रामसीता विवाह उत्सव

अपने पिता जनक के यहां क्यों नहीं गई सीता? 

 सीता जी के मन में राम जी के प्रति कोई दुराभाव नहीं था। कोई असंतोष नहीं था। यदि राम जी के प्रति सीता जी के मन में रोष होता, तो वे अपने बच्चों को उसी दिशा में शिक्षित करतीं, लेकिन माता ने लव और कुश को राम चरित का गान सिखाया। वनवास या वियोग के कारण राम के प्रति उनकी भक्ति तनिक भी कम नहीं हुई, क्योंकि वे जानती थीं कि राम कौन हैं। उन्होंने परिस्थितियों को समझा। यहां तक कि वाल्मीकि आश्रम के कर्ताधर्ता ऋषि वाल्मीकि भी राम के प्रति सम्मान भाव से परिपूर्ण थे। उन्हें ठीक से पता था कि उनके आश्रम में सीता जी रह रही हैं, अपने दोनों बच्चों को यहां पाल रही हैं, लेकिन वाल्मीकि जी ने भी बच्चों को राम के प्रति पूज्य भाव से ही भरा। सीता जी के जीवन में शिकायत का लेष मात्र भी नहीं है, जबकि वे सशक्त महिला थीं। राम द्वारा भौतिक रूप से त्यागे जाने के बाद वे अपने पिता राजा जनक के यहां भी जा सकती थीं। राजा जनक भी अपनी बेटी के साथ अन्याय के विरुद्ध आवाज उठा सकते थे, लेकिन वे भी इस बात से सहमत थे कि उनकी बेटी अपने बच्चों के साथ वन में आश्रम में रहें। यह सीता का अपना चयन था। अगर यह मान लिया जाए कि उन्हें पति से भौतिक रूप से दूर रहते हुए निश्चित रूप से कभी दुख होता होगा, तो भी उन्हें यह तो पता था कि वे और उनके पति नए भारत की मर्यादापूर्ण आधारशिला रख रहे हैं। राम और सीता के परस्पर विवाह से रामराज्य का आदर्श खड़ा हुआ, जो आज भी सभी को रोशनी दिखाने की क्षमता रखता है।


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