाह के यहां बुला लिए गए थे। जब हजरत छह वर्ष के हुए, तो माता हजरत आमना का भी साया सिर से उठ गया। दो साल के हुए तो दादा अब्दुल मुत्तलिब नहीं रहे। चाचा अबू तालिब ने आपको पाला। हजरत का जीवन बहुत संघर्षमय बीता, लेकिन उन्होंने अच्छाई की राह को नहीं छोड़ा। चचाजान के साथ व्यापार में लगे रहे। जब आपको पैगंबर होने का संदेश नहीं मिला था, तब भी आप सत्यवादी थे और लोगों के बीच अच्छे इंसान के रूप में आपकी पहचान थी। आपने 25 वर्ष की आयु में एक नेक और सम्मानित 40 वर्षीय विधवा हजरत खदीजा के साथ निकाह किया। हजरत मुहम्मद जब 40 वर्ष के हुए, तब फरिश्ते जिबरील ने आपको पैगंबर होने की सूचना दी। आपका जीवन बिल्कुल बदल गया। पाक कुरान का अवतरण शुरू हुआ।हजरत मुहम्मद पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्हें अल्लाह की रहमत से ज्ञान हासिल हो गया। उन्होंने सबसे पहले अपने करीबियों को अल्लाह का पैगाम सुनाया, ‘बुतों की पूजा छोडक़र एक ईश्वर की उपासना और बन्दगी करो, उसके अतिरिक्त कोई उपास्य नहीं और मैं ईश्वर का दूत हूं।’
सबसे पहले आपकी पत्नी हजरत खदीजा, चचेरे भाई हजरत अली, मित्र अबू बक्र और दास हजरत जैद ने इस्लाम कुबूल किया। कहा जाता है कि जिसे आज ईश्वर का घर काबा कहा जाता है, ठीक उसी जगह कभी 360 बुतों की पूजा होने लगी थी, लेकिन इस्लाम का पैगाम फैलना शुरू हुआ, तो बुतपरस्ती को जवाब मिला। लोगों ने दुनिया के मालिक के निराकार स्वरूप का महत्व समझा। नबी हजरत मुहम्मद को युद्ध भी करने पड़े, उन्हें मारने, सताने और दबाने की भी बहुत कोशिशें हुईं, लेकिन इस्लाम का झंडा बुलंद रहा। अंतत: लड़ाइयों में उलझे मक्का और मदीना में शांति बहाल हुई। एकेश्वरवाद को बहुत बल मिला। ख्याति ऐसी फैली कि लगभग पूरा अरब आपकी एक आवाज पर जान देने को तैयार हो गया। आपको इसलाम की सेवा के लिए महज 23 साल मिले थे, लेकिन आपने कमाल कर दिया। अपने आखिरी हज के बाद नबी मदीना आ गए और 63 की उम्र में 12 रबीउल अव्वल 11 हिजरी (11 जून 632) को अल्लाह ने आपको बुला लिया। वे दुनिया में अब तक के आखिरी पैगंबर हैं। उनके बाद कोई पैगंबर नहीं आया है।
मक्का के काबा में स्थित मस्जिद उल हरम वही स्थान है, जहां पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने पहली बार इस्लाम का ज्ञान प्रदान किया। मदीना में स्थित मस्जिद उन नबवी वह जगह है, जहां पैगंबर हजरत मुहम्मद अंतिम विश्राम को गए। मक्का में गरे-ए-हीरा नाम की एक गुफा भी है, जहां हजरत आया करते थे और यहीं उनकी मुलाकात देवदूत जिबरिल से हुई थी। जिबरिल ने ही उन्हें संदेश दिया था कि अल्लाह ने अपने पैगंबर के रूप में हजरत का चयन किया है। कुरान की कुछ आयतें यहीं उतरी थीं। पैगंबर से जुड़ी और भी जगहें हैं, लेकिन उन सबमें उपरोक्त तीन का स्थान सर्वोपरि है।
