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Ramnavmi - agaadhworld

रामनवमी

राम जन्म क्यों हुआ?

 हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी ने जिस कार्य के लिए जन्म लिया था, वह कार्य पूरा हो गया था। शासक जाति या राजाओं का अहंकार न के बराबर हो गया था, इसलिए दशरथ जैसे राजा हुए, जो साधुओं, संतों का बहुत पूजन-सम्मान करते थे। जनक जैसे राजा हुए, जिनका दरबार ज्ञानियों, मुनियों, ऋषियों से भरा रहता था। ऐसे सरल राजा दशरथ के यहां राम जी का सबसे बड़े पुत्र के रूप में जन्म हुआ। चैत्र नवमी का यह दिन रामनवमी के रूप में संसार में मनाया जाता है।
मानव जाति को अनुशासित करने में परशुराम ने बड़ा योगदान दिया था, लेकिन मानव जाति के सामने जीवन के सभी स्तर का आदर्श स्वरूप दिखाने के लिए राम जी का जन्म हुआ। वे सातवें विष्णु अवतार थे। राम जी का जीवन बहुत ही सामान्य, लेकिन आदर्श था। उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा जाता है।

राम से पहले सीता क्यों ?

राम जी ने अपने जीवन को सामान्य बनाए रखने में पूरा जीवन लगा दिया, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि सीता जी ने जन्म के बाद से ही अपनी शक्ति को दर्शाना शुरू कर दिया था। जनकपुर राज्य संचालन में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो चुकी थी। सीता को भी विष्णु अवतार का एक भाग माना जाता है। छठे अवतार परशुराम जी और सातवें अवतार राम जी की भेंट बहुत बाद में सीता स्वयंवर के धनुष के टूटने के बाद हुई, लेकिन परशुराम जी और सीता जी की भेंट पहले हो चुकी थी। शंकर जी का धनुष परशुराम जी ने जनक को रखने के लिए दिया था, और यह अद्भुत धनुष किसी से उठता नहीं था, लेकिन सीता जी के लिए वह खिलौने की तरह था। पिता जनक भी समझ गए थे कि सीता कोई सामान्य राजकुमारी नहीं हैं। इसलिए उन्होंने स्वयंवर में यही शर्त रखी कि जो भी शंकर जी के धनुष को उठाकर उसपर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, सीता का विवाह उसी से होगा।
सीता स्वयंवर के समय राम जी ही धनुष उठाने में सफल हुए। प्रत्यंचा चढ़ाते हुए धनुष टूट गया। धनुष टूटने से परशुराम जी बहुत क्रोधित हुए और उनका पहली बार राम जी से सामना हुआ।

रामचरित मानस में परशुराम जी की गलत छवि क्यों ?

गोस्वामी तुलसीदास लिखित रामचरित मानस में परशुराम जी का चरित्र ठीक से वर्णित नहीं है। गोस्वामी जी ने परशुराम जी का महत्व समझने या दर्शाने में कमी छोड़ दी है। ऐसा लगता है कि वे यह भूल गए थे कि परशुराम जी विष्णु जी के छठे अवतार थे, उन्होंने लक्ष्मण जी के मुख से परशुराम जी का खूब उपहास उड़ाया है। परशुराम और लक्ष्मण का जो वार्तालाप है, वह कहीं से भी श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता। राम जी के विवाह की खुशी में तुलसीदास जी ने लोगों को हंसाने के लिए हास्यास्पद वार्तालाप का प्रसंग जोड़ दिया है।
केवल रामचरित मानस की दृष्टि से आप देखें, तो परशुराम जी को अत्यंत क्रोधी, अहंकारी, साधुताहीन, बड़बोले, आत्मप्रशंसक, दयाहीन, निर्मम, तुनकमिजाज के रूप में दर्शाया गया है। यह ठीक नहीं है। इतना ही नहीं, तुलसीदास जी ने राम जी द्वारा क्षमा मांगने के क्रम में लक्ष्मण जी के महत्व को भी गिरा दिया है। लक्ष्मण को दुधमुंहा कहा है, बेसमझ, बालक मानकर बर्रे से तुलना की है।

