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Christianity – agaadhworld http://agaadhworld.in Know the religion & rebuild the humanity Tue, 23 Apr 2024 05:03:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=4.9.8 http://agaadhworld.in/wp-content/uploads/2017/07/fevicon.png Christianity – agaadhworld http://agaadhworld.in 32 32 होली / Holi http://agaadhworld.in/holi/ http://agaadhworld.in/holi/#respond Tue, 19 Mar 2019 18:37:09 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3908 आई रंगों की बहार  ये रंग क्या बोलते है? : रंग संदेश देते हैं कि वही जिंदगी हैं। रंग जीवन

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आई रंगों की बहार

 ये रंग क्या बोलते है? : रंग संदेश देते हैं कि वही जिंदगी हैं। रंग जीवन में उमंग की निशानी हैं। रंग जीवन में उत्सव का प्रतीक हैं। रंग जीवन में रस का प्रतीक हैं। रंग जीवन में खुशी का संकेत हैं। रंग प्रकृति का उपहार हैं। रंग ईश्वर के वरदान हैं। रंग सौंदर्य के संरक्षक हैं। रंग समृद्धि-संपन्नता के अवदान हैं। ऐसा माना जाता है कि जिसके पास जितने ज्यादा रंग है, वह उतना ही ज्यादा खुश या समृद्ध है। रंग हमें जिंदगी और प्रेम की ओर खींचकर लाते हैं। रंग हमें जवानी और रवानी की ओर खींचकर लाते हैं। रंगों का त्योहार तो होना ही चाहिए, इसलिए भारत में होली सदियों से मनाई जाती है। वैसे तो समाज में सुविधा को देखते हुए होली एक या दो दिन मनाई जाती है, लेकिन भारत में बसंत पंचमी से रंग पंचमी तक होली मनाने की परंपरा है। बसंत पंचमी या सरस्वती पूजा के साथ ही एक दूसरे को अबीर, गुलाल, रंग लगाने का क्रम शुरू हो जाता है और जो होली के बाद पडऩे वाली रंगपंचमी तक चलता है।
पहले भारत में होली इतनी लंबे समय तक मनाई जाती थी और होली के गीत गाने की भी परंपरा थी। ऐसे गीत जो सामाजिक मिलन-मस्ती का संदेश देते हैं। ऐसे गीत जो हास्य के सहारे सामाजिक संदेश देते हैं। ऐसे गीत जो सामाजिक भेदभाव को मिटाने की नसीहत देते हैं। ऐसे गीत, जिनमें ईश्वर को भी अपने आसपास मानकर संवाद किया जाता है। होली तरह-तरह के पकवान खाने-खिलाने का भी अवसर है।

क्या रंगों का भी कोई धर्म होता है?

हिन्दू – लाल, भगवा, सफेद
यहूदी – नीला
ईसाई – सफेद
इस्लाम – हरा
हिन्दू धर्म में लाल, भगवा या सफेद वस्त्र को शुभ माना जाता है। यहूदी नीले रंग को पसंद करते हैं। ईसाइयों में सफेद रंग ज्यादा शुभ है। इस्लाम में हरे को ज्यादा शुभ माना जाता है। वैसे ईसाई धर्म में अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग रंग का महत्व है, लेकिन क्या वाकई धर्म से रंगों का कोई पुख्ता रिश्ता है? नहीं धर्मों ने अपनी सुविधा या प्रचार के हिसाब से रंगों का चयन किया है। एक दूसरे से अलग दिखने की होड़ में धर्म अपना एक रंग रखने की कोशिश करते हैं। इसे मानने में कोई हर्ज नहीं कि ईश्वर ने सारे रंग दिए हैं, उसे हर रंग प्रिय है, लेकिन रंगों का बंटवारा इंसानों ने किया है। वैसे यह भी सच है कि सभी धर्मों में सफेद रंग का अपना विशेष महत्व है। वास्तव में सफेद रंग ही अध्यात्म का अपना रंग है। एक ऐसा रंग, जिसमें सारे रंग छिपे होते हैं। दुनिया का हर धर्म सफेद को धार्मिक कार्य के लिए अनुकूल मानता है।

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GoodFriday http://agaadhworld.in/goodfriday/ http://agaadhworld.in/goodfriday/#respond Thu, 29 Mar 2018 19:27:14 +0000 http://agaadhworld.in/?p=4029 गुड फ्राइडे  वह शुक्रवार… जब दुनिया जाग उठी  गुड फ्राइडे वह दिन है, जब ईसाई या क्रिश्चियन धर्म का सूर्य

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गुड फ्राइडे

 वह शुक्रवार… जब दुनिया जाग उठी

 गुड फ्राइडे वह दिन है, जब ईसाई या क्रिश्चियन धर्म का सूर्य संसार में पूरी तरह प्रकाशित होकर निकला। जब एक नए उदार-दयावान धर्म की नई यात्रा शुरू हुई। जब दुनिया ने यह जाना कि प्रेम क्या होता है, जब दुनिया ने यह जाना कि क्षमा क्या होती है, जब दुनिया ने जाना कि मानव व्यवहार में चमत्कार कैसे संभव होता है। यह वह दिन था, जब जीसस या ईसा मसीह का मनुष्य स्वरूप… ईश्वर या ईश्वर पुत्र के स्वरूप में बदल गया। अरब की दुनिया पूरी तरह से अचंभित हुई। रोमन साम्राज्य ने ईसा मसीह को दंड देकर अपने अंत के दिन प्रशस्त कर लिए।
यह दिन गुड या शुभ इसलिए है, क्योंकि इस दिन ईसा मसीह का प्रेम व व्यवहार देखकर लोग जागे और आज भी जागे हुए हैं। यह ब्लैक फ्राइडे भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन ईसा मसीह को तरह-तरह से यातनाएं देकर सूली पर चढ़ा दिया गया था और लगभग छह घंटे सूली पर रहने के उपरांत उन्होंने कहा था, ‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तुम्हें अर्पित करता हूं।’ लेकिन इस प्रसिद्ध वाक्य से पहले एक और प्रसिद्ध वाक्य भी है, ईसा ने लाख यातनाएं सहकर भी यही प्रार्थना की – ‘हे ईश्वर, इन्हें क्षमा करना इन्हें पता नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं।’

ईसा मसीह से जुड़े सवाल ?

सवाल – क्यों चढ़े सूली पर ?
जवाब – दुनिया को दिखाना था कि विपरीत हालात में भी प्रेम और क्षमा का साथ न छोडऩा।


सवाल – ईसा क्या चाहते थे?
जवाब – अच्छाई के लिए कुर्बान हो जाओ, बोलो मत, शिकायत मत करो, अच्छाई की राह पर खुद जीकर दुनिया और ईश्वर को दिखाओ।


सवाल – उन पर क्या आरोप लगा ?
जवाब – रोमन साम्राज्य ने उनके प्रचार को अपने धर्म के विरुद्ध माना। आरोप था कि ईसा ने स्वयं को ईश्वर का पुत्र कहा। आरोप था कि उन्होंने कहा, दुनिया में मेरे परमपिता ईश्वर की सत्ता होगी।


सवाल – क्या उन्हें पता नहीं था कि वे जो प्रचार कर रहे हैं, वह राजसत्ता को मंजूर नहीं है?
जवाब – ईसा को अहसास हो गया था कि वे पकड़े जा सकते हैं, लेकिन वे निडर थे। उनके शिष्य सावधान थे।


सवाल – ईसा को कैसे पकड़ा गया?
जवाब – ईसा को धोखे से ही पकड़ा गया, यह धोखा उनके एक पट शिष्य जुडस ने दिया था।


सवाल – ईसा को कांटे का मुकुट क्यों पहनाया गया?
जवाब – ताकि उन्हें कष्ट दिया जा सके, ताकि ईश्वर पुत्र होने के दावे का मजाक बनाया जा सके।


सवाल – क्या वे अपना सलीब ढोकर ले गए थे?
जवाब – तब जिसे मौत की सजा मिलती थी, वह लकड़ी का भारी सलीब खुद कंधे पर उठाकर ले जाता था।


सवाल – और उन्हें क्या यातनाएं दी गईं?
जवाब – उन्हें कोड़ों से पीटा गया। उन थूका गया, तरह-तरह से पीडि़त किया गया।


सवाल – सलीब पर कैसे चढ़ाए गए?
जवाब – कहा जाता है कि पहले क्रॉस सलीब से सटाकर दोनों हाथों पर कीलें ठोंकी गईं और फिर पैरों में कीलें ठोंकी गईं और सलीब को सीधा खड़ा कर दिया गया। ईसा सलीब पर जीवित ही लटके रहे।


सवाल – सलीब पर ठोंकने-लटकाने के बाद क्या हुआ?
जवाब – अथाह पीड़ा से वे छह घंटे जूझते रहे। चेहरे पर शांत भाव, धीरे-धीरे शरीर को उन्होंने स्थिर किया, वे जानते थे कि उनके हिलने से उन्हें ही कष्ट होगा।


सवाल – सलीब पर लटक कर उन्होंने क्या कहा?
जवाब – हे ईश्वर इन्हें क्षमा करना, इन्हें पता नहीं है कि ये क्या कर रहे हैं?


सवाल – ईसा के प्राण कैसे निकले?
जवाब – अथाह पीड़ा सहने के बाद उन्होंने यह कहते हुए प्राण छोड़ दिए – ‘हे पिता, मैं अपनी आत्मा तुम्हें अर्पित करता हूं।’


सवाल – उनके शरीर का क्या हुआ?
जवाब – कब्र में दफन कर दिया गया, लेकिन तीसरे दिन वह शरीर कब्र में नहीं था।


सवाल – क्या ईसा फिर जीवित हो गए थे?
जवाब – हां, वे शुक्रवार को मृत्यु के उपरांत रविवार को जीवित हो गए थे या उनके शिष्यों ने उन्हें देखा था। इस दिन बड़े ही धूमधाम से इस्टर मनाया जाता है।


सवाल – ईसा अपने शिष्यों के लिए क्या छोड़ गए?
जवाब – ईसा ने शिष्यों से कहा था कि मैं तुम्हारे लिए अपना आनंद छोड़े जा रहा हूं। यह आनंद लेकर उनके बारह शिष्य बारह दिशाओं में चले गए। वे अनायास आनंदित रहते थे और लोग उन्हें देखकर ही आनंदित हो जाते थे। शिष्यों ने भी अथाह यातनाएं झेलीं, लेकिन उनका आनंद ही ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में सहायक बना। वे सभी प्रेम और क्षमा से भरे हुए थे।


सवाल – ईसा को जब सूली पर चढ़ाया गया, तब उनकी उम्र कितनी थी?
जवाब – उनकी कुल उम्र 33 या 36 वर्ष ही थी।


सवाल – वह कौन-सा वर्ष था?
जवाब – ईस्वी सन 33 या ईस्वी सन 34 था।


सवाल – ईसा पर अत्याचार करने वाले रोमन साम्राज्य का क्या हुआ?
जवाब – ईसा संसार से विदा होने के बाद करीब 280 वर्ष तक ईसाई धर्म को खतरे झेलने पड़े, लेकिन वह दिन भी आया, जब ईस्वी सन 380 में रोमन साम्राज्य ने ईसाई धर्म को अपना लिया।

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पोप ने दुनिया को दिया संदेश कहा- जीसस खुद भी शरणार्थी थे http://agaadhworld.in/celebration-of-the-birth-of-christ-or-christmas-feast/ http://agaadhworld.in/celebration-of-the-birth-of-christ-or-christmas-feast/#respond Mon, 25 Dec 2017 09:40:18 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3393 पोप ने दुनिया को दिया संदेश कहा- जीसस खुद भी शरणार्थी थे हर्षोउल्लास के साथ पूरी दुनिया में मनाया जा

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पोप ने दुनिया को दिया संदेश कहा- जीसस खुद भी शरणार्थी थे

हर्षोउल्लास के साथ पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है क्रिसमस

प्रभु यीशु के जन्मदिन के मौके पर भारत समेत पूरी दुनिया में आज क्रिसमस पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। 24 दिसंबर की रात से हीं ‘हैप्पी क्रिसमस-मैरी क्रिसमस’ से बधाइयों का सिलसिला जारी हो गया। ‘क्रिसमस ट्री’ सजाना, सांता दूसरों को उपहार देकर जीवन में सुख हासिल करने का संदेश देते हैं।

 

वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने क्रिसमस की पूर्व संध्या पर सेंट पीटर्स बैसीलिका में ‘‘क्रिसमस ईव मास’’ मनाया और दुनिया में शांति, युद्धग्रस्त क्षेत्रों में फंसे निर्दोष लोगों की सुरक्षा, प्रवास और गरीबी जैसी समस्याओं को दूर करने की अपील की।

पोप फ्रांसिस ने वर्ष 2016 में इस्लामिक चरमपंथियों की हिंसा पर लगातार अफसोस जाहिर किया और शांति की अपील की है। प्रवासी संकट के समाधान के लिए उन्होंने यह कहते हुए यूरोप से अधिक से अधिक शरणार्थियों को शरण देने की मांग की थी कि जीसस खुद भी शरणार्थी थे।

पोलेंड से लाया गया है वेटिकन क्रिसमस ट्री

वेटिकन सिटी में सेंट पीटर्स स्कॉयर पर हर वर्ष एक विशाल एक क्रिसमस ट्री खड़ा किया जाता है और उसे बहुत श्रद्धाभाव के साथ सजाया जाता है। हर वर्ष यूरोप का कोई न कोई प्रांत यह क्रिसमस ट्री पोप को भेंट करते है। इस बार पोलेंड के मसूरिया प्रांत ने क्रिसमस ट्री भेंट किया है। ज्यादातर दो ही प्रजाती के क्रिसमस ट्री विकसित किए जाते हैं। इन दो प्रजाति के वृक्षों में पहला स्प्रूस और दूसरा फर है। 1982 में सेंट पीटर्स स्कॉयर पर क्रिसमस ट्री संजाने की परंपरा शुरू हुई थी। तब पोप सेंट जॉन पाल द्वितीय का दौर था।

वेटिकन सिटी क्या है

वेटिकन सिटी एक देश है, और खासियत यह कि दुनिया का सबसे छोटा देश है यह देश रोम शहर के बीचों-बीच स्थित है मात्र 44 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस देश में करीब हजार लोग निवास करते हैं। वेटिकन सिटी में पोप का शासन चलता है।

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christmas day http://agaadhworld.in/christmas-day/ http://agaadhworld.in/christmas-day/#respond Wed, 20 Dec 2017 18:39:49 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3379 पैगंबर जीसस के चार जन्मदिन जीसस कब जन्मे थे – 25 दिसंबर, 6 जनवरी, 7 जनवरी या 19 जनवरी। ईसाई

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पैगंबर जीसस के चार जन्मदिन

जीसस कब जन्मे थे – 25 दिसंबर, 6 जनवरी, 7 जनवरी या 19 जनवरी। ईसाई परंपरा में ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि जीसस अर्थात ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था। हालांकि यह एक मान्यता ही है। जीसस का वास्तविक जन्मदिन किसी को नहीं पता। ईसाई धर्म में ग्रेगोरियन कलेंडर के हिसाब से जीसस का जन्म 25 दिसंबर को माना जाता है, लेकिन जूलियन कलेंडर के अनुसार जीसस का जन्म 7 जनवरी को हुआ था। अर्मेनियन चर्च में 6 जनवरी को मान्यता मिली है, तो सेंट जेम्स-येरुसलम से जुड़े कुछ चर्च 19 जनवरी को जीसस का जन्मदिन मनाते हैं।
जीसस का जन्मदिन धूृमधाम से मनाने की परंपरा बाद में पड़ी है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि जिस दिन जीसस का जन्म हुआ था, उसी दिन उनको क्रूसीफाई भी किया गया था। ईसाई परंपरा में जीसस के बारे में स्पष्ट सूचनाएं कम मिलती हैं। फिर भी इसमें कोई शक नहीं कि जीसस का जन्मदिन लगभग पूरी दुनिया में 25 दिसंबर को मनाया जाता है और इसी दिन की सर्वाधिक मान्यता है। लगभग आधी दुनिया में क्रिसमस छुट्टी का दिन है।

पहली बार कब मनाया गया क्रिसमस

यह स्पष्ट है कि पहली बार क्रिसमस वर्ष 336 में रोम में मनाया गया था। पहले केवल धर्मसभाएं या मास का आयोजन होता था। लोग एक दूसरे को बधाई देते थे, लेकिन धीरे धीरे यह उत्सव में बदलने लगा और मध्ययुग में तो इसका स्वरूप ही बिगड़ गया। लोगों ने इसे खाने-पीने मौज करने का अवसर समझ लिया। बताते हैं कि 17वीं सदी में एक समय ऐसा भी आया, जब क्रिसमस के आयोजन पर पवित्रता के पक्षधर संतों ने प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि कुछ ही वर्ष बाद इसकी सही स्वरूप की वापसी हुई। बाजारवाद के दौर में विगत दशकों में यह कई जगहों पर फिर पार्टीबाजी की प्रधानता का मौका बनता जा रहा है। ईसाई धर्म में वाइन पर प्रतिबंध नहीं है, ईसा मसीह ने भी इसका प्रयोग किया था, लेकिन नशाखोरी का विरोध संत हमेशा करते रहे हैं। आज भी पवित्रता के पक्षधर संत हैं, जो प्रार्थना में ही समय बिताते हैं।

क्रिसमस का क्या है मतलब?

एक्समस या क्रिस्टमस या क्रिसमस शब्द बहुत पुराना नहीं है। ईस्वी वर्ष 1131 तक इसे क्रिस्टेस मेस्से कहा जाता था। उसके बाद वर्ष 1138 में सुधार हुआ – क्रिस्टेमासे शब्द उपयोग में आया। इसके बहुत बाद में क्रिसमस शब्द का उपयोग शुरू हुआ। क्रिसमस का अर्थ है – क्रिस्ट का मास। क्रिस्ट का अर्थ मसीहा है। मास का अर्थ है धर्मसभा या प्रार्थनासभ या सत्संग। अर्थात क्रिसमस का अर्थ हुआ मसीहा की धर्मसभा। मसीहा मतलब जीसस मतलब ईसा मसीह। वही देवपुत्र जिनका जन्म अस्तबल में हुआ था। वही देवपुत्र जिनकी माता मैरी थीं, जो जीसस के जन्म के समय कुंवारी थीं। ईश्वर ने उनके गर्भ से अवतार लिया था। देवदूत जिब्रेल ने उनके अवतार की सूचना दे दी थी, उनके घोषित-सांसारिक पिता संत जोसेफ थे।

क्रिसमस और बॉक्सिंग डे

क्रिसमस 25 दिसंबर को हंसी-खुशी, उपहार के आदान-प्रदान, घर-द्वार की सजावट, अच्छे खान-पान, पहनावे के साथ मनाया जाता है और ठीक उसके दूसरे दिन 26 दिसंबर को बॉक्सिंग डे मनाया जाता है। यहां बॉक्सिंग का अर्थ कतई मुक्केबाजी नहीं है। दरअसल इस दिन अपने सेवकों को, अपने पर निर्भर मजदूरों को, पोस्ट मैन व अन्य सहायकों को क्रिसमस बॉक्स देने की परंपरा है। बॉक्स में कोई न कोई उपहार होता है। क्रिसमस बॉक्स अपने सेवकों-सहायकों के प्रति आभार जताने का अवसर है। हालांकि ब्रिटेन से जुड़े देशों में ही यह ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। बाकी देशों में उपहार का आदान-प्रदान क्रिसमस के दिन ही हो जाता है।

सांता क्लॉज कौन है ?

सांता क्लॉज एक काल्पनिक उत्सवी चरित्र है। ईसाई धर्म में ही ऐसे अनेक संत हुए हैं, जिनको उपहार देने के लिए जाना जाता है। इन्हीं में से एक संत निकोलस भी हुए हैं। इन्हीं संत निकोलस पर एक अमरीकी कवि सी.सी. मूरे ने कविता लिखी थी –  ए विजिट। इस कविता ( वर्ष 1823) से सांता क्लॉज की एक छवि अमरीकी और कनाडा के समाज में चर्चित हुई। फिर 1881 में थॉमस नास्ट नाम के एक कार्टूनिस्ट व कैरीकेचर निर्माता ने सांता क्लॉज का एक चित्र उकेरा। यह चित्र बहुत तेजी से प्रसिद्ध हुआ। धीरे-धीरे पूरी दुनिया में यह छवि फैल गई। बाजार ने भी इसको महत्व दिया, क्योंकि इस छवि या धार्मिक मिथक के साथ उपहारों की खरीद-बिक्री जुड़ी थी।
25 दिसंबर को क्रिसमस की पूर्व संध्या यानी 24 दिसंबर की शाम से 25 दिसंबर की सुबह होने तक सांता क्लॉज द्वारा विशेष रूप से बच्चों को गिफ्ट बांटने के लिए जाना जाता है। यह पके बाल, पकी दाढ़ी वाले, चश्मा पहनने वाले बूढ़े लाल चोला धारी संत उपहारों से लैस अपने रथ में आकाश मार्ग से निकलते हैं। बच्चों वाले घरों की छत पर रुकते हैं और रसोईघर की चिमनी के सहारे घर के अंदर उतरते हैं, बच्चों के सिरहाने या पास उपहार रखते हैं और फिर चिमनी के सहारे निकल जाते हैं, दूसरे बच्चों को उपहार देने के लिए। शुभकामना देते हुए – हैपी क्रिसमस टु यू ऑल…

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Saint Andrew’s Day / संत एंड्रयू दिवस http://agaadhworld.in/the-great-saint-andrews-day/ Wed, 29 Nov 2017 18:51:24 +0000 http://agaadhworld.in/?p=3103 संत एंड्रयू : जीसस के प्रिय शिष्य संत एंड्रयू का जन्म ईसा पूर्व 5 या 6 को वर्तमान में इस्राइल

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संत एंड्रयू : जीसस के प्रिय शिष्य

संत एंड्रयू का जन्म ईसा पूर्व 5 या 6 को वर्तमान में इस्राइल के गेलिली क्षेत्र में हुआ था। जीसस अर्थात ईसा मसीह के 11 पट शिष्य थे, जिनमें संत एंड्रयू का स्थान बहुत खास था। एंड्रयू पेशे से मछुआरे थे, उनके भाई पीटर भी मछुआरे थे। दोनों भाइयों की मुलाकात जीसस से समुद्र किनारे ही हुई थी। जीसस ने दोनों भाइयों को शिष्य बनने के लिए कहा। जीसस ने कहा, मछली पकड़ना छोड़ो, मनुष्यों को धरों। अर्थात मनुष्य को समझो और अपना बनाओ।
जीसस के शुरुआती शिष्यों में दोनों भाई पीटर और एंड्रयू शामिल हो गए। दोनों भाइयों के ही स्तर के तीसरे करीबी शिष्य थे संत जाॅन। श्रद्धा निष्ठा में दोनों भाई आदर्श बन गए। जीसस के जीवन के अनेक महत्वपूर्ण मौकों के दोनों भाई गवाह रहे। बाद में दोनों भाइयों को संत की उपाधि मिली।
संत एंड्रयू जीसस के साथ अंतिम भोज में शामिल थे। इसी भोज में जीसस ने शिष्यों को बताया था कि यहाँ उपस्थित शिष्यों में से ही कोई गद्दार निकलेगा। उन्होंने जुडस को रोटी का एक टुकड़ा दिया, वही गद्दार था। जीसस के शिष्य तो 12 ही थे, लेकिन जुडस की दगाबाजी के बाद 11 ही पट शिष्य बचे।
बताया जाता है कि संत एंड्रयू उन चार शिष्यों में शामिल थे, जिन्हें जीसस ने बताया था कि वे फिर लौटेंगे। संत एंड्रयू ने ईसाई धर्म के प्रचार में अपना पूरा जीवन लगा दिया। वे वर्तमान में सोवियत या रूस के कुख्यात क्षेत्र में धर्म प्रचार के लिए भेजे गए थे। तब यह क्षेत्र आदमखोरों का क्षेत्र कहलाता था। संत एंड्रयू को जीसस की तरह क्रूसीफाई करके मारा गया था। हालाँकि उन्हें जिस फ्रेम पर बांधा या क्रूसीफाई किया गया था, वह गणित के गुणा आकार की तरह था।
आज भी उनके अवशेष ग्रीस स्थित संत एंड्रयू चर्च में दर्शनीय हैं। ईसाई संसार में संत एंड्रयू का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। 30 नवंबर को उनके सम्मान में विशेष प्रार्थना और भोज का आयोजन होता है। स्काॅटलैंड सहित अनेक जगह यह अवकाश का दिन होता है।

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sant_soul_day / संत सोल्स दिवस http://agaadhworld.in/sant_soul_day/ Mon, 30 Oct 2017 10:28:47 +0000 http://agaadhworld.in/?p=2847 सर्व संत और सर्व आत्मा दिवस / ऑल सेंट एंड ऑल सोल्स डे ईसाई कैथोलिक धारा में इस दिन का

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सर्व संत और सर्व आत्मा दिवस / ऑल सेंट एंड ऑल सोल्स डे

ईसाई कैथोलिक धारा में इस दिन का बहुत विशेष महत्व है। यह एक तरह से तीन दिन का उत्सव होता है, जब दिवंगत लोगों की आत्माओं को याद किया जाता है, दिवंगत संतों की आत्माओं को याद किया जाता है, सम्मान दिया जाता है। यह एक तरह से पूर्वजों को सम्मान देने का दिन है। उन लोगों को सम्मान देने का दिन है, जो अब हमारे बीच नहीं हैं। ईसाई धर्म भी मानता है कि आत्माएं होती हैं, वे कब्र या यहां-वहां विचरण करती हैं। वे कयामत के दिन का इंतजार करती हैं, ताकि उनका फैसला हो। इन उत्सवों को हेलोवीन भी कहते हैं। हेलो का अर्थ पवित्र भी होता है। ये दिन पवित्रात्माओं के लिए हैं, उन आत्माओं के लिए भी हैं, जो पवित्र होने की प्रक्रिया में हैं। ईसाई धर्म में यह माना जाता है कि ईसा मसीह को मानने वाला हर आदमी जीते जी जरूरी नहीं कि संत हो जाए या संत का दर्जा पा जाए, किन्तु मृत्यु के बाद यह मान लिया जाता है कि दुनिया से जाने वाला महान आत्मा था। ईसाई धर्म में कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि मृत्यु के बाद हर ईसाई संत के दर्जे में चला जाता है, उसका सम्मान होना चाहिए, उसे याद किया जाना चाहिए, उसके लिए प्रार्थना होनी चाहिए। हेलोवीन के ये तीन दिन इन्हीं पवित्रात्माओं को याद करने के लिए हैं। इन दिनों में बच्चे संत वेष धारण करते हैं, तरह-तरह के विशेष पकवान या केक बनते हैं, जिन्हें फूड ऑफ सोल्स भी कहा जाता है। केक पर विशेष आकृति बनाई जाती है, ताकि आत्माएं अपने भोजन को पहचान सकें। हेलोवीन के तीन दिन इस प्रकार से मनाए जाते हैं।

पहला दिन – ऑल हेलोज इव

अर्थात पवित्रात्मा स्मरण की पूर्व संध्या। यह माना जाता है कि इस शाम सभी दिवंगतों की आत्माएं उठ जाती हैं। उन आत्माओं के सम्मान में पहले लोग घरों से नहीं निकलते थे, घर में ही रहकर उनके लिए प्रार्थना करते थे। इस दिन युवा लोग तरह-तरह के छद्म वेष धारण करके खुशी का इजहार करते हैं। ऐसा कतई नहीं है कि यह दिन भूतहा दिन हो, यह दिन पवित्र माना गया है। ईसाई धर्म में माना गया है कि आत्माएं इस दिन किसी का बुरा नहीं करतीं, वे केवल जागती हैं और उन्हें जागने पर यह दिखना चाहिए कि उनके वंशज उन्हें याद कर रहे हैं, उन्हें दुनिया ने भुलाया नहीं है। इस दिन तरह-तरह की तंत्र क्रियाएं भी होती हैं।

दूसरा दिन – ऑल सेंट डे

अर्थात सर्व संत दिवस। इस दिन ईसाई धर्म में हुए संतों को विशेष रूप से याद किया जाता है। ईसाई धर्म में सभी लोगों को चर्च ने भले ही संत का दर्जा नहीं दिया हो, लेकिन ऐसे अच्छे लोगों की कमी नहीं रही है, जिनके दिवंगत होने के बाद यह मान लिया गया कि वे जन्नत के हकदार हैं, वे संत जैसे हैं। हर ईसाई अपने प्रिय पूर्वजों को संत जैसा ही मानते हुए उनके लिए प्रार्थना करता है। उनकी कब्र पर जाता है, कब्र सजाता है। मोमबत्ती जलाता है, उन्हें प्रिय वस्तु समर्पित करता है। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद सभी अच्छे ईसाई देवपुत्र ईसा मसीह के साथ ही जन्नत में रहते हैं, इसलिए उन्हें सम्मान देना चाहिए।

तीसरा दिन – ऑल सोल्स डे

अर्थात सर्व आत्मा दिवस। यह दिन भी ईसाइयों के लिए विशेष महत्व का है। इस दिन भी सभी आत्माओं के लिए व्यक्तिगत और समूह रूप में प्रार्थना की जाती है। व्यक्ति की जब मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा तत्काल परिष्कृत नहीं हो पाती। ऐसा माना जाता है कि जो आत्माएं परिष्कृत नहीं हुई थीं, जो आत्माएं संत या उच्चता के दर्जे पर नहीं पहुंची थीं, जो आत्माएं इंतजार में थीं कि उन्हें भी सम्मान मिले, उन्हें इस दिन चर्च के द्वारा राहत मिलती है। सर्व आत्मा दिवस पर यह मान लिया जाता है कि प्रतिक्षारत सभी आत्माएं उच्च स्तर या मुक्ति या मोक्ष को प्राप्त हो गई हैं। पूर्वजों के साथ उन्हें भी सम्मान मिलना चाहिए।

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