Warning: "continue" targeting switch is equivalent to "break". Did you mean to use "continue 2"? in /home3/agaadhworld/public_html/wp-includes/pomo/plural-forms.php on line 210

Warning: session_start(): Cannot start session when headers already sent in /home3/agaadhworld/public_html/wp-content/plugins/cm-answers/lib/controllers/BaseController.php on line 51
Maharshi Valmiki Jayanti - agaadhworld

Maharshi Valmiki Jayanti

डाकू कैसे ऋषि बन गया?

एक दिन नारद जी वन से गुजर रहे थे। डाकू रत्नाकर की नजर उन पर पड़ी। डाकू रत्नाकर ने सोचा कि आज काफी कमाई होगी, ‘रुको, जो भी है, दे दो, नहीं तो मार दूंगा।’
नारद जी ने कहा, ‘मेरे पास कुछ नहीं है, वीणा है और तन पर वस्त्र है, जो मैंने पहन रखा है, मेरा पास क्या संपत्ति है?’
वाल्मीकि ने पूछा, ‘वीणा का क्या करते हो?’
देवर्षि ने उत्तर दिया, ‘वीणा बजाता हूं, ब्रह्मा जी ने प्रदान किया है, इस पर हरि कीर्तन करता हूं।’
‘हमें भी बजाकर सुनाओ।’
देवर्षि नारद से अच्छा वीणा कौन बजाएगा। वे तो ईश्वर को सुनाते हैं, सच्चे हृदय से बजाते हैं। संगीत भक्ति की ऊंचाइयों को प्राप्त होता है। वीणा की ध्वनि अनेक हृदयों को प्रभावित करती है। रत्नाकर को भी वीणा की ध्वनि ने प्रभावित किया, नरमी आई, रौद्र रूप में धीमापन आया। अच्छा लगा। उन्हें लगा कि विचित्र परिवर्तन आ रहा है। यही तो सत्संग है। फिर भी लंबे समय का पापी जीवन था, सहज परिवर्तन संभव नहीं था।
उन्होंने कहा, ‘आपकी वीणा अच्छी है, मुझे भी अच्छी लगी। अब आपके साथ क्या व्यवहार किया जाए?’
देवर्षि ने कहा, ‘जो मेरे पास है, मैं दे दूंगा, लेकिन मेरा कुछ प्रश्न है, जिसका आप समाधान करें, तो बहुत ही अच्छा होगा।’
संत मिलते हैं, तो सत्संग होता है। संत मिलता है, तो ईश्वर की चर्चा करता है, परमार्थ की चर्चा, गुणों की चर्चा। जिनका जीवन ऊंचाई को प्राप्त होता है, उनकी चर्चा है। जीवन को सुंदर बनाने वाले तत्वों की चर्चा करता है।
देवर्षि ने कहा, ‘आप जो काम करते हैं, यह तो बहुत बुरा है, यह तो महान पाप का जनक है। गलत कर्म जीवन, शरीर, मन को लांछित कर देता है, क्रूर बना देता है। आप जो दूसरों के लिए या दूसरों के साथ कर रहे हैं, उससे उत्पन्न होने वाले पापों के कारण आपकी उतने ही वर्षों तक दुर्गति होगी।’
रत्नाकर ने कहा, ‘मेरा बड़ा परिवार है, उसके पास दूसरा कोई साधन नहीं है जीवन जीने का, खेती नहीं है, नौकरी नहीं है, दूसरा कोई स्रोत नहीं है। जहां से दो रुपए आएं, पोषण हो। परिवार का विकास हो। स्वास्थ बने। ऐसा कोई भी संसाधन नहीं है। मेरी चेष्टा से ही हुई कमाई से ही मेरा परिवार चलता है।’
