रामानुजाचार्य जयंती
ईश्वर भक्ति के आदर्श प्रचारक
आदि शंकराचार्य के बाद भारत में जिन महात्मा का सर्वाधिक महत्व या प्रभाव है, वह हैं – रामानुजाचार्य। इनका जन्म श्रीपेरम्बदूर, तमिलनाडु में 1017 ईस्वी में हुआ था। वे अपने उच्च आदर्श जीवन के बलबूते 120 वर्ष तक जीवित रहे। वर्ष 1137 में श्रीरंगम, तमिलनाडु में उन्होंने देह त्याग किया। विशिष्टाद्वैत धारा को सशक्त करने वाले रामानुजाचार्य ईश्वर भक्ति के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने भारतीय धार्मिक चिंतन को और अच्छी तरह से समझाया। सहज चिंतन पर जोर दिया। ब्रह्मसूत्र के भाष्यकार के रूप में उनकी बहुत ख्याति है। ब्रह्मसूत्र पर उनके लिखे भाष्य – श्रीभाष्यम और वेदान्त संग्रहम् – आज भी भारतीय हिन्दू चिंतन को मार्ग दिखा रहे हैं। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। अपने मत का प्रचार किया। अनेक संत विद्वानों से वे मिले और उनका प्रभाव पूरे भारतीय चिंतन पर पड़ा।
रामानुजाचार्य की परंपरा में ही आगे चलकर रामानंदाचार्य हुए। जहां आदि शंकराचार्य और रामानुजाचार्य दक्षिण भारतीय थे, वहीं रामानंदाचार्य का जन्म प्रयाग, उत्तर भारत में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि उत्तर भारत में केवल ज्ञान की महिमा थी। शास्त्रार्थ की महिमा थी, विद्वान तर्क करने को ही मूल कर्म समझ बैठे थे। ऐसे में रामानंदाचार्य जब दक्षिण भारत गए, तो उन्हें रामानुजाचार्य की परंपरा से ही भक्ति का मार्ग मिला और वे भक्ति लेकर उत्तर भारत में आए। रामानुजाचार्य का प्रभाव आज भी भारत पर प्रबल है। उनका संप्रदाय सशक्त है। जहां ज्ञान और भक्ति, दोनों की ही बड़ी महिमा है।
ईश्वर भक्ति क्या है?
केवल पूजा-पाठ, भजन से ही ईश्वर की भक्ति संभव नहीं है। ईश्वर का हर पल ध्यान करना होगा। ईश्वर से हर पल प्रार्थना करना होगा। पूजा-पाठ में जरूरी नहीं कि आपका मन ईश्वर में लगे। भजन करते हुए भी व्यक्ति का ध्यान किसी सांसारिक कार्य में लगा हुआ हो सकता है, ऐसे में ईश्वर भक्ति का कोई अर्थ नहीं है। दिखावे में मत फंसो। ईश्वर का ध्यान करो, तो पूरे मन से करो, तभी तुम्हें लाभ होगा।