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लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति का क्या है अर्थ?

लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्राति, तीनों ही कड़ाके की ठंड के  बाद मनाए जाने वाले पर्व हैं। आइए सबसे पहले लोहड़ी के बारे में जानें। लोहड़ी पौष के अंतिम दिन मनायी जाती है। ल का अर्थ है लकड़ी, ओह का अर्थ है उपले, ड़ी का अर्थ रेवड़ी। विशेष रूप से पंजाब में मनाए जाने वाले इस पर्व के अवसर पर शाम के समय घर या मुहल्ले में किसी खुली जगह पर लकड़ी और उपले की मदद से आग जलाई जाती है। बच्चे, युवा और अन्य सभी लोग आग को प्रणाम करते हैं, आग की पूजा करते हैं और आग की परिक्रमा करते हैं। आग को तिल चढ़ाते हैं, कई जगह भुन्ना हुआ मक्का और लावा भी चढ़ाया जाता है। मूंगफली, खजूर और अन्य कुछ सामग्रियां भी श्रद्धापूर्वक चढ़ाई जाती हैं। जिन चीजों को हम आग को अर्पित करते हैं, उन्हीं चीजों को हम प्रसाद के रूप में खाते भी हैं और वितरित भी करते हैं।


लोहड़ी क्यों मनाई जाती है?

इसके पीछे कोई एक कथा नहीं है, अनेक कारण गिनाए जाते हैं। शिव व सती की कथा भी है, दुल्ला भट्टी की कथा भी है, कुछ लोग कबीर की पत्नी लोई से लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति मानते हैं। इन चरित्रों के गीत भी गाए जाते हैं।

फिर भी स्वाभाविक रूप से अगर हम देखें, तो यह नए अन्न के आगमन, ठंड के समापन की ओर बढऩे और एक-दूसरे का हाल जानकर खुश मनाने का पर्व है। गौर करने की बात है कि कड़ाके की ठंड जब पंजाब और उत्तर भारत में पड़ती है, तो किसी का कहीं आना-जाना भी प्रभावित हो जाता है। ठंड के कारण आवागमन प्रभावित होने से दूर बसे सम्बंधियों का हाल पता नहीं चलता। विशेष रूप से परिवार जनों को अपनी उन बेटियों की चिंता होती है, जो कहीं दूर ब्याही गई हैं। भाई को तिल, रेवड़ी, गुड़, वस्त्र, धन व अन्य उपहार, सामान देकर बहन का हाल जानने के लिए भेजा जाता है। सब एक दूसरे का हाल जानने के लिए लालायित होते हैं। हर मुहल्ले में मेहमान आ जाते हैं, मौका उत्सव का हो जाता है। तो आग जलाकर साथ बैठना, नाचना, गीत गाना, भोजन करना, हालचाल जानना लोहड़ी की विशेषता है। ठंड के खतरनाक दिन के खत्म होने और अच्छे दिन के आने का भी यह पर्व संकेत है। लोहड़ी का आयोजन मकर संक्राति या पोंगल की पूर्व संध्या पर होता है।


पोंगल क्यों मनाया जाता है?

पोंगल तमिल वर्ष का पहला दिन है। नए अन्न के घर आने और उसे पकाने का दिन है। पोंगल का अर्थ है – क्या उबल रहा है या क्या पकाया जा रहा है। दक्षिण भारत में इस दिन शोभा यात्रा भी निकालते हैं। नाना प्रकार से खुशी मनाते हैं। भगवान की पूजा, विशेष रूप से अयप्पा स्वामी की पूजा की जाती है। नया अन्न पकाया जाता है, भगवान को भोग लगाया जाता है और वही लोगों में प्रसाद के रूप में वितरित होता है।


मकर संक्रांति क्या है?

जब सूर्य धनु राशि को छोडक़र मकर राशि में प्रवेश करता है, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। यह कहा जाता है कि इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। हालांकि ज्योति:शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दिन नहीं, बल्कि २१ दिसंबर के आसपास ही उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण का अर्थ है – सूर्य का दक्षिण की ओर से उत्तर की ओर आना, एक तरह से सूर्य फिर पृथ्वी के पास आने लगते हैं। पृथ्वी के पास सूर्य के आने से धीरे-धीरे गर्मी बढ़ती है और गृष्मकाल आता है। इस दिन स्नान, दान, ध्यान की बड़ी महिमा है।


मकर संक्रांति को यह जरूर करें

भारतीय पौराणिक व सामाजिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन यह जरूर करना चाहिए।
1 – किसी तीर्थ में स्नान न भी करें, तो घर में अवश्य स्नान करें।
2 – स्नान करने से पहले जल में कुछ अन्न तिल अवश्य डालें।
3 – स्नान के बाद विशेष रूप से सूर्य की पूजा अवश्य करें।
4 – इस दिन तिल या तिल की वस्तु का दान फलदाई होता है।
5 – एक बार दही-चीउड़ा या तैलविहीन भोजन अवश्य करें।
6 – यथाशक्ति लोगों को भोजन कराना और दान करना चाहिए।
7 – रात के समय न स्नान करें और ना ही किसी को दान दें।
8 – स्वयं को पवित्र रखते हुए ईश्वर की पूजा करना चाहिए।
9 – इस दिन अपने पितरों या पूर्वजों को याद करना चाहिए।

10 – उनके लिए या उनके नाम पर भी दान की परंपरा रही है।


मकर संक्रांति पर ऐसा करेंगे, तो कभी असफल नहीं होंगे

मकर संक्रांति पर तिल का अत्यधिक प्रयोग होता है। तिल को एक ऐसा अन्न माना गया है, जिसके उपभोग से ठंड कम लगती है। भारतीय परंपरा में यह मान्यता है कि जो इंसान तिल का प्रयोग इन छह प्रकार से करता है, वह कभी असफल नहीं होता, वह कभी अभागा नहीं होता। पहला – शरीर को तिल से नहाना, तिल से उवटना, पितरों को तिल युक्त जल चढ़ाना, आग में तिल अर्पित करना, तिल दान करना और तिल खाना। तिल को बहुत महत्व का माना गया है, उत्तर भारत से ज्यादा तिल उपभोग दक्षिण भारत में होता है।


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