देवर्षि ने कहा, ‘ अपने परिजनों से पूछो कि तुम्हारे साथ में वे पाप के भागी बनेंगे या नहीं? तुम्हारी पाप की कमाई खाते हैं, तुम्हारा पाप अपने माथे लेंगे या नहीं।’
वाल्मीकि जी को लगा कि ये साधु भागना चाहता है, मुझे घर भेजकर, चालाकी कर रहा है।
यह जानकर देवर्षि ने कहा, ‘यदि मुझ पर विश्वास नहीं है, तो मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक आप आआगेे नहीं, मैं जाऊंगा नहीं, विश्वास नहीं है, तो मेरे हाथ-पैर को बांध दो।’
जैसे पाप से वे भोग कर रहे हैं, उससे होने वाले अधर्म में वे भागीदार बनेंगे या नहीं। यह बात रत्नाकर डाकू को भी ठीक प्रतीत हुई। उन्होंने कहा, ‘ठीक है, मैं आपको बांध देता हूं।’
हाथ-पैर को बांध दिया और तब घर गया। घर जाकर पूछा, ‘मैं जो कमा करके लाता हूं, गलत काम करके, उसके कारण जो पाप उत्पन्न होते हैं, उस पाप में आपकी भागीदारी होगी या नहीं? पाप की कमाई से जो भोजन आता है, उसमें आप सब भागीदारी बनेंगे या नहीं?’
परिजनों ने कहा, ‘पाप में हमारी भागीदारी नहीं है। आप परिवार के मुखिया हैं, आप कहीं से भी संपत्ति लाएं और हमारा पालन-पोषण करें, आपके पाप में हमारी कोई भागीदारी नहीं है, यह बात आप समझ लीजिए।’
यह बात सुनकर रत्नाकर को बड़ा आघात लगा कि अरे, हत्या, लूटपाट से अर्जित धन में ये लोग भोगी हैं, लेकिन जो पाप उत्पन्न हो रहा है, उसमें भागीदार नहीं हैं, तो ये तो बहुत स्वार्थी लोग हो गए। ऐसे लोगों के साथ जीवन नहीं जीना चाहिए। कितना बड़ा पाप हो रहा है और ये लोग बंटवारा करना नहीं चाहते हैं, केवल लाभ लेना चाहते हैं। ये परिवार के लोग नहीं हैं, मेरे सगे नहीं हैं, ये तो दूसरे लोग हैं, मेरे अपने नहीं हैं। जो दुर्भावना थी, वह उनके समझ में आ गई। यहां ऐसे ही लोग रहते हैं। हर आदमी को अपनी चिंता है, स्वार्थ की चिंता है। यह बात सर्वत्र व्याप्त है। वह आकर देवर्षि नारद के चरणों में गिर पड़े। बार-बार आग्रह किया, ‘हमें पाप कर्मों से बाहर निकालें। कैसे हम किए गए पापों की सजा पाएंगे? कैसे हम नवजीवन को प्राप्त करेंगे? कैसे हम सत्कर्म के जीवन का प्राप्त करेंगे, ऐसे जीवन को प्राप्त करेंगे, जो ईश्वर भक्ति से जुड़ा होगा। कैसे हमारा जीवन सुधरेगा। आप ही मार्ग बताइए।’
देवर्षि नारद ने कहा, ‘अपने सनातन धर्म में एक से एक संत महंत हैं, जिनके द्वारा कैसा भी जीव संत जीवन को प्राप्त कर लेता है, आप केवल मन बनाओ कि आपको अच्छा बनना है, आपको बुरे कर्मों से जुड़े नहीं रहना है। यह सबकुछ छोडऩा होगा, न लूट होगी, न हत्या होगी, न झूठ होगा, न फरेब होगा, न ऐसे लोगों की जिम्मेदारी होगी, जिनको केवल फल चाहिए। पूर्ण समर्पित होकर भगवान राम का जो नाम है उसे जपिए, उससे आपका उद्धार होगा। नाम में अद्भुत शक्ति है, यह नाम सबकुछ कर सकता है। आप नाम जपिए। राम, राम, राम, राम, राम करिए आप। यही मंत्र आपको मैं दे रहा हूं, इससे आपके जीवन में पूर्ण परिवर्तन आएगा, पूर्ण सुंदरता आएगी। संपूर्ण जीवन आपका जो अभी लांछित हो गया है, अनेक तरह से अवगुणों से दूषित हो गया है, सब ठीक हो जाएगा।
