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श्रुति पंचमी : जैन ज्ञान महोत्सव

यह धर्म ग्रंथों और ज्ञान की पूजा-सम्मान का दिन है। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के निर्वाण के 683 वर्ष बाद तक एक भी जैन ग्रंथ लिखित अवस्था में नहीं था। ज्ञान की श्रुति परंपरा का समय था। लोग सुनाकर और सुनकर ही ज्ञान का आदान-प्रदान करते थे। कागज का आविष्कार नहीं हुआ था। पत्थरों और ताड़पत्र पर लिखने की परंपरा शुरू हो चुकी थी, किन्तु यह सत्य है कि जैन परंपरा में किसी ग्रंथ का न लिखा जाना, विद्वानों के लिए कठिनाई उत्पन्न कर रहा था। जैन धर्म दर्शन-ज्ञान को श्रुति कहा जाता था और जिसके 12 विशाल अंग थे। महावीर के निर्वाण के समय उनके शिष्यों की स्मरण शक्तिप्रबल थी, तो उन्होंने काफी समय तक ज्ञान को श्रुति अवस्था में ही अक्षुण रखा। किन्तु धीरे-धीरे क्षरण होने लगा, मुनि भी मूल ज्ञान को भूलने लगे। समस्या और विवाद की स्थिति बनने लगी। तब एक प्रसिद्ध और शुद्ध मुनि हुए गुरु धरसेनाचार्य जी। वे गुजरात में गिरनार पर्वत की चंद्र गुफा में अध्ययन-मनन-ध्यान में लीन रहते थे। आपके ही मन में जैन श्रुतियों को लिखने-लिखवाने का विचार उत्पन्न हुआ।
उन्होंने तेज स्मरण शक्ति और विद्वान मुनियों की खोज शुरू की और उनकी बात मुनि अर्हदबलि वात्सल्य से हुई। मुनि अर्हदबलि ने ही अपने अति बुद्धिमान शिष्यों – पुष्पदंत एवं भूतबलि को धरसेनाचार्य जी के पास भेजा। दोनों शिष्यों की परीक्षा हुई। दोनों सफल हुए। दोनों को धरसेनाचार्य जी ने वह जैन ज्ञान प्रदान किया, जो लिपिबद्ध किया जाना था। गुरु से ज्ञान लेकर दोनों शिष्यों ने अंकलेश्वर, गुजरात में चातुर्मास किया और उसके बाद मुनि पुष्पदंत कर्नाटक चले गए और मुनि भूतबलि तमिलनाडु। दोनों मुनियों ने दक्षिण भारत में रहते हुए ६ खंडों वाले विशाल ग्रंथ – ‘षटखण्डागम’ की रचना की।

‘षटखण्डागम’ ताड़पत्र पर लिखा गया था और इसे अंतिम रूप से तैयार करके ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी के दिन समाज को समर्पित किया गया। इसी दिन जैन समाज बहुत ही पवित्रता और धूमधाम से श्रुति पंचमी मनाता है। अपने ग्रंथों की इस दिन पूजा करता है। इस दिन जैन शास्त्रों का पाठ किया जाता है।


श्रुति परंपरा से क्षति

जैन धर्म त्याग-तपस्या को सर्वोपरि मानता है। आज भी जैन मुनि श्रुति परंपरा को ज्यादा महत्व देते हैं, किन्तु यह सच है कि श्रुति परंपरा में भगवान महावीर के बाद के 600 वर्षों में जैन धर्म ने अपना बहुत सारा ज्ञान गंवा दिया। परंपरा में जो नए मुनि-साधु हुए, वे ज्ञान के ज्यादातर अंग को भूल गए। ऐसा अनेक विद्वान कहते हैं कि जैन ज्ञान के बारह अंगों में से केवल एक अंग ही अक्षुण बचा है।


श्रुति पंचमी से हम क्या सीखें?

१ – अच्छी बात, अच्छे ज्ञान को लिपिबद्ध कर लेना चाहिए।
२ – सुने-सुनाए ज्ञान-सूचना पर लोग कम विश्वास करते हैं।
३ – अपने धर्म ग्रंथों को हर हाल में सुरक्षित रखना चाहिए।
४ – धर्म ग्रंथों का आदर होना चाहिए। सुफल लेना चाहिए।
५ – उन ज्ञानियों को आदर दें, जो ज्ञान को लिपिबद्ध करते हैं।
६ – जिन ग्रंथों से आप सहमत नहीं, उन्हें भी संरक्षित करें।
७ – किसी भी धर्म पुस्तक या पुस्तकालय पर हमला न करें।
८ – समझदारी-संयम से काम लें, शब्द का उत्तर शब्द से दें।
९ – आपकी वर्तमान ज्ञान-विद्वता में ग्रंथों का बड़ा योगदान है।
१० – सभ्यता भटकेगी, तो अंतत: ग्रंथ सबको मार्ग दिखाएंगे।

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