परशुराम ने राम को सौंपी सत्ता

 परशुराम जी को जब राम जी की बातें प्रभावी लगती हैं, तो वे उन्हें आजमाना चाहते हैं। तुलसीदास जी ने लिखा है –
राम रमापति कर धनु लेहू। खैंचहु मिटै मोर संदेहू।
देत चापु आपुहिं चलि गयऊ। परसुराम मन बिसमय भयऊ।
परशुराम जी ने अपना धनुष आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह विष्णु जी का धनुष थामिए और मेरे संदेह को मिटाइए। धनुष विष्णु जी के अवतार राम जी के पास स्वत: ही चला गया। इससे परशुराम जी को बहुत आश्चर्य हुआ। और वे जान गए कि विष्णु का नया अवतार धरती पर आ चुका है। हालांकि यह अवतार वाली बात तुलसीदास जी नहीं करते। यहां रामायण में परशुराम जी की भूमिका समाप्त हो जाती है। वे पूर्ण तपस्वी रूप में चले जाते हैं।
खैर, संकेत यही है कि विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने जब विष्णु जी का धनुष आगे बढ़ाया, तो वह स्वत: ही अपने सातवें अवतार राम जी के हाथों में चला गया। अब युग संचालन का भार राम जी पर आ गया। अवतार के रूप में वे दुनिया में अपने ज्ञानियों-भक्तों को ज्ञात हो गए।

राम अवतार का महत्व क्यों ?

हिन्दू संस्कृति के अनुसार, राम का संसार में अवतार सबसे श्रेष्ठ माना गया है। सारी मर्यादाओं का पालन करते हुए राम जी ने अपना जीवन बिताया। पुत्र बने, तो सौ प्रतिशत पुत्र। भाई बने, तो सौ प्रतिशत। वनवासी बने, तो सौ प्रतिशत। राजा बने, तो सौ प्रतिशत राजा। ऐसे राजा, जिसके लिए अपना जीवन किसी महत्व का नहीं है। जो भी है केवल प्रजा का है। ऐसा राजा जो केवल प्रजा के अधीन है। जिसके सारे-सुख-दुख प्रजा के अधीन हैं। वह प्रजा में ही समाहित है, यहां तक कि उसका अपना जीवन भी महत्व नहीं रखता। व्यक्तित्व बचता है, तो केवल राजा का। एक ऐसा राजा, जिसे हर पल अपनी प्रजा की चिंता है। वह अपने व्यवहार से इतना अच्छा है कि वह कभी धोखा नहीं खाता। कोई उसे धोखा देने के बारे में सोच नहीं सकता। वह अपने प्रियजनों को अभयदान देता है। उसके राज्य में खुशियां ही खुशियां हैं, भले ही वह अपने जीवन में कभी-कभी दुखी हो जाता हो। वह आर्य संस्कृति को समर्पित राजा है। वह वेद और देवताओं की दया पर आधारित राजा है।
राम जी की निंदा भी होती है। सीता का त्याग करने पर राम जी की निंदा होती है, लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि राम जी राजा के पद को किस ऊंचाई पर ले जाना चाहते थे। राजा को प्रजा के सुख के लिए अपने परिवार के त्याग के लिए भी तैयार रहना चाहिए। राजा रहते हुए भी राम जी का जो त्याग है, वह संसार में अतुलनीय है। वे चरित्र और एक पत्नीव्रत होने की मर्यादा को कभी खंडित नहीं करते।

राम जी के मुख्य संदेश

1 – माता और पिता का सम्मान व उनकी आज्ञा सर्वोपरि है।
2 – अगर किसी को चाहो, तो पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ।
3 – वचन से पीछे मत हटो, संसार के सुख के लिए जीओ।
4 – चरित्र की श्रेष्ठता रखो, मर्यादाओं को कभी पार न करो।
5 – सुधार का कोई भी उपाय नहीं बचे, तभी शस्त्र उठाओ।
6 – मात्र मनुष्य ही नहीं, अन्य जीवों के साथ भी मित्रवत रहो।
7 – दिखावा मत करो, समय पर ही अपनी शक्ति आजमाओ।
8 – संयमी बनो, मीठा बोलो, क्रोध पर काबू रखो, क्षमा करो।
9 – पापियों को सुधारने पर ध्यान लगाओ, पाप का अंत करो।
10 – अच्छे लोगों को साथ लेकर अपना सशक्त दल बनाओ।

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