The God is ill
15 दिन क्यों बीमार रहते हैं श्री जगन्नाथ ?
यह पूरा संसार ईश्वर की ही लीला या खेल या रचना है। धर्म की लोक परंपरा में ईश्वर की मानवीय लीलाओं का बड़ा महत्व है। लोगों को धर्म के साथ जोडऩे के लिए प्रचलित ये कथाएं आनंदित और चकित करने के साथ ही अच्छाई या अच्छे व्यवहार के लिए प्रेरित भी करती हैं। जरूरी नहीं कि आप ऐसी लीलाओं पर विश्वास करें, लेकिन ऐसी लीलाओं से प्रेरणा अवश्य लें, सबक सीखें और अपने जीवन में सुधार लाएं।
ऐसी ही एक कथा भगवान जगन्नाथ से भी जुड़ी है, जो सुनी-सुनाई जाती है। प्रश्न यह उठता रहा है कि भगवान जगन्नाथ प्रति वर्ष बीमार क्यों पड़ते हैं। इसके पीछे एक कथा बताई जाती है, जो इस प्रकार से है –
भारत के उत्कल या उड़ीसा राज्य के पुरी में भगवान जगन्नाथ के एक बड़े भक्त माधवदास जी रहते थे, वैरागी थे, उनके साथ कोई न था। केवल भगवान के स्मरण और ध्यान में उनका समय बीतता था। प्रतिदिन वे जगन्नाथ भगवान के विग्रह या मूर्ति का पूरे भक्ति भाव से दर्शन करते थे। वे भगवान को अपना सखा, स्वामी सबकुछ मानते थे।
एक बार भक्त माधवदास बहुत बीमार पड़ गए। उलटी-दस्त से पीडि़त होकर भगवान की मूर्ति के दर्शन से वंचित होने लगे। वे अत्यंत कमजोर हो गए, उनका जीवन मुश्किल में पड़ गया। उनके पास कोई सेवक नहीं था और ऐसे स्वाभिमानी थे कि किसी से सेवा लेना उन्हें पसंद नहीं था। जब उनसे कोई कहता था कि आपकी सेवा मैं कर देता हूं, तो वे जवाब देते थे, नहीं, नहीं, मेरी रक्षा तो भगवान जगन्नाथ को करनी होगी, तो वे स्वयं कर देंगे। भगवान की जैसी इच्छा, वही होगा।
एक समय ऐसा भी आया, जब वे उठने-बैठने की क्षमता भी खो बैठे। कमजोरी की वजह से अचेत हो गए। कथा है कि तब भगवान जगन्नाथ एक सेवक का मानवी रूप धरकर माधवदास की सेवा में उपस्थित हुए। हर प्रकार से भगवान ने अपने भक्त की सेवा की। वे चाहते, तो माधव दास को यों ही ठीक कर देते, लेकिन संसार में ईश्वर मानवीय लीला करके संभवत: दूसरों को प्रेरित करना चाहते हैं, इसलिए भगवान जगन्नाथ ने सेवा का रास्ता चुना। सच्चे भक्त माधवदास जी से भगवान को विशेष लगाव था। दुनिया के लगभग हर धर्म में यह बात है कि जब आप परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो परमेश्वर भी आपसे विशेष प्रेम करता है।
खैर, कुछ दिन-रात की अच्छी सेवा पाने के बाद माधवदास जी की चेतना लौटी। वे भी पहुंचे हुए भक्त थे, प्रभु को सेवक रूप में भी पहचान लिया।
माधवदास जी ने प्रभु से पूछा, हे भगवान, ये आपने क्या किया, आप मुझे यों ही ठीक कर देते, यह भी हो सकता है कि आप चाहते, तो मुझे कोई कष्ट होता ही नहीं।
तब भगवान ने जवाब दिया, हर किसी को अपना प्रारब्ध या विधि का लिखा भोगना ही पड़ता है। तुम्हारा बीमार होना, प्रारब्ध में लिखा था, तो मेरी सेवा भी लिखी थी। यदि इस जन्म के कष्ट से बच जाते, तो यही कष्ट भोगने के लिए तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ता। मैं नहीं चाहता कि मेरे किसी भक्त को कष्ट भोगने के लिए फिर अगला जन्म लेना पड़े। मैंने तुम्हारी सेवा इसीलिए की।
माधवदास जी को संकोच होने लगा, वे भगवान के चरणों में गिर गए और फिर हाथ जोडक़र कहा, हे भगवान, अभी मैं बीमार ही हूं, मेरी चेतना लौट आई है, अब आगे मैं आपसे कैसे सेवा लूंगा। जब मैं आपको पहचान गया हूं, तो आपकी सेवा कैसे स्वीकार करूंगा। कोई दूसरा उपाय कीजिए भगवान।
भगवान ने कहा, तुम सेवा लेना नहीं चाहते, लेकिन अभी तुम्हारे प्रारब्ध में 15 दिन की बीमारी और लिखी है। फिर ऐसा करते हैं कि ये 15 दिन की बीमार अवस्था तुमसे मैं ले लेता हूं।
ऐसा ही हुआ, इसलिए भगवान 15 दिन के लिए बीमार पड़ते हैं। भगवान की यह प्रेरणादायी लीला हर वर्ष जगन्नाथ पुरी में दोहराई जाती है। 15 दिन मंदिर बंद रहता है, उन्हें छप्पन भोग नहीं चढ़ता, काढ़ा-दवा और दूध इत्यादि का ही भोग लगाया जाता है। हर दिन वैद्य या चिकित्सक आते हैं और भगवान की स्वास्थ्य जांच की लीला होती है। भगवान जब 15 दिन की बीमारी के बाद स्वस्थ्य हो जाते हैं, तो रथ यात्रा का आयोजन होता है।
धर्म की लोक परंपरा में यह भगवान का मानवीयकरण है। यह भी कहा जाता है कि भगवान अपने तमाम भक्तों के कष्ट को कम करने या दूर करने के लिए ही बीमार पड़ते हैं। इस कथा का एक संदेश यह भी है कि कोई पाप न करो, जब आप पाप करते हो, तो ईश्वर को भी कष्ट होता है।
(देवदूत ईसा मसीह के बारे में भी यह कहा ही जाता है कि उन्होंने दुनिया के पाप को अपने ऊपर ले लिया था और सूली चढ़ गए थे। वे स्वयं तो पवित्र आत्मा थे, उन्हें जो भी कष्ट हुए, वो दुनिया में पाप के कारण ही हुए।)
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