आखिरी चा-शुंबा
यह मुस्लिमों के लिए महत्वपूर्ण दिन है। आखिरी चा-शुंबा का अर्थ है – इसलामिक कलेंडर के दूसरे महीने सफर का आखिरी बुधवार। यह दिन विशेष रूप से सूफी बिरादरियों में मुबारक माना जाता है। अजमेर शरीफ इत्यादि में यह उत्सव का दिन है। इस दिन को लेकर दो मत मिलते हैं – एक मत यह है कि इस दिन पाक पैगंबर मोहम्मद साहब बीमार पड़ गए थे। दूसरा मत यह है कि इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब बीमारी के बाद बिस्तर से उठे थे, उन्होंने स्नान किया था और अनंत-अथाह शक्तिमान अल्लाह की इबादत-खिदमत की थी। पहले मत के अनुसार, इस दिन बलाएं, मुसीबतें, मुश्किलें दुनिया में आती हैं, क्योंकि पैगंबर साहब की सेहत ठीक नहीं रहती। अत: इस दिन विशेष इबादत-नमाज का विधान है। दूसरी ओर, जो यह मानते हैं कि इस दिन पैगंबर साहब की सेहत ठीक हुई थी, वे बिस्तर से उठकर इबादत को गए थे, वे इस दिन को खुशी-खुशी मनाते हैं और अल्लाह के सम्मान में विशेष इबादत व नमाज पेश करते हैं। इस दिन लोग दुआ करते हैं कि हे अल्लाह हमें मुसीबतों, बीमारियों, मुश्किलों और बलाओं से बचाना।
ख्वाजा गरीबनवाज ने अपनी आंखों से वो देखा था
भारत के महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जिन्हें सुल्तान-अल-हिन्द भी कहा जाता है, इस दिन को महत्वपूर्ण मानते थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपनी खुली आंखों से देखा था कि इस दिन बलाएं, मुसीबतें, मुश्किलें दुनिया में भेजी जा रही थीं। वैसे तो इंसान की जिंदगी में और दुनिया में मुसीबतें आती रहती हैं, लेकिन मान्यता के अनुसार, आखिरी चा-शुंबा वह दिन है, जब दुनिया में मुसीबतें ज्यादा संख्या में उतरती हैं। गरीबनवाज सहित ऐसे पांच सूफी संत हैं, जिन्हें कुतुब भी कहा जाता है, वे अपने-अपने समय में इस दिन के गवाह रहे हैं और इन सभी ने इस दिन को इबादत करते खुशी-खुशी गुजारने की नसीहत दी है।