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Prayushan

प्रार्थना और क्षमा याचना का पर्व पर्युषण  

पर्युषण का अर्थ है – चारों ओर से या हर तरफ से धर्म की पालना। परि अर्थात चारों ओर और उषण अर्थात धर्म की पालना-आराधना। ईसा पूर्व पांचवीं सदी में २४वें तीर्थंकर महावीर जब धरती पर आए, तब जैन धर्म का सांगठिनक और वैचारिक ढांचा व्यवस्थित हुआ। एक ऐसे धर्म का विश्व में पदार्पण हुआ – जो जीओ और जीने दो के सिद्धांत पर चल रहा था। तब मानव संस्कृति में हिंसा बहुत सामान्य बात थी, लेकिन महावीर ने कहा कि अहिंसा परमो धर्म:। इससे पहले वेदों ने भी अहिंसा की पैरोकारी की थी, लेकिन जैन धर्म ने अहिंसा पर सर्वाधिक जोर दिया और अहिंसा के लिए आज भी जैन धर्म की ख्याति है।

जैन समाज में पर्युषण पर्व सबसे बड़ा उपासना काल माना जाता है। श्वेतांबर जैन 8 दिन और दिगंबर जैन 10 दिन इस तप-त्याग-साधना काल को मनाते हैं। यह कोई खुशियां मनाने का उत्सव नहीं है, यह आत्मसमीक्षा और आत्मसाधना का सुवसर है। जब सभी साधु और समाज के सभी लोग साधना में जुटे रहते हैं। यह धर्म की ओर लौटने का अवसर है। यह धर्म को फिर से जानने-समझने और जीने का अवसर है। यह धर्म पर पुन: चिंतन करने का समय है। यह आत्म समीक्षा का समय है, यह अपनी गलतियों को समझने और जिनको हमने कष्ट पहुंचाया है, उनसे क्षमा मांगने का अवसर है।


पर्युषण पर्व कैसे मनाते हैं?

जो साधु-संत समाज है, वह आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि में अपना समय बिताता है। समाज के जो दूसरे लोग हैं, गृहस्थ हैं, वे प्रवचन श्रवण, साधना, सेवा, सुधार, चिंतन, अध्ययन, उपवास में समय बिताते हैं। इस उपासना काल में यह कहा जाता है कि ज्यादा से ज्यादा समय धर्मस्थल पर बिताओ, जीवन के गैर-जरूरी तामझाम से दूर रहो, बुराइयों से दूर रहो, साधुओं के सान्निध्य में रहो। साधुओं की सेवा करो। साधुओं को खुश रखो, साधुओं से सीखो, साधुओं के उपदेश पर चलो, धर्म के मार्ग पर लौटो। वर्ष भर जो गलतियों तुमसे हुई हैं, उनके लिए क्षमा मांगो। श्वेतांबर जैन मिच्छामि दुक्कड़म बोलकर सबके सामने हाथ जोड़ते हैं, तो दिगंबर जैन उत्तम क्षमा बोलकर प्रार्थना करते हैं। अनेक लोग इस काल में यथासंभव उपवास रखते हैं, निर्जला भी रहते हैं, मौन साधना भी करते हैं।


पर्युषण में कौन क्या करे?

पर्युषण काल में संतों के लिए ये कार्य जरूरी बताए गए हैं – संवत्सरी, प्रतिक्रमण, केशलोचन, तपस्या, आलोचना और क्षमा याचना। दुनियादार लोगों के लिए प्रवचन सुनना, दान, अभयदार, ब्रह्मचर्य, संघ व संत सेवा और सबसे आखिरी दिन अपनी गलतियों के लिए, किसी को अनजाने में भी कोई कष्ट पहुंचाने के लिए क्षमा याचना करना।

यह पर्व वर्ष 2018 में 7 सितंबर से 16 सितंबर तक मनाया जाएगा।


पर्युषण के पांच प्रमुख संदेश

1 – धर्म, अच्छाई, मानवता के आईने में अपना चेहरा देखो।
2 – धर्म और उसके उद्देश्यों का पुन: अध्ययन-मनन करो।
3 – बड़ों की सुनो, सेवा करो, दान करो और विनम्र बनो।
4 – अनावश्यक चर्चा, उपयोग, उपभोग पर रोक लगाओ।
5 – अहंकार छोड़ दो, झुकना भी सीखो और क्षमा मांगो।

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