रत्नाकर ने प्रयास किया, फिर कहा, ‘मेरे मुंह में यह शब्द आ ही नहीं रहा है। राम, राम कह ही नहीं सकता। मेरा शरीर दूषित है, दिव्य शब्द राम मेरे मुंह से उच्चरित नहीं हो सकता। श्रवण और कथन के लिए जो वातावरण चाहिए, जैसी शक्ति चाहिए, वह मेरे पास नहीं है, मैं राम, राम नहीं जप सकता।’
देवर्षि ने कोशिश की, लेकिन रत्नाकर के मुंह से राम शब्द नहीं निकल पाया।
देवर्षि ने कहा, ‘ठीक है, आप राम राम नहीं जप सकते हैं, तो आप मरा, मरा ही जपिए।’
यह रत्नाकर को ठीक लगा, वे जिस गलत व्यवसाय में थे, उसमें मारो, मारो बोलते ही रहते थे, मारो, पीटो, लूटो, काटो, राम, राम तो नहीं जप पाए, पाप की अधिकता के कारण, लेकिन मरा मरा उन्होंने जपना शुरू किया।
जीवन के किसी क्षेत्र में कोई बड़ा आदमी आता है, तो वह बहुत दमखम के साथ लगता है अपने जीवन को सुधारने में, अपने जीवन को परिवर्तित करने में अपने जीवन को सुंदर बनाने में पूरे दमखम के साथ प्रयास करता है। रत्नाकर ने जपना शुरू किया और हजारों वर्षों तक जपा, उन पर दीमक लग गए, जप करते-करते एक जगह, दीमकों ने उन पर घर बना लिया, दीमक के घरों को ही वल्मीक बोलते हैं, इसलिए इनका नाम वाल्मीकि हो गया। संपूर्ण जीवन विशुद्ध हो गया, भगवान का नाम जपते हुए। रोम-रोम से जहां पाप प्रवाहित हो रहा था, वहां रोम-रोम से राम-राम प्रवाहित होने लगा। अध्यात्म और अहिंसा प्रवाहित होने लगी, रोम-रोम में संयम-नियम स्थापित हो गए। पाप की गुंजाइश ही खत्म हो गई, संपूर्ण जीवन विशुद्ध हो गया। इसी क्रम से रत्नाकर डाकू ने पूर्ण महर्षित्व को प्राप्त कर लिया। वाल्मीकि के नाम से तीनों लोक में ख्याति हुई। एक बहुत बड़ी क्रांति आई कि समाज के लिए जो अभिशाप बना हुआ था, जो मानवता के लिए कलंक था, ब्राह्मण जाति के लिए जो कलंक था, आज राम-राम की महिमा से वह मानवता के लिए वरदान बन गया। देवर्षि नारद के गुरुत्व की महिमा से कल्याण हो गया। उन्होंने ऋषित्व को उत्पन्न कर दिया। पूरे समाज के लिए एक आदर्श बना। मानवता का चरम प्राप्त हुआ। शास्त्र विरुद्ध आचरण के सबसे बड़े कर्ता का जीवन पूर्ण शास्त्रीय जीवन हो गया। शास्त्रों के संकेतों को दूर-दूर तक प्रसारित करने वाली जीह्वा से संपन्न जीवन प्राप्त हो गया।
(जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज, श्रीमठ, पंचगंगा घाट, वाराणसी के प्रवचन से साभार)

One thought on “Maharshi Valmiki Jayanti

Leave a Reply

Your email address will not be published.