प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी
रविदास जयंती
रविदास अर्थात रैदास (जीवनकाल 1388 से 1440 ईसवी सन) भारत में एक ऐसे भक्त कवि हुए हैं, जिन्हें बहुत सम्मान से देखा जाता है। वे भारत में भक्तिकाल के स्तंभ थे, लेकिन उन्होंने अपना मूल काम कभी नहीं छोड़ा। उनका काम था, चमड़े के जूते तैयार करना और बेचना। दयालु इतने थे कि गरीबों को यों ही जूते दान दे दिया करते थे। उन्होंने ईश्वर की आराधना की, लेकिन अपना काम नहीं छोड़ा। बहुत सारे लोग आज ऐसे होंगे, जिन्हें विश्वास नहीं होगा कि एक जूता बनाने वाला चर्मकार दुनिया का इतना बड़ा कवि हो सकता है, जिसके आज लाखों भक्त या श्रद्धालु हो सकते हैं।
रैदास या रविदास की एक पंक्ति बहुत प्रसिद्ध है –
रविदास जन्म चमार घर, नित उठ कूटे चाम।
अन्तर लौ लागी रहे, हाथ करम मुख राम।
मतलब यह कि मैंने चमार के घर में जन्म लिया, रोज उठकर चमड़ा कूटता हूं, मेरे अंदर भक्ति की लौ जगी रहे, हाथ में काम हो और मुख में राम हों।
उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि कोई भी जाति से नीच नहीं होता, जो नीच जैसा काम करे, वही नीच होता है। वे सहज ज्ञानी थे और प्रेम में डूबे हुए थे। उनके पद आज भी गाए जाते हैं, और सिक्खों के गुरुग्रंथ साहिब में भी उनके पद शामिल हैं। रविदास जी की रचनाएं अमर हैं। उनका एक प्रसिद्ध भजन है, जो आज भी अनेक बड़े भजन गायक गाते हैं –
प्रभु जी, तुम चन्दन, हम पानी। जाकी अंग अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन वन, हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक, हम बाती। जा की जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी, हम दासा। एैसी भगति करै रैदासा।
संत रामानंद के शिष्य रविदास
रैदास महान संत कवि रामानंद के शिष्य थे। रामानंद ने अपने श्रीमठ में धर्म और जाति के बंधनों को कमजोर कर दिया था। रामानंद के शिष्यों में मुस्लिम भी शामिल थे, वंचित जाति के लोग भी शामिल थे और रामानंद ने पहली बार महिलाओं को शिष्य रूप में स्वीकार किया। ब्राह्मण अनंतानंद, राजपूत पीपा, जाट धन्ना, सेन नाई, जुलाहा कबीर इत्यादि रैदास के गुरुभाई थे। सभी ने भक्ति में प्रेम की गंगा को बहा दिया। सगुण भक्ति के साथ-साथ निर्गुण भक्ति को भी पूरी प्रबलता के साथ आगे बढ़ाया। रैदास चूंकि बनारस में ही रहते थे, इसलिए वे रामानंद के करीबी शिष्यों में थे। रामानंद ने कभी उन्हें यह नहीं कहा कि आप चमड़े का काम छोड़ दो, रामानंद ने कभी कबीर से नहीं कहा कि आप कपड़े तैयार करने का काम छोड़ दो, रामानंद ने कभी सेन भगत से नहीं कहा कि अब आप बड़े भक्त हो, बाल काटना छोड़ दो। रैदास के लगभग सभी गुरु भाई कर्म को भी समान महत्व देते थे और वास्तविक कर्मयोगी थे।
वे मानते थे कि परमेश्वर एक ही है, वेद, पुराण, कुरान इत्यादि सभी गं्रथ उसी परमेश्वर की आराधना करते हैं।
मन चंगा तो कठौती में गंगा
रैदास जी को लेकर अनेक कथाएं हैं, जिनमें एक यह भी है कि उनकी कठौती में से देवी गंगा ने हाथ बढ़ाकर कंगन सौंपा था। एक कथा यह भी है कि गंगा जी ने हाथ बढ़ाकर रैदास जी द्वारा दिया गया दान ग्रहण किया था। ये सब सुनी-सुनी कथाएं ही हैं, वास्तविक रूप से चमत्कारों को नहीं, बल्कि रैदास जी के प्रेम, भक्ति व भावों को देखना चाहिए। उनका जोर इस बात पर था कि अगर आपका मन सही होगा, तो आपके लिए कठौती में भरा जल भी गंगा जल हो जाएगा। यहीं से यह मुहावरा निकला कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।
रैदास या रविदास को पूरी दुनिया में याद किया जाता है, शोभा यात्रा निकाली जाती है। विवरण मिलते हैं कि भक्त कवि मीरा बाई ने रविदास जी को अपना गुरु माना था। वह अद्भुत समय था, कहा जाता है कि जाति से राजपूत मीरा बाई जाति से चर्मकार अपने गुरु रैदास की राह अपने केश से बुहारा करती थी।
रविदास जी से हमें क्या सीखना चाहिए?
1 – प्रेम और भक्ति की राह पर चलो, किसी का भी बुरा न करो।
2 – सबसे ऐसे प्रेम करो कि धर्म व जाति का कोई बंधन न रहे।
3 – अपने कर्म से कभी भी पीछे न हटो, कर्म को प्राथमिकता दो।
4 – कर्मकांड और आडंबरों में मत फंसों, सामान्य व सहज रहो।
5 – मन साफ रखो, चाहो तो मन से चाहो, सफलता जरूर मिलेगी।
6 – अपनी जाति मत छिपाओ, दूसरा पूछे, उससे पहले ही बताओ।
7 – जाति पर न जाओ, अपने काम को सुधारो और ऊपर उठो।
8 – ईश्वर को अपना मानो, ताकि ईश्वर भी तुम्हें अपना माने।
9 – दुखी लोगों व गरीबों पर दया करो, मदद से पीछे न हटो।
10 – अपने विचार श्रेष्ठ बनाओ, सद्व्यवहार से राह बनाओ।