दुर्लभ दर्शन : जगद्गुरु वल्लभाचार्य जी की पावन जन्मस्थली चम्पारण्य में श्रीकृष्ण और राधा जी की जीवंत प्रतिमा के सुखद दर्शन। देखकर ऐसा लगता है, घंटों निहारते रहें।
स्वागत द्वार : छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से पूरब-दक्षिण की ओर 46 किलोमीटर दूर, करीब एक घंटे की दूरी पर जगद्गुरु वल्लाभाचार्य का प्राकट्य स्थान है।
मनोरम प्रांगण : अनेक मंदिरों से सज्जित जन्मस्थल का मुख्य गलियारा अत्यंत मनोरम है। यहीं ईस्वी 1479 में जगद्गुरु वल्लभाचार्य जी का पावन जन्म हुआ था।
मनोरम दरबार : मूर्तियों और झांकियों से शोभायमान सुंदर सभागार भगवान का दरबार है। जहां एक ही समय में हजारों भक्त बैठकर प्रवचन सुन सकते हैं। ध्यान कर सकते हैं।
जय-जय गर्भगृह : संभवत: यह वही मूल स्थान है, जहां कृष्ण भक्ति के आदर्श वल्लभाचार्य जी का प्राकट्य हुआ था। यहां कृष्ण गोपाल के दर्शन करना बहुत सौभाग्य की बात है।
भगवान से मिलन : परम भक्त वल्लाभाचार्य जी और भगवान श्रीकृष्ण के यहां साथ दर्शन सुलभ हैं। यह भक्त और भगवान के मिलन की अद्भुत और यादगार झांकी है।
उंगली पर गोवर्धन : एक अद्भुत झांकी, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा रखा है, ताकि अपने गोकुलवासियों को बारिश से बचा सकें।
एक यमुना यहां भी : महानदी से जुड़ा एक जलस्रोत, यमुना जैसा प्रवाहमान है। धन्य है यह भूमि, जहां आंध्रप्रदेश से काशी जाते परिवार में वल्लभाचार्य जी का जन्म हुआ था।
मंदिर और घाट : यहां बहने वाली यमुना के किनारे सुंदर मंदिर है और घाट भी, जहां प्रेमी बहुत भाव से आते हैं। विवाह के लिए वर-वधू देखने का कार्य भी यहां सफल होता है।
गौपालन का क्षेत्र : यहां प्रसन्नमन गौवंश को जल से भरी नदी को पार करते देखना सुखद अनुभव है। लगता है, मानो श्रीकृष्ण ही गौवें हांकते ला रहे हैं और अभी गूंज उठेगी बांसुरी।
कृष्ण और रास : मानो यहीं गोकुल, वृंदावन हो। जहां श्री वल्लाभाचार्य जैसे भक्त होंगे, वहां श्रीकृष्ण को आना ही होगा और श्रीकृष्ण आएंगे, तो रासलीला के दृश्य भी साथ लाएंगे।