Prayushan
प्रार्थना और क्षमा याचना का पर्व पर्युषण
जैन समाज में पर्युषण पर्व सबसे बड़ा उपासना काल माना जाता है। श्वेतांबर जैन 8 दिन और दिगंबर जैन 10 दिन इस तप-त्याग-साधना काल को मनाते हैं। यह कोई खुशियां मनाने का उत्सव नहीं है, यह आत्मसमीक्षा और आत्मसाधना का सुवसर है। जब सभी साधु और समाज के सभी लोग साधना में जुटे रहते हैं। यह धर्म की ओर लौटने का अवसर है। यह धर्म को फिर से जानने-समझने और जीने का अवसर है। यह धर्म पर पुन: चिंतन करने का समय है। यह आत्म समीक्षा का समय है, यह अपनी गलतियों को समझने और जिनको हमने कष्ट पहुंचाया है, उनसे क्षमा मांगने का अवसर है।
पर्युषण पर्व कैसे मनाते हैं?
जो साधु-संत समाज है, वह आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि में अपना समय बिताता है। समाज के जो दूसरे लोग हैं, गृहस्थ हैं, वे प्रवचन श्रवण, साधना, सेवा, सुधार, चिंतन, अध्ययन, उपवास में समय बिताते हैं। इस उपासना काल में यह कहा जाता है कि ज्यादा से ज्यादा समय धर्मस्थल पर बिताओ, जीवन के गैर-जरूरी तामझाम से दूर रहो, बुराइयों से दूर रहो, साधुओं के सान्निध्य में रहो। साधुओं की सेवा करो। साधुओं को खुश रखो, साधुओं से सीखो, साधुओं के उपदेश पर चलो, धर्म के मार्ग पर लौटो। वर्ष भर जो गलतियों तुमसे हुई हैं, उनके लिए क्षमा मांगो। श्वेतांबर जैन मिच्छामि दुक्कड़म बोलकर सबके सामने हाथ जोड़ते हैं, तो दिगंबर जैन उत्तम क्षमा बोलकर प्रार्थना करते हैं। अनेक लोग इस काल में यथासंभव उपवास रखते हैं, निर्जला भी रहते हैं, मौन साधना भी करते हैं।
पर्युषण में कौन क्या करे?
यह पर्व वर्ष 2018 में 7 सितंबर से 16 सितंबर तक मनाया जाएगा।