रामसीता विवाह उत्सव

रामसीता विवाह की अमर कहानी 

हिन्दू धर्म में राम को मर्यादापुरुषोत्तम कहा जाता है और जगतजननी सीता को साक्षात लक्ष्मी का रूप माना जाता है। राम और सीता की जोड़ी को आदर्शतम जोड़ी माना जाता है। भारतीय समाज में आज भी किसी अच्छे युगल जोड़े को देखकर अक्सर यह कहा जाता है कि राम-सीता की जोड़ी लग रही है। ऐसा माना जाता है कि राम और सीता का विवाह कार्तिक शुक्ल पंचमी को हुआ था।

सीता का स्वयंवर हुआ था और राम ने स्वयंवर की शर्त को पूरा करके सीता को अपनाया था। कई तरह की रामायण मिलती है और रामायण में कई तरह की कहानियां भी मिलती हैं, लेकिन तार्किक कथा यही है कि भगवान शिव के धनुष पिनाक पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त सीता स्वयंवर में रखी गई थी। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि सीता आसाधारण कन्या थी और वह खेल-खेल में उस धनुष पिनाक को उठा लेती है, जिसे उठाना सबके वश में नहीं था। राम भी आसाधारण व्यक्ति थे, उन्होंने स्वयंवर में पिनाक को आसानी से उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते हुए पिनाक टूट गया। राम जी को सीता मिल गईं, लेकिन भगवान परशुराम के क्रोध का निशाना बनना पड़ा। भगवान शिव का धनुष परशुराम जी ही सीता के पिता राजा जनक को संरक्षण के लिए दे गए थे।

परशुराम को भी राम से बातचीत में अहसास हो गया कि दशरथ पुत्र राम कोई साधारण मानव नहीं हैं, उन्होंने अपना धनुष राम को धारण करने के लिए कहा, यह वह धनुष था, जिसे धारण करना आसान नहीं था, लेकिन राम ने उस धनुष को आसानी से धारण कर लिया। परशुराम समझ गए कि धरती पर नए विष्णु ने अवतार ले लिया है। इसी विष्णु का आधा अंग हैं सीता। सीता और राम एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों ने मिलकर ही भारत का निर्माण किया और रामराज्य की स्थापना को बल प्रदान किया। सीता के बिना रामराज्य की स्थापना संभव नहीं।


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