कलेंडरों का राजा कौन ?
ग्रेगोरियन कलेंडर ही दुनिया में कलेंडरों का राजा है। दुनिया के ज्यादातर देशों में यह कलेंडर मान्य है। इसी के अनुरूप विश्व और संयुक्त राष्ट्र की योजनाएं बनती हैं। इसी के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम होते हैं। ग्रेगोरियन कलेंडर की शुरुआत 1582 में अक्टूबर के महीने में हुई थी – पोप ग्रेगोरी तेरहवें ने इसकी शुरुआत की थी। ग्रेगोरियन कलेंडर से पहले जूलियन कलेंडर की मान्यता ईसाई मतावलंबियों के बीच थी। जूलियन कलेंडर में सुधार करके ही ग्रेगोरियन कलेंडर की शुरुआत हुई। बताया जाता है कि ग्रेगोरियन कलेंडर में यह बदलाव इस्टर के दिन को तय करने के मकसद से किया गया था। कलेंडर का नाम भले ही पोप ग्रेगोरी के नाम पर पड़ा, लेकिन इसके पीछे वास्तव में काम तब के गणितज्ञ क्रिस्टोफर क्लेवियस (जीवनकाल 1538-1612) का था। क्लेवियस के पहले इस कलेंडर सुधार के कार्य में एलोयसिस लिलियस (जीवनकाल 1510- 1576) लगे थे और पहला सुधार प्रस्ताव लिलियस ने ही तैयार किया था। यह कलेंडर 1582 में स्वीकार किया गया और उसी सदी में दुनिया के करीब 9 देशों में यह कलेंडर मान्य हो गया था। हालांकि इसके बाद की सदी में मात्र 3 और अन्य देशों ने इसे मान्य किया, लेकिन बाद में धीरे-धीरे इसकी मान्यता बढ़ती चली गई। भारत में यह अंग्रेजों के जरिये 1752 में पहुंचा। इसी वर्ष ब्रिटेन ने इस कलेंडर को मान्यता दी थी।
कलेंडर का मतलब क्या है?
कलेंडर यानी पंचांग। कलेंडर यानी वह किताब या पुस्तिका जिसमें आप वार, सप्ताह, महीना और वर्ष का हिसाब रखते और देखते हैं। कलेंडर शब्द कलेंडे शब्द से बना है – यह रोमन कलेंडर के वर्ष के पहले दिन को भी कहा जाता है। लातीन में कलेंडेरियम शब्द है – जिसका अर्थ है लेखा-जोखा की किताब या पोथी।
दुनिया में 85 से ज्यादा कलेंडर हैं
कलेंडरों की दुनिया निराली है। दुनिया में 85 से ज्यादा कलेंडर प्रचलित हैं, जिनमें से 30 के करीब कलेंडर ज्यादा चर्चित और उपयोग में लाए जा रहे हैं। हर कलेंडर एक संस्कृत या सभ्यता या देश से जुड़ा हुआ है। चार प्रकार के कलेंडर होते हैं- सूर्य कलेंडर अर्थात सोलर कलेंडर, चंद्र कलेंडर अर्थात लुनर कलेंडर, चंद्र-सूर्य कलेंडर, लुनीसोलर कलेंडर और सिजनल या मौसमी कलेंडर। ग्रेगोरियन कलेंडर सोलर कलेंडर है। भारत में सर्वाधिक प्रचलित विक्रम संवत लुनीसोलर कलेंडर है, इसमें माह की गणना चंद्र के हिसाब से होती है, लेकिन वर्ष सूर्य के हिसाब से चलता है।
सबसे पुराना कलेंडर कौन?
भारत को गणना के लिए जाना जाता है। भारत में आदिकाल से पंचांग की परंपरा रही है। भारत का कलेंडर सम्बंधी गणित लाजवाब है, लेकिन यहां कलेंडर के प्रमाण बहुत बाद में उपलब्ध होते हैं। भारत में लिखित इतिहास का अभाव रहा है। ग्रीस, रोम आदि की सभ्यताओं को इस मामले में आगे माना जाता है। मान्य रूप से रोमन कलेंडर को सबसे पुराना माना जाता है।
स्कॉटलेंड में वर्ष 2013 में दुनिया का सबसे पुराना कलेंडर प्राप्त हुआ है, जिसे ईसा पूर्व 10000 साल पुराना माना जा रहा है।