बैसाखी : सिक्खों का जन्मदिन

सिक्ख धर्म के लिए बैसाखी का दिन खास महत्व रखता है। सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने इस दिन अर्थात 13-14 अप्रैल 1699  को खालसा की स्थापना की थी। इसी दिन उन्होंने अपने शिष्यों की परीक्षा ली थी और अपने शिष्यों से सिर मांगा था। बारी-बारी पांच शिष्य सिर देने के लिए आगे आए, उन्हें अंदर कमरे में ले जाकर बलि नहीं दी गई, बल्कि बकरे की बलि दी गई। ये पांच प्रथम शिष्य जो सिर दान के लिए आगे आए थे, वे पंच प्यारे कहलाए। गुरु गोविंद सिंह जी ने इन्हें सिंह की उपाधि दी। उनके लिए केश, कंघा, कड़ा, कृपाण, कच्छा को अनिवार्य बनाया।

वैशाख महीने में मनाई जाने वाली बैसाखी खुशियों का समय है। यह एक लोकपर्व भी है, जब फसल पक जाती है, तब किसान खुशी से झूम उठते हैं और मिलकर उत्सव मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा प्रांत में यह खुशी दोगुनी हो जाती है, जब फसल की खुशी के साथ खालसा की स्थापना का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन सिक्खों के लिए सामूहिक जन्मदिन है। वे नाच-गाकर, पूजा करके, सबद कीर्तन करके, पकवान बनाकर, लंगर का आयोजन करके इस दिन को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं।

 

 


पुरुष ‘सिंह’ और महिलाएं ‘कौर’ क्यों ?

यह प्रश्न सहज ही सबके मन में आता है कि सिक्खों के नाम के साथ जुड़े रहने वाले सिंह और कौर शब्द का अर्थ क्या है। बैसाखी के दिन ही सिक्ख पुरुषों को ‘सिंह’ की उपाधि मिली थी और उनके नाम के साथ ‘सिंह’ जोडऩा अनिवार्य किया गया था। दूसरी ओर, सिक्ख महिलाओं के नाम के साथ ‘कौर’ शब्द जोडऩा शुरू किया गया था।  इस दिन से पहले सिक्खों के नाम अलग, अलग हुआ करते थे। हम कह सकते हैं कि उनके नामों पर धर्म की छाप नहीं पड़ी थी, लेकिन बैसाखी के दिन उनके नाम धर्म के अनुरूप स्पष्ट हो गए। सिंह शब्द का अर्थ स्पष्ट है। सिंह शक्ति, साहस और निडरता का प्रतीक है। दूसरी ओर, ‘कौर’ है शेरनी। ‘कौर’ शब्द का एक अर्थ राजकुमारी या शहजादी भी है। अर्थ यह हुआ कि सिक्ख धर्म में पुरुष सिंह के समान हैं और महिलाएं शेरनी के समान।


खालसा की स्थापना क्यों हुई?

खालसा पंथ की स्थापना तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक-धार्मिक विवशता के कारण हुई। उस दौर में सिक्खों को धार्मिक आधार पर प्रताडि़त किया जाता था। उनकी हत्या की जाती थी, उन्हें कैद में डाल दिया जाता था। मुस्लिम धर्म की गलत हिंसक व्याख्या से प्रेरित मुस्लिम शासक सिक्खों के घोर विरोधी थे। इन शासकों ने सीधे सिक्ख गुरुओं को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया था। तो जो पंथ प्रेम भाव के साथ गुरु नानकदेव जी ने शुरू किया था, उस धर्म को बचाने के लिए ही गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म का सैन्यीकरण किया। सिक्खों को वीर बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने सिंहों से कहा कि एक ओर शत्रुओं को धूल चटाओ, तो दूसरी ओर, अपने विश्वासों, लोगों और गरीबों की रक्षा करो। उन्हीं की कल्पना थी कि सच्चा सिक्ख जहां एक ओर संत के समान होगा, वहीं दूसरी ओर वह सैनिक भी होगा। एक-एक सैनिक सौ-सौ शत्रुओं के बराबर होगा। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि सिक्ख धर्म के बचने के पीछे एक बड़ा कारण खालसा है। खालसा न होता, तो सिक्ख धर्म नष्ट हो गया होता। अत: सिक्खों के लिए खालसा का जन्मदिन बैसाखी पर्व सर्वोच्च महत्व रखता है।

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