– उलझो मत, ईश्वर को समझो, वह एक ही है, दूसरा कोई नहीं।- हठ करो, काम में लगे रहो, अपनी सफलता तक हार नहीं मानो।- मुश्किलों से न डरो, गलतियों से सीखो, तैयारी से लड़ो और जीतो।- कोशिश करो कि अधिक से अधिक लोग तुम्हारे साथ मिलें-चलें।- अल्लाह देख रहा है, हिसाब लेगा, तुम सच्चाई की राह न छोड़ो।- गरीबों और जरूरतमंदों को न सताओ और दुश्मनों को नहीं छोड़ो।- जैसे ज्ञान शक्ति जरूरी है, वैसे ही तलवार शक्ति भी जरूरी है।- अपनी पवित्रता को बरकरार रखो और न्यायपूर्ण समाज बनाओ।- ज्यादा तर्क मत करोगे, उलझ जाओगे। अल्लाह का पैगाम मानो।- तुम्हारे विचार सही हैं, तुम सही हो, कहीं रुको मत, फैल जाओ।- कभी निराश न हो, अल्लाह पर विश्वास रखो, वही राह दिखाएगा।
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]]>रमजान का महीना खत्म हो जाता है और शव्वल महीने की शुरुआत होती है। शव्वल महीने के पहले ही दिन ईद-उल-फितर का आयोजन होता है। मिलकर इबादत, मिलकर नमाज, मिलकर खुशियां, मिलकर नए कपड़े, मिलकर पकवान से ही ईद-उल-फितर का आयोजन सफल होता है। यह सामाजिक मिठास और मेलजोल का एक ऐसा दिन है, जिसका इंतजार पूरे दुनिया के मुस्लिमों को होता है। किसी मुस्लिम बहुल देश में एक दिन, तो किसी देश में तीन दिन की छुट्टी रहती है।
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]]>हालांकि शब-ए-कद्र की तारीख क़ुरआन में दर्ज नहीं है, अत: इस्लाम में अलग-अलग मत हैं। कई विद्वानों का मत है कि रमजान के 23वें दिन ही क़ुरआन का अवतरण शुरू हुआ था।
सऊदी अरब के रेगिस्तानी इलाके मक्का के नूर पहाड़ पर हिरा नाम की गुफा में क़ुरआन का अवतरण शुरू हुआ था। नूर पहाड़ अर्थात रोशनी का पहाड़ देखने से ऐसा लगता है कि एक पर एक दो पहाड़ रखे हों। इस पहाड़ पर न पानी है और न कोई पौधा। इसी जगह सूनसान में हिरा गुफा है, जहां पहुंचने के लिए 1200 कदम चलना और चढऩा पड़ता है। इस गुफा की लंबाई 12 फीट है और चौड़ाई 5.3 फीट है। यहां पैगंबर साहब का काफी समय ध्यान करते बीता था। यहीं उनकी मुलाकात देवदूत से हुई और यहीं उन्हें पैगंबर या रसूल होने का ज्ञान हुआ। ऐसा बताया जाता है कि इस जगह को देखने प्रतिदिन लगभग 5000 लोग आते हैं।
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]]>The post आखिरी चा-शुंबा / aakhri-cha-shumba appeared first on agaadhworld.
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]]>The post Tajiya / ताजिया appeared first on agaadhworld.
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]]>दुनिया भर में विभिन्न संस्कृतियों के बीच बसे मुसलमानों के बीच सारे भेद मिटा देना। मक्का में सबके लिए एक ही व्यवस्था है, सबको एक ही तरह से रीति-रिवाज निभाने पड़ते हैं। अमीर-गरीब, काले-गोरे का कोई भेद नहीं रहता। सारे लोग एक तरह-से सफेद कपड़े में नजर आते हैं। उनमें एकता स्पष्ट दिखती है और वे एकता और त्याग-इबादत का भाव लेकर अपने-अपने घर लौटते हैं और दूसरों को हज के लिए प्रेरित करते हैं।
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