अनसूया जयंती
दुनिया की सबसे आदर्श पत्नी कौन ?
(जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के प्रवचन से साभार)
संसार का हर पति चाहता है कि उसकी पत्नी केवल उसकी पत्नी रहे। मेरे ही विकास के लिए और मुझे ही सुख देने के लिए मेरा ही सहयोग करे। जाति, संप्रदाय, नस्ल, देश कोई भी हो, पूरी दुनिया के पुरुष यही सोचते हैं। वैदिक सनातन धर्म ने पतिव्रता स्त्रियों को बहुत महत्व दिया, उसका लाभ भी बताया और पतिव्रता न होने की हानि का भी वर्णन किया। यह भी बताया कि कैसे पतिव्रता रहा जा सकता है। इस देश में यह प्रथा बहुत पुरानी, अनादि है। काफी कोशिश करके समाज के अच्छे लोग पत्नियों को पतिव्रता, पति परायणा बनाने का उपक्रम करते रहते हैं।
पतिव्रता स्त्रियों में अनसूया जी का स्थान सबसे ऊंचा है। उनका पूरा जीवन ही अपने पति महर्षि अत्रि जी के लिए अर्पित था। उनके मन में किसी दूसरे के लिए कोई भाव आया ही नहीं।
जब उन्होंने देवताओं को बालक बना दिया
एक बड़ी प्रसिद्ध कथा है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी अनसूया जी ने बालक बना दिया था। हुआ ऐसा कि सत्संग की परंपरा है ही, सत्संग में विभिन्न विषयों की चर्चा होती है। एक बार ब्रह्मा की पत्नी ब्रह्माणी, विष्णु की पत्नी लक्ष्मी और महेश की पत्नी गौरी परस्पर चर्चा कर रही थीं कि संसार में सबसे बड़ी पतिव्रता कौन है। सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता किसको माना जाए? बहुत देर तक वे चर्चा करती रहीं, पतिव्रत धर्म की चर्चा करती रहीं, दोष निकालती रहीं। अंत में उन्होंने निर्णय किया आज के काल में अत्रि जी की पत्नी अनसूया जी सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं। उनसे बड़ी पतिव्रता कोई नहीं है, ऐसा ब्रह्माणी, लक्ष्मी, गौरी ने तय किया। यह बात ब्रह्मा, विष्णु, महेश तक पहुंची। चर्चा के बारे में बताया, उसके परिणाम के बारे में बताया। तीनों देवताओं ने कहा कि आप लोगों ने तय कर लिया है, तो परीक्षण भी होना चाहिए। हम तीनों जाते हैं ब्राह्मण वेष बनाकर उनकी परीक्षा लेते हैं।
तीनों देवता महर्षि अत्रि जी के आश्रम पहुंच गए। तब अत्रि जी किसी विशेष परिस्थिति के कारण आश्रम के बाहर थे। आश्रम में ब्राह्मणों को देखकर अनसूया जी ने आदर, सत्कार किया। तीनों ब्राह्मणों ने कहा कि हम लोग आपके यहां आए हैं, अतिथि सत्कार होना चाहिए, भीक्षा भी हम लोग लेंगे, लेकिन हमारी शर्त है कि आप भिक्षा देने के पहले जितने वस्त्रों को आपने धारण कर रखा है, उन सभी को अपने से अलग रखकर हम लोगों को भीक्षा दें, तभी हम आपसे भिक्षा लेंगे। ऐसा ब्राह्मण वेषधारी ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने कहा, धर्म संकट उत्पन्न हो गया। अनसूया जी के सामने विकट परिस्थिति आ गई, उन्होंने भगवान का ध्यान किया, मन में ही कह रही हैं कि यदि पति के समान किसी दूसरे को नहीं देखा हो, यदि किसी भी देवता को पति के समान न माना हो, यदि मैं पति की अराधना में ही लगी रही हूं, तो मेरे सतीत्व के प्रभाव से ये तीनों ब्राह्मण नवजात बच्चे हो जाएं। तत्काल तीनों ही नन्हें बच्चे होकर अनसूया जी की गोद में खेलने लगे। अद्भुत घटना हो गई। दुनिया का सृजन करने वाले, पालन करने वाले और संहार करने की क्षमता रखने वाले देवता, तीनों ही अनसूया जी की गोद में खेलने लगे। तीनों ही बच्चे हो गए। यह इतिहास की अकेली घटना है। जिसकी शक्ति से ब्रह्मा विष्णु, महेश बालक रूप धारण कर लें, तो अनुमान लगाइए कि अनसूया जी कितनी महान पतिव्रता रही होंगी।
अनसूया जी ने क्या सन्देश दिया ?
अनसूया जी ने ही यह उपेदश किया था –
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी।।
अर्थात धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परख आपातकाल के समय ही होती है.
अनसूया जी अत्रि जी के साथ परलोक सुधार के लिए ही आई थीं। संतति को जन्म देने, संग्रहण करना, उनका संकल्प नहीं था। संकल्प यह था कि आज से दोनों एक हो गए, जैसे एक हाथ में पीड़ा होती है, तो संपूर्ण शरीर की पीड़ा मानी जाती है, ठीक उसी तरह से पति-पत्नी, दोनों एक हो जाते हैं। एक ही के दो भाग, एक पुरुष भाग और दूसरा नारी भाग। परिवार, समाज में पत्नी बनकर जब कोई कन्या आती थी, तो पति का बल बढ़ जाता है। एक नई शक्ति के रूप में पति प्रकट होता है। सनातन धर्म में पतिव्रता का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से स्वीकार किया गया है। एक ही पति से अपने मन, तन को जोडक़र रखना आजकल कम हो रहा है। जब जो अच्छा लगे, वैसा करना चाहिए, क्या यह सोच जीवन के सभी क्षेत्रों में संभव है? जब मन करे, वैज्ञानिक बन जाएं, डॉक्टर बन जाएं, राजनेता बन जाएं, ऐसा तो संभव नहीं है। जहां जो समर्पित हो गया, वहां वह क्षेत्र उसका अपना हो गया। जहां जो लगा हुआ है, पूर्ण समर्पण से लगे, तो उसकी शक्ति बढ़ जाती है।
पतिव्रता धर्म का पालन विश्वव्यापी धर्म है। ऋषियों-महर्षियों ने पतिव्रता का जो प्रतिपादन किया, उसके प्रयोग के लिए लोगों को समझाया, लोगों को इसका अनुरक्त बनाया, यह केवल ब्राह्मणों के लिए नहीं था, यह केवल भारत भूमि के लिए नहीं था, दुनिया के हर व्यक्ति के लिए था।
पति तभी कामयाब होता है, जब उसके पीछे पत्नी की शक्ति पूरी तरह से लगती है। जब दोनों एक दूसरे के लिए, एक दूसरे के हित के लिए प्रयासरत रहते हैं। पतन के लिए नहीं, उद्धार के लिए प्रयासरत रहते हैं। कहीं भी अपूर्ण समर्पण से उपलब्यिां प्राप्त नहीं होतीं। संपूर्ण समर्पण से ही बड़ी उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
(जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के प्रवचन से साभार)