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राधाष्टमी – राधा जी की जयंती

राधाष्टमी – राधा जी की जयंती

बताओ कान्हा कब आओगे?
राधे-कृष्ण, राधा-कृष्ण… प्रेम का महान प्रभाव देखिए कि देवी राधा जी का नाम देव श्रीकृष्ण से पहले लिया जाता है। श्रीकृष्ण तो प्रकाण्ड ज्ञानी व साक्षात परमब्रह्म भगवान थे, किन्तु उन्होंने अपनी बालस्थली ब्रज में रहते हुए राधा जी से निश्छल प्रेम किया। राधा जी ने भी अपना पूरा जीवन श्रीकृष्ण को याद करने में लगा दिया। कृष्ण जब मथुरा चले गए, तो कृष्ण की याद में राधा जी को एक तरह से प्रेम समाधि लग गई। हर पल कृष्ण को याद करना और उनका ही इंतजार करना। बताते हैं कि कृष्ण वचन लेकर गए थे कि आंखों में आंसू मत लाना, तो कभी आंखों से रोई नहीं राधा। बिछोह की पीड़ा को पल-पल जीती रही। हृदय में प्रश्न यही कि कब आओगे. . . कब लौटोगे कृष्ण कन्हैया।
कृष्ण नहीं लौटे, निकल गए अपने कत्र्तव्य पथ की ओर, राजनीति, गीता, महाभारत और विश्व शांति के प्रयासों की ओर। किन्तु प्रेम देखिए – कृष्ण तो राधे-राधे करते थे और राधा जी कृष्ण-कृष्ण जपती थीं। सिद्ध कर दिया कि मिलन शरीर का नहीं, मन का होता है, तब समाज के सामने नया आदर्श खड़ा हो जाता है।

 


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