वल्लभाचार्य जयंती
परिवार में रहकर भी आदर्श संत
भारतीय चिंतन की वैष्णव धारा में ईश्वर की पूजा के अनेक विधियां बताई गई हैं। अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने तरह-तरह से मार्ग बताकर मोक्ष और ईश्वर का प्यार पाने का उपाय बताया है। कृष्ण भक्ति धारा में वल्लभाचार्य (1479-1531) का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि उन्होंने कहा कि ईश्वर को पाने के लिए घर छोडऩा जरूरी नहीं है, गृहस्थी में रहकर भी व्यक्ति अपने ईश्वर की भक्ति में लीन हो सकता है। कृष्ण भक्ति धारा में पुष्टि मार्ग के रूप में वल्लभाचार्य के चिंतन को जाना जाता है। कृष्ण भक्ति की विशेष शैली, पद रचना, भजन, कीर्तन, गायन को उन्होंने लोकप्रिय बना दिया। भारतीय चिंतन इतिहास में वल्लाभाचार्य को भक्ति काल का एक आदर्श स्तंभ माना जाता है, उनके पीछे भक्तिरस में पगे कवियों की एक पूरी पीढ़ी आगे बढ़ी। उनके 84 प्रबुद्ध शिष्यों में सूरदास, कृष्णदास सबसे प्रसिद्ध हैं।
वल्लभाचार्य और चम्पारण्य
वल्लभाचार्य का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य में रायपुर के करीब चम्पारण्य नामक जगह पर महानदी के किनारे हुआ था। उनका जन्म विक्रम संवत के अनुसार संवत 1535 में वैशाख कृष्ण एकादशी को हुआ था। पिता का नाम श्रीलक्ष्मणभट्ट जी और माता का नाम इलम्मागारू था। जैसा कि माता-पिता के नाम से संकेत मिलता है – वे तेलुगुभाषी थे और वाराणसी में जब यवनों का आतंक बढ़ा, तब उनके परिवार ने वहां से पलायन किया। पलायन और अल्प समय के लिए चम्पारण्य में रुकने के दौरान ही वल्लभाचार्य जी का जन्म हुआ। आज यह स्थान जगत प्रसिद्ध है। वल्लभाचार्य जी का विवाह पंडित देवभट्ट जी की कन्या महालक्ष्मी से हुआ। उनके दो विद्वान भक्त पुत्र भी हुए – गोपीनाथ जी और वि_लनाथ जी। गोकुल में गोवद्र्धन पर्वत पर ही वल्लभाचार्य जी ने अपनी गद्दी स्थापित की। वल्लभाचार्य जी का संप्रदाय आज भी चल रहा है और गृहस्थों के बीच यह सबसे प्रिय संप्रदाय है। इसमें भाव के जोर पर भक्ति होती है और इसमें आराध्य कृष्ण ही सबकुछ हैं।