राम–सीता विवाह उत्सव
राम ने सीता को सदा याद किया, सम्मान दिया
1 – राम ने सीता को कभी नहीं भुलाया। एक पत्नी व्रत रहने का वचन उन्होंने आजीवन निभाया। ऐसा नहीं कि एक पत्नी पर उंगली उठी, तो दूसरी-तीसरी ले आए। उनके पिता ने तो 3 या 303 से ज्यादा शादियां की थीं।
2 – बताते हैं कि सीता को वन में भेजने के बाद राम ने महल में रहकर भी वनवासियों की तरह जीवन बिताना शुरू कर दिया। साधारण जीवन, भूमि पर ही सोना, फल इत्यादि खाकर ही प्रजा का पालन करना।
3 – वे सीता को नहीं भूले, उन्होंने किसी भी यज्ञ या उत्सव के समय सीता की स्वर्ण प्रतिमा को अपने पास रखते थे, ताकि लोग भी देखें कि उनके मन में सीता के लिए क्या जगह है, कितना प्रेम है, कितना सम्मान है।
4 – सीता चली गईं, तो बताते हैं कि राम स्त्रियों की परछाई से भी बचते थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन राजकाज में लगा दिया, लेकिन यह अहसास निरंतर लोगों को हुआ कि राम के जीवन में सीता का स्थान कोई नहीं ले सकता।
5 – सीता तो फिर राम के जीवन में नहीं लौट पाईं, लेकिन जब दोनों पुत्र लव और कुश मिले, तो राम ने उन्हें हृदय से लगा लिया, वे दोनों राम और सीता के परस्पर निष्ठा, समर्पण, प्रेम और त्याग के आदर्श प्रतीक थे।
६ – राम ने सदा ही सीता को अपने से आगे रखा। स्वयं से ज्यादा उन्होंने सीता की चिंता की। इसी का परिणाम है, आज भी दुनिया राम से पहले सीता का ही नाम लेती है। यही कहा जाता है सीताराम या जय सियाराम।
7 – सीता के प्रति राम के प्रेम या राम के प्रति सीता के समर्पण के कारण ही राम कथा के प्रेमीजन सीता और राम के वियोग के बारे में सोचने से भी डरते हैं। सच्चा सम्मान यही है कि दोनों के नाम सदा साथ लिए जाएं।