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संसार के गुरु कृष्ण

भगवान कृष्ण महाप्रभु विष्णु के सांतवें अवतार हैं। राम जी ने संसार को मर्यादा पालन की शिक्षा दी और कृष्ण ने संसार को आदर्शतम जीवन का पाठ पढ़ाया। हिन्दू सनातन चिंतन परंपरा बिना कृष्ण के असंभव है। गीता के रूप में संसार को उनका जो संदेश है, वह अतुलनीय है, उसके मुकाबले की कोई दूसरी शिक्षा नहीं मिलती। हिन्दू सनातन परंपरा में आध्यात्मिक गुरु बनाने की परंपरा रही है, जिनको वर्तमान भौतिक संसार में कोई गुरु नहीं मिलता, उनके लिए यह कहा गया है कि वे कृष्ण को अपना गुरु मान सकते हैं।
संसार में असंख्य महात्मा और ज्ञानी ऐसे हुए हैं कि जिनके प्रेरक कृष्ण हैं। कृष्ण ने संसार को कर्मयोग की शिक्षा दी, उन्होंने कहा कि मनुष्य को कर्म करना चाहिए, किन्तु सुख इस बात में है कि वह कर्म के बदले किसी फल की कामना न करे। फल की कामना ही कष्ट का मूल है।
जीवन में आप अपना कार्य करते चलो और सोचो कि ईश्वर ही सब करा रहा है। ईश्वर तुम्हारे लिए है और तुम ईश्वर के लिए हो। कृष्ण ने ज्ञानयोग, सांख्ययोग, हठयोग की भी शिक्षा दी, किन्तु संसार को उनका सबसे बड़ा योगदान कर्मयोग है। उनके बताए कर्मपथ पर ही विश्व चल रहा है।
दूसरे धर्म के भी अनेक महात्मा कृष्ण से सीखकर आगे बढ़े हैं।


कृष्ण का जन्म

कृष्ण का जन्म अद्भुत है। जिन देवता या अवतार ने संसार को मुक्ति का मार्ग दिखाया, उनका जन्म कारागार में हुआ था। पिता वसुदेव और माता देवकी की वे जैविक संतान थे, किन्तु उनका पालन-पोषण पिता नन्द और माता यशोदा ने किया। कृष्ण में शिशुकाल से ही देवगुण भरे हुए थे।

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