संत एंड्रयू : जीसस के प्रिय शिष्य

संत एंड्रयू का जन्म ईसा पूर्व 5 या 6 को वर्तमान में इस्राइल के गेलिली क्षेत्र में हुआ था। जीसस अर्थात ईसा मसीह के 11 पट शिष्य थे, जिनमें संत एंड्रयू का स्थान बहुत खास था। एंड्रयू पेशे से मछुआरे थे, उनके भाई पीटर भी मछुआरे थे। दोनों भाइयों की मुलाकात जीसस से समुद्र किनारे ही हुई थी। जीसस ने दोनों भाइयों को शिष्य बनने के लिए कहा। जीसस ने कहा, मछली पकड़ना छोड़ो, मनुष्यों को धरों। अर्थात मनुष्य को समझो और अपना बनाओ।
जीसस के शुरुआती शिष्यों में दोनों भाई पीटर और एंड्रयू शामिल हो गए। दोनों भाइयों के ही स्तर के तीसरे करीबी शिष्य थे संत जाॅन। श्रद्धा निष्ठा में दोनों भाई आदर्श बन गए। जीसस के जीवन के अनेक महत्वपूर्ण मौकों के दोनों भाई गवाह रहे। बाद में दोनों भाइयों को संत की उपाधि मिली।
संत एंड्रयू जीसस के साथ अंतिम भोज में शामिल थे। इसी भोज में जीसस ने शिष्यों को बताया था कि यहाँ उपस्थित शिष्यों में से ही कोई गद्दार निकलेगा। उन्होंने जुडस को रोटी का एक टुकड़ा दिया, वही गद्दार था। जीसस के शिष्य तो 12 ही थे, लेकिन जुडस की दगाबाजी के बाद 11 ही पट शिष्य बचे।
बताया जाता है कि संत एंड्रयू उन चार शिष्यों में शामिल थे, जिन्हें जीसस ने बताया था कि वे फिर लौटेंगे। संत एंड्रयू ने ईसाई धर्म के प्रचार में अपना पूरा जीवन लगा दिया। वे वर्तमान में सोवियत या रूस के कुख्यात क्षेत्र में धर्म प्रचार के लिए भेजे गए थे। तब यह क्षेत्र आदमखोरों का क्षेत्र कहलाता था। संत एंड्रयू को जीसस की तरह क्रूसीफाई करके मारा गया था। हालाँकि उन्हें जिस फ्रेम पर बांधा या क्रूसीफाई किया गया था, वह गणित के गुणा आकार की तरह था।
आज भी उनके अवशेष ग्रीस स्थित संत एंड्रयू चर्च में दर्शनीय हैं। ईसाई संसार में संत एंड्रयू का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। 30 नवंबर को उनके सम्मान में विशेष प्रार्थना और भोज का आयोजन होता है। स्काॅटलैंड सहित अनेक जगह यह अवकाश का दिन